हमने दिल दे दिया - अंक २७ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक २७

अंक २७. डायरी 

   आगे आपने देखा की शांतिलाल झा सबसे पहले डोक्टर से मिलते है और उनसे बात करने के बाद अपने लोगो के साथ अस्पताल के सारे दर्दी लोगो को फल का अनावरण करने की शुरुआत करते है और साथ में एक अख़बार वाला भी था जो उनका फलो का अनावरण करते हुए फोटो खीच रहा था | दिव्या शांतिलाल झा को देख लेती है लेकिन उसे शांतिलाल झा से कोई डर नहीं था क्योकी ना तो दिव्या शांतिलाल झा को जानती थी और ना ही शांतिलाल झा दिव्या को पर दिक्कत यह थी की अगर शांतिलाल झा ने दिव्या को अपना मास्क उतारकर फोटो खिचाने की बात की और वही फोटो अगर अखबार में आया तो उससे जो दिक्कत पैदा होगी वो अंश और दिव्या के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है जिसका बहार गए हुए अंश को शायद कोई अंदाजा भी नहीं था |

    शांतिलाल झा जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे दिव्या की धड़कने भी तेज हो रही थी | दिव्या को गभराहट हो रही थी क्योकी अगर शांतिलाल झा ने फलो का अनावरण करते समय मास्क उतारने के लिए कहा और अगर वो फोटो कल अख़बार में छपी तो दिक्कत हो जायेगी जिसका डर धीरे धीरे दिव्या के जहेन में बस ने लगा था | शांतिलाल झा धीरे धीरे दिव्या की और आगे बढ़ रहे थे और उनको इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था की आगे मानसिंह जादवा के मृत लड़के की विधवा है जो चुनाव के लिए बड़ा महोरा बन शक्ति है |

    जैसे जैसे शांतिलाल झा आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे दिव्या का डर भी बढ़ रहा था पर कुछ एसा हुआ जिसने दिव्या के डर को दुर कर दिया | शांतिलाल झा का एक आदमी बहार दोड़कर आया और शांतिलाल झा को कुछ बताने लगा |

    सर बहार सामने वाली कंपनी के कर्मचारियो ने हड़ताल कर दी है आप चलिए जल्दी वहा यहाँ पर हम जाते वक्त सबकुछ कर लेंगे ...शांतिलाल झा के एक आदमी ने आते ही कहा |

    शांतिलाल झा को इस इलाके में घुसने के लिए जो भी करने की जरुरत थी वो शायद यह हड़ताल से हो सकता था इसी वजह से शांतिलाल झा फलो का अनावरण अधुरा छोड़कर वहा जाने के लिए निकल जाते है |

    बहार पानी लेने गया हुआ अंश वापस अंदर की और आता है और शांतिलाल झा उनके पास से ही गुजरते है और उसी वक्त शांतिलाल झा के एक आदमी की अंश के साथ गलती से टक्कर हो जाती है |

    माफ़ कर दे सर ...अंश ने उस आदमी से कहा |

    ठीक है ... शांतिलाल झा के आदमी ने कहा |            

    यह तो उस विश्वराम का बेटा है ना ...शांतिलाल झा ने अंश की और देखकर अपने PA से पूछते हुए कहा |

    शांतिलाल झा की बात सुनने के बाद अंश को जाते हुए PA ठीक से देखता है और फिर अपना उत्तर शांतिलाल झा के सामने पेश करता है |

    मैंने ठीक से तो नहीं देखा लेकिन वही होगा क्योकी विश्वराम केशवा इस अस्पताल के ट्रस्टी है सर ...PA ने शांतिलाल झा से कहा |

    हम ... मिलते है बाद में और वो भवानी सिंह से मीटिंग का क्या हुआ ...अपने PA से शांतिलाल झा ने कहा |

    उसका बंदोबस्त में जल्द से कर दूंगा अभी वो कुछ कॅश में उलझे हुए है ...PA ने शांतिलाल झा से कहा |

    जो भी हो बहुत दिन हो गए जल्द से करो और हा यह वनराज सिंह के कागज़ का क्या हुआ मानसिंह जादवा से मिले या नहीं ...चलते चलते शांतिलाल झा ने कहा |

