दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 35 VARUN S. PATEL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 35

 संजय सिंह vs रूहान 

     नमस्कार दोस्तों। आशा करता हु की आप सब ठीक ही होंगे। आज मे लेखक वरुण पटेल फिरसे हाजिर हु आप के बिच हमारी बहुत ही मजेदार कहानी दो पागल के एक और अंक के साथ लेकिन मेरी बिनती है आप सब लोगो से कि अगर आपने आगे के ३४ अंको को नहीं पढा है तो सबसे पहले उन अंको को पढले ताकी आपको यह अंक अच्छे से  समझ आए। 

    आगे आपने देखा की कैसे जीज्ञा अपने पिता के मान सम्मान के लिए अपना जीवन बरबाद करने के लिए शादी करने जा रही है और उस शादी को रोकने की कोशिश करने की सोच रखनेवाले चंपाबा और पुर्वी को भी अपने मरजाने की धमकी देकर रोक लेती है और इस तरफ जब संजयसिह जीज्ञा की शादी रोकने के लिए आ रहा था और उस तरफ रुहान नहीं चाहता था की यह शादी जीज्ञा की मरजी के बिना रुके शादी रुकने से बडा फायदा रुहान का था लेकिन रुहान अपना स्वार्थ न देखते हुए जीज्ञा के अंदर रहा अपने पिता के प्रति मान सम्मान था वो देख रहा था। अब घडी फेसले की थी। जीज्ञा और रुहान के जीवन का सबकुछ बिखर चुका था और उसे ठीक करने के लिए मुहम्मद भाई भी हाजीर नहीं थे और इसी बात का फायदा संजयसिह उठाना चाहता था। अब आगे। 

     संजयसिह अपने अड्डे से अपने तीन साथी के साथ अहमदाबाद जाने के लिए निकल जाता है और इस तरफ रुहान और उसके दोस्त भी महावीर की फोरच्युनर कार लेकर अहमदाबाद जाने के लिए निकल जाते हैं और रुहान अपना फोन अपने घर ही गलती से छोड आता है। 

      हमे संजयसिह पहुचे उससे पहले अहमदाबाद पोल(पुराने जमाने की चोल जेसा)  मे पहुचना होगा और उसको रोकना होगा ... रुहानने अपने दोस्तों से कहा। 

      हा पर कैसे हमे केसे पता चलेगा की संजयसिह कहा से जाएगा और निकला भी है या नहीं... कार चलाते हुए महावीरने कहा ।

      मेरे होते हुए तुम लोग चिंता क्यु कर रहे हो जीज्ञा के घर पहुचने के सिर्फ दो ही रास्ते है और उसमे भी एक रास्ते पर अभी गटर का काम चल रहा हैं तो संजयसिह के पास वहा पहुचने के लिए एक ही रास्ता हैं और फिर वहा के मेरे दोस्त कब काम आएंगे मे उनको बोलकर रखता हुं की पोल के आगे जीतना हो सके उतना बेठे और हमे बताते रहे की संजयसिह पहुचा या नहीं और हम से पहले पहुच जाता है तो वो लोग किसीना किसी तरीके से उन्हें रोक ही लेंगे और उनको मे संजयसिह का फोटो भेज देता हुं... रवीने कहा। 

      सही है लेकिन तु अपने दोस्तों को सिर्फ सुचना देने को बोल क्योकी हमारे पंगे मे खामखा वो परेशान नहीं होने चाहिए बाकी हम देख लेंगे। महावीर तुझे अगर गाडी उडानी पडे तो उडा पर वो संजयसिह पहले नही पहुचना चाहिए... रुहानने रवी और महावीर दोनो से कहा। 

      दोनो अपने अपने रास्ते निकल चुके थे अब देखना यह था की जब दोनो की मंजीले मिलेगी तो माहोल कैसा बनेगा। 

