इस जन्म के उस पार - 6 Jaimini Brahmbhatt द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इस जन्म के उस पार - 6

( कहानी को समझने के लिए आगे के पाठ अवश्य पढ़े 🙏🙏)

सूर्यांश को अच्छा नहीं लगा वो दादू ( विसंभर जी ) भी दिख गया था... वही विक्रांत चला जाता है... बाकि सब भी होटल चले गए थे.। रात को सूर्यांश बहुत बेचैन था वो जल्द से जल्द नंदिनी से मिलना चाहता था। वो नदिनी के दरवाज़े को अपने जादू की शक्तियों से खोल के अंदर चला जाता है. जहाँ नंदिनी आराम से सो रही थी.. प्यारी सी मुस्कुराहट लिए जैसे कोई प्यारी परी.!!। सूर्यांश उसे देख बैठ जाता है.। वो उसके चेहरे पर आये हुए बालो को हटा के कान के पीछे लगा देता है।

सूर्यांश जुक के नंदिनी के सर पे चुम लेता है जिससे नंदिनी उठ जाती है। दोनों एकदूसरे की आँखों मे देख रहे थे. वही नंदिनी थोड़ा ऊपर हो के उसके सीने से लग सो जाती है।

सूर्यांश भी अपने हाथ उसके इर्द गिर्द लपेट के उसके सर को चुम लेता है.., "नंदिनी..!!"

नंदिनी :- हम्म.!!!

सूर्यांश :- आज तुम बिच मे क्यों आई.? तुम्हे कुछ हो जाता तो.!!

नंदिनी उसे प्यार से देख उसके गले पर हाथ रख :- मेने अपनी ही जान बचाई है.!!चोट तुम्हे लगती या मुझे जान तो मेरी ही निकलतीं ना.!!

सूर्यांश नम आँखे हो जाती है.. वो नंदिनी के मुँह पर हाथ रख, "खबरदार. आयेंशिका आप ऐसा नहीं बोलेगी.!!"

नंदिनी उसके मुँह से अयांशिका नाम सुन हैरान हो जाती है.. ये वही नाम था जो सपने मे सुनते आई थी और आज भी बहुत बार उसने वो नाम सुना था।

नंदिनी उसका हाथ हटा के :- क्या कहा.?

सूर्यांश :-हा वो मेरे दिल ने कहा तो..!!आज पता नहीं.!

नंदिनी :- वरदान...!!!

सूर्यांश :- ये नाम.!!

नंदिनी :- इस नाम के सपने मुझे बहुत आते है.. और आज मुझे वहा जाके लगा की. मे.!

सूर्यांश :- की वहा हम पहले भी थे यही और वो आईने मे खुदको नये रूप मे देखा.. कुछ अजीब शक्तिया है.. यही ना.!!

नंदिनी उठा जाती है :- हां. यही मे अपनी और किसी की भी चोट को ठीक कर सकती हु.!!

सूर्यांश :- तभी मुझे ये लगा की.!

नंदिनी :- जैसे बरसो से हम चाहते है एकदूसरे को. ना जाने कितने वक़्त से इंतजार था..!!

सूर्यांश :- हा.. जैसे मे तुमसे कई बार मिला हु.. जैसे मर जाऊंगा तुम्हारे बिन.!!

नंदिनी सूर्यांश के गले लग के :- मे कुछ नहीं जानती बस इतना की मुझे तुम्हारे पास रहना है..सूर्या.!! I love u.!!

सूर्यांश उसके सर को चुम के :- i love u too.!!मे भी तुम्हे अपने पास ही रखूंगा.!!

सूर्यांश नंदिनी के हाथो को अपने हाथो से जोड़ के उसे चुम लेता है।नंदिनी उसे देख उसकी आँखों पर हाथ रख उसके होठो को हल्के से चुम लेती है। सूर्यांश मुस्कुरा के उसके हाथ को हटाता है और उसके सर को चुम के, "पागल..!!!"

नंदिनी मुस्कुरा के उसके सीने मे सर रख आराम से सो जाती है।सूर्यांश उसे अपनी बाहो मे भर के अपनी आंखे बंद कर सो जाता है।

इस तरफ यस्वी बेचैन सी घूम रही थीवो इधर से उधर चककर काट के बोले जा रही थी । "क्या करू महागुरु भी जवाब नहीं दे रहे है... वो विक्रांत ही क्रूर सिंह है.. क्या वो मुसीबत ख़डी करेगा.. नई मे हु ना.. ऐसे नहीं होने दूंगी."... वो किसी से टकरा गई और उसने उसे थाम लिया..!!