    नहीं ना पता नहीं क्यों पर वो मानसिंह जादवा बार बार जानबुझकर कागज देने के समय को टाल रहे है और मुझे लगता है वो यह सब जानबुझकर इसलिए कर रहा है ताकी वो जान सके की कही वनराज सिंह कोई खेल तो नहीं खेल रहा ना इसलिए हमें अभी कुछ दिन के लिए उनसे मिलना नहीं चाहिए फोन पर ही बात करनी चाहिए जिस से हमारे खेल की किसीको भनक ना लग सके ...PA ने शांतिलाल झा से कहा |

    जो भी है जल्द से जल्द करना होगा कुछ दिन तक इंतजार करो अगर सीधे तरीके से मानसिंह जादवा कागज ना दे तो हमें ही उसके सामने कुछ टेडी चाल चलनी होगी ...अस्पताल से बहार निकलते हुए शांतिलाल झा ने कहा |

    जी सर बिलकुल आप चिंता ना करे मेरा उन पर अच्छे से ध्यान है ...PA ने कहा |

    इस तरफ अंश दिव्या के पास पहुचता है और उसे पानी पिने के लिए पानी की बोटल देता है |

    यह लो दिव्या पिलो पानी ...अंश ने दिव्या को पानी की बोटल देते हुए कहा |

    बाल बाल बचे अंश वो कोई नेता आया था फलो का अनावरण करने के लिए अपने राजनैतिक मकसत से और सबके साथ फोटो खिचवा रहा था में तो डर गई क्योकी उसने मेरा मास्क उतरवाकर फोटो खिचवाकर वही फोटो अगर अखबार में छपता तो दिक्कत हो जाती ...दिव्या ने पानी पीते हुए अंश से कहा |

    हा वो मैंने देखा वो लोग बहार की और जा रहे थे ...अंश ने दिव्या से कहा |

    यार जल्दी से यह बोटल ख़त्म हो तो अच्छा है यहाँ पर कभी भी कोई भी आ सकता है अंश ...दिव्या ने अंश से कहा |

    सही बात है पर इस में हम क्या कर सकते है दवाई को अंदर जाने में जितना वक्त लगता है उतना तो लगेगा ही ना ...अंश ने दिव्या को समझाते हुए कहा |

    में इसे पी लु तो नहीं चलेगा ...दिव्या ने एक मुस्कान के साथ कहा |

    एसा होता तो डोक्टर हम से ज्यादा होशियार है ...अंश ने दिव्या से कहा |

    वो तो ठीक है लेकिन में यहाँ पर बोर हो रही हु ...दिव्या ने अंश से कहा |

    हम उसका कुछ इलाज करते है ...इधर उधर देखते हुए अंश ने कहा |

    इलाज क्या करना है अंश तुम अपना प्रेम प्रकरण की बात शुरू करो उसके पुर्ण होने से पहेले तो यह दवाई ख़त्म हो ही जाएगी ...दिव्या ने अंश से कहा |

    आज तो तुम ने तय कर ही लिया है की जानना ही है बातो से ही लग रहा है ...हस्ते हुए अंश ने कहा |

    बिलकुल जनाब कीजिए शुरुआत ...दिव्या ने अंश से कहा |

    बात है जब में १० वी में पढता था | में हमेशा से ही एसा था गुड लुकिंग, हेंडसम और चार्मिंग | में पढने में भी टॉप और मस्ती और सरारत करने में भी टॉप और सारे स्कूल की लडकिया मुझ पर फ़िदा थी तो बड़े सुहाने दिन थे उस वक्त | विश्वराम केशवा का बेटा था जिस वजह से जीवन और भी आसान था क्योकी मानसिंह जादवा का हम पर हाथ जो था | कोई भी लुख्खा लफंगा हो कभी भी मेरे रास्ते में नहीं आता था पर में उन सबसे अलग था मेरा खुद का एक सपना था की मेरा भी नाम मानसिंह जादवा जैसा हो तो में भी सबके उपर रोफ झाड़ने की कोशिश करता मतलब उस वक्त में आज जो हु उससे कही अलग था और वो दिन मतलब क्या दिन थे स्कूल के दिन मानो जन्नत के दिन हो अगर कल को कोई मुझे जन्नत और स्कूल दोनों में से किसी एक को पसंद करने का विकल्प दे तो में स्कूल को ही पसंद करूँगा ...अंश ने दिव्या को अपनी प्रेमभरी दास्तान को सुनाने की शुरुआत करते हुए कहा |

    वाह अभी से मजा आ रहा है और तुम अभी भी बड़े चार्मिंग हो अंश ...दिव्या ने अंश से कहा |

    बस करो यह सब बाद में मस्का लगाना पहले सुन तो लो ...अंश ने दिव्या से कहा |

    ठीक है ठीक है सुनाओ ...दिव्या ने अंश से कहा |

    हा तो स्कूल में अपना सिक्का चलता था और उस सिक्के के पीछे पागल थी एक लड़की जिसका नाम था गोपी वो गोपी और में काना | गोपी क्लास की सबसे होशियार लड़की थी और मानसिंह जादवा की बहन के जेठ की लड़की थी | हम दोनों में कभी भी बोलचाल नहीं होती थी क्योकी मेरा कभी भी उसकी तरफ ध्यान गया ही नहीं था | एक दिन वो स्कूल के केंटिंग में बैठकर अपना नास्ता ख़त्म कर रही थे और जैसे ही वो नास्ता ख़त्म करके अपनी जगह से खड़ी होकर बहार गई में तुरंत उसकी जगह पे जाकर बैठ गया क्योकी केंटिंग में और कोई जगह खाली नहीं थी | मेरे दोस्तों के आने में थोडा वक्त था तो मैंने नास्ता नहीं मंगवाया था | एक टेबल पर कुछ चार जगह होती थी बैठने की हमारी स्कूल में तो मेरा ध्यान कुछ देर तक तो नहीं गया बाद में गया तो पता चला की उसकी जगह के पास मतलब में जहा बैठा था उसके पास जो बैठने की जगह थी वहा पर एक डायरी पड़ी हुई थी जिसमे कही पर भी कोइ भी नाम नहीं लिखा हुआ था लेकिन सबसे लास्ट में वहा पर गोपी ही बैठी थी तो वो डायरी उसी की होगी यह तो लाजमी था |

    मैंने वो डायरी ली और एक दो पन्ने खोले तो मुझे लगा की इसमें तो उसकी प्राइवेट बाते लिखी हुई है तो में तुरंत उसे यह डायरी लौटाने के लिए उसके पास गया लेकिन तब तक तो वो स्कूल से किसी कारणवश जा चुकी थी तो मैंने उस दिन के लिए वो डायरी रखली क्योकी वो मुझे कल ही मिलने वाली थी | फिर में भी स्कूल का समय होते ही उस डायरी को लेकर अपने घर चला गया |

    फिर रात को जब में अपने कमरे के बाथरूम से नहाकर बहार आया और देखा तो मेरा फ़ोन डिसचार्ज था तो उसे चार्ज पर रखा और जब तक मोबाइल चार्ज होता तब तक मेरे पास करने को कुछ था नहीं तो मेरी नजर उस डायरी पर पड़ी और मुझे उसे खोलकर पढने की इच्छा हुई पर किसी की प्राईवेट बातो को पढना तो सही नहीं होता है तो फिर मैंने उसे पढना रद रखा | फिर कुछ मिनट बीते और मुझे एक ख्याल आया की जीवन में एसे कई काम मैंने किए है जो मुझे नहीं करने चाहिए थे तो एक और कर लेते है इसमें क्या है और फिर मैंने वो किया जो मुझे नहीं करना था | में वो डायरी लेकर उसमे जो भी लिखा हुआ था उसे पढने के लिए बैठ गया |

    डायरी के पहले पन्ने पर उसके कुछ किस्से लिखे हुए थे जिसमे में जरा सा भी इच्छुक नहीं था | पन्ने पलटता गया और एक विषय आया जिसका नाम था मेरा प्रेम प्रकरण और किसी के प्रेम प्रकरण को जानने का मजा ही अलग होता है तो मैंने वो पढने की शुरुआत की |

    किताब में लिखी हुई बाते |

    वैसे तो मुझे कभी भी किसी से भी आसानी से प्रेम नहीं होता है और ना ही मै किसी से आसानी से आकर्षित होती हु पर पता नहीं क्यों में आज कल एक इंसान से बहुत ही प्रभावित हो रही हु और उसकी तरफ खिचती जा रही हु | मैंने कही बार अपने आप को रोकने की कोशिश की क्योकी यह प्यार व्यार का चक्कर अपने को नहीं जचता है पर क्या करे यह दिल है की मानता नहीं में हर बार उसकी तरफ खिचती चली जा रही हु |