      अब इस तरफ शादी में। जीज्ञा की शादी उसके घर के बाजु मे एक शीव मंदीर था जीसका बडा सा आंगन था वहा पे रखी गई थी। जीज्ञा के घर। जीज्ञा उपर दुसरे माले पर अपने रुममे थी और आस-पडोस की महिलाए जीज्ञा को तैयार कर रही थी । बहार चंपाबा आस पास हो रही तैयारी को देखते हुए कुछ सोच रहे थे। थोडी देर इधर उधर चक्कर लगाने के बाद पुर्वी को आवाज लगाते हैं। 

      पुर्वी बेटा जरा इधर आना... चंपाबाने पुर्वी को बुलाते हुए कहा। 

      जी बा बोलीए... दोडकर चंपाबाने पुर्वी के पास आकर कहा ।

      चंपाबा घर मे दुसरे माले पे जानेवाली सीडी के पास पुर्वी को ले जाते हैं जहा कोई उनकी बात सुन ना ले। 

      तझे शादी रोकने की तैयारी करनी चाहिए उसके बजाय तु शादी करवाने की तैयारी क्यु कर रही हैं... चंपाबाने पुर्वी से कहा।

      सही है बा पर मे क्या करु जीज्ञाने हमारे लिए कोई रास्ता कहा छोडा है... पुर्वीने चंपाबा से कहा। 

      वो मुझे नहीं पता अब इस उम्र मे मे थोडी सोचुंगी तु कुछ भी कर मुझे यह शादी रुकवानी है बस मे मेरी बेटी को एसे मरने थोडी दुंगी... चंपाबाने पुर्वी से कहा। 

      हा बा हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन रुहान जरुर यह शादी रोक सकता है मुझे उसे फोन लगाना चाहिए... पुर्वीने अपना मोबाईल निकालकर रुहान को फोन लगाते हुए कहा। 

      पुर्वीने रुहान को फोन लगाने की कोशिश की पर फोन किसीने नहीं उठाया क्योकी रुहान अपना फोन घर पे ही भुल आया था और उसके घर पे दुसरा फोन उठानेवाला कोई नहीं था। 

      यह रुहान फोन क्यु नहीं उठा रहा है... पुर्वीने अपने आप से कहा। 

      पुर्वी तु कुछ भी कर पर यह शादी रुकनी चाहिए... चंपाबाने पुर्वीसे कहा। 

      पुर्वी तु एसा कुछ भी नहीं करेगी जीससे यह शादी रुके वरना आप लोग मेरा मरा मु देखोगे और बा आप भी एसा कुछ नहीं करोगे। मुझे पता है की आप मेरा भला सोचते हो और मे यह भी देख रही हु की आप मेरी खुशी के लिए कर रहे हो लेकिन मुझे भी पापा की खुशी देखनी है और मे नहीं चाहती की मेरी वजह से पापा दुःखी हो चाहे वो केसे भी हो पर मे हु तो उनकी अच्छी बेटी हि ना तो प्लीज़ आप मुझे अपना एक अच्छी बेटी होने का फर्ज निभाने दीजीए प्लीज बा... अचानक उपर से निचे आकर पुर्वी और चंपाबा की बात सुनकर जीज्ञाने रोते हुए कहा। 

      जीज्ञा की दुविधा को देखकर चंपाबा और पुर्वी की आखो मे भी आसु आ जाते है। जीज्ञा चंपाबा के पास आकर उन से लिपट जाती है और रोने लगती हैं। तीनो को कुछ समज नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए। जीज्ञा अब अपना सबकुछ भगवान पर छोड चुकी थी क्योकी उसे एसा कोई रास्ता नही मिल रहा जीससे वो अपना सपना पुरा कर सके, अपने पापा को भी खुश रख शके और रुहान से स्वतंत्रता के साथ प्यार कर सके। अब सबकुछ सही मे भगवान भरोसे था कि इस कहानी का अंत क्या होगा। 

