में और मेरे अहसास - 74 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 74

हर्फ़-ओ-नवां से तरन्नुम बनता है l
बनके गीत महफिलों में सजता है ll

रहगुज़र-ए-जीस्त में हमराह मिले l
तो रूह में सुकुनियत सा भरता है ll

जब मुहब्बत में नजदीकियां बढ़े तब l
दिल में धड़कनों को जिंदा करता है ll

रिसता गहरा हो जाता है और यूही l
सखी मेल मिलाप से प्यार झरता है ll

गीत ग़ज़लों में रवानी आ ही जाती है l
तब दिल से दिल को सुकून मिलता है ll
हर्फ़-ओ-नवां - अक्षर और आवाज़
१५-२-२०२३


आबगीना है वजूद सभल जा बिखर न जाए कहीं l
आज इंतजार के मारे दम ही निकल न जाए कहीं ll

चारागर ही सीतमगारो की सिखला मे खड़े हुए हैं l
डर लगता है नज़रे और नज़ारे बदल न जाए कहीं ll
आबगीना है वजूद-शीशा है अस्तित्व

हर राह में दिल बहलाने वाले लोग फैले हुए हैं तो l
क़ायनात की फिसलन में पाँव फिसल न जाए कहीं ll

कातिल अदाओं से छलके है आजकल गलियाँ सभी l
हुश्न की जूठी मुस्कराहट से दिल मचल न जाए कहीं ll

पर्दे में रखो निगोड़ी आखों को आदत है बरसने की l
छोटी सी खुशी भी निगाहों से छलक न जाए कहीं ll
१६-६-२०२३

सुधर जा बंदे, खुदा का इल्हाम हुआ है l
सम्भल जा बंदे, खुदा का इल्हाम हुआ है ll

ये भूकंप, ये महामारी, ये तबाही देखकर l
समज जा बंदे, खुदा का इल्हाम हुआ है ll

खुद भी जी औरों को भी जी लेने दे सुकूं से l
सँवर जा बंदे, खुदा का इल्हाम हुआ है ll

जहाँ कोई पहचान नहीं न तो गिनती वही से l
सरक जा बंदे, खुदा का इल्हाम हुआ है ll

बहुत कर ली मौज मस्ती, जरा खुद से l
सिमट जा बंदे, खुदा का इल्हाम हुआ है ll
१७-२-२०२३

सदाकत का इंतिखाब करना बहुत कठिन होता है l
इश्क़ में बारहा जीना मरना बहुत कठिन होता है ll

जिंदगी का सफ़र अकेले ही काटा है ता-उम्र तन्हाई में l
अपनों की भीड़ में अकेले चलना बहुत कठिन होता है ll

बाप जितना चाहे प्यार और ममता न्यौछावर करे l
माँ की छाँव के बिना पलना बहुत कठिन होता है ll

सपनों की बारात आने वाली हो जानकार जल्दी ही l
खुली आँखों से नीद में सरना बहुत कठिन होता है ll

वादा किया है तो निभाएंगे जी और जान लुटाकर l
सखी खुद की जुबान से फिरना बहुत कठिन होता है ll
इंतिखाब- चुनाव
१८-२-२०२३

मुहब्बत के जुनून की बात, मत पूछो l
कैसे कटी चाँदनी की रात, मत पूछो ll

रूठ कर चले गए हैं, जैसे लौटेंगे नहीं l
बेशुमार आती होगी याद, मत पूछो ll

बात बात पर गुस्सा करने की आदत l
किस तरह दिया है साथ, मत पूछो ll

पूरनम है दिल बेतहासा मुहब्बत में l
सखी फिर भी थामा है हाथ, मत पूछो ll

ज़ज्बा ए इश्क़ में इस तरह डूबे हुए हैं l
जानबूझ कर खाई मात, मत पूछो ll
१९-२-२०२३

थोड़ा थोड़ा नशा चढ़ता है l
थोड़ा पागलपन बढ़ता है ll 

पीनेवाला बरबाद हो जाता है l
धर का माहौल बिगड़ता है ll

बोतल नहीं उड़ती पीनेवाले का l
दिमाग आसमान में उड़ता है ll
१९-२-२०२३

आँखों से थोड़ा थोड़ा जाम पीया करो l
तड़प तड़प कर यूँ ना तुम जीया करो ll

माना के खामोशी से राबता कर लिया है l
सखी होठों को यूँ ना तुम सीया करो ll

एक दिन टूटकर बिखर जाओगे शीशे जैसे l
दिल फेंक को दिल यूँ ना तुम दीया करो ll

जानते हैं बेईमान हो गये हैं जहां वाले पर l
इश्क़ का इन्तहा यूँ ना तुम ली या   करो ll 

एक ना एक दिन तो दुनिया छोड़ जानी ही है l
शर्तों पर बेपन्हा प्यार यूँ ना तुम कीया करो ll
१९-२-२०२३

पैसा ही बन गई है पहचान यारो l
इससे न रहना तुम अनजान यारो l

कंगाली में अपनों के रंग नज़र आते हैं l
बिना पैसे बूरा होता अंजाम यारो ll

चाहे जितना पढ़लो, चाहे अच्छा करो l
दौलत से ही मिलता सन्मान यारो ll

अभी भी सभल जा, काम में जुड़ जा l
खोकर रह जाएगा गुमनाम यारो ll

कोई इज्जत नहीं देता, साथ ठोकरे l
बिना बात के लगता इल्ज़ाम यारो ll
२१-२-२०२३


चलो झूम ले बहारों का मौसम आया है l
चांदनी रात सितारों का मौसम आया है ll

सखी आज खूब खेले राधा कान संग l 
होली हैं फ़िज़ाओं का मौसम आया है ll

न जाने कितने दिनों के बाद हुआ है l
हुश्न बेपर्दा दिदारों का मौसम आया है ll

ख़्वाहिशों को सभाल के रखा है जिसमें l
पुरानी किताबों का मौसम आया है ll

मिलन के सुहाने लम्हें जीभर जी ले l
इश्क़ में मिजाजों का मौसम आया है ll
२२-२-२०२३

आज के दौर में पैसे की बोलबाला है l
ज़माने में अमीरो के गले में माला है ll

मान उपकार जीते जी उनका पैर छूकर l
बारहा माता पिता ने पेट काट पाला है ll

सियासत की मेली रमत है जहा देखो l
भ्रष्टाचार का ज़हर हर कहीं डाला है ll

मेह्गाई की मार इस तरह पडी है कि l
गरीबों के वहाँ रसोई में भी ताला है ll

समाज में शरीक बनके घूमते लोगों का l
तन मन और धन सबकुछ काला है ll
२३-२-2023

नजरों से दूर न जाना गुज़ारिश करते हैं l
आवाज सुनकर आना गुज़ारिश करते हैं ll

रंगीन रोमांटिक मौसम गुलाबी हुआ है l
सुनाओ कोई तराना गुज़ारिश करते हैं ll

हाथ थामा है तो साथ भी निभाना जानू l
बन न जाए अफ़साना गुज़ारिश करते हैं ll

दिल लगा के दिल को तोड़ कर न देना l
खुदाया ना सताना गुज़ारिश करते हैं ll

ग़र जिंदगी में कभी कोई परेशानी आए l
तब गले से लगाना गुज़ारिश करते हैं ll
२४-२-२०२३


याद आती है तो दिल में कसक सी होती है l
बात बात पर बेपरवाही से अगन सी होती है ll

क्या बताएं उन्हें और किस तरह बताएंगे l
लम्हों की दूरी पर भी तड़प सी होती है ll

मुहब्बत में ये कौन से मुक़ाम पे आ पहुंचे कि l
बारहा मुलाकातों के बाद तरस सी होती है ll

बिंदास जिंदगी जीये जा रहा था, इश्क़ होते l
ख़्वाहिशों के बढ़ते सीने में जलन सी होती है ll

इच्छाओं का काफ़िला जब हद से बढ़े तब l
गर्मियों की कड़ी धूप में गज़र सी होती है ll
२५-२-२०२३

अब उम्मीद नहीं है ज़माने से कोई l
खौफ़ नहीं परेशानी आने से कोई ll

बिना झिझक चले आना होगा l
रोक नहीं सकता आने से कोई ll
२६-२-२०२३

वक़्त का ये परिंदा भागा जा रहा है l
और मोहलत को मांगा जा रहा है ll

ना जाने कितनी यादें ताजा हो गई l
घंटों को लम्हों में तागा जा रहा है ll

सजावट की शै हो गया इश्क़ देखो l
रिसता दीवार पे टाँगा जा रहा है ll

रंगो की बौछार ले आया था और l
सखी इंतज़ार में फागा जा रहा है ll

मिलन मुलाकात मुसलसल करना l
मौसमी सुहाना सागा जा रहा है ll
सागा - हरियाली
मुसलसल-लगातार
२७-२-२०२३

मुफ़लिसी की दास्तां सुनकर क्या करोगे?
सभी भूखे यहां किस किस का पेट भरोगे?

जो भी है जितना है मिल बाट्कर खा ले l
खाली हाथ आए हों खाली हाथ मरोगे?

क़ायनात में गर किसी की दुआ मिल गई l
तो हमेशा ही लोगों के दिलों में रहोगे ll

बर्दास्त के बाहिर हो जाता सब, जानते हैं l
सहनशील हो और कितना कुछ सहोगे?

एक दूसरे के दारोमदार पर है दुनिया वाले l
इंसा हो इंसा के सिवा किसे दर्द कहोगे?
२८-२-२०२३ 

 

उम्मीदे कम हो गई ll
फरियादें कम हो गई l

रूठना मनाना छोड़ दिया l
शिकायते कम हो गई ll
२८-२-२०२३