    अंश मेरा प्यार | मुझे पता है आप सोच रहे होंगे की सबसे पहले ही मेरा प्यार पर क्या करे हुआ तो प्यार ही था ना । में भली एसी थी जो उसे स्वीकार नहीं कर रही थी | मुझे अंश से धीरे धीरे प्यार होने लगा था जिसकी शुरुआत सबसे पहले तब हुई जब अंश से स्कूल में लडकियो को स्कूल के शिक्षको से लड़कर मोनिटर बनाने की बात की क्योकी वो चाहता था की लडकिया भी हर वो चीज करे जो लड़के करते है वहा से मेरा उससे प्रभावित होना शुरू हुआ | फिर तो में उसकी हर एक बात से प्रभावित होने लगी जैसे उसका रोज एक दम हीरो की तरह स्कूल में आना और फिर पढाई को भी अच्छी तरह से न्याय देना अपने दोस्तों में घुल मिलकर रहेना सबकी मदद करना और पढाई में सबसे ज्यादा नंबर लाना मतलब में उसकी क्या तारीफ करू यार अंश वो लड़का था जो सर्वसंपन था | उसके पास सबकुछ था लड़की को इम्प्रेस करने का चाम था एक संस्कारी और गुड लुकिंग लड़का में लिख नहीं पा रही हु उसके बारे में की में क्या लिखु |

     मुझे कभी कभी बहुत दुःख भी होता की में उससे इतनी पास होकर भी दुर होती थी क्योकी ना तो वो मुझे देखता और ना ही किसी के साथ बात करता था | में वो जिस भी जगह जाता उसे देखने के लिए उसके पीछे पीछे चली जाती और उसको पुरे समय देखती रहेती | जब भी स्कूल में छुट्टी होती तो सबसे ज्यादा दुःख मुझे होता की मै अंश को देख नहीं पाऊँगी | में आधा दिन उसे देखे बिना बड़ी मुश्किल से निकाल पाती फिर मुझ से रहा नहीं जाता और में उसके घर से थोड़ी दुर घंटो तक बैठी रहेती जब वो बहार से आता या घर से बहार जाता तो बड़े प्यार के साथ में उसे देखती और उसमे मानो में खो जाती उतना प्यार करने लगी थी अंश से | अंश जैसे मानो मेरी जान बन गया था |

     जैसे छुट्टी ख़त्म होती में सबसे पहले स्कूल पहुच जाती और स्कूल के मुख्य दरवाजे से थोड़ी दुर जाकर बैठ जाती जब वो आता तो उसे देखकर मेरा पुरा दिन बन जाता | जब प्राथना में में लडकियो की लाइनों में सबसे आखरी वाली लाइन में बैठती जहा पास में लडको की लाइन होती जिसमे अंश भी बैठा हुआ होता | बिच प्राथना के में हमेशा अपनी आखे चोरी से खोलकर उसे देखती रहेती | मानो जैसे में उसकी ही प्राथना कर रही होती हु | हर दिन में उसके करीब से ज्यादा करीब होती जा रही थी | कल में फ़ाइनली प्रपोझ करने जा रही हु बड़ी हिम्मत के साथ की है इश्वर मेरी आप से बिनती है की अंश मुझे हा कर दे |

    अंश जो भी उस किताब में लिखा हुआ था वो सब याद करके दिव्या को बता रहा था | यह डायरी अंश और गोपी के प्रेम प्रकरण की बड़ी ही मजबूत कड़ी बनने वाली थी | डायरी में अंश के बारे में और भी बहुत कुछ लिखा हुआ था | अंश के पीछे वो इतनी पागल थी की उसने अंश की रग रग को उसके उस डायरी में उतार डाला था |

    फिर अंशने वो डायरी इतनी ही पढ़कर बंद कर दी और वो खुद गोपी के बारे में सोचने लगा और उसे भी गोपी के प्रति थोडा थोडा आकर्षण होने लगा था क्योकी गोपी भी दिखने में और स्वभाव से एसी लड़की थी जिसका साथ पाना शायद ही किसी का सपना ना हो | अंश उस डायरी को छोड़कर गोपी के ख्यालो में खो गया क्योकी उसे उस डायरी के द्वारा पता चल चुका था की कल गोपी उसे प्रपोझ करने वाली है और वो मुझ से बहुत प्यार करती है | जाहिर है की आप के आस-पास कोई खुबशुरत लड़की है जो आपको बेतहासा प्यार करती है तो आपको भी उससे प्यार होना लाजमी है इसमें कोई दो राइ नहीं है और वही आज अंश के साथ भी हो रहा था | अंश को पुरी रात नींद नहीं आई वो पुरी रात उस बारे में सोचता रहा की कल उसे गोपी कैसे प्रपोझ करेगी और जब करेगी तो उसे जवाब क्या देना है क्या कैसे एसे कई सारे सवाल अंश के दिमाग में चल रहे थे जो अंश को सोने नहीं दे रहे थे |

    सुबह होते ही अंश जल्द से तैयार होकर नास्ता करके स्कूल जाने के लिए निकल जाता है क्योकी वो आज बहुत उत्सुक था गोपी के प्रपोझल के लिए और उसे हा भी कहने के लिए | अंश जल्द से जल्द स्कूल पहुचता है और गोपी के आने का इंतजार करता है | क्लास का समय हो गया था लेकिन अभी तक गोपी आई नहीं थी | अंश को थोड़ी सी निराशा हुई की गोपी अभी तक आई क्यों नहीं | अंश अपनी क्लास में चला गया | थोड़ी देर होने के बाद गोपी का क्लासरूम में प्रवेश होता है | गोपी एकदम नोर्मल थी और अपनी जगह पर जाकर बैठ जाती है | क्लास रूम में गोपी के आने के तुरंत बाद शिक्षक का भी प्रवेश होता है और वो पढ़ाने की शुरुआत करते है | अंश का ध्यान गोपी की तरफ ही था और मानो वो गोपी को एसे देख रहा था जैसे उसकी होने वाली बहु को उपर से निचे की और देख रहा हो की कैसी लग रही है | अंश के मन में मन ही मन ख़ुशी के लड्डू फूट रहे थे |

     अंश को कभी एसा नहीं लगता पर आज एसा लग रहा था मानो जैसे आज का क्लास थोडा लंबा चल रहा हो | धीरे धीरे करके क्लास एक के बाद एक ख़त्म हो रहे थे और ब्रैक का समय होने को था | समय होते ही ब्रैक की बेल बजती है और सभी स्टूडेंट्स केंटिंग में नास्ता करने की और आगे बढ़ते है लेकिन अंश अपनी जगह पर ही बैठा रहता है और अपने दोस्तों को नास्ता करने के लिए जाने से भी मना कर देता है लेकिन पता नहीं क्यों गोपी ने आज सुबह से लेकर एक बार भी अंश की तरफ देखा नहीं था | अंश ने जैसा सोच रखा था उससे बिलकुल ही सबकुछ उल्टा हो रहा था | अंश अपने दोस्तो के साथ नास्ता करने के लिए नहीं गया ताकि वो गोपी को एक मौका दे सके प्रपोझ का पर एसा हुआ नहीं गोपी अपनी सारी सहेलियों के साथ खुद केंटिंग की और चली गई और अंश क्लास में ही बैठा रहा | अंश मन ही मन यह सोचने लगा की गोपी मेरी और देख क्यों नहीं रही है फिर वो भी अपनी जगह से उठकर गोपी के पीछे पीछे जाता है और पीछे से उसको आवाज लगाता है | अंश की आवाज सुनकर गोपी पीछे मुडती है और अंश को देखती है | उस वक्त गोपी अपनी सहेलियों के साथ थी |

    आपकी डायरी कल केंटिंग में छुट गई थी ...अंश ने गोपी को डायरी देते हुए कहा |

    गोपी सबसे पहले उस डायरी के सामने देखती है फिर उसे अंश के हाथ से ले लेती है |

    जी thank you अंश ...गोपी ने कहा |

    i’ts ok गोपी ...अंश ने गोपी से कहा |

    दोनों के बिच इतनी ही बाते होती है उसके बाद गोपी उसकी सहेलियों के साथ वहा से चली जाती है | उसे जाते हुए अंश पीछे से देख रहा था और यह कामना कर रहा था की गोपी पीछे मुड़कर जरुर देखेगी लेकिन वो सब तो सिर्फ और सिर्फ फिल्मो में ही होता है असल जीवन में एसा बिलकुल नहीं होता | अंश पुरा दिन गोपी के आस पास घूमता है ताकि उसे अंश की प्रपोझ करने का मौका मिले पर गोपी ने अंश को प्रपोझ करने का मौका मिलने के बाद भी जरा सी भी कोशिश नहीं की और पुरा दिन एसे ही बीत गया और अंश सोचता रहा की गोपी ने उसे प्रपोझ करने की कोशिश क्यों नहीं की ? क्या उसको यह सही वक्त नहीं लगा होगा ? क्या वो गभरा रही थी ? एसे कई सारे सवाल अंश के दिमाग में उस दिन चल रहे थे |

