हमने दिल दे दिया - अंक ३२ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक ३२

अंक ३२. दाव-पेच

    दुसरे दिन सुबह | सुबह के लगभग लगभग ११ बज रहे थे और मानसिंह जादवा आज अपने घर पर ही थे और अपने बैठक रूम में बैठकर टेलीवीजन का लुप्त उठा रहे थे तभी अचानक उनके घर वनराज सिंह आते है और सीधा बैठक रूम में पहुचते है |

    जादवा साहब आ सकता हु ...वनराज सिंह ने कहा |

    अरे आओ आओ वनराज सिंह बैठो बैठो भाई ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह को बैठने के लिए कहा |

    जी धन्यवाद और जय माताजी ...वनराज सिंह ने कहा |

    जय माताजी ...अरे मधु बेटा कॉफी लाना जरा ...मानसिंह जादवा घर में काम कर रही अपनी बहु को आवाज देते हुए कहा |

    अरे नहीं जादवा इसकी कोई जरुरत नहीं है आप बस मेरा काम कर दीजिए ...वनराज सिंह ने कहा |

    अरे चिंता क्यों करते हो वो भी कर देंगे लेकिन कॉफी तो लेनी ही होगी ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    मधु कॉफी लेकर आती है और वनराज सिंह को देती है और चुपचाप चली जाती है |

    जी बोलो वनराज सिंह क्या काम था ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    जी आपको तो पता ही है की मुझे मेरी जमीन मेरी बेटी के नाम करनी है तो आप वो पेपर मुझे जल्दी से दे दीजिए तो आपकी बड़ी महेरबानी होगी ...वनराज सिंह ने कहा |

    अरे हा वो मुझे देने ही है लेकिन उसमे हुआ यु की जब वीर लंडन गया तो भुल से वो पेपर उसके साथ वही पे चले गए और जब मुझे पता चला तो मैंने उसे ध्यान से वहा मेरे काका का लड़का है उसके पास रखवा दिए अब वो ३ महीने के बाद यहाँ आने ही वाले है तो तब मंगवा लेंगे तो तुम चिंता ना करो सत्ता तो अपनी ही है और तभी तो में खुद MLA की गद्दी पर बैठा होऊंगा तो तेरा वो जमीन तेरी बेटी के नाम पे करने के सारे काम की जिम्मेवारी मेरी और वो भी जो भी खर्चा होगा वो मेरा जा बस अब कोई चिंता ...मानसिंह जादवा ने इस चुनाव तक वनराज सिंह के गले का फंदा जानबूझकर अपने हाथ में रखते हुए कहा |

    यह जादवा जानबूझकर एसा खेल खेल रहा है ताकि में उसके सामने चुनाव लड़ने के लिए ना उतरु और अगर उतरा तो जमीन के कागज भी खो दूंगा और मेरी बेटी के पास फूटी कोडी भी नहीं बचेगी जो कुछ भी हो जाए शांति से काम लेना होगा और कागज लेने होंगे | ५ साल की गद्दी के लिए में अपनी जमीन नहीं खो सकता वो जमीन पुरा जीवन मेरी बेटी का सहारा बनेगी ...मन ही मन सोचते हुए वनराज सिंह ने कहा |

    क्या हुआ वनराज क्या सोच रहा है ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह से कहा |

    कुछ नहीं में यह सोच रहा था की ३ महीने कुछ ज्यादा नहीं हो जाएंगे और जब तक में जमीन मेरी बेटी के नाम पर नहीं करता तब तक मेरे दामाद को उसके उपर घर की लोन लेनी है वो अब नहीं ले सकेंगे तब तक खामखा उनको भाड़े के घर में रहेना पड़ेगा ...वनराज सिंह ने भी एक चाल चलते हुए कहा |

    अरे चिंता क्यों कर रहा है बोल वो लोग कितने टके पे कितनी लोन दे रहे है में तुझे देता हु और साथ में तेरे लिए दुसरी ऑफर भी है ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह को अपनी ऑफर की लालच में फ़साने की कोशिश करते हुए कहा |

    बाप रे यह तो किसी तरह से मुझे छूटने नहीं दे रहा है लगता है इसका इरादा पक्का है की यह चुनाव तक पक्का मुझे कागज नहीं देने वाला | कोई बात नहीं वापस ले लेता हु पैसे लोन के बहाने और फिर देखते है क्या हो सकता है ... वनराज सिंह ने मन ही मन सोचते हुए कहा |

