इस जन्म के उस पार - 14 Jaimini Brahmbhatt द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इस जन्म के उस पार - 14

( कहानी को समझने के लिए आगे के भाग जरूर पढ़े 🙏)


अयंशिका वरदान को थप्पड़ मार के 🥺😭, "आप बहुत बहुत बुरे हमें लगा की हमें अच्छा दोस्त मिल गया लेकिन नहीं आप तो अपने काम की वजह से.!!छी.. आज के बाद कभी भी हम आपसे बात नहीं करेंगे."

वो चली जाती है उसके पीछे चपला और माधवू भी चली जाती है। धर्म 😠 :- आप ने सच मे सही नहीं किया राजकुमार.!

शान :- हा वरदान बेचारी का दिल तोड़ दिया आपने.!!

वरदान 😠:- तरफदारी मत कारो उसकी.. इतनी रात को यहां आने का मतलब भी क्या.?

धर्म :-वो जानबूझकर नहीं आई.,अयंशिका को किसीने समोहित किया था इस वजह से वो यहां पहुंच गई थी.ज़ब चपला ने उन्हें नहीं देखा तो वो मेरे पास आई थी मदद मांगने क्युकी अयंशिका उन्हें नहीं मिल रही थी।

संजय :- और वैसे भी हमें उनकी योजना के बारे मे पता है।

सब चले जाते है.. अगले दिन आरती आती है तो वो माधवी लेकर आई थी। वरदान को ना जाने क्यों अच्छा नहीं लगा.!!यात्रा चल रही थी.वही धर्म और चपला बात कर रहे थे।धर्म :- मुझे ऐसा क्यों लगता है की कोई अंशि को चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.!!

चपला :- हा मुझे भी ऐसे ही लगा इसलिए मे ज्यादा सावधान हु.!!

अयंशिका वरदान को पूरा अनदेखा कर रही थी.चलते चलते वरदान की नज़र अयंशिका पर चली गई.. जो अयंशिका मुस्कुराते, गाते हुए चलती थी. आज उसके चेहरे पर उदासी का घेरा था जो वरदान को अच्छा नहीं लग रहा था।एक बार दोनों साथ हो गए तभी अयंशिका गिरने को हुई वरदान संभालने के लिए आगे बढ़ा ही था की अयंशिका ने हाथ दिखा के उसे वही रोक दिया। और खुद आगे चलने लगी..!!

दोपहर को सब आराम कर खाने के लिए रुके.. वरदान अयंशिका की बाते उसके साथ बैठके खाना याद कर रहा था। की वही शान आता है।

संजय :- अरे वरदान तूने खया क्यों नहीं.?

वरदान :- भूख नहीं है.!!

धर्म :- खाने की भूख नहीं है की अयंशिका के बिना भूक नहीं है।

वरदान वहा से उठकर चला जाता है।दो दिन बाद एक दिन यात्रा रात्रि मुकाम के पड़ाव डालती है.अयंशिका वहा से थोड़ी दूर जंगल के पास नदी के पास बैठी थी.,वही रात को चारो जंगल की और टहल रहे थे की शेरा उन चारो पर हमला करता है।चारो लड़ रहे थे जिसकी आवाजे अयंशिका तक आ जाती है।की शेरा वरदान पर पीछे से वार करता है.. जिसमे अयंशिका बीच मे आ जाती है. धर्म उसे देख, "अंशी....!!"लेता है।

वरदान पलट के अयंशिका को अपनी बाहो मे थम लेता है। और धर्म उस आदमी को मार देता है।तलवार अयंशिका के पेट की दाई तरफ लगी थी।धर्म उसके सर पर हाथ फेर,"अंशी.. कुछ नहीं होगा हम्म..!!"

अयंशिका अब भी वरदान की तरफ नहीं देख रही थी वो धर्म से 🥺🙂, "अब हमने तो झूठ नहीं कहा था ना भईया.. हमने तो दोस्ती की थी. जो आज निभा भी दी.!"

