इस जन्म के उस पार - 16 Jaimini Brahmbhatt द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इस जन्म के उस पार - 16

(कहानी को समझने के लिए आगे के भाग जरूर पढ़े 🙏🏻🙏🏻छोटा सा रिमाइंडर...., अब तक आपने देखा की सूर्यांश, नंदिनी, वीर और यस्वी को पता चलता है की सूर्यांश और नंदिनी का ये दूसरा जन्म है पिछले जन्म की कहानी जानने वो किसी आईने के सामने बैठे है जो उन्हें सब दिखा रहा है... जिसमे वरदान और अयंशिका यात्रा के बाद अपने अपने महल पहुंच गए है.. अब आगे.!!)


वरदान और अयंशिका अपने महल वापस आ गए थे.. अयंशिका को एकबार वरदान से मिलना था.. पर मिल ना पाने पर वो थोड़ी उदास थी.!!वही वरदान भी अयंशिका के लिए खरीदी हुई पायल देख रहा था.!!

अयंशिका रात को तस्वीर बना रही थी की उसके आंख मे वरदान का चेहरा आ जाता और वो उसकी ही तस्वीर बना देती है. जिसे देख चपला मुस्कुरा के. "लगता है राजकुमार वरदान को कोई बहुत याद कर रहा है.!!"

अयंशिका झेपते हुए, "न. नहीं तो वो बस ऐसे ही बन गई.!!"

चपला :- ऐसा है क्या.??

वही वरदान अपने कक्ष मे बैठा के तभी एक आठ साल की छोटी बच्ची आके उसके आँखों पर अपने नन्हे नन्हे हाथ रख के, "बताओ कौन.??"

वरदान हाथ पर हाथ रखते, "अहं.. ये तो ये तो मेरी बहन है 😄ये बोलते हुए वो बच्ची को आगे ले के अपनी गोद में बैठा लेता है.. तो बताइये राजकुमारी आप के भाई क्या सेवा करें आपकी.!!"

बच्ची मुँह फुलाकर, "राजकुमारी आपसे नाराज़ है.!!आप क्यों गए थे अकेले यात्रा पर अपनी यशवी को छोड़ के.!!"

वरदान :- अरे यस्वी हम अकेले थोड़ी गए थे.. वहा शान, धर्म और संजय भी थे हमारे साथ.!!




(सूर्यांश यस्वी के सामने देख के हैरान था की यस्वी भी नम 🥺 आँखों से उसे ही देख रही थी...

वीर 😮:- मतलब तुम वही यस्वी हो.. एक मिनिट अगर तुम बो हो तो इतने सालो तक जिन्दा कैसे रही..??

यस्वी 😔:- आगे देखो सब पता चल जायेगा.!!पर मुझे 🙂ख़ुशी है की भईया और नंदिनी आपको देख के.!!

सूर्यांश उसके सर पर हाथ फेर :- तभी तुम अपनी सी लगी.!!

सूर्यांश वापस अपनी जगह पर बैठ जाता है.. वही वीर यस्वी का हाथ पकड़ आँखों से ही सब सही होने का इशारा करता है।)



वरदान यस्वी को बैठा के उसके पास बाते करने लगता है। वरदान :- पता है यस्वी वहा एक पागल भी मिली थी.. अयंशिका.!!

यस्वी :- अयंशिका.. नाम कितना प्यारा है और पागल क्यों.??

वरदान :- अरे...!!हमने कहा ना इसलिए.!!😄

यहां अयंशिका भी वरदान को याद सो जाती है।

अगली सुबह महाराज राय अयंशिका से मिलने आते है..!!

अयंशिका :- पिताश्री.!!

महाराज राय :- हम्म.. तैयार हो जाइये अयंशिका. हम चुनारगढ़ जा रहे है।कल वरदान का युवराज के तोर पर राज्याभिषेक भी है और महाराज रायविदु चाहते थे की आपके जन्मदिन का उत्सव भी वही मनाया जाय.!!!

अयंशिका ख़ुश हो जाती है वो तैयारी करने लगती है और खास कर खीर बनाती है वरदान के लिए.!!

चुनारगढ़ महाराज अराविदु भी वरदान को यही बात बताते है की वरदान ख़ुश हो जाता है।

वरदान मन मे :-अयंशिका आप आ रही है ना.. आपकी पायल ही दूंगा मे आपको तोहफ़े मे.!!!

वही महागुरु चिंता मे थे... वो आसमान देखते हुए, "ये क्या अनर्थ हो गया महादेव.!!वो काली शक्ति जागृत हो चुकी है.!!वो भी अयंशिका के खून से कुछ भी कर उसे रोकना होगा.. राजकुमारी अयंशिका को जल्द ही अपनी शक्तिया जागृत करनी होंगी.!!रक्षा करना महादेव.!!"


वही महाराज रामदेव अराविदु बहुत बड़े स्वागत समारोह का आयोजन करते है की महाराज मल्लिकार्जुन राय अपनी बेटी के अयंशिका के साथ वहा आ पहुंचते है।वरदान इस वक़्त तैयार हो रहा था। महाराज अराविदु महाराज राय को आदर सत्कार कर अंदर लाते है वही अयंशिका चारो तरफ वरदान को ढूंढ रही थी।

यस्वी भाग के वरदान के पास आती है, "चलो ना भईया वो लोग आ गए.!!"

वरदान यस्वी को गोद उठाकर लेकर जाने लगता है।यहां अयंशिका वरदान की माँ से मिलती है।

महारानी जयश्री :- अयंशिका बड़ी ही प्यारी है आप अब भी बचपन मे देखा था आपको.!!

महाराज अराविदु और महाराज राय बाते करने चले जाते है की अयंशिका, "क्या हम महल देख सकते है.??"

महारानी जयश्री :- जरूर.. वो ताली बजा के दो दासियों को बुलाती है..!!सुनो राजकुमारी को पूरा महल दिखाओ.!!

अयंशिका वहा चली जाती है। वो महल देखने लगती है यहां वरदान महाराज राय से मिल उनके पैर छूता है। महाराज राय :- अंह.. आपकी जगह तो हमारे दिल मे है सेर.!!वो वरदान को गले लगा के सदा ख़ुश रहिए.!!वरदान की नज़रे तो बस अयंशिका को ही ढूंढ रही थी।

यहां अयंशिका को धर्म मिल जाता है "धर्म भईया...!!"

धर्म :- अरे, अंशी.. कब आई आप.??

अयंशिका :- बस अभी.. वैसे वो.. वरदान कहा है.??

धर्म :- हनन.. वरदान हा.. होगा अपने कक्ष मे यहां से बाई तरफ उनका कक्ष है जाइये.!!

अयंशिका मुस्कुरा के वहा चली जाती है की धर्म चपला से :- मुझे तुमसे जरुरी बात करनी है.. एकांत मे शाम को.. आना जरूर.!!वो चला जाता है और चपला सोच मे डूब जाती है की जाये या ना जाये.!!

वरदान दोनो महाराज की बाते सिर्फ सुन रहा था उस पर गौर नहीं कर रहा था.. उसका ध्यान तो अयंशिका को ढूंढ़ने मे लगा हुआ था।

यहां अयंशिका वरदान के कक्ष मे चली जाती है.!अयंशिका 😠, "ये राजकुमार है या हवाहवाई ज़ब देखो तब गायब रहते है वहा थे नहीं यहां भी नहीं.. गए कहा घूमने.!!"वो बड़बड़ाते हुए वरदान के कक्ष मे घूम रही थी की उसकी नज़र आईने के सामने रखी पायल पर पड़ी उन पायल को ले,"बुरे है वरदान. हमारा तोफा हमें दिया ही नहीं और खुद रख लिया.!!"

यहां वरदान :- वो मे. मुझे.. मे अभी आया पिताजी.!!वो अपने कक्ष की तरफ चला जाता है।

यहां अयंशिका उसके बिस्तर ( बेड )पर बैठ जाती है और अपने मे ही बोल रही थी 😤, "कितने प्यार से खीर बनाई थी पर नहीं ये तो यहां घूमने मे ही लगे पड़े है..!!"

वरदान अंदर आते ही अयंशिका को शिकायते कर देख लेता है। और वही दीवार से टेक लगाए उसकी बाते सुनने लगता है। अयंशिका 'पागल हमें कहते है खुद तो है अकड़ू.. नहीं अकड़ू सान...!!"अयंशिका की बोलते हुए रुक जाती है क्युकी वरदान उसके पास पीछे से उसे बाहो मे भर के बैठा था.. वरदान की छुआन से अयंशिका की दिल की धड़कन तेज हो गई थी उसने अपनी आँखे कसके बंद कर ली 😣.!!

वरदान उसके बालो को कान से हटा के, "बोलो ना अकड़ू क्या.??"

अयंशिका कुछ नहीं कहती तो वरदान उसे खुदकी और पलट देता है अयंशिका के दोनों हाथ वरदान के कंधे पर थे.और वरदान का एक हाथ उसकी कमर के पास था और दूसरा उसके चेहरे से बालो को हटा रहा था।

वरदान धीरे से अयंशिका के चेहरे के करीब अपना चेहरा कर, "बोलो ना.. अकड़ू.. क्या.?? याद किया हमें आपने.. क्युकी हमने आपको बहुत याद किया आपके बिना ये दो दिन दो साल से ज्यादा बुरे गुजरे हमारे.!!"वो अयंशिका के सर से सर को लगा के "बोलो ना. आप कुछ कह रही थी.!!"

अयंशिका धीरे से अपनी आंख खोल के वरदान को देखती है जो उसे ही देख रहा था.. अयंशिका मुस्कुरा😊 के उससे दूर चली जाती है वो ख़डी हो के जाना चाहती है की वरदान उसका हाथ पकड़ लेता है। अयंशिका की सांसे तेज हो जाती है वही वरदान उसे पीछे से बाहो के घेरे मे लेकर उसकी कंधे पर अपना चेहरा टिका के, "आप कौन है.?? आप हमारी अयंशिका नहीं हो सकती. वो तो कितना बोलती है. हमें भी मौका नहीं देती बोलने का आज चुप क्यों.??"

अयंशिका :- आप दूर रह कर बात करिये ना.!!

वरदान😊 :- क्यों.??

अयंशिका ☺️:- वो.. हम आपके लिए खीर बनाकर लाये थे..।अयंशिका बड़ी मुश्किल से बोल पाई थी। वरदान उसे छोड़ के उसका हाथ पकड़ अपने सामने बैठा के, "लाई है तो खिला भी दीजिए ना.!!"

अयंशिका😳 :- हम खिलाये.??

बरदान 😍:- क्यों.?? धर्म और बाकि सबको आपने खिलाया था ना हमें क्यों नहीं चलिए खिलाये.!!

अयंशिका उसे मुस्कुरा के अपने हाथो खीर से खिलाती है। वरदान उसके हाथो को चुम लेता है😘.. वरदान😍, "आपके तरह थी मीठी.!!"

अयंशिका शर्मा जाती☺️ है तो वरदान उसके हाथ मे वो पायल देख, "ये.. पायल.!"

अयंशिका :😌- ये हमारी थी आपने हमें नहीं दी तो हमने खुद लेली.!!

वरदान :-🤨 अयंशिका इसे चोरी कहते है।

अयंशिका :-😲खुद की चीज़ लेना कबसे चोरी हो गया।

वरदान :- 😏वो आपकी तब होती ज़ब हम आपको देते.. हमने तो दी ही नहीं ना लाइए दीजिए.!!वैसे भी ये हमें किसी और को देनी है!!

अयंशिका ये सुन उदास हो जाती है.😒😔. "सच मे.??"

वरदान :- 😒हा सच मे दीजिए.!!वरदान अपना हाथ आगे करता है और अयंशिका उसे पायल दे चली जाती है। वरदान हस्ते हये :😌- पागल.. ये आपकी ही है बस आपके जन्मदिन पर देंगे आपको.!!




--------बाकि अगले भाग मे ---------