में और मेरे अहसास - 76 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

में और मेरे अहसास - 76

दिल की कलम से लिखो l

शायर की जुबां से कहो ll

 

हरएक पल जीभर जियो l

रोज लम्हों के साथ बहो ll

 

आसां नहीं है जिंदगी जीना l

अब खुदा की मरज़ी सहो ll

 

क़ायनात में खुशियाँ हैं छिपी l

जहां भी रहो बस खुश रहो ll

 

जिंदगी को जिंदादिली से लो l

खुद को खुदा के दिल में रखो ll

 

प्रिये महफिलों में ना घुमा करो l

पीना है तो जाम नजरों से पियो ll

१६-३-२०२३

 

अपनी बर्बादी का जश्न मना रहा हूँ l

तेरी बेवफाई तुझे ही दिखा रहा हूँ ll

 

जज्बात कुछ इस तरह बहके है l

तेरी जुदाई में घर सजा रहा हूँ ll

 

वादा किया है तो निभाएंगे ही l

दिलासा दे दिल बहला रहा हूँ ll

 

तेरी पाती बार बार पढ़कर सखी l

सोये हुए अरमाँ बहका रहा हूँ ll

 

आज नहीं तो कल आएंगे सब्र कर l

य़ह कहकर खुद को समझा रहा हूँ ll

१७-३-२०२३

 

 

अजनबी सी दास्ताँ है मुहब्बत की l

न पूछ दास्तान सखी मुलाकात की ll

 

जुदाई में जो काटी है लंबी चौड़ी l

कहानी न सुना सकेंगे उस रात की ll

 

ताजुब हो रहा है कैसे है लोग यहाँ l

कहानी बना दी जरा सी बात की ll

 

बड़ी मुश्किल से साथ निभा रहे हैं l

जरा तो क़दर कर ज़ज्बात की ll

 

जो है वहीं दिखा रहे हैं बाहर भी l

इल्म होनी चाहिए असलियत की ll

१७-३-२०२३

शाम ही तो है ढल जायेगी l

दाल ही तो है गल जायेगी ll

 

गुलिस्तां में फूल के साथ l

कली ही तो है पल जायेगी ll

 

जुदाई की लंबी ही सही l

रात ही तो है कट जायेगी ll

 

बेमौसम वो छाई हुई है l

बदली ही है हट जायेगी ll

 

सब कर सखी प्रेम पाती l

आज नहीं तो कल जायेगी ll

१८-३-२०२३ 

 

दिल में ला इलाज दर्द पाल रखा है l

हाकिमों ने बिछाएं जाल रखा है ll

 

ग़ज़ल की नजाकत को बनाए रखने l

धा धीं धा धा धीं धा ताल रखा है ll

 

बेस्वाद हो गई है जिंदगी तो आज l

बिरयानी में मिर्ची को डाल रखा है ll

 

न जाने कब मिलने आ जाए सजना l

सजना संवरना पूरे साल रखा है ll

 

गुस्ताखी तो देखो, भरी महफिल में l

दिल बहका ने खुले बाल रखा है ll

१९-३-२०२३ 

 

मानो नारी शक्ति का रूप है l

चाहे दिखती वो चुप चुप है ll

 

कभी पीछे नहीं हटती चाहे l

कितनी भी घायल चकचुर है ll

 

ममता की छांव है साथ साथ l

आशिक के जन्नत की हुर है ll

 

फूल की तरह सम्भाले रखो l

माता पिता के बाग़ का गुल है ll

 

बूरी नज़र वालो खबरदार l

दुश्मनों के गले का शुल है ll

१९-३-२०२३

 

दिल नहीं भरा अभी जरा और मना ले होली |

प्यार भरा गीत कोई सुना और मना ले होली ||

 

और भी ग़म है ज़माने में, तो वक्त न गवा तू l

दिलसे गिले सिकवा मिटा और मना ले होली ll

 

झूमने और झूमाने के लिए आते हैं त्योहार l

खुशियो का समंदर बहा और मना ले होली ll

 

साल में एक बार तो आती हैं खुशियां लेकर l

रंगों से आँगन को सजा और मना ले होली ll

 

जानते हैं दिन राधा तू न खेलेगा आज होली l

ले सगुन का लगा टिका और मना ले होली ll

६-३-२०२३

 

बातों बातों में हाले दिल सुनाया होगा l

दस्ताने दर्द को सुनाकर रुलाया होगा ll

 

रूबरू मिलन की गुंजाईश कम है तो l

वॉट्स आप मेसेज में बुलाया होगा ll

 

आज नहीं तो कल मिलने जरूर आएंगे l

दिलासा बारहा देकर सुलाया होगा ll

 

बेपन्हा मुहब्बत के हाथों मजबूर होकर l

हुश्न के सजदे में सर को झुकाया होगा ll

 

वो नादानी कर सकते पर हम नहीं सखी l

दिल पे पत्थर रखकर भुलाया होगा ll

२०-३-२०२३ 

 

खुशियो का सैलाब लेके आई है पाती l

सजना के आने की ख़बर लाई है पाती ll

 

बड़ा चैन और सुकून मिला है प्यार से l

आशिक के दिल की शनाशाई है पाती ll

२१-३-२०२३ 

पाती-प्रेम पत्र 

 

जिंदगी की सच्चाई जान ली है l

बंदगी की सच्चाई जान ली है ll

 

दिल में ग़म होंठों पे मुस्कान रखी l

सादगी की सच्चाई जान ली है ll

 

जन्म मरण के बीच के सफ़र में l

सादड़ी की सच्चाई जान ली है ll

 

न छूटने वाली बंधन में बाँधती l

राखडी की सच्चाई जान ली है ll 

 

पिता से पति के घर ले जाती हुई l

पालखी की सच्चाई जान ली है ll

२२-३-२०२३ 

 

दिल की क़लम से जज्बात लिखे है l

आज प्रेम पाती में दिन रात लिखे है ll

 

बेपन्हा और बेइंतिहा मुहब्बत की l

याद में काटे हुए लम्हात लिखे है ll

 

सखी देर तक किसीसे दूर रहकर l

आज खामोशी से इशारात लिखे है ll

 

कोई चोट पहुंचाना नहीं चाहते बस l

ज़हन में आए हुए ख़यालात लिखे ll

 

पैरों में बेड़ियाँ डाल दी रिवाजों की l

प्यार के दुश्मनों के ज़ुल्मात लिखे ll

२२-३-२०२३ 

 

साँवरी सूरत ने मन मोह लिया l

सुकूं लूटके दिल को बैचेन किया ll

 

दो दिन की मुहब्बत में नादाँ ने l

सखी उम्रभर का रोग दे दिया ll

 

उठकर जा बैठे हैं नजरों से दूर l

साँवरे की याद में तड़पे है जिया ll

 

दिन तो जैसे तैसे गुज़र जाते है l

जुदाई की रात कैसे काटे पिया ll

 

तड़प का अंदाजा तो जरूर होगा l

दिलासा देकर जिगर को सिया ll

२३-३-२०२३

 

वक्त के इशारे की नजाकत को समझो जरा l

मुकम्मल जिंदगी इनायत को समझो जरा ll

 

रात के दूसरे प्रहर के वक्त होने वाली आज l

संदेश वाहक छुपी इबादत को समझो जरा ll

 

रात की रोशनी में होने वाली महफिल में l

हुश्न के पर्दे की हकीकत को समझो जरा ll

 

बेवफाई चुपचाप सहते रहे उफ़ किये बिना l

बंध होठों की फ़रियाद को समझो जरा ll

 

खुले आम चर्चा करते रहते हो इश्क़ की l

सखी चाहत की नुमाइश को समझो जरा ll

२४-३-२०२३

बादलों के पीछे चाँद छिप न जाये कहीं l

उसे डर रहता है दाग दिख न जाये कहीं ll

 

बार बार यही दुआ करते रहते है हर पल l

मुरादों वाले सुहाने दिन बित न जाये कहीं ll

 

बड़ी मुश्किलों से संजोये है किताबों में l

यादों के नामों निशान मिट न जाये कहीं ll

 

जरा काबू में रखा करो अपनी नजरों को l

मजनू दुनिया के हाथों पिट न जाये कहीं ll

 

बाद मुदत्तों के मिले हैं प्यार भरे ये लम्हे l

सखी लम्हा लौटकर फिर न जाये कहीं ll

२७-४-२०२३

 

अँधेरे राज आने लगे हैं l

बादल गमके जाने लगे हैं ll

 

करीबसे जान जिंदगी को l

चैन सुकूं पाने लगे हैं ll

 

बिनमौसमी पवन आज l

प्रेम संदेश लाने लगे हैं ll

 

आने वाले के स्वागत में l

गीत ग़ज़ल गाने लगे हैं ll

 

छोटी छोटी यादों को सखी l

भूलने को ज़माने लगे हैं ll

 

जरा सा छू क्या लिया l

अंग मुस्कराने लगे हैं ll

२८-३-२०२३ 

 

जाम पर जाम छलकने लगे हैं l

होशों हवास बहकने लगे हैं ll

 

लगातार मुलाक़ातों से आजकल l

रात और दिन संवरने लगे हैं ll

 

बेपन्हा बेइंतिहा मुहब्बत की असर l

हर लम्हा हर पल महकने लगे हैं ll 

 

ज्यादातर वक्त के साथ साथ ही l

सखी रंगो रूप को बदलने लगे हैं ll

 

आज इश्क़ की गुस्ताखी तो देखो l

रूह को प्यार से पकड़ने लगे हैं ll

२९-३-२०२३ 

 

किसी के आगमन की आहट सुनाईं दे रहीं हैं l

आज खुशी से फिजाएं भी बधाई दे रहीं हैं ll

 

इंतजार में न दिन गुजरते हैं ना ही लंबी रातें l

सखी बारहा मुलाक़ातों की दुहाई दे रहीं हैं ll

 

उम्र के आखरी दिनों में चैन सुकूं से जीने को l

किताबों में रखी यादों को रिहाई दे रहीं हैं ll

 

मिलन के वक़्त खुशियाँ दिखाने के वास्ते l

अब निगाहों से अश्कों को बिदाई दे रहीं हैं ll

 

हमसफ़र हमराज़ हमनवाज रहनुमा मिला तो l

अकेलेपन के साथियों को जुदाई दे रहीं हैं ll

३०-३-२०२३ 

 

साँझी छत

 

साँझी छत में एकता और शांति है l

अपनों से बंटवारा केवल भ्रांति है ll

 

घड़ी, केलकुलेटर, किताब सब साथ l

स्मार्ट मोबाईल तकनीकल क्रांति है ll

 

कहीं इडली, कहीं पांव भाजी खाए l

खाने पीने की विविधता प्रांति है ll    

३१-३-२०२३

 

ग़ज़ल 

 

उनसे मुहब्बत हो गई है ये कोई नई बात तो नहीं है l

फ़िर मुलाकात हो गई है ये कोई नई बात नहीं है ll

 

जुदाई में किस तरह गुजारे है दिन यह मत पूछो l

नाम कृष्णा का कितना पुकारे है दिल यह मत पूछो ll

 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह