में और मेरे अहसास - 74 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

में और मेरे अहसास - 74

Darshita Babubhai Shah मातृभारती सत्यापित द्वारा हिंदी कविता

हर्फ़-ओ-नवां से तरन्नुम बनता है lबनके गीत महफिलों में सजता है ll रहगुज़र-ए-जीस्त में हमराह मिले lतो रूह में सुकुनियत सा भरता है ll जब मुहब्बत में नजदीकियां बढ़े तब lदिल में धड़कनों को जिंदा करता है ll रिसता ...और पढ़े


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