दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 2 VARUN S. PATEL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 2

समझोता - दो पागल - कहानी सपने और प्यार की अंक २

    हेल्लो दोस्तो केसे हो आप लोग । अगर आपने इस कहानी के अगले अंक नहीं पढे है तो पहले उस अंक को पढले ताकी आपको यह अंक समझ आए।

 शुरुआत 

        शुरु करते है वहीं से जहा पे रुके थे। जीज्ञा के परिणाम की रात को। रात के लगभग ९:०० बज रहे थे। पोल(सोसायटी) में एकदम शांति थी। गीरधनभाई का पुरा परिवार आज एक साथ बेठकर अपने डाइनींग टेबल खाना खा रहा था । आज सुबह ही गीरधनभाई को जीज्ञा का परिणाम प्रेमीलाबेन से पता चल चुका था।

       हम खुश हैं तुम्हारे इस परिणाम का समाचार सुनके। आज तुने फिरसे समाज मे हमारा मान सम्मान बढा दिया है। पता है प्रेमीला तेरे भाई की बेटी को भी इतने मार्क्स नही मीले है... गीरधनभाई ने खुश होकर कहा।

      हा वो तो है हमारी जीज्ञा काफी होशियार है ... प्रेमीलाबेनने भी खुश हो कर कहा।

      आज गीरधनभाई और प्रेमीलाबेन दोनो बहुत खुश थे लेकिन दोनो की खुशी मे फर्क था । प्रेमीलाबेन जीज्ञा के लिए खुश थे और गीरधनभाई अपना शीर समाज के बिच उचा हो गया एसा सोच के खुश थे और जीज्ञा यह बखुबी जानती थी इसीलिए अपने पापा को किसी भी तरह का उत्तर दिए बिना ही वो अपना भोजन कर रही थी।

       वाह बेटा वाह ऐसे ही पढती रहे और आगे बढती रहे... गीरधनभाईने कहा।

       वोह तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या सोचा है हमारी बेटी के लिए... प्रेमीलाबेनने अपना भोजन ग्रहण करते हुए पुछा।

       आगे क्या करना है तेरे भाई से आज फोन पे बात हुई थी वो पुर्वी को बी. एस. सी. करवाने वाला है तो हमारी जीज्ञा बी. एस. सी ही करेंगी... गीरधनभाई ने निवाला अपने मु में रखते हुए कहा।

       बचपन से ही गीरधनभाई जीज्ञा पर बगैर जीज्ञा को पुछे अपने फेसले थोप देते थे। जीज्ञा क्या करेगी और क्या नही करेगी वो सब गीरधनभाई ही नक्की करते थे। जीज्ञा आज भी अपने परिणाम को लेकर इसीलिए खुश नहीं थी क्योकी यह वो परिणाम नही था जो जीज्ञा लाना चाहती थी यह परिणाम तो वो था जो गीरधनभाई चाहते थे क्योंकि जीज्ञा को कभी अपने मन का काम करने को मिला ही नहीं था ।

      बी. एस. सी ?... प्रेमीलाबेन इतना सवाल करके चुप हो गए।

      हा कही बरोडा जाने कि बात कर रहा था  कल हम दोनो मिलेंगे फिर कुछ नक्की करते है। वो हमारे संगठन के जो विश्वनाथ भाई हे ना वो भी बोल रहे थे की बी. एस. सी. आज कल ज्यादा चल रहा हैं तो देखते हैं...गीरधनभाईने अपना भोजन ग्रहण करते हुए प्रेमीलाबेन से कहा।

      अभी तक तो जीज्ञा अपना सबकुछ अंदर दबा के बेठी थी लेकिन अब जीज्ञा से रहा नहीं गया और अपने जीवन में पहली बार जीज्ञाने अपने पापा के खिलाफ कुछ कहा और जीज्ञा कि हालत क्या हुई खुद ही पढ़ लीजिए।

       पापा आप सब बाप लोगो के मन में कभी एसा विचार आता ही नहीं है कि चलो आज अपने बच्चो को पुछले कि उन्हें क्या चाहिए, उनकी इच्छा क्या है, उन्हें क्या करना है लेकिन नहीं यहा पे तो जो बाप को मंजुर वो बच्चो को तो करना ही पडेगा। मुझे बी. एस. सी नहीं करना है । मुझे एक लेखक बनना है बस तो मे वही करुंगी... पता नही कहासे पर आज अपनी सारी हिम्मत लगाकर जीज्ञाने अपने झालीम बाप को सबकुछ बोल ही दिया।

       आप को पता है जो पुरानी सोच रखने वाले आदमी है ना अगर उनको कोई शीर उचा करके कुछ भी बोल दे ना तो बस उनकी ईगो हर्ट हो जाती हैं। और वो फिर सामने वाले से भी ज्यादा उची आवाज मे चिल्लाने लगते हैं। यहा पे अभी जीज्ञा के बोलने के बाद गीरधनभाई का हाल भी उस पुराने सोच वाले आदमी जेसा ही था। गीरधनभाई का ईगो हर्ट हो गया था कि यह लड़की मेरे सामने बोली कैसे।

       आज अगर मे तेरे कारण खुश ना होता ना तो मे तेरी जुबान खीच लेता। तु तेरे बाप के सामने बोली केसे। क्या औकात है तेरी लडकी है तो लडकी बनकर रहे लडका बनने की ज्यादा कोशिश ना कर... गुस्से मे लाल गीरधनभाईने अपनी जगह पर खडे हो कर चिल्लाकर जीज्ञा से कहा ।

        अपने पापा की उच्ची आवाज सुनकर जीज्ञा के अंदर फफडाट सा पेदा हो जाता है । जीज्ञा रोने लगती हैं।

        आप शांत हो जाइए बच्ची है वो... प्रेमीलाबेनने अपनी जगह पर खडे होकर परिस्थिति को संभालने कि कोशिश करते हुए कहा ।

        यह सब देखकर अपना खाना आधा ही छोडकर जीज्ञा हमेशा की तरह अपने आसु लेकर टेरीस पर चली जाती है।

        सारे खाने का मझा किरकिरा कर दिया। इसको बोल दे अगर इसको इस घर में रहेना है तो मे जो बोलु वह मानना होगा । अब यह लडकी होकर मुझे सीखायेगी की मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना है। उसको जाके बोल अगर उसे मेने जहा कहा वहा पढने के लिए नहीं जाना है और वो क्या था उसकी औकात के बहार का काम...हा लेखक वेखक वो उसकी औकात का काम नहीं है लडकीओ को हंमेशा अपनी औकात में रहना चाहिए और हा अगर बी. एस. सी. नहीं करना है और समाज में मेरा नाम ही डुबाना है तो शादी के लिए तैयार हो जाए और वहा जाके अपने पति का नाम डुबाए। फेसला करले उसको क्या करना है बी. एस. सी या शादी...चिल्लाकर प्रेमीलाबेन को बोलकर गीरधनभाई अपने हाथ मु धोकर अपने गुस्से के साथ बहार चले जाते है। एसे पिता आज भी इस दुनियामे है जो अपनी बेटी को बोज मानकर पालते है। लेकिन एक लेखक होने के नाते मेरी सोच बस इतनी ही है कि अगर आपके घर में या आपको बेटी नही है ना तो आपका जीवन आप कितना भी अच्छा जी ले लेकिन वो हमेशा अधुरा ही रहेता है।

       इस तरफ गीरधनभाई अपने दोस्तों के साथ बहार चले जाते है जीज्ञा टेरीस पर भुखी बेठी रो रही है लेकिन गीरधनभाई को इसकी कोइ चिंता नहीं थी। नीचे डाइनींग टेबल पर सिर्फ प्रेमीलाबेन और वैभव ही बचे थे। बारह साल के वैभव ने भी अपना खाना यह सब देखकर छोड दीया था। टेबल के पास खडे प्रेमीलाबेन को गीरधनभाई के शब्दों को सुनकर बहुत बुरा लगा था पर अपने छोटी उम्र के बच्चे को यह वातावरण ज्यादा गंभीर न लगे इसीलिए प्रेमीलाबेन अपने आसु को जेसे तेसे करके अपने अंदर ही रोक लीया था । थोडा समय बितता है। अपने बेटे को खीलाने के बाद प्रेमीलाबेन जीज्ञा के लिए खाने की थाली लेकर उपर टेरीस पर जाते हैं और रुठी हुई जीज्ञा को मनाने की कोशिश करते हैं।

       जीज्ञा टेरीस की दिवाल पर बेठी थी। खाने कि थाली लेकर प्रेमीलाबेन जीज्ञा के पास आते हैं और बेठते है। थोडी देर प्रेमीलाबेन जीज्ञा को सिर्फ देखते ही रहेते है।

      अब एसे घुरती ही रहेगी या कुछ बोलेगी भी क्योकी पापा के सामने तो तु कभी बोलती नहीं है... जीज्ञा अभीभी गुस्से में थी।

      नहीं क्योकी उनके सामने कुछ भी बोलने से कोइ फायदा नही है जीसे समाजाया जा सक्ता है हमे सिर्फ उन्हीं के सामने बोलना चाहिए। अभी तु मेरी बेटी है तु मेरा कहा मानती है इसलिए मे तुझे समझाने के लिए आ गई। अब सब छोड और चल आज टेरीस पर खाना खाने का मजा उठाते है... प्रेमीलाबेनने जीज्ञा को एक मस्त स्टाइल के साथ कहा।

      तेरा अच्छा है मम्मी तेरे साथ चाहे कितना भी बुरा हो जाए लेकिन तु सबकुछ भुलकर आगे बढजाती है... जीज्ञाने अपनी मम्मी से कहा।

      बेटा घाव को बार बार याद करके उसकी पीडा को सहन करने के बजाय उसे भुलकर खुशी से आगे बढने में ही हमारी भलाई होती हैं ... प्रेमीलाबेनने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा।

      पर मे अपनी जिंदगी अपने ही सामने बरबाद होते हुए केसे देख शक्ति हु। क्या मेरे जीवन के सभी फेसले पापा और यह सोसायटी वाले ही करेंगें। मेरे जीवन में मेरा कोइ हक ही नहीं है... हताशा के साथ जीज्ञाने अपनी मम्मी को कहा।

       हक है लेकिन वो समय आने पर लिए जाते हैं। अभी यह सब करने की कोई जरुरत नहीं है क्योकी तेरे पापा तुझे पढने के लिए और तीन साल दे रहे हैं तो तु एसा समझ ले की पापा ने तुझे अपना केरीयर बनाने के लिए तीन साल दिये है। पापा को क्या पता वहा तु क्या कर रही हैं... प्रेमीलाबेनने बडी आसानी से अपनी बेटी को बिच का रास्ता बताते हुऐ कहा।

      तेरे लिए सबकुछ कितना आसान है है ना मम्मी। कल का कुछ भी सोचे बिना आज की संतुष्टि के लिए सोचकर खुश हो जाना। मुझे तो लगता है तुने अपनी मरजी से पापा के साथ शादी भी नहीं की होगी। सबको खुश रखने के लिये तु हस्ते हस्ते सुली पे चड जाती है. लेकिन मे एसी नहीं हु...जीज्ञाने अपनी सारी भड़ास निकालते हुए कहा।

      वेसी बनना भी मत वरना लोग तुझे खा जाएगे बेटा। देख जीज्ञा कुछ चीजे हमे भगवान पर छोड देनी चाहिए । सभी चीजों को हम ठीक नहीं कर सक्ते... प्रेमीलाबेनने जीज्ञा को समझाते हुए कहा ।

      मतलब मे अपना सपना छोड के पापा जो कहे वो पढने चली जाउ । वेसे भी मेरे पास ओर विकल्प भी कहा है। अगर मे नही गई तो मेरी शादी करवा देंगे... जीज्ञाने अपनी मा से कहा।

      वो मे कभी नहीं होने दुंगी। मेरे जीते जी तो एसा नहीं होगा। शादी तो तेरी मरजी वाले लडके से ही होंगी... प्रेमीलाबेनने जीज्ञा को शांत करने के लिए कहा।

      बस मम्मा अभी ज्यादा जुठ बोलके मुझे मनाने की कोशिश मत कर... जीज्ञाने कहा।

      मतलब  मुझे आज भुखा ही सोना पडेगा... प्रेमीलाबेनने इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए कहा।

      बस कुछ नहीं हुआ तो लास्ट मे आप माओ के पास यह इमोशनल ब्लैकमेल नामका हथियार तो है ही कि तु नहीं खाएगी तो मे भी नहीं खाउगी... जीज्ञाने अपनी मा से कहा।

      मा बेटी का संवाद चल ही रहा था उतने में जीज्ञा का छोटा भाइ उपर टेरीस पर आता है और बडी मासुमीयत के साथ अपनी बहेन को कहेता है ।

      बे मान जाने इतना भाव क्यो खा रही हैं । वरना बाद में कोइ खीलाने नहीं आने वाला... बारह साल के वैभव ने कहा।

      वैभव का यह मासुमसा डायलोग सुनकर दोनो मा बेटी के मुख पर थोडीसी हसी आ जाती हैं।

      वैभव जीज्ञा के बाल खीचता है।

      बे तु बहुत बदमाश हो गया है। तेरी सर्वीस करनी पडेगी ...जीज्ञाने अपने भाइ से मजाक के स्वर मे कहा।

      आखिरकार जीज्ञा मान ही जाती है और दोनो मां बेटी एक ही थाली मे खाना खाते है।

      खाना खाने के बाद तीनो टेरीस पर ही बेठे थे और अभीभी मा-बेटी के बिच हलका सा संवाद चल रहा था।

      मम्मा मुझे कुछ सुझ नही रहा है कि मे क्या करु। मे अपनी खुद की जींदगी केसे बनाउ... जीज्ञाने सवाल करते हुए अपनी मम्मी से कहा ।

      बेटा तु मेरी मान तो तेरे पापा जहा बोल रहे हैं वहा पे पढने के लिए चली जा। वहा तुझे ओर तीन साल अपने सपनो को जीने के लिए मिल जाएगे। वहा तु पढ रही है या क्या कर रही तेरे पापा को क्या पता चलने वाला है और अगर इन तीन सोलो मे तुने सफलता पा ली तो मे तेरे पापा को तेरे लिए मना शक्ति हु... जीज्ञा को दिलासा देते हुए प्रेमीलाबेनने कहा

      अंत में जीज्ञा आगे अपनी मम्मी को कोई भी सवाल नही करती है और उसके पापा जहा कही भी भेजे वहा जाने के लिए तैयार हो जाती है । बीचमे प्रेमीलाबेन बेठे थे और एक तरफ बाहोमे जीज्ञा थी और दुसरी तरफ वैभव। सबकुछ एकदम शांत था। प्रेमीलाबेन मन ही मन अपने आप कुछ बाते कर रहे थे।

      हे कान्हा आज तो मेने जीज्ञा को जुठी तस्सली देकर मना लिया लेकिन जब तीन साल पुरे होगे तब उसके बाद क्या होगा । मुझे तो यह भी नहीं पता है कि मे तीन साल के बाद जींदा रहुंगी भी या नहीं । है कैन्या मेरे दोनो बच्चे की देखभाल करना... प्रेमीलाबेनने मन ही मन ही पता नहीं पर क्यो मोत का डर जाहिर करते हुए अपने भगवान से कहा। एसा क्या प्रेमीलाबेन के मन में चल रहा था कि उन्हें एसा लग रहा था कि वो तीन साल तक सायद हि जींदा रहेगी । देखते हैं आगे इस रहस्यमय परदे के पीछे क्या है।

       पाच दिन बाद। जीज्ञा और पुर्वी का ऐडमिशन बरोडा की एक कोलेज में गीरधनभाई और जीज्ञा के मामा यानी पुर्वी के पापा ने करवा दिया था । दोनो के रहेने की व्यवस्था बरोडा मे एक हिंदू संगठन की होस्टेल है जो बरोडा मे पढ रही हिंदू लडकीओ को रहने के लिए बनाई गई हैं और उन्हें वहा सारी सुविधाएं दी जाती हैं दोनो के रहने की व्यवस्था इसी होस्टेल में गीरधनभाई की पहचान से कर दी गई थी ।

         जीज्ञा के मामा की इनोवा कार आज ठीक जीज्ञा के घर के सामने खडी थी। पुर्वी और जीज्ञा को आज गीरधनभाई और जीज्ञा के मामा दोनो बरोडा होस्टेल छोडने के लिए जा रहे है।

        जीज्ञा घर में से जो अपने साथ सामान ले जाना है वो सामान अपने रुममे से लाकर अपने मामा को दे रही थी और मामा कार की पीछली डिक्की में सभी सामान रख रहे थे। पुर्वी और उसकी मम्मी गीरधनभाई के साथ अंदर घर मे सोफे पर बेठे थे और प्रेमीलाबेन सभी के लिए किचन मे सरबत बनाने के बाद बहार आकर सबको सरबत देते हैं ।

       छोटु आजा सरबत पी ले चल वो सामान बादमे रख देना... गीरधनभाई ने अपने साले से कहा। (जीज्ञा के मामा प्रेमीलाबेन से छोटे थे इसीलिए उनको प्रेमीलाबेन और गीरधनभाई छोटु बुलाते थे।

        जीज्ञा के मामा सरबत पीने के लिए अंदर आते हैं और अपना ग्लास ले कर सरबत पीना शुरु करते है। जीज्ञा उपर अपने रुममे से अपनी खुद लीखी हुइ कहानी वाली किताबे लेकर नीचे आती है और अपने मामा से बोलती है।

        मामा कार का लोक खोलदोना मुझे यह किताबे रखनी है... जीज्ञा अपने मामा से कहती है।

        हा बेटा... इतना बोलकर जेसे ही जीज्ञा के मामा कारका लोक अपने हाथ में जो सेन्सर वाला रिमोट है उससे खोलने जाते हैं उतने में गीरधनभाई जीज्ञा के हाथ में रही सारी किताबे देख लेते हैं और उन्हें पता चल जाता है कि यह वही किताबे है जो एकबार गीरधनभाई ने फेक दी थी । गीरधनभाई फिर से वही किताबे देखकर गुस्सा हो जाते है और जीज्ञा को कहते हैं।

       एक मिनट इस पस्ती की वहा पे क्या जरूरत है। वहा पे आपको जरुरीयात की सारी किताबे मीलने वाली है ना... गीरधनभाई ने जान बुझकर उन किताबो को पस्ती बोलते हुए और अपनी जगह से खडे होते हुए जीज्ञा से कहा।

       पर पापा यह मेरी... जीज्ञा के इतना बोलते ही गीरधनभाई उसको अटका देते हैं और जीज्ञा के पास आकर वो सारी किताबे जीज्ञा के हाथ से छिन लेते हैं।

      कितनी बार तुझे समझाया है कि लडकी है तो लडकी बनकर रहे लडका बनने की कोशिश ना कर। तुझे इतना भी समझ नहीं आता... इतना बोलकर गीरधनभाई जीज्ञा के उपर हाथ उठाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनका हाथ पकडकर जीज्ञा के मामा इस अनर्थ को होने से पहेले रोक लेते हैं।

      अरे बनेवीलाल (जीजाजी) यह आप क्या कर रहे है। लडकी है भुल हो गई माफ कर दीजे प्लीज़... छोटु मामाने गीरधनभाई से कहा।

      चाहे जीज्ञा के परिवार का कोइ भी सदस्य हो लेकिन वो कभी भी गीरधनभाई के विरोध में नहीं बोलते थे। अब इसे आप गीरधनभाई के बडे होना का मान सम्मान समझ लो या फिर डर समझ लो।

       समझा दे तेरी बेटी को। आगे से मे नही बोलुंगा मेरे हाथ बोलेंगे । और हा यह सब नीची जात के काम करने का इतना ही शोख है ना तो अपने ससुराल जाने के लिए तैयार हो जा... एक लाइन मे अपनी बेटी और पत्नी को बहुत कुछ बोलकर गीरधनभाई जीज्ञा की किताबो के साथ बहार कार की तरफ गुस्सा होकर चले जाते है।

       जीज्ञा कि आख मे आसु आ जाते हैं। प्रेमीलाबेन जीज्ञा के पास आते हैं और उसे गले लगा लेते हैं और अपनी बेटी को शांत करने की कोशिश करते हैं।

       छोटु तुम लोग कार के पास पहुचो में और जीज्ञा आते है।

       जीज्ञा के मामा मामी और पुर्वी को भी गीरधनभाई की यह बात बहुत बुरी लगी थी लेकिन गीरधनभाई सबसे बडे होने के कारण और उनके कुछ बोलने से प्रेमीलाबेन के घरसंसार मे कोई तकलीफ ना आये इसीलिए सभी इस वक्त चुप रहना ही ठीक समझते हैं। तीनो कुछ भी बोले बिना ही बहार चले जाते है।

       रो ना बंद कर दे बेटा। तु मुझे अपना रोता मु दीखा के जाएगी तुझे मेरी कसम है अगर तुन्हे रोना बंद नही किया तो... प्रेमीलाबेनने जीज्ञा के आसु पोछते हुए कहा।

       अजीब मा-बाप है यार। एक है जो रुलाते रहते हैं और एक तुम हो जो रो ने नहीं देती। आखीर मे करू क्या यह मेरा जीवन है या पापा की उधारी की मुझे सबकुछ उनकी मरझी का ही करना पड रहा है । अगर ना करो तो शादी की धमकी दे देते हैं... जीज्ञाने अपनी मा से कहा।

        बेटा तु यह सब चींता छोड और शांत होकर पढने के लिए जा। तेरी वो किताबे मे पापा के पास से लेकर तुझे वहा भीजवा दुंगी ठीक है ... रात की तरह फिरसे आश्वासन देते हुए प्रेमीलाबेनने कहा ।

        दोनो के बिच संवाद चल ही रहा था इतने मे बहार से गीरधनभाई की आवाज आती हैं।

        तुम दोनो मातापुत्री का संवाद पुरा हो गया हो तो चले... गीरधनभाईने बहार कार मे से चिल्लाते हुए कहा है ।

        गीरधनभाई और ना भडक जाए इसलिए दोनो जल्दी बहार जाते हैं और बहार जेसे ही दोनो आते हैं और घर आंगन में ही उनको एक एसा द्रश्य देख ने को मिलता हैं जो सायद सभी लेखको के लिए सबसे बुरा द्रश्य होगा। जीज्ञा की लिखी हुई सारी किताबे गीरधनभाईने कूड़ेदान में फेक दी थी। जीज्ञा को अपनी लिखी हुई किताबे कूड़ेदान में पडी देखकर बहुत दुःख होता है लेकिन उसकी हालत अर्जुन के बाणो की सैया पर सोये हुए भीष्म पितामह जेसी थी वो अभी चाहे तो भी वो किताबे नही निकाल शक्ति थी। जीज्ञा की आख मे इस के लिए भरीपडी विपदा प्रेमीलाबेन को साफ साफ नझर आ रही थी इसीलिए वो अपनी बेटी को अपनी आखो के द्वारा इशारा करके कहते है कि बेटा तु चिंता ना कर मे सबकुछ ठीक कर दुंगी।

       अंत में जीज्ञा अपने दिल को समझाकर कार में बेठ जाती है और अपनी नए सफर की और आगे बढती है । जीज्ञा की मम्मी और मामी दोनो जीज्ञा के घर ही रुक्ते है। कार मे बेठी जीज्ञा का शरीर जरुर कार में था लेकिन उसकी आत्मा उस कूड़ेदान में ही थी जहा से प्रेमीलाबेन जीज्ञा की किताबे निकाल रहे थे। दोनो की आखो में आसु थे। इस तरफ प्रेमीलाबेन को पुर्वी की मम्मी संभालती है और उस तरफ कार में जीज्ञा को पुर्वी संभालती है।

        अगर आप को हमारी यह कहानी पसंद आ रही है तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेर करना ना भुले ।

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

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