      धीरे धीरे समय के साथ घडी का काटा और जीज्ञा की शादी की रश्म आगे बढती है। सजधजकर तैयार बेठी हुई जीज्ञा की बारात अब पहुचने ही वाली थी लेकिन उससे पहले जीज्ञा को उसके अडोश-पडोश की सहेलीया और पुर्वी रुम से बहार कही मंदीर पे दर्शन के लिए ले जाने आते हैं। जीज्ञा को अब जीसका सहारा था उसीके दर्शन के लिए जीज्ञा को ले जाया जा रहा था। इस तरफ रुहान, महावीर और रवी बिच रास्ते मे ही थे तभी रास्ते मे एक राधा कृष्ण का मंदीर आता है। 

      महावीर गाडी उस मंदीर पे ले ले प्लीज़...मुस्लिम होते हुए भी रुहानने हिंदु मंदिर मे जाने के लिए कहा। 

      चौकानेवाली बात वो नही है की रुहानने एक मुस्लिम लडके होते हुए भी हिंदु मंदिर जाने की बात की पर चौकाने वाली बात यह है की हम को यह बात चौकानेवाली लगती है की मुस्लिम हिंदु मंदिर आते हैं या हिंदु मुस्लिम मस्जिद जाते हैं बाकी ईश्वर कहो या अल्लाह हैं तो एक ही। 

      वहा जाके क्या करना है तुझे हम लेट हो जाएंगे... महावीरने कार रस्ते पर ही रोक कर कहा। 

     अगर इसने चाहा तो हम जीतने भी लेट जाए वो संजयसिह जीज्ञा और हमारा कुछ भी नहीं बिगाड पाएगा लेकिन इसने नहीं चाहा तो हम वहा जितने भी जल्दी पहुंच जाए पर हमारा चाहा कुछ भी नहीं होगा। 

      इस तरफ अहमदाबाद में। जीज्ञा और उसकी सहेलीया अपने ही पोल मे आए माताजी के मंदिर से दर्शन करते हुए और शादी के गाने गाते हुए वापस आ रहे थे और तभी बिच मे एक मस्जिद आती है जीज्ञा थोडी देर वहा बहार ही ठहरती है और मन ही मन अल्लाह के रूप में बेठे ईश्वर को प्राथना करने लगती है। कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है कि रुहान और जीज्ञा को ना जाति ना धर्म और ना ही अलग- अलग प्रकार के भगवान दिखते है उन्हें तो अगर कुछ दिखता है तो बस सिर्फ इंसान और श्रद्धा। दोनो भगवान की शरण मे एक दुसरे के लिए प्राथना कर रहे थे। 

      है भगवान मेरा चाहे जो कुछ भी हो जाए तुम बस रुहान, पापा और मेरे परिवार का पुर्णतारुप से ध्यान रखना और उन्हें हंमेशा खुश रखना... मस्जिद के सामने खडे रहकर जीज्ञाने पुरी श्रद्धा के साथ कहा ।

      है अल्लाह हैं ईश्वर आप तो प्रेम के सागर हो और आपको प्यार से जुदा होने का दुःख पता है आप ने भी अपनी राधा को खोया है।... ना... ना इससे आप एसा मत समजना की मे एसा कहुंगा की आपने अपनी राधा को खोया है तो आप मुझे मेरी राधा दिला दो लेकिन एक बिनंती जरुर करुंगा की हमने हमारे जीवन की राधा खो दि है और मे एक तुच्छ इंसान हु लेकिन आप ईश्वर है बस एसा कुछ कर दो की इस दुनिया में सच्चे प्यार करनेवाले दो प्रेमी कभी बिछडे नहीं। बस इतना कर दो और हा मेरी राधा यानी मेरी जीज्ञा को हंमेशा हसती रखने की जिम्मेदारी अब आप की है। चलता हु मुझे एक कंश को परास्त करने जाना है...रुहानने पुर्णश्रध्धा के साथ भगवान को प्राथना करते हुए कहा। 