वीर🤨 :-तुम्हे क्या टकराने की बीमारी है,क्या नहीं होने दोगी.??

यस्वी 😏चिड़ा के ख़डी हो जाती है...वीर समझ जाता है की वो परेशान है... वीर 🙂,"क्या हुआ तुम परेशान क्यों हो..?"

नंदिनी 😠वीर पर भड़क जाती है और उसे ऊँगली दिखा के पीछे ले जाते हुए :- तुम..!!!तुम्हारी वजह से सब हुआ.. ना तुम आइसक्रीम खाने कहते.. ना एक्सीडेंट होते होते रहता.. तुम सबकी जद हो.. तुम इंसान हो या बेल.. बुद्धि या दिमाग़ ही नहीं तुमम्मे आज अगर दीदी को कुछ.. कुछभी.. होता ना.. तो मे तुम्हारी जान ले लेती... समझे तुम गधे.!!!

वीर दीवार से सत चूका था.. वो समझने की कोशिश कर रहा था की यस्वी को हुआ क्या है..? क्युकी उसे यश्वी के आँखों मे डर दिखा.. उसने उसकी ऊँगली पकड़ हाथ को थाम लिया.. और प्यार से उसके चेहरे पर हाथ रख, "ज़ब दिल परेशान हो ना तो कीसी को हग कर लेना चाहिए.!!सारी परेशानी दूर हो जाती है.. ज़ब कोई तुम्हे गले लगाकर ये कहे.!!"ये बोल वीर ने उसे अपनी बाहो मे भर लिया.. और प्यार से सर सेहलाते हुआ बोला,"सब सही हो जायेगा यस्वी.!!सब सही होगा.!"

यस्वी को इसकी ही जरुरत थी उसकी पकड़ भी वीर के कंधो पर बन गई जो डर के आंसू इसने बंद कर रखे थे.वो वीर के कंधो पर आजाद हो गए.. वीर ने जब ये महसूस किया तो वो डर गया क्युकी उसने अबतक यश्वी की रोते हुए नहीं देखा था...!!वीर उसका चेहरा भर के, "यस्वी क्यों रो रही हो.?क्या हुआ मुझे बताओ.??"

यस्वी सिसकते हुए, "वो.. दी.. दीदी को कुछ हो जाता तो.. मे अनाथ हो जाती ना.मेरा कोई नहीं है.. सिवा दीदी के आज वो.. गा... वो 😭😭"

वीर ने उसे फिर से अपनी बाहो मे भर लिया.. आज वीर को यस्वी का रोना बिलकुल अच्छा नहीं लगा था.. ना जाने क्यों उसकी आँखों के आँसू वीर के दिल को भिगो गए.!!!कुछ देर बाद ज़ब वीर ने देखा यस्वी हिल नहीं रही थी तो उसने उसे दूर किया तो यस्वी बेहोश हो गई थी। वीर उसके गाल थपथपाते :- यसु.. यस्वी..!!उठो..!!वो उसे अपनी बाहो मे उठाकर कमरे मे ले गया.. और पानी की बूँद छिड़की की यस्वी होश मे आई जिसे देख वीर की सास मे सास आ गई।

यस्वी उठते हुए, "मे. ठीक हु.. वो बस चक्कर.आ गया था। तुम जाओ.!"

वीर उसे वापस लेता के उसके पास बैठते हुए :- शशष.!!हर बार जिद या झगड़ा करना जरुरी नहीं होता आई बात समझ.!!चुप हो के लेती रहो.!!

यस्वी को ना जाने वीर की आँखों मे क्या दिखा.. वो बिना बहस किए लेट जाती है। वीर उसका सर सेहलाने लगता है तो यशश्वी कुछ ही देर मे सो जाती है.. वीर उसे देख, "सोते हुए ही मासूम लगती हो. भागेश्री.!!वरना तो तोप का गोला है ज़ब देखो तब आग बरसाने लगती है।पर तुम ना कुछ भी करो यार रोया मत करो मुझे अच्छा नहीं लगा तुम्हारा रोना..!!!"वीर ये बोल प्यार से उसे देखता रहता है.।



केसी लगी अबतक की स्टोरी??