धर्म उसको अपनी गोद मे उठा के पड़ाव मे ले जाता है जहाँ माधवी वैधजी को ले आती है।अयंशिका को मरहम लगा उसका उपचार कर बाहर आते है... सब बाहर ही थे वरदान, सान, धर्म, संजय, माधवी, चपला, नीलाक्षी सब.!!

वैधजी, "देखिए, रक्त का बहाव रोक दिया है मेने और औषधि भी लगा दी है.. जल्द उन्हें होश आ जायेगा.!"वो चले जाते है।

यहां चपला वरदान पर गुस्सा करती 😠'तुम ना निहायती बेवकूफ हो और दुसरो को कहते हो.. अयंशिका तो मासूम है. जिसे सिर्फ रिश्ते निभाना आता है नाकि तुम्हारी तरह ढोंग करना आज भी उसने अपना रिश्ता निभाया.!"

वरदान बस अयंशिका को देखे जा रहा था। वही शान, "चपला शांत हो जाओ.. अभी इस बारे मे बात नहीं करते.!!"

सब शाम की आरती मे जाते है वही वरदान अयंशिका के पास था.. वो उसका हाथ पकड़ बैठ जाता है.. उसे आज ये खामोश अयंशिका अच्छी ही नहीं लग रही थी..

वरदान उसके सर को सेहला के, "अयंशिका.. उठिये.., चलिए आरती मे आप तो रोज़ जाती है ना. और मुझे आरती कौन देगा.?? खाना भी बाकि है.. चलिए उठकर अपनी बकवास करिये.. इतने दिनों से आपकी आवाज नहीं सुनी.. अयंशिका... (वो उसके हाथ पर सर टिका देता है की उसे अपनी आँखों से आंसू के निकलने का एहसास होता है.. जिन्हे अपने एक हाथ से साफ )कर,"आज आपकी वजह से हम रो रहे है अयंशिका.. हमें माफ़ कर दीजिये.. आइंदा कभी ऐसा नहीं करेंगे. माफ कर दीजिए.!!"

चपला आरती लेके आती है तो वरदान बड़े ही प्यार से आरती ले सोती हुई अयंशिका के सर पर लगा देता है। कुछ देर बाद अयंशिका होश मे आती है.. वरदान ख़ुशी से उसके सर पर हाथ फेर, "केसा लग रहा है अयंशिका.?'

अयंशिका उससे अपना हाथ छुड़ा लेती है और मुँह भी घुमा लेती है.. वो धीरे से आवाज करती है,"चपला..!"

वरदान :- वो चपला खाने के लिए गई है आ जाएगी.!!

अयंशिका खुद उठने जाती है तो वरदान उसे रोक के, "आप अभी घाव हरा है.. उठिये मत.!!"

अयंशिका उसकी बात नहीं मान रही थी पर उसे दर्द हो रहा था जो वरदान से देखा नहीं गया.. वो उसे कंधो से पकड़ के जबरदस्ती आराम से बैठता है। खुद उसके सामने बैठ जाता है की अयंशिका अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा देती है।

वरदान उसके चेहरा निचे से पकड़ अपनी और करता है., "हमारी तरफ देखिए अयंशिका.!!"अयंशिका अपनी आँखे बंद कर देती है।

वरदान 😔,"आप हमें जरा भी माफ़ नहीं कर सकती.!!"

अयंशिका उसकी तरफ देखती है तो ऐसा लग रहा था मानो की सारी नदिया उसकी आँखों मे समाई हो जो कभी भी बह जाएगी🥺.. "आप को तो ख़ुश होना चाहिए.. अगर हम मर. जाते तो दुनिया से एक पागल और कम हो जाता.!!"

वरदान झट से उसके मुँह पर हाथ रख,🤫 "खबरदार अयंशिका आप ऐसा नहीं बोलेगी.!!"आज ये बात सोचकर भी वरदान की धड़कन बढ़ गई थी।

अयंशिका उसका हाथ हटा देती है.. वरदान उसके चेहरे के नजदीक जा के उसके गालो पर हाथ रख उसकी आँखों मे देख ,'हमें हमारी दोस्त लोटा दीजिये अयंशिका.!!हमे आदत है उनकी.. रोज़ सुबह शाम उसके बातो की. उसके ख्याल रखने की. अभी आरती. अभी खाना.. इतना चलना सबकी आदत है. हमें.. हम माफ़ी मांगते है आपसे.. आज के बाद कभी गुस्सा नहीं करेंगे.. हमें माफ कर दीजिए.!!'

अयंशिका अपना हाथ आगे कर,"हमें वचन दीजिए कभी हमसे झूठ नहीं बोलेंगे.. कभी हमारा विश्वास नहीं तोड़ेंगे.!!'

वरदान झट से उसके हाथ को अपने दोनों हाथो से थम के."पक्का वचन.!!कभी नहीं.!!"वो आगे बढ़ के अयंशिका का सर चुम लेता है जिससे अयंशिका के सारे आंसू निकल जाते है.. वरदान उसे अपने सीने से लगाए चुप करवाता है।

कुछ देर बाद ज़ब अयंशिका चुप होती है तो वरदान इसके आँसू साफ कर,"आपको पता है ज़ब आप रोती है ना तो आपकी ये छोटू सी नाक लाल हो जाती है।"ये बोल वो उसकी नाक को छू देता है।

चपला वहा खाना लेके आती है तो वरदान उसके हाथ से थाल ले खुद अयंशिका को खिलाने लगता है। फिर उसे आराम करने के लिए कहता है।

यहां धर्म बहुत परेशान था.. वही चपला और वो दोनों बाते करते है की वरदान सुन लेता है।

धर्म :- पता नहीं चपला ऐसा लगता है कोई है जो अंशी के ऊपर नज़र रख रहा है..!!

चपला :- हा मुझे भी लगता है उनकी जान को खतरा है।

"और ये खतरा किस्से है उन्हें.!"पीछे से वरदान ने कहा।

धर्म और चपला हैरान हो जाते है... धर्म कुछ बोलता उससे पहले ही वरदान,"हमें सिर्फ सच सुनना है.!"

धर्म लम्बी सास छोड़ के :- दरसल वो.. अंशि... राजकुमारी है.!!मतलब वो यहां आम लोगो की तरह यात्रा करने आई है। वो विजयनगर की राजकुमारी अयंशिका है।

वरदान हैरानी से :- क्या कहा.?? वो विजयनगर की राजकुमारी है.!!वरदान तुरंत अयंशिका के पास चला जाता है।वो अयंशिका के चेहरे को देख याद करता है..!!

(विजयनगर और चुनारगढ मे मित्रता है.. ज़ब कुछ सालो पहले विजयनगर मे बच्ची के जन्म का उत्स्व था की वही महराज रामदेव अराविदु भी अपने पुरे परिवार के साथ आये थे. करीब तीन साल का राजकुमार वरदान एक पालने मे झूल रही राजकुमारी के पास जा के, "माँ ये कितनी प्यारी और मासूम सी है ना.!!आपका नाम क्या है.??

महाराज अराविदु :- वरदान उनका नाम अयंशिका है..!!

वरदान झूला झूला के ' अरे वाह अयंशिका..!!हम आपके लिए कुछ लाये है.. ये बोल वो उन पायल को अयंशिका के पैर मे रखता है तो अयंशिका खिलखिला उठती है।)

वरदान मुस्कुरा 🙂के : -आप आज भी उतनी ही मासूम है अयंशिका.!!हमारी अयंशिका..!!वो ये बोल उसके माथे पर चुम लेता है।

धर्म और चपला उसे ही देख रहे थे की चपला,"तो क्या आप राजकुमार वरदान है.!"

धर्म हा करता है तो चपला को सारी बाते बताता है। वरदान, "अब तुम दोनों बताओ क्या बात थी.?"

चपला :- वो राजकुमारी को किसीने संमोहित किया था। तो हमें लगता है की कोई बार बार राजकुमारी अयंशिका को चोट पहुंचना चाहता है।

वरदान की मुठिया कस जाती है वो गुस्से 😠से 'जो भी है वो अब उसे छू भी नहीं पायेगा.!!'



...... बाकि अगले भाग मे.!!!!