      दोनो एक दुसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे लेकिन अपने माता-पिता को छोडने के अलावा। आज कल की पीढीया अपने दो दिन के दिखावे वाले प्यार के लिए भी अपने माता-पिता को छोडकर चले जाते है फिर उनके बेटे बेटी भी आनेवाले समय मे उनके साथ बिलकुल वेसा ही व्यवहार करते हैं। 

      आधा घंटा बितता है। बारत नाचते गाते हुए जीज्ञा के घर के पास पहुचती है। जीज्ञा के घर के बहार एकदम धुम-धाम वाला माहोल था और उनकी खुशीया उनके आवाज से साफ साफ बरस रही थी। आगे डिजे बिच मे नाचनेवाले बाराती और उनके पीछे घोडी पे सवार दुल्हा लेकिन बहार जीतनी आवाज थी उससे कही गुना ज्यादा गुमनाम भरी शांती जीज्ञा के रुममे थी अगर कोई शोर था तो वो जीज्ञा की गुमनामी का और उसके आसु का था जो सुनाई नहीं दे रहा था पर महसुस हो रहा था। जीज्ञा जानती थी की अब शादी का मुहरत नजदीक आ गया है और बारात दरवाजे पे आकर खडी थी। मनुष्य चाहे अपने आप बरबाद होने के लिए भले जा रहा हो लेकिन उसके अंदर कही ना कही छोटी सी आश जरुर होती है कि एसा कुछ हो जाए और मे बच जाउ एसी आस कही ना कही जीज्ञा के अंदर भी थी लेकिन अब वो भी तुट चुकी थी। अब सबकुछ ईश्वर के हाथ मे था। 

      बारात का प्रवेश जीज्ञा के घर मे हो चुका था और दुल्हा अपनी जगह ग्रहण कर चुका था और ब्राह्मण ने भी अपना कार्य शुरु कर दिया था। 

      संजयसिह अपने तीन साथी के साथ अहमदाबाद पोल पहुच गया था वो बस अब जीज्ञा के घर से १५ मिनट की ही दुरी पर था तभी दुसरी तरफ से महावीर अपनी कार संजयसिह की कार सामने लाकर खडी कर देता है और दोनो कार अपनी जगह पे एकदम से रुक जाती है। संजयसिह, रुहान और उनके दोस्त जीज्ञा के घर वाली गली से थोडे दुर थे और वहा कार लेकर जानेका रास्ता सिर्फ एक ही था लेकिन चलकर जाने के लिए गलीया बहुत थी। 

      यह हरामी मेरे हाथ से मरे बिना नही रहेंगे... अपनी जीप मे बेठे हुए सजंयसिहने अचानक से बिच मे आनेवाले रुहान और उनके दोस्तो के लिए कहा। 

      अच्छा हुआ यह हरामी यही से हाथ मे आ गया। तैयार हो जाओ दोस्तों अब वो यहा से अपनी जीप से तो आगे नहीं जा पाएगा लेकिन भागकर कही से भी जा सकता है... रवीने रुहान और महावीर को संजयसिह की तरफ गुस्सेवाली नजर से देखते हुए कहा। 

       चाहे जो भी हो जाए मे उसे जीज्ञा की शादी नहीं रोकने दुंगा... रुहानने कहा। 

       भाई हमे आज इन लोगो का खेल खत्म कर देना चाहिए... संजयसिह के साथीने कहा। 

       अगर हम इनका खेल खत्म करने मे रहेंगे तो जीज्ञा के बाप की इज्ज़त कौन लुटेगा और उसकी इज्जत नहीं उतरी तो मेरा जीज्ञा से बदला पुरा कैसे होगा और इस बिचारे को कौन मारना चाहता है जीज्ञा को अंदर से मार दो यह अपने आप हार जाएगा। तुम लोग जीतना हो सके उतना इन हरामीओ को रोक कर रखो मे भागकर जीज्ञा की शादी मे पहुचता हु क्योकी अभी ताकत नहीं दिमाग लगाना है... अपनी जीपसे उतरते हुए संजयसिहने कहा। 

       वो भागेगा हमारे साथ हाथा पाई करने नही आएगा जल्दी से उसे पकडो ...अपनी कार से उतरकर संजयसिह की तरफ भागकर आते हुए रुहानने कहा। 

       संजयसिह रुहान को देखकर पोल की दुसरी गली की तरफ भागने लगता है और रुहान उसके पास पहुचे उससे पहले संजयसिह के आदमी बिचमे आकर रुहान को उलझा देते हैं। रवी और महावीर आकर संजयसिह के साथी के साथ हाथा पाई करने लगते हैं। रवी संजयसिह के एक साथी को संभालता है और महावीर दुसरे दो साथियों को संभालता है और रुहान संजयसिह जीस गली मे भागकर गया था उस गली मे भागता है संजयसिह को ढुंडने के लिए। 

       इस तरफ शादी अपनी रीत और रश्मो के साथ आगे बढ रही थी। मंडप मे कन्या यानी जीज्ञा का आगमन हो चुका था और विधी फेरो तक पहुचने ही वाली थी। पुर्वी और चंपा बा जीज्ञा पर जो भी बित रही थी वो सिर्फ देख पा रहे थे उसके लिए कुछ कर नहीं सकते थे। 

       इस तरफ रुहान पोल की गली मे संजयसिह को ढुंडते हुए बहुत आगे तक चला आता है पर संजयसिह रुहान को कही नहीं दिख रहा था। फिर रुहान दुसरी गली मे जाता है जहा संजयसिह उसके उपर पीछे से हमला करता है और दोनो के बिच हाथा-पाई की शुरुआत होती है और जेसे ही रुहान हाथा-पाई मे संजयसिह के उपर हावी होने लगता है तुरंत संजयसिह अपनी गन निकालता है और रुहान के सामने तान देता है। संजयसिह की गन देखकर रुहान एक जगह थम जाता है। 

       देख रुहान चाहुना तो मे तुझे अभी इसी वक्त मार सकता हु लेकिन उस मोत मे वो मजा नही जो तुझे जींदा होकर भी अंदर मरे हुए देखने मे जो मजा है... संजयसिहने रुहान से कहा। 

       तुझ जेसे कायर की इच्छा मे कभी पुरी नहीं होने दुंगा संजयसिह... रुहानने संजयसिह से कहा। 

       इस तरफ मंडप मे जीज्ञा की शादी का पहला फेरा शुरु हो चुका था। एक तरफ संजयसिह जीद पर था की वो सबके सामने जीज्ञा के पिता की इज्ज़त लुटेंगा और एक तरफ अपने पिता का शीर उचा रहे इसलिए जीज्ञा अपने जीवन की सबसे मुल्य चीजो का त्याग कर रही थी और इस शादी के रुकने से जीस का सबसे बडा फायदा था वो रुहान अपना फायदा न देखते हुए अपना प्यार यानी जीज्ञा के निर्णय और उसका अपने पिता के प्रति जो सम्मान है उसमे वो गलत साबित ना हो इसलिए वो इस शादी को रोकना नहीं चाहता था और ना तो संजयसिह को रोकने देना चाहता था। अब देखना यह रसप्रद होनेवाला था की यह कहानी किस मोड पर जाकर अटकती है और सबसे बड़ी रसप्रद बात यह थी की कल संजयसिह के हाथो से जो गोलीया छुटेगी वो किसे जाकर लगेगी और उससे हमारी कहानी का मोड क्या होगा जानने के लिए पढते रहे दो पागल के आनेवाले अंत के अंको को। 

TO BE CONTINUED NEXT PART... 

|| जय श्री कृष्ण || || श्री कष्टभंजन दादा सत्य है ||  A VARUN S PATEL STORY