The Author dinesh amrawanshi फॉलो Current Read जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 11 By dinesh amrawanshi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books श्रापित एक प्रेम कहानी - 24 वर्शाली धीरे से कहती है--- वर्शाली :- मैं यहाँ बस आपके लिए आ... तेरी मेरी कहानी पलक हर सुबह आईने के सामने खड़ी होती और अपने चेहरे को घंटो ध्... आदी योगी शिव आदियोगी शिव की कथा सृष्टि के आरंभ से भी पहले की है। जब न आका... अफ़वाहों की सल्तनत यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। इसका उद्देश्य किसी भी वर्तमान... वेदान्त 2.0 - भाग 19 अध्याय 28 :Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 -वर्ग धर्म संतुलन —... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास dinesh amrawanshi द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 16 शेयर करे जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 11 2k 3.8k तो रिचा कही खोई खोई सी लगती है रिचा की माँ ये देख कर कहती है रिचा बेटा तू कुछ दिनों के लिए ऋषिकेश क्यूँ नहीं चली जाती अपनी बुआ के घर तुझे अच्छा भी लगेगा और घूमना भी जाएगा रिचा कहती है नहीं माँ मेरा कही जाने का मन नहीं है माँ कहती है लेकिन बेटा तू घर ही घर मे उदास सी बाठी रहती है घूम कर आएगी तो तेरा दिल भी बेहेल जाएगा रिचा कहती है ठीक है माँ मैं कल चली जाऊँगी ꠰ अगले दिन रिचा ऋषिकेश जाने की तैयारी करती है और माँ से कहती है माँ पापा तैयार हो गए तो पीछे से आवाज आती है हा मेरी मैं भी तैयार हु चले, तो रिचा कहती है जी पापा चलिये और रिचा अपने पापा के साथ ऋषिकेश के लिए निकल जाती है रिचा के पापा उसे ऋषिकेश छोडने खुद जाते अपनी कार से, लगभग डेढ़ घंटे का सफर करके रिचा ओर उसके पापा ऋषिकेश सुमन बिहार पहुँच जाते है रिचा की बुआ के घर रिचा की बुआ उसे देख कर बहुत खुश होती है ओर कहती है रिचा आ गई तू इतने दिन बाद तुझे अपनी बुआ की याद आई रिचा कहती है नहीं बुआ ऐसी बात नहीं है अच्छा चल अंदर भैया चलिए अंदर सब अंदर जाते ओर रिचा की बुआ उन्हे बैठा कर पानी लाती ओर कहती है भैया आपको भी अपनी बहन की याद नहीं आती ना इनते दिनों आ रहे है तो रिचा के पापा कहते है नहीं सुनीता ऐसी बात नहीं है मुझे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती जल्दी से इसी वजह से मैं कही भी नहीं जा पता वो तो आज संडे है तो मैंने सोचा रिचा को छोड़ भी दूंगा ओर मिलना भी हो जाएगा तो खुद छोडने चला आया सुनीता(रिचा की बुआ) कहती है अच्छा किया भैया जो आप खुद ही रिचा के साथ आ गए मुझे भी अच्छा लगा आपको देख कर,भैया आप बैठिए मैं चाय बनाती हु तो रिचा कहती है बुआ मैं आती हूँ आपके साथ किचेन मे तो रिचा की बुआ कहती है रिचा तुम चाय बनाओ मैं नास्ते की तैयारी करती हूँ ओके बुआ रिचा चाय बना कर अपने पापा को देती है ओर वापस किचेन मे जा कर बुआ के साथ पकोड़े बना कर ले आती है रिचा कहती है बुआ आप भी आ जाइए बुआ कहती है हा तू अपने पापा को नसता दे मैं पानी लेकर आती हूँ ओर रिचा पापा को नास्ता देती है अपने लिए भी निकालती है ओर बुआ को भी नास्ता देती है रिचा अपनी बुआ से पुछती है बुआ आरूशी और तनु कहा है बुआ कहती है बेटा आरूशी तो अपनी किसी फ्रेंड के यहाँ गई है कुछ काम है कह कर ओर तनु स्कूल गई है रिचा उसकी बुआ ओर पापा अपना चाय नास्ता फीनिस करते हैं रिचा ओर उसके पापा हाल मे बैठ कर दोनों फॅमिली की बाते कर रहे होते रिचा भी वही बैठी होती हैं कि तभी आवाज आती है रिचा तू रिचा जैसे ही पीछे मुड़ती है आरुशी ओर रिचा दौड़ कर आरूशी को हग करती है आरूशी कैसी है तू आरूशी कहती है ‹ पिछला प्रकरणजस्बात-ऐ-मोहब्बत - 10 › अगला प्रकरण जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 12 Download Our App