इस जन्म के उस पार - 7 Jaimini Brahmbhatt द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इस जन्म के उस पार - 7

( कहानी को समझने के लिए आगे के पाठ अवश्य पढ़े 🙏🙏)

सुबह सूर्यांश की आंख जल्दी खुल जाती है। वो अपनी बाहो मे आराम से सोइ हुई नंदिनी को देखता है.उसके चेहरे पर प्यारी मुस्कान आ जाती है। वो नंदिनी के सर पर प्यार से किस करता है तो नंदिनी की आँखे खुल जाती है.. वो मुस्कुरा के, "गुड मॉर्निंग..!!love.!!"सूर्यांश भी उसे देख,"गुड मॉर्निंग. माय ब्यूटीफुल.!!"

नंदिनी उठ जाती है. सूर्यांश भी उठ के बैठ जाता है..!!नंदिनी उसे प्यार से देख, "सूर्या..!!"

सूर्यांश उसके बाल को सही करते हुए , "हम्म.!!"

नंदिनी उसका हाथ थाम, "तुम दादू से बात करो हमारी शादी के बारे मे.!!"

सूर्यांश उसका हाथ चूमते हुए, "हम्म.!!मे कर लूंगा.!!"

नंदिनी :- अच्छा अब जाओ., और बात करो.!!

सूर्यांश :- अभी..!!

नदिनी := हम्म.. जाओ.!

सूर्यांश :- पर नंदू.!!ये बोलते नंदिनी ने उसे बाहर निकाल दिया.!!

सूर्यांश मुस्कुराते हुए चला गया और नंदिनी भी फ्रेश होने चली गई.!

उधर जब यस्वी उठी तो उसका हाथ थाम वीर पास ही बैठे बैठे सो रहा था।यस्वी के चेहरे पर ना चाहते हुए भी मुस्कान आ गई उसने धीरे से अपना हाथ निकला और वीर को आराम से बेड पे लेटा दिया..!!और खुद बाहर निकल गई.

सब बाहर नास्ते के लिए आये पर यस्वी नहीं दिखी.!!वीर की नज़रे उसे ही खोज रही थी.. वीर मन मे :- ये यशू कहा गई.. यार नाराज़ तो नहीं हो गई.. नाराज़ पर किस बात पे..? और मे क्यों सोच रहा हु इतना.!!वो नंदिनी से पूछना बेहतर समझता है।

वीर :- नंदिनी.. यस्वी कहा है.??

नंदिनी :- हा वो अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए यही आसपास कुछ करने गई है.!!आजायेगी अभी थोड़ी देर मे.!!

वीर हा मे सर हिला देता है।

वही सूर्यांश और नंदिनी अलग ही दुनिया मे थे.. जिसे दादा - दादी और आनंद जी जान गए थे..। दादी :- अच्छा आनंद मेने ना गुड़िया के लिए एक लड़का देखा है.!!

ये सुनते ही सूर्यांश को थसका लग गया.. वो खसने लगा.!!!वीर उसकी पीठ सेहला कर उसे पानी देता है।

आनंद जी :- दादी आपकी बात मेने ताली है क्या.?? आपने देखा है तो अच्छा ही होगा.!!

नंदिनी सूर्यांश की तरफ देख मन मे :- कुछ करो ना.!!

सूर्यांश उसे आँखों से इशारा कर :- दादी कौन है.. मे जानता हु क्या उसे.?

दादा :- हा तू तो बड़े अच्छे से जानता है.!!
दादी :- और मेने ना उसे यही बुला लिया है.!!तुम और नंदिनी एक बार देख लो.. जाओ उस कमरे मे है.!!

सूर्यांश और नंदिनी वहा की और जा रहे थे.. वही वीर हस्ते हुड :- क्या बात है दादी.. आप तो कमाल की प्लेनर है.!!

वही नंदिनी धीरे कदमो से चल रही थी और धीरे से :- तुम कुछ करो ना सूर्या.!!मुझे नहीं देखना किसी लड़के को.!!

सूर्यांश उसका हाथ थाम के :- मे हु ना कुछ नहीं होगा.!!चलो भी.!!मन मे 😠😠:- कोई भी लल्लू मेरी जान को मुझसे दूर नहीं कर पायेगा.!!

इधर यस्वी महागुरु के पास थी..

यस्वी :-- महागुरु अगली पूर्णमासी के पहले उन्हें सब याद करना है.!!पर कैसे.?

महागुरु :- अब तो एक ही रास्ता है.!!

यस्वी :- कौन सा.??

महागुरु :-सच ए अक्स आइना.!!

यस्वी :- समझ गई की मुझे उन्हें उस आईने के सामने वापस लाना है पर इस बार एक साथ है ना.!!

महागुरु :- हा.!!कोशिश करना की दोनों एकसाथ आये तभी वो आइना अपने जादू से उन्हें हकीकत बताएगा.. हां पर उतनी जितनी वो जानता है..!!समझ गई ना तुम यस्वी.!!

यस्वी :- जी महागुरु (वो महागुरु के पैर छूती है )मे पूरी कोशिश करुँगी ये बोल वो चली जाती है..

दोनों कमरे के पास पहुंच जाते है तो नंदिनी अंदर जाने से मना कर देती है..!सूर्यांश उसे ले अंदर जाता है तो सामने तीन आईने थे.. वहा सूर्यांश, "यहां तो कोई नहीं है.??"

"ठीक से देख लड़का मिल जायेगा.!!"दादी ने आते हुए कहा।

दादाजी ने नंदिनी के सर पर हाथ फेर उसे आईने मे सूर्यांश का अक्स दिखा के,"नंदिनी बेटे क्या तुम्हे ये लड़का पसंद है.?? "

नंदिनी शर्मा के नज़र झुका लेती है सूर्यांश समझ के मुस्कुरा देता है.!!, "आपको पता था दादी.?"

दादाजी उसके कान खींच :- हा बरखुरदार आपकी हरकतो से.!!😄😄😄

नंदिनी वहा शर्मा के चली जाती है. और सूर्यांश भी कान छुड़ाके उसके पीछे चला जाता है.. दादा :- आनन्द तुम्हे कोई एतराज़ तो नहीं.!!

आनंदजी :- नहीं अंकल आपके घर मे मेरी नंदिनी ख़ुश ही रहेगी और अब ज़ब वो सूर्यांश को पसंद करती है तो मुझे क्या एतराज़ होगा.!!

दादी :- अब यही सगाई कर देते है. क्यों.??

"बहुत ही अच्छा ख्याल है दादी.!!"पीछे से आती हुई यस्वी ने कहा. उसे देख वीर का चेहरा आप ही खिल गया।

आनंदजी :- तब तो हमें बहुत सारी तैयारी करनी पड़ेगी यशू.!!

यशवी :- ओहो पा.. क्या प्रॉब्लम है. आपकी छोटी बेटी है ना सब संभाल लेगी 😉.!!

वही नंदिनी गार्डन मे चली गई थी.. सूर्यांश वहा आकेउसे अपनी तरफ खिंचते हुए ,"तो अब क्या शर्माना.?? अब तो आप ऑफिसशयली मेरी होने वाली है.!!"

नंदिनी उसकी और देख :- मे तो आपकी ही हु.!!

सूर्यांश उसके माथे को चुम के :- हा., शायद हमेशा से.!!

नंदिनी मुस्कुरा दी.!!वही वीर यस्वी से बात करने की कोशिश कर रहा था।यस्वी चीड़ के :- क्या h😠😠??

वीर 😒:- अजीब हो तुम. थैंक यु कहने की जगह गुस्सा कर रही हो.?

यस्वी अपनी छोटी आँखों से उसे घूर के :- किस बात का थैंक यू.. बेवकूफी का.!!

वीर :- अरे पर मे. वो.!!

यस्वी :- क्या वो. मे हु..!!सब तुम्हारी गलती थी.. इन्फेकट तुम आदमी ही गलत हो.!!

वीर :- अरे यार अच्छा हम दोस्त नहीं बन सकते क्या.??

यस्वी :- दोस्त और तुम.??

वीर :- क्यों क्या खराबी है मुजमे.!!दोस्ती करने मे क्या प्रॉब्लम है तुम्हे.??

यस्वी 😏:- सबसे बड़ी प्रॉब्लम ही तुम हो.!!वो चली जाती है वीर अपना सर खुजलाते हुए, "ये लड़की मुझे बातो मे उलझा गई.. फिर खुद के ही सर पर मार के वीर तू पागल है.!!"

यस्वी उसे देख मुड़कर मुस्कुराते हुए :- पागल..!!!


सब सगाई की तैयारी ओ मे लग जाते है वही यस्वी अपनी प्लानिंग करती है की कैसे वो उन दोनों को वहा तक लाएगी और आईने के सामने खड़ा करेंगी..!!!


-----------=------==--==-----==-**----====(-*-=(