    क्या सोच रहा है वनराज सिंह ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह से कहा |

    कुछ नहीं जादवा साहब वो थोड़ी रकम बड़ी है तो यही सोच रहा हु की मुझे आपको बताकर आपके पास से लेनी चाहिए या नहीं यही ...वनराज सिंह ने भी राजनैतिक खेल खेलते हुए कहा |

    गद्दी के लिए तो में कितने भी पैसे दे सकता हु और तु वनराज सिंह मेरी जित का पक्का मोहरा है तुझे तो में मेरे हाथ से नहीं जाने दूंगा और मुझे कहा तुझे एसे ही पैसे दे देने है उधार पे ही तो देने है और आज पता लग ही जाएगा की तु मेरे खिलाफ खड़े होने की सोच रहा है या नहीं ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह के सामने देखते हुए मन ही मन कहा |

    अरे माँगना तु कहा बहार का है बड़ी रकम होगी फिर भी में दूंगा अरे भाई तेरी बेटी मेरी बेटी है | अगर मेरी थोड़ी मदद से तेरी बेटी का घर बसता है तो में देने को तैयार हु तु अभी बोल में तुझे अभी के अभी चेक लिखकर दे देता हु ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह के उपर फिर से वही दाव खेलते हुए कहा |

    मानसिंह जादवा एसे नहीं मानेगा इसके साथ तो मुझे बड़ा ही दाव खेलना होगा | तु कुछ भी कर ले जादवा लेकिन इस बार में तुझे नहीं जितने दूंगा यह तय रहा ...मन ही मन मानसिंह जादवा के बारे में सोचते हुए वनराज सिंह ने कहा |

    बोल मेरे भाई मुहरत का इंतजार कर रहा है ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    नहीं नहीं जादवा साहब बताता हु मुझे उस घर के लिए कम से कम ४५ लाख की लोन मिल रही है और वो भी १% ब्याज पर ...वनराज सिंह ने अपनी जबान खोलते हुए कहा |

    अरे बाप रे यह तो बड़ी रकम है पर कौन दे रहा है इतनी बड़ी रकम इतने ब्याज पे हमारे यहाँ पर ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह को सबसे कठिन सवाल पूछते हुए कहा |

    अरे बाप रे यह तो सबकुछ पुछते जा रहा है इसे हर एक चीज का उत्तर कैसे दु ...वनराज सिंह ने मन ही मन गभराहट के साथ कहा |

    है एक आप ही की तरह मेरे दोस्त जिनका नाम तो में नहीं दे सकता लेकिन आपको भरोसा ना हो मेरी बातो पे तो में लाकर दिखा सकता हु आपको ...वनराज सिंह ने जानबूझकर भरोसे की बात को छेड़ते हुए कहा |

    अगर मैंने ज्यादा सबुत माँगा तो इसका भरोसा मुझ पर से उठ जाएगा और यह मेरे खिलाफ हो जाएगा एसा नहीं करना है ...मानसिंह जादवा ने मन ही मन सोचते हुए कहा |

    ठीक है यह लो ४५ लाख पुरे और यह मेरी सही ...चेकबुक हाथ में लेकर वनराज सिंह को ४५ लाख का चेक लिखकर देते हुए कहा |

    धन्यवाद जादवा साहब ...चेक हाथ में लेते हुए वनराज सिंह ने कहा |

    इसका तुम्हे १% देना है तो देना नहीं तो आधा टका भी चलेगा ठीक है ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह से कहा |

    मानसिंह जादवा राजनीती में बहुत ही पक्का इंसान था उसे कोन से मोहरे कहा और कब फेकने है वो अच्छी तरह से आता था और आज वही निभाया मानसिंह जादवा ने | मानसिंह जादवा ने शांतिलाल झा के जमाए हुए मोहरे को सूंघ कर फिर से बिखेर दिया था मानसिंह जादवा ने पर शांतिलाल झा ने भी कोई एसा वेसा मोहरा पसंद नहीं किया था | वनराज सिंह के पीछे मानसिंह जादवा एसे ही नहीं पैसे बहा रहा था वनराज सिंह जादवा भी पक्का खिलाडी था जिसे हर एक परिस्थिति में कहा कब और क्या करना है वो अच्छे से आता था |