    सवाल कई सारे थे जब उस परिस्थिति में अंश था तब उसके दिमाग में कई सारे सवाल चल रहे थे और जब यह बाते अंश और दिव्या के बिच में हो रही थी तब दिव्या के दिमाग में भी कई सारे सवाल हो रहे थे लेकिन दिव्या सबसे पहले अंश की पुरी कहानी सुनना चाहती थी बाद में ही कोई सवाल करना चाहती थी | दोनों की बातचीत चल ही रही थी तभी शांतिलाल झा हड़ताल वाला मसला पुर्ण करके वापस अस्पताल में लौटते है और अपना अधुरा छोड़ा हुआ फल अर्पण करने का कार्य शुरू करते है |

    यह तो फिर से आ गया अंश अभी क्या करे ...दिव्या ने अंश से कहा |

    हा यार यह नेता अभी हमें परेशान करेगा आने दे फिर कुछ करते है ...अंश ने दिव्या से कहा |

    जैसे जैसे वो आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे अंश और दिव्या के दिमाग में चिंता का स्त्रोत बढ़ रहा था |

    अंश सोचो कुछ सोचो अगर इसने हमारी ही तस्वीर को कल अखबार में छापा तो बहुत बड़ी दिक्कत हो जायेगी और सबको हमारे बारे में पता चल जाएगा । में तो कहेती हु इस दवाई को अधुरा छोड़कर चले जाते है ...दिव्या ने गभराहट के साथ कहा |

    अरे नहीं एसे नहीं निकल सकते एसा करेंगे तो जिसको हमारे उपर शंका नहीं हो रही होगी उसे भी होने लगेगी | तुम शांति से बैठो में कुछ करता हु | शांतिलाल झा फलो का अनावरण करते हुए दिव्या और अंश के पास पहुचते है और दिव्या को हाथ में फल देते है |

    जी आपको क्या हुआ है ...शांतिलाल झा ने कहा |

    जी इनको ब्लड प्रेसर की दिक्कत है ...अंश ने शांतिलाल झा को उत्तर देते हुए कहा |

    जी आप कौन हो ...शांतिलाल झा ने अंश की और देखते हुए कहा |

    जी में इनका रिलेटिव हु ...अंश ने शांतिलाल झा से कहा |

    आप तो विश्वराम केशवा के लड़के है ना ...शांतिलाल झा ने अंश से कहा |

    शांतिलाल झा के इतना बोलते ही अंश अंदर से गभरा जाता है और उसके दिमाग में कई सारे ख्याल आने लगते है की कही यह मानसिंह जादवा को पहेचानते तो नहीं होगे ना और अगर पहेचानते होंगे तो यह दिव्या को भी पहेचान लेंगे | अंश किसी भी हालात के सामने लड़ने के लिए हमेशा से तैयार रहने वाला इंसान था जो इस हालात से भी गुजरने को तैयार था |

    जी में विश्वराम केशवा का बेटा हु लेकिन आप उन्हें कैसे जानते है ...अंश ने पुरे आत्म विश्वाश के साथ बात करते हुए शांतिलाल झा से कहा |

    जी हम उनको कुछ व्यापार की वजह से जानते है और उनके फोन में तुम्हारा फोटो देखा था ...शांतिलाल झा ने कहा |

    जी जी ...अंश ने कहा |

    लेकिन आप ने बताया नहीं आप इनके क्या लगते है और आपका नाम क्या है मेम और कहा के रहेने वाले है आप ...दिव्या और अंश दोनों पर सवालों की बोछाड करते हुए शांतिलाल झा ने कहा |

    पता नहीं शांतिलाल झा के दिमाग में क्या चल रहा था पर वो बार बार सवाल किए जा रहे थे और उनके सवालों की वजह से अंश और दिव्या के दिमाग और दिल दोनों में यह भय पैदा हो रहा था की कही यह आदमी उन्हें पहेचान ना ले और यह बात जाकर मानसिंह जादवा को बता ना दे और उनका यह भय सही भी था क्योकी अगर सारी बात शांतिलाल झा को पता लग जाए तो शांतिलाल झा जरुर इसका राजनैतिक उपयोग करके मानसिंह जादवा को निचा दिखा सकते है | अब आगे जो भी होगा वो बड़ा ही रसप्रद होने वाला है तो पढ़ते रहिएगा Hum Ne Dil De Diya के आने वाले सारे अंको को |

TO BE CONTINUED NEXT PART...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY