हमने दिल दे दिया - अंक ३६ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हमने दिल दे दिया - अंक ३६

अंक ३६. प्रेमकथा का अंत 

    हम को एक दुसरे से बहुत लगाव हो गया था | हम एक दुसरे से जान से भी ज्याद प्यार करने लगे थे और यह मेरे दोस्त पराग, चिराग और अशोक को अच्छे से पता था और इसलिए उन्होंने हमें भाग कर शादी करने की सलाह भी दी पर हम उतने भी बड़े नहीं हुए थे की हम भागकर शादी कर सके इस वजह से हमने तय किया की जब हमारी उम्र १८ साल हो जाएगी तो तब हम भागकर शादी कर लेंगे लेकिन उससे पहले ही मानसिंह जादवा ने कुछ एसा कदम लिया जिससे हमारी जिंदगी मातम में बदल गई ...अंश ने अपनी दास्तान का अंत सुनाने की शुरुआत करते हुए कहा |

    मेरे ससुर उनके तो तुम्हारे जीवन पर कई सारे उपकार है फिर उन्होंने तुम्हारे प्रेम जीवन का अंत कैसे लिखा एसा क्या हुआ था जिससे गोपी की मृत्यु हो गई और तुम्हारी प्रेमकथा पुर्ण हो गई ...अंश की प्रेमकथा सुन रही दिव्या ने सवाल करते हुए कहा |

  थोडा धेर्य रखो सबकुछ बताता हु मोहतरमा ...अंश ने दिव्या से कहा |

   जल्दी बताना यार ...दिव्या ने कहा |

   हम दोनों ने तय किया की जब हमारी भाग ने लायक उम्र हो जायेगी तो तब हम भाग जाएंगे पर एक दिन कुछ एसा हुआ की गोपी के घर मेरे पापा और मानसिंह काका पहुचे रिश्ते की बात लेकर और यह बात गोपी ने मुझे फोन पर बताई और में और गोपी खुश हो गए की शायद भगवान ने हम पर कृपा बरसा दी की मेरे पापा और मानसिंह काका मेरे रिश्ते की बात करने के लिए गोपी के घर पहुचे और फिर कुछ एसा पता चला जिससे हमारी पुरी कहानी ही ख़त्म होने की कगार पर आ गई | मानसिंह काका और मेरे पापा वहा पर मेरा रिश्ता लेकर नहीं बल्कि वीर का रिश्ता लेकर आए थे | गोपी और में अंदर से पुरे तुट गए इस बात को जानने के बाद क्योकी जब आपके प्यार की शादी आप ही के परिवार के सदस्य के साथ होने वाली हो तो वो दर्द बहुत ही भयानक होता है | तुम को तो पता है की आज भी हमारे यहाँ लड़के या लड़की से पुछा नहीं जाता की तुम्हारी हां है या ना है तो उस समय पे तो बात ही नहीं थी पुछने ना पुछने की | ना तो किसी ने गोपी की मरजी जानी और वीर तो था ही पहेले से हरामी आदमी उसने भी हा कर दी क्योकी उसे कभी भी बीवी नहीं चाहिए थी वो तो बस हवस का पुजारी था ...अंश ने अपनी प्रेमकथा का सबसे कठिन किस्सा सुनाते हुए कहा |

    क्या वीर की पहले भी सगाई हो चुकी है यह तो कभी भी ससुरजी ने मेरे पिता को बताया ही नहीं और उनको बहार से भी कही से पता नहीं चला है अगर उन्हें पता लग जाता तो वो मेरी सगाई वीर के साथ कभी नहीं करते और ना ही यह शादी हो पाती और ना ही आज मेरी हालत एसी होती ...दिव्या ने अचानक से कई सारे सवाल करते हुए कहा |

    शांत शांत दिव्या पहेले मेरी बात तो सुनो मैने नहीं कहा की समाज के सामने उन दोनों की सगाई हुई थी | समाज वालो को और बहार वालो को कुछ पता नहीं था और खानगी में यह तय हो गया था की गोपी और वीर को १ साल बाद विवाहित कर दिया जाएगा और तब से उस साले वीर ने गोपी का पीछा करना शुरू कर दिया था और उसने एक दिन मुझे और गोपी को साथ में देख भी लिया और फिर वो गोपी को धमकाने लगा की अगर उसने वीर की बात नहीं मानी तो वो सबको सच्चाई बता देगा और उस वक्त हम लोग बच्चे थे और बच्चो के लिए यह चिंता बहुत बड़ी होती है | वीर बार बार गोपी को धमका रहा था और डरा रहा था इस वजह से परेशान होकर गोपी ने खुद अपनी जान ले ली और मानसिंह जादवा ने इस बात को इस तरह से दबाया की बात आज तक बहार नहीं आ पाई | उस दिन से मुझे जादवा परिवार से नफरत होने लगी थी पर क्या करू मानसिंह जादवा के हमारे उपर कई सारे एहसान है और फिर ख़ुशी मेरी सबसे अच्छी दोस्त जो ठहेरी ...बाते करते वक्त अंश की आखो में आशु आ जाते है |

    अरे बाप रे वीर ने तो मेरा जीवन बिगाड़ने से पहेले ही तुम्हारा जीवन बिगाड़ दिया है ...दिव्या ने कहा |

    और तो और बात वहा तक नहीं रुकी यह बात वीर ने मानसिंह काका को भी बता दी और फिर मानसिंह काका मेरे उपर खुब बरसे लेकिन वीर के पास कोई सबुत नहीं था इसलिए मैंने भी उनके सामने झूठ बोलने की शुरुआत की | की मेरा और गोपी का कोई रिश्ता नहीं था हम बस पढाई की वजह से अच्छे दोस्त थे और उस समय मेरी माँ यानी मानसिंह जादवा की मु बोली बहेन ने मानसिंह जादवा से बहुत बिनती की और उनकी बिनती की वजह से काका मान गए और आगे जाकर यह जो भी घटना घटित हुई वो बहार ना आए इस वजह से मुझे और वीर हम दोनों को बहार पढने के लिए भेज दिया | वहा जाकर भी वीर ने बहुत से एसे काम किए है पर मेरा उससे कुछ लेना देना नहीं था | वहा जाकर वो अपने रास्ते पर था और में अपने रास्ते पर | तो कुछ इस तरह हमारा प्यार वीर की वजह से अधुरा का अधुरा ही छुट गया |

   मुझे आज भी याद है की वो दिन मेरे लिए जीवन के सबसे कठिन दिनों में से एक दिन था | उस दिन मैंने जाना की जिंदगी जब हम से कुछ छिनती है तो एसे छिनती है की फिर कभी वो वापस ही नहीं मिलता... अंश ने अपनी दुःख भरी दास्तान सुनाते हुए कहा |

   क्या पता अंश की उस वक्त जो हालत तुम्हारी थी वही हालत उस डायरी वाली की भी हो ? ...दिव्या ने अंश से सोचते हुए कहा |  

   पता नहीं पर वो कभी मिली नहीं मुझे ...अंश ने दिव्या से कहा |

   कैसे मिलती उसने भी कुछ एसा देखा था जिस वजह से उसने तुम से ना मिलने का प्रण ले लिया था ...दिव्या ने कहा |

   दिव्या ने कुछ एसी बात बोली जिसे सुनकर अंश के चौक गया होगा शायद की दिव्या एसा क्यों बोल रही है और दिव्या कैसे जानती है उस लड़की को और उसने एसा क्या देख लिया की जिसने अंश से ना मिलने का प्रण ले लिया ?

   क्या मतलब, तुम कैसे जानती हो उसे और उसने एसा क्या देख लिया की उसने मुझ से ना मिलने का प्रण ले लिया यार तुम साफ़ साफ़ बताओ बात को की तुम उसे जानती हो क्या ...अंश ने कहा |

   दिव्या के मु से निकले एक वाक्य के बाद अंश के दिमाग में कई सारे सवाल हो रहे थे जिसका उत्तर सिर्फ और सिर्फ दिव्या के पास ही था जिसे जानने के लिए अंश काफी आतुर था |

   अभी भी उस डायरी वाली लड़की का रहस्य सुलझा नहीं था वो वैसा का वैसा ही था और अभी कहानी अधूरी थी अंश की । आगे और भी एसे एसे रहस्य खुलने वाले है जो आपके होश उड़ाने का काम करने वाले है तो देखते रहिये हमारी ऐतिहासिक दास्तान Hum Ne Dil De Diya के आने वाले अंको को |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY