में और मेरे अहसास - 77 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 77

नववधू

नववधू सी धरती खिली है l
हर कहीं हरियाली लिली है ll

देर से ही सही कई दिन बाद l
सखी मौसम आज गुलाबी है ll

रंगों की सजावट न्यारी ही है l
देख सरसों की खेत पीली है ll

सूरज की किरनों की वजह l
आकाश में बदली नीली है ll

महादेव की बात ही निराली l
शंकर को पसंद बिली है ll
१-४-२०२३

पैग़ाम

मुद्दतों के बाद पैगाम आया है l
आज फ़िर एप्रिलफुल बनाया है ll

प्रियतम के आने की खबर से l
जूठा ही सही सुकून पाया है ll

साथ साथ चलने के लिए लो l
आज दो क़दम आगे बढ़ाया है ll

वक़्त की नजाकत को देखकर l
दिल फेंक ने वादा निभाया है ll

परवाह तो है पर झुकेंगे नहीं l
अब रूह का सहारा भाया है ll

ताउम्र चाहते रहेगे बेपनाह यूँही l
दिलों दिमाग पे जोर जो छाया है ll
२-४-२०२३
आशा
आशा का दीपक जलाये रखना l
दिल में उम्मीदों को जगाये रखना ll

गिले शिकवे को मिटाकर सखी l
अपनों से रिश्तेदारी बनाये रखना ll

वादा करके गये हैं तो लौटेंगे जरूर l
दिल को अरमानो से सजाये रखना ll

सीने में धड़कनों को चालू रखने l
यादों को दिल से लगाये रखना ll

दीमक की तरह खा जायेगी दिल को l
उदासी को जरा दूर हटाये रखना
२-४-२०२३
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

आज दिल के सारे अरमान पूरे कर लो l
झोली दामन की खुशियों से भर लो ll

दिल में यादों का उफान आया हुआ है l
अश्कों के बादल से आसमाँ तर लो ll

न लम्हे वापिस आते हैं न वो प्यारे पल l
जाने वाले का हाथ कसके पकड़ लो ll

किस्मत जितना लिखा है उतना ही मिलेगा l बात इतनी सी बस जान लो समज लो ll

दुनिया में कौन तेरा है जानने के लिए l
कंचन हो या आदमी एकबार परख लो ll

जिंदगी इनायत हुईं हैं तो गुजर ही जायेगी l
जहां इज्जत न मिले वहां से तुरंत सरक लो ll
३ -४-२०२३

वादा किया है तो इंतजार करेगे ताउम्र l
उफ़ न करेगे दर्द जुदाई का सहेंगे ताउम्र ll

न परेशान करेगे न आवाज़ देगे कभी भी l
तेरी यादों के साथ अकेले रहेगे ताउम्र ll

लम्हे लम्हे को लिखकर अपनेआप को l
सखी दर्दे दिल की दास्ताँ कहेगे ताउम्र ll

नाज़ है जो पाया तकदीर की बात है l
अपनी मुहब्बत का दम भरेंगे ताउम्र ll

ख़ामोशी से दिन बिता देगे जिंदगी के l
खुद का चैन ओ सुकून हरेगे ताउम्र ll
४-४-२०२३

कहानी में हकीकत होनी चाहिये l
थोड़ी सी शरारत होनी चाहिये ll

चाहे जो भी कहो जो कहना है l
कहने में शराफत होनी चाहिये ll

मुहब्बत की इन्तहा भले ही हो l
अदा में नजाकत होनी चाहिये ll

शब्द सुनने में अच्छे हो वो बोले l
बातों में रवायत होनी चाहिये ll

दिल को बहलाने के लिए सखी l
यादो में सजावट होनी चाहिये ll
५-४-२०२३

पहचान तो है पहचान नहीं l
सच्चाई से अनजान नहीं l

चंद खुशी ढेरों ग़म मिलेगे l
इश्क़ यूँही बदनाम नहीं ll

ए खुदा कायनात मे तेरी l
आबाद हूँ बरबाद नहीं ll

तुम जो मिल गये हों तो l
अब कोई अरमान नहीं ll

साथी साथ निभाना ये l
फर्माइश है फ़रमान नहीं ll
६-४-२०२३


प्रियतम

अब कयामत की घड़ी आ गई l
सो प्रियतम की चिठ्ठी आ गई ll

सरहद पर दिल बहलाने देख l
आज गाँव से मिट्टी आ गई ll

क़दम खुदबखुद लड़खड़ा गएँ l
लो मयखाने की गली आ गई ll

फरेब ही सही दिल तो बहला l
ख्वाबो में रुबरु परी आ गई ll

दामन खुशियों से भरने के लिए l
अहद-ए-वफ़ा सखी आ गई ll
६-४-२०२३

हक़ीक़त


ज़िंदगी बन गई है अब फ़साना l
और आखरी साँस पर ये जाना ll

दिल फेंक नादाँ नासमझ इंसा पे l
आँखें बंधकर लुटाते रहे खजाना ll
७-४-२०२३

ग़म-ए-ज़िंदगी की हक़ीक़त कुछ और है l
सुनो कहानी की असलियत कुछ और है ll

हर लम्हा नया रूप रंग दिखती है वो l
हर अंदाज की कैफ़ियत कुछ और है ll

जो जिस तरह लेता है उस तरह की वो l
है कुछ, उसकी शख्सियत कुछ और है ll

विधाता ने अच्छा ही लिखवाया पर l
लिखी गई हुईं वसीयत कुछ और है ll
८-४-२०२३

मुनासिब नहीं बार बार रूठना l
दर्द भारी पड जाता है सहना ll

घुट घुट जीने से दम घुट जाएगा l
दिल की बात हमेशा से कहना ll

अकेले जीने की आदत डाल दो l
जरूरत नहीं है वहाँ ना रहना ll

टूटे हुए को ज्यादा तोड़ते हैं लोग l
सखी भावनाओमें कभी ना बहना ll
२१-४-२०२३

बादलों में छिप गया है चाँद देखो l
सागरों में छिप गया है चाँद देखो ll

माँ की ममता की अनुभूति के वास्ते l
आँचलो में छिप गया है चाँद देखो ll

प्यास जन्मों की बुझाने को झांकता l
गागरों में छिप गया है चाँद देखो ll

शेर, ग़ज़लों और कविता संग साथी l
काग़जों में छिप गया है चाँद देखो ll

खूबसूरत महबूबा की आँखों की सखी l
झामरों में छिप गया है चाँद देखो ll
२२-४-२०२३

निगोड़ी निगाहों ने किया है बदनाम l
महफिल में ज़रा तो रखा करो लगाम ll

लोगों की नजारों को बांधने की l
आज सभी कोशिशे हुई है नाकाम ll

दोस्त हो तो आखिर तक साथ देते l
एकबार फिर हाथों को लेते थाम ll

कुछ हक़ीक़तें मुझे करती हैं बदनाम,
लोग भी कहाँ रखते है मुँह पे लगाम।

बंध रखो कहीं पढ़ न ले सखी सहेली l
सखी लिखा न करो महेंदी में मेरा नाम ll
२३-४-२०२३

चल उठ आगे बढ़ शख़्सियत को दमदार बना l
क़ायनात में शान से जीने के लिए सरदार बना ll

रुक जाना नहीं चलता चला जा मुसाफिर है तू l
हौसलों से खुद की कमजोरी को हथियार बना ll

कभी कभी मेहनत रंग लाती है मान कहना तू l
किस्मत को बदल के अपनी खुद हक़दार बना ll

बहोत सी मुश्किलें और कठिनाईयाँ आएँगी l
जिंदगी को जानकर समझकर तू पतवार बना ll

बहोत सी आरज़ू अधूरी रह जाती है जीवन में l
ख्वाइशों और तमन्नाओ को जोड़ मझधार बना ll
२४-४-२०२३


उजाला करके तीरगी को रोशन कर l
गाँव गाँव शहर शहर उम्मीदों को भर ll

जो है वहीं सामने आया है समझ l
सच्चाइयों का स्वीकार से न ड़र ll

जो होना है वो होकर ही रहता है l
कल की चिता में आज चैन न हर ll

दुनिया गम देने वालो से भरी पड़ी है l
खुश रहना है तो हो जा सबसे पर ll

हौसला रख अच्छे दिन भी आएँगे l
संसार सागर को खुशीयों से तर ll
२५-४-२०२३


चुपचाप निस्बते निभा l
दिल से दिल को मिला ll

लोग तो है कुछ तो कहेंगे l
किसी से न रख गिला ll

दुःख को सहना सीख ले l
दर्द से दिलको न छिला ll

दुनिया में आने जाने का l
चलता रहेगा सिलसिला ll

सब कुछ मुमकिन है बस l
हौसलों से उम्मीद हिला ll
२५-४-२०२३

अब तो आजा इंतज़ार है तेरा l
बार बार दिल धड़कता है मेरा ll

तिरंगी हो जाते हैं दिन मेरे l
तेरे आने से होता है सवेरा ll

क़ायनात में कहीं पे भी नहीं l
तेरे दिल में मेरा है बसेरा ll

तेरे आने से पहले था आराम l
चैन और सुकूं का है लुटेरा ll

चाहत की चिंगारी जलाकर l
दिल में तूने कर दिया है डेरा ll
२७-४-२०२३

बूँदों का है सफ़र समंदर से साहिल तक l
ग़ज़लो का सफ़र साहिर से ग़ालिब तक ll

बाहिर तो कहीं न मिला अब अंदर ही l
ढूंढते रहेगे बारहा खुदा को हासिल तक ll

हौसला कभी भी न हारेगे यूँही राहों में l
सखी आख़िर में चलते रहेगे मंजिल तक ll

जो चाहिये हासिल करेगे देख लेना यारों l
उम्मीद का दामन न छोड़ेगे आख़िर तक ll

देने वाला भी थक जायेगा देते देते l
सहते रहेगे दर्दों ग़म से वाजिब तक ll
२८-४-२०२३

नजरे नाज़ से दर्द पिघल गया l
प्यारे स्पर्श से बर्फ़ पिघल गया ll

एक दिन दूसरे दिन पर भारी पड़ा l
आज संग यारों के सभल गया ll

हुश्न की महफ़िल जमी हुई थी तब l
पर्दा खिसका तो दिल मचल गया ll

जानेमन को पिघलता हुआ देखकर l
सखी आंखों से जाम छलक गया ll

गुलशन में बाहर क्या आई दिलकश l
महकती कलियों से बाग महक गया ll
२९-४-२०२३

यूँही गुज़र जाएगीं जिंदगी वो वहम था l
और लोग साथ देगे ताउम्र वो भरम था ll

जूठा ही सही दिल रखने की ख़ातिर आज l
क़दम दो क़दम साथ चले वो मरहम था ll

सुबह, शाम और वहीं रातें कट रहीं हैं l
एक पल भी जी न पायेगे वो अहम था ll

ग़म के बादल हटाने के लिए वक्त दिया l
फर्ज समझकर निभाया वो करम था ll

दर्द बढ़ा तो आंसूं जाम समझकर पीये l
दिल बहलाने को पहला वो क़दम था ll
३०-४-२०२३