    अरे कोई बात नहीं मान भाई आप जैसे बोलोगे वैसे दे दूंगा पर हो सके उतना माफ़ कर देना क्योकी आपको तो पता ही है की मेरे बेटे के जाने के बाद मेरी हालत बहुत ही पतली है ...वनराज सिंह ने मानसिंह जादवा से कहा |

    उसकी भी चिंता तुम छोड़ दो वनराज सिंह में तुम्हे फिर से वही पोजीसन में लाकर रख दूंगा जहा तुम थे | MLA के चुनाव के साथ साथ जनमावत तालुके की नगरपालिका का भी चुनाव है जिसे तुम्हे लड़ना है और तुमको तो पता है जहा जहा हम दोनों साथ खड़े हो वहा हमारे अलावा और कोई नहीं जित सकता फिर जी भरके पैसा बनाना तुम भी तुम्हे कोई रोके तो मै तो बैठा ही हु ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह के सामने एक और जाल फेकते हुए कहा |

    यह ऑफर तो फायदे का है भाई MLA के चुनाव में अगर में जादवा के सामने लड़ा तो मेरी जितने के चांस ५० प्रतिसत है और मेरी जमीन के कागज उसके पास है और अगर में नगरपालिका का चुनाव लड़ता हु तो एक छोटी मोटी सत्ता भी हाथ में आ जाएगी और कागज भी और मानसिंह जादवा को MLA से हटाने के लिए ५ साल तो है ही ...वनराज सिंह ने मन ही मन सोचते हुए कहा |

    अब मानसिंह जादवा ने अपनी वो चाल खेली थी जिसमे वनराज सिंह का फसना तय ही था और कोई मौका ही नहीं था क्योकी मानसिंह जादवा वनराज सिंह की हालत अच्छे से जानता था और हुआ भी वैसा ही मानसिंह जादवा की इस चाल में वनराज सिंह फस गया था | वनराज सिंह मानसिंह जादवा ने उसके साथ जो किया वो भुला नहीं था वो उसके बदला जरुर लेने वाला था पर अब वो अपने दिमाग से सोच रहा था और सही फेसले ले रहा था |

    अरे क्या बात कर रहे हो जादवा साहब जरुर जरुर अगर आप मुझे नगर पालिका का चुनाव जिताने के लिए तैयार है तो में भी आपको MLA के चुनाव लड़ने में एसी मदद करूँगा की आपका जितना तय है ...वनराज सिंह ने खुश होकर कहा |

    ठीक है तो फिर तय रहा बहुत जल्द हम दोनों चुनाव के उमेदवार का एलान कर देते है ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    जानबूझकर मानसिंह जादवा ने गाव के प्रधान पद से भी बड़े पद के लिए वनराज सिंह को तैयार कर रहे थे ताकि वनराज सिंह उनके विरुध में खड़े होने की सोचे ना |

    जी जैसा आपको ठीक लगे जादवा साहब अब में चलता हु ...वनराज सिंह ने अपनी जगह से खड़े होकर कहा |

    जी जी जय माताजी ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    जय माताजी ...इतना बोलकर वनराज सिंह वहा से चले जाते है |

    मानसिंह जादवा मन ही मन अपने इस खेल के बारे में सोचकर खुश हो रहा थे और उसके चहरे पर रावण सी मुस्कान थी |

    शांतिलाल झा भी कोई एसा वैसा आदमी नहीं था उसको उसके हर एक मोहरे की हर एक खबर हर पल रहेती | दुपहर होते होते शांतिलाल झा को सारी बात की खबर पहुच जाती है और वो तुरंत अपने PA से बोलकर वनराज सिंह को अपने दफ्तर बुलाता है और वनराज सिंह समयसर पहुच भी जाता है |

   एक तरफ शांतिलाल झा बैठे हुए थे और दुसरी तरफ वनराज सिंह और एक तरफ शांतिलाल झा का PA खड़ा हुआ था |

   वनराज सिंह यह हम क्या सुन रहे है आप फिर से मानसिंह जादवा के साथ जाकर मिल गए है और उनसे ४५ लाख रुपये भी ले आए है आपको तो पता ही है उस इंसान के बारे में वो फिर से आपके साथ खेल रहा है और वो आपको मोहरा बना रहा है अपने लिए ...शांतिलाल झा ने कहा |

   मेरे साथ कौन क्या कर रहा है और कौन मुझे मोहरा बना रहा है यह मुझे अच्छी तरह से पता है झा साहब आपको मुझे बताने की जरुरत नहीं है | आप भी तो मेरे साथ यही कर रहे थे मुझे मोहरा ही तो बना रहे थे अपने लिए इसलिए मैंने ही तय कर लिया की कोई मेरे साथ खेले इससे अच्छा है में खुद अपना खेल खेलु तो मैंने अपना खेल खेल लिया उसकी ऑफर मुझे ज्यादा अच्छी लगी क्योकी मेरी जमीन सबसे कीमती है जो उसके पास फसी पड़ी है जो मुझे चुनाव से पहले नहीं मिल सकती तो फिर मेरे पास एक ही रास्ता बचता था और तो और उनका ऑफर भी बुरा नहीं है ...वनराज सिंह ने शांतिलाल झा से कहा |

   यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो वनराज सिंह जबान की भी कोई किंमत होती है तुम भुल रहे हो और तो और तुम ने हम से २५ लाख रुपये लिए है पता है ना ...शांतिलाल झा ने कहा |

   बिलकुल पता है झा साहब में कैसे भुल सकता हु आप ही ने तो मुझे कर्जे से बहार निकाला था और यह वनराज सिंह स्वाभिमान का पक्का आदमी है वो किसी के एहसान कभी भी नहीं भूलता | आपने मुझे यह चुनाव जिताने के पैसे दिए थे तो मैंने कब कहा की मै आपको चुनाव नहीं जीताकर दूंगा सबकुछ होगा झा साहब आप बस अब वनराज सिंह का खेल देखते जाओ में उसके साथ हु में अपना चुनाव जीतूँगा उसको हराऊंगा और फिर आने वाले दुसरे चुनाव में खुद MLA बनूँगा और एसा उसको बरबाद करूँगा की वो जिंदगीभर ना भूले की कैसे उसने मेरे बेटे की जिंदगी बरबाद कर दी थी | में कुछ देर के लिए जरुर बहेक गया था झा साहब पर जब उसके घर से निकला तो मुझे वो दिन याद आया जब इस जादवा के कारण मेरे बेटे ने अपने आपको मौत के हवाले कर दिया था | अब समय एसा खेल खेलने का है की जिससे पूरा जादवा परिवार बरबाद हो जाए ...वनराज सिंह ने शांतिलाल झा से कहा |

   वाह वनराज सिंह वाह मुझे लगा की तुम तो गए पर तुम तो अपने इमान के पक्के आदमी निकले ...शांतिलाल झा ने वनराज सिंह से कहा |

   आप बस तैयारिया कर लीजिए शांतिलाल झा जी में आपके लिए एसा उमेदवार लेकर आऊंगा जो आपको चुनाव जित के देंगा ...वनराज सिंह ने जाते हुए कहा |

   वनराज सिंह मानसिंह जादवा और शांतिलाल झा दोनों से वादा कर रहा था पर वो क्या करने जा रहा था और असल में वो किस के साथ है उसका किसी को पता नहीं था वो सिर्फ ओर वनराज सिंह को ही पता था | वनराज सिंह अब सबसे बड़ी राजनीती खेलने वाला था लेकिन मानसिंह जादवा इस कहानी का कोई एसा वैसा तो विलेन था नहीं वो भी बहुत बड़ा खेल खेलने वाला था अब देखना यह था की यह खेल हमारी कहानी को कैसे रसप्रद बनाता है |

   एक तरफ राजनीती चल रही थी तो एक तरफ निर्दोष प्यार | अंश ने अशोक की कार तो मांग ली थी आज दिव्या को अस्पताल ले जाने के लिए लेकिन उसकी मदद नहीं मांगी थी | अंश और दिव्या अपने दुसरे दिन की सारवार करवाने के लिए आज अस्पताल हर बार की तरह जा रहे थे और दोनों के बिच संवाद चल रहा था |

   यार अंश तुम्हारी वो कहानी तो अभी भी अधूरी की अधूरी ही है | क्या हुआ उस डायरी का और तुम्हारे और गोपी के प्यार का ...दिव्या ने अंश की अधूरी दास्तान को फिर से याद करते हुए कहा |

TO BE CONTINUED NEXT PART...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY