The Author dinesh amrawanshi फॉलो Current Read जस्बात-ए-मोहब्बत - 7 By dinesh amrawanshi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books नक़ल या अक्ल - 66 66 बेवफाई सुधीर ने हरीश को घूरते हुए फिर पूछा, “साँप सूंघ... कोमल की डायरी - 13 - घोंघे को गुस्सा आता है बारहघोंघे को गुस्सा आता है शुक्र... डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 55 अब आगे,अर्जुन ने आराध्या को ठीक कर के अपनी गोद में बिठा तो ल... नागिन और रहस्यमयि दुनिया - 14 आखिर नागराज devika को वह नागमणि क्यों देना चाहते थे? इसकी वज... तमस ज्योति - 43 प्रकरण - ४३मैंने निषाद मेहता को फोन लगाया और कहा, "निषादजी!... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास dinesh amrawanshi द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 16 शेयर करे जस्बात-ए-मोहब्बत - 7 (2) 1.5k 2.8k ठीक है चलो और चारो कैंटीन चले जाते है कैंटीन मे बैठ कर चारो मस्ती करते है एक दूसरे की टांग खिचते है नेहा कहती है रितु तेरा आकाश तो यहा है नहीं तो रितु कहती है तो क्या हुआ आ जाएगा कुछ दिन मे तो नयन्सी कहती है क्यू तुझे उसकी याद नहीं आ रही क्या,रितु कहती है चल न यार याद करके कोन सा मैंने देवदास बनना है फिर रितु कहती है नयन्सी तेरा वाला तो यही है न इसी कॉलेज मे,तो रिचा कहती है तुम यार एक दूसरे की टांगें खिचना बंद करों अब चलें हाल टिकिट लेना है तो फिर चारों ऑफिस की ओर जाती हैं ऑफिस पहुँच कर हाल टिकिट लेते है और क्लासेस तो होती नहीं है तो नेहा ओर रितु हॉस्टल चली जाती है नयन्सी ओर रिचा घर के लिए निकाल जाती है रास्ते मे नयन्सी रिचा से कहती है रिचा तू अवस्थी सर को बता क्यू नहीं देती की तू उन्हे पसंद करती है उनसे प्यार करती है रिचा कहती है नहीं यार नयन्सी अभी नहीं,अभी मैं सिर्फ पेपर्स मे ध्यान देना चाहती हूँ तो नयन्सी कहती है मुझे पता है कि तू पढ़ाई पे ध्यान देना चाहती है पर क्या तू खुद को कंट्रोल करके पेपर्स की तैयारी कर पाएगी रिचा कहती है यार नयन्सी करना तो पड़ेगा ओर फिर दोनों नयन्सी की कॉलोनी पहुँचते है रिचा नयन्सी को छोड़ कर घर चली जाती है रिचा घर पहुँचती है और माँ को आवाज लगाती है माँअअअअ तो अंदर से आवाज आती है हा रिचा आ गई तू रुक मैं कॉफी लाती हूँ पता है तू कॉफी ही मांगेगी रिचा कहती है ओ___मेरी प्यारी माँ,ये ले तेरी कॉफी,थैंक यू माँ,रिचा बेटा कॉफी पीले ओर फ़्रेश हो जा,जी माँ और रिचा कॉफी पीकर अपने रूम मे चली जाती है रिचा बाथरूम से फ़्रेश होकर निकलती है और अपनी बुक लेकर बैड पर लेट जाती है और पढ़ते पढ़ते प्रोफ़ेसर अवस्थी के ख़यालों मे खोई सी जाती है तभी रिचा सपने मे देखती है कि रिचा अवस्थी सर के साथ दोनों किसी गार्डन मे बैठे रिचा कहती है सर क्या आप जानते थे कि जब आप क्लास लेने आते थे तो मैं आपको देखा करती थी प्रोफ़ेसर अवस्थी कहते है रिचा तुम मुझे प्रतीक बुला सकती हो लेकिन सिर्फ तब जब हम अकेले हो और हा मैं जनता था कि तुम पढ़ाई पे कम मुझमे ज्यादा ध्यान देती हो पर इसका ये मतलब नहीं की तुम्हारा सारा ध्यान सिर्फ मुझ पर ही हो ओके,रिचा कहती है जब आप सामने होते हो तो मुझे आपके सिवा और कुछ दिखता ही नहीं किसने कहा था आपसे मेरे दिल मे इस तरह उतर जाने को कि मुझे आपके अलावा कुछ याद ही न रहे,प्रोफ़ेसर अवस्थी कहते है देखो रिचा मैं तुम्हारे साथ ही हूँ पर तुम्हें अपनी पढ़ाई पे ज्यादा ध्यान देना होगा जिस तरह से तुम्हारा सपना है एक अच्छी डॉक्टर बनने का मैं भी चाहता हु की तुम अच्छी डॉक्टर बनो तभी रिचा की माँ उसे जागती है रिचा,रिचा बेटा उठ खाना खाले रिचा नींद से जागती है क्या माँ सोने दो न तो माँ कहती है पहले खाना खाले बेटा फिर तुझे पढ़ाई भी तो करनी है तेरे पेपर चालू होने वाले है न तो रिचा उठती है, माँ आप चलो मैं मुह धोकर आती हूँ ‹ पिछला प्रकरणजस्बात-ए-मोहब्बत - 6 › अगला प्रकरण जस्बात-ए-मोहब्बत - 8 Download Our App