अतीशा के छः नियम ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अतीशा के छः नियम

Atisa, तिब्बती बौद्ध धर्म के एक बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक गुरु, प्रचारक और शिक्षक थे। उन्होंने सफल, सार्थक और बेहतर जीवन के लिए छै नियम बताए हैं। इन Six laws of Atisa for a good life को गहराई से पढ़ें और समझें तभी ये आपके काम आयेंगे।

पहला नियम – बेकार की या गैर जरूरी चीज़ों में समय बर्बाद ना करें।
दूसरा नियम – शरीर को नही अपनी आत्मा को खुश रखने का लक्ष्य बनाओ।
तीसरा नियम – अपनी गलतियों का समर्थन ना करें।
चौथा नियम- जीवन अकेले जीने की चाह मत रखो।
पांचवा नियम – जरूरी बातों का ज्ञान हमेशा रखो।
छठा नियम – नियमित रूप से ध्यान (Meditation) करें।


(पहला नियम)
बेकार की या गैर जरूरी चीज़ों में समय बर्बाद ना करें।
अपने पूरे दिन में हम बहुत सारा टाइम ऐसे कामों में निकाल देते हैं जिनसे हमारा काफी समय बेकार हो जाता है। जैसे की जरूरत से ज्यादा बातचीत करना, बार बार मोबाइल चेक करना, खाली समय मिलते ही फोन में गेम खेलने लग जाना या फालतू की विडियोज देखने लग जाना।

अपने समय को मूल्यवान समझ कर खर्च करें। क्योंकी हर आने वाले कल के साथ समय बड़ नही रहा है बल्कि हमारा समय कम होता जा रहा है। अपने आप को ऐसे कामों में ज्यादा व्यस्त रखें जो जरूरी हैं। फोन पर लंबी-लंबी बातें, दूसरों के जीवन में ताक-झांक, पुरानी बातों को बार बार याद करना, जरूरत से ज्यादा सोना, सामान को अस्त व्यस्त रखना इत्यादि।

ये सारी बातें समय बर्बाद करती हैं। इन आदतों को जितना जल्दी हो कम कर लें। ऐसा नहीं है की आप लोगों से बातचीत करना ही छोड़ दें या मिलना जुलना ही छोड़ दें, या कुछ करना ही बंद कर दें। सब को समय दें लेकिन इतना नही की आपको खुद ये लगने लगे की समय बर्बाद हो रहा है।


(दूसरा नियम)

शरीर को नही अपनी आत्मा को खुश रखने का लक्ष्य बनाओ।
कई बार सुख सुविधा की हर चीज होने के बाद भी इंसान दुखी रहता है। ऐसे बहुत से लोग आपने देखे होंगे जिनके पास सब कुछ होगा लेकिन वो जब भी आपको मिलते होंगे तो हमेशा किसी ना किसी बात का रोना ही रोते रहते होंगे। इस संसार में ऐसे लोग बहुत हैं जो सिर्फ बाहर से खुश हैं। वो दूसरों को तो ये दिखाते हैं की हम बहुत खुश हैं लेकिन अंदर से बहुत दुखी ओर परेशान हैं।

किसी के पास बहुत पैसा है तो वो इस बात से परेशान है की अपनी कमाई पर मुझे टैक्स देना पड़ेगा, किसी के पास महंगी गाड़ी है तो वो इस बात से परेशान है की पेट्रोल या डीजल सस्ता नहीं है, कोई पढ़ाई में बहुत होशियार है तो वो इस बात से परेशान है की सरकारी नौकरी कब लगेगी, ऐसी बहुत सी परेशानियों से हम लोग घिरे हुवे हैं और इन सब परेशानियों का कारण है सांसारिक मोह माया।

हर कोई खुद को बाहर से संपन्न करने में लगा है और इस चक्कर में वो अंदर से खोखला होता जा रहा है। हम सोचते हैं की बहुत सारा पैसा कमाना हमे खुशी देगा और हम अपनी जिंदगी उसी पैसे को कमाने के पीछे बीता देते हैं। हम अपने शरीर को तो खुश रखते हैं लेकिन हमारी आत्मा खुश नहीं रह पाती। जो इंसान थोड़े में खुश रहता है, जिसे ज्यादा की चाह नहीं होती और ज्यादा मिलने पर भी वो वैसा ही जीवन जीना पसंद करता है जो थोड़े में जीता था ऐसा इंसान अंदर से खुश है।

वो इंसान जो दूसरे की खुशी को अपनी खुशी, दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझे, वो इंसान जिसे पैसे का घमंड नहीं, वो इंसान जो किसी से बेवजह झगड़ता नही, वो इंसान जो दूसरे की बुराई करने के चक्कर में नही रहता, वो इंसान जो दूसरों से ज्यादा अपनी जिंदगी में नजर रखता है, वही इस संसार में अंदर से खुश है और ऐसा इंसान बन पाना हर किसी केे बस की बात नहीं है। ना ज्यादा पाने की चाह, ना कम मिलने का गम, यही खुश रहने का एक अच्छा तरीका है।


(तीसरा नियम)
अपनी गलतियों का समर्थन ना करें।
दूसरों को गलत साबित करना और दूसरों की गलती निकालना बहुत आसान होता है। हम दूसरों की गलतियों पर ऐसे नजर रखते हैं जैसे शेर अपने शिकार पर। लेकिन जब हम खुद गलती करते हैं तो हम उस बात को आसानी से एक्सेप्ट नही करते और ना ही अपनी गलती मानते हैं। अपनी गलती को मान लेना बहुत मुश्किल होता है।

अपनी गलती होने पर उसे मान लेना कोई बुरी बात नहीं है। अगर अपनी गलतियों को स्वीकार करने का साहस आप के अंदर नहीं है, तो आप उन गलतियों को बार-बार दोहराएंगे। अपनी गलती को मान कर उसमे सुधार करने से ही हम चीजें अच्छी तरह से सीख पाते हैं। इसलिए अपनी गलती होने पर उसका समर्थन ना करें बल्कि उसे स्वीकार कर उससे सीख लेने की कोशिश करें।


(चौथा नियम)
जीवन अकेले जीने की चाह मत रखो।
आजकल लोग अकेले रहना बहुत पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि अकेले रहने से जिम्मेदारियां कम हो जाती हैं और ना ही कोई परेशान करने वाला होता है। आज के समय में बच्चे अपने माता पिता, परिवार को छोड़कर दूसरे शहर चले जाते हैं या मां बाप खुद अपने बच्चे को पढ़ने लिखने के लिए विदेश भेज देते हैं।

शादी होते ही बच्चे अपना परिवार छोड़ देते हैं। आज की पीढ़ी को लगता है की परिवार से दूर अकेलेपन की जिंदगी ही सही है। लेकिन ये बात भी हर किसी पर सही नही बैठती। कई लोग ऐसे होते हैं जो परिवार से दूर हो जाते हैं और एक समय ऐसा आता है जब उन्हें उनके परिवार वाले ही पूछना छोड़ देते हैं।

भले हम बाहर अकेले रहकर जान पहचान बना लें। लेकिन मुसीबत के वक्त जो काम आता है वो अपना परिवार होता है। मुसीबत के अलावा जब जिंदगी में कोई बड़ी खुशी आती है तो इसका मजा परिवार के साथ रहकर और भी बड़ जाता है। बाहर वाले तो आते हैं और चले जाते हैं।अकेले रहने वाला इंसान ज्यादा दुखी रहता है, डिप्रेस्ड रहता है, मुसीबत आने पर वो उनसे निपट नही पाता और अकेलेपन को दूर करने के लिए नशे का सहारा लेने लगता है।

इसलिए अकेलेपन की जिंदगी से बाहर निकलना जरूरी है। परिवार भले ही कैसा भी हो लेकिन परिवार है, बस इतना ही काफी है। अपने परिवार, अच्छे दोस्तों और संबंधियों के साथ समय बिताएं। ये कभी ना सोचें ही अकेले रहने से जिंदगी सही हो जाती है। बेहतर जिंदगी के लिए अपनों का साथ बहुत जरूरी है। अकेलापन इंसान को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है।


(पांचवा नियम)
जरूरी बातों का ज्ञान हमेशा रखो।
ज्ञान कितना भी हो हमेशा ही कम होता है। यहां बात सिर्फ किताबी ज्ञान की नही है। किताबी ज्ञान एक पूरे समुद्र जैसा है जिसे आप कभी पा नही सकते। यहां जिस ज्ञान की बात हो रही है वो है हमारी जिंदगी का ज्ञान। यानी कि कब, किस समय और क्या करना है, कैसे करना है, साथ ही क्यों करना है इस बात का ज्ञान होना भी बहुत जरूरी है। कुछ भी काम हो बस किसी ने कहा और आपने कर दिया या फिर आपके दिमाग में कोई उल्टा सीधा ख्याल आया और आपने वो भी कर दिया।

कोई भी काम या कुछ भी करने से पहले इस बात का ज्ञान होना बहुत जरूरी है की वो काम करना क्यूं है, क्या वो जरूरी भी है, क्या उससे कुछ फ़ायदा भी है। बिना सोचे समझे कुछ भी करने लग जाना समय की बरबादी तो है ही बल्कि उससे ज्यादा वो बेवकूफी है। इसलिए जो भी करो उस चीज का ज्ञान जरूर रखो।


(छठा नियम)
नियमित रूप से ध्यान (Meditation) करें।
ध्यान करना बहुत जरूरी है। ध्यान करने से हम खुद को शांत कर पाते हैं। उन बातों पर फोकस कर पाते हैं जो हमारे लिए जरूरी होती हैं। ध्यान करने से मानसिक तनाव कम होता है और एक नई ऊर्जा मिलती है। आपको ध्यान किसी मूर्ति का नहीं करना है बल्कि खुद का ध्यान करना है।

ध्यान करने से आपके विचार एक जगह पर आ पाते हैं। ध्यान की शक्ति आपको सही और गलत विचारों को अलग करना सीखाती है। ध्यान करने से सोच में बदलाव आता है और आप बेहतर चीजों में ज्यादा फोकस कर पाते हैं। हर दिन कम से कम आपको 15 मिनट का ध्यान जरूर करना चाहिए। ताकि आप खुद से जुड़ सकें।