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पं. रमाशंकर चतुर्वेदी ‘आनन्द’-मंथन काव्य संकलन

आनन्द के अनुभवों का दस्तावेज मंथन
राम गोपाल भावुक
पंचमहल की धरती पं. रमाशंकर चतुर्वेदी ‘आनन्द’ की कर्म स्थली रही है। आप विजली विभाग में सेवा करते रहें। बोली- बाणी से आप मधुरभाषी हैं। आप से नगर की काव्य गोष्ठियों में तो मुलाकात हो ही जाती थी। आपकी व्यंग्य कवितायें सभी कों प्रभावित कर लेतीं थीं। नगर में आप एक चर्चित कवि के रूप में जाने जाते हैं।
यह संकलन उस समय से मेरे सामने है जब वह प्रसव काल में था। मैंने भी मध्य प्रदेश के ग्रृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्र की तरह इस संकलन को पढ़े जाने की अनुशंसा की है।
इस संकलन में उनसठ कविताओं को स्थान दिया गया हैं। संकलन का प्रारम्भ परम्परा के अनुसार प्रार्थना से किया गया हैं। उससे अगली कविता में गुरुजनों का अनुपम उपकार मानने के लिये गुरु प्रार्थना भी दी गई हैं। आपका कार्य क्षेत्र ग्वालियर जिले का पिछोर कस्बा रहा है इसलिये उस धरती पर विचरण करते रहे संत साहित्य के रचियेता संत कन्हर दास की बन्दना भी की गई हैं। इसके बाद भी एक बार और प्रभु प्रार्थना को स्थान दे दिया हैं। उनकी ऐ मेरे वतन कविता में-
कुछ क्रूर स्वार्थी बेईमान करते छुप हर दम नीच करम।
भाशण जिनके ईमानों के अंदर कुछ उनके और भरम।।
उनकी कण कण में भगवान कविता में-
वे रोगी में हैं भोगी में,
वे फेरी वाले जोगी में। इस तरह सम्पूर्ण चराचर में प्रभू के दर्शन कराने का प्रयास किया है।
इनकी अगली कविता में तो मां कुछ चमत्कार दिखला दे जैसी आकांक्षा की गई हैं लेकिन इससे आगे तो वे मिल वांट खाइये में- षान्ति से मिले ताहि मिल वांट खाइये का उपदेश दे गये हैं।
इससे आगे भी वे हरिनाम लीजिये का संन्देश दे रहे हैं। इससे आगे रचनाओं का धरातल बदल गया है। उनकी अपनी मूल विद्या व्यंग्य है। उनकी कुछ व्यंग्य क्षणिकायें दी गई हैं।
उधर मत झांकिये थाना है,
भले लोगों का आना जाना है।
ऐसे तेवर लिये चौदह व्यंग्य क्षणिकायें पाठकों के मन में चेतना कर संचार कर देतीं हैं।
लोकतंत्र कविता में-
लुट पिट जाये कौन कब, किसका हो अपमान।
लोगतंत्र है, कुछ नहीं, कह सकते श्रीमान।।
वे थाना कविता में कहते हैं-
कलुयुग का ये तीर्थ है, राजा का स्थान।
चोर उचक्कों को मिले, मान- पान सम्मान।।
आनन्द जी विजली विभाग के कर्मचारी रहे है इसलिये वे लोगों को बिजली बचाने का सन्देश भी ‘बचायें बिजली प्यारी को’ कहने में संकोच नहीं करते। वे अगली कविता में तो कह जाते है कि जी हां हम हैं बिजली वाले। ऐसे ही नव वर्ष, अनेकता में एकता और प्यारी लगती है में तो बोली, वीरों को गोली, दहेज रहित डोली और षान्ति के बातावरण में होली प्यारी लगती हैं। अब में उनके दोहों की बात करूं- आपके दोहे बहुत दमदार है। एक बानगी देखें-
केवल बातों से नहीं चलता जग में काम।
उदर पूर्ति के कर्म कर कहता चल श्री राम।। आपकी भीख,भूख,भ्रष्टाचार में-
धोखे बाजों से बचो अनजानों से दूर।
हाथ जोड़िये नम्र हो बने रहो बस दूर।।
अब भारती कविता की अन्तिम पक्तियों पर दृष्टि डाले-
क्या आस्थाके मन्दिरों में आरती हो गयी है?
किसान की बेटी भारती सचमुच सो गई हैं।
और कसक कविता में अव्यवस्था के प्रति कसक है । अन्तिम संन्देश, धवल वस्त्र और आदमी में- मंजिलें पाली हैं तो अरमान चाहिए जैसे सन्देश देने का प्रयास किया गया हैं।
साहस कविता पर दृष्टि डालें-
कपट चोरी से जो पाया, भोजन मुबारक हो तुम्हें।
हम शेर दिल है शेर सा साहस सहारा है हमें।।
इसी विश्वास से कवि आगे बढ़ते हुए जिंदगी हाथ से में-
जिन्दगी हाथ से निकली हुई लगती है।
चैन की वर्फ है पिघली हुई सी लगती है।।
वे कारगिल के शहीदों को श्रृद्धांजलि देने के वाद करगिल कविता में कहते हैं-देख लिया महाभारत आज निज नयनों से।
पाण्डव महारथियों के चाप भी तो जान गये।।
आनन्द जी भूकम्प त्रासदी का वर्णन करते हुए वे आंख नहीं सोती में-
शुक्र है अल्लाह का सपनों में तो आती हो,
पास जो होती तो कुछ और बात होती। का आनन्द भी लेते हुए दिखाई दे जाते हैं।
एक दिवस कविता में तो जन्म भूमि के प्रति आसक्ति देखें-
है मेरा दुर्भाग्य या परमेष्वर की राय।
मां का आंचल छोड़कर देश पराया भाय।।
घर वर ढूढ़ने में कन्या के पिता की व्यथा उनकी भोगी हुई व्यथा लगती है। समय चक्र में अपनी छोटी बच्ची की क्रीड़ा और मेरी बिटिया में-मुनियां छोटी दुनियां मेरी मैं इस दुनियां में रहता हूं,
तेरे ही भविष्य की खातिर ही कितना कुछ सहता रहता हूं।
आपका बुन्देली भाषा से स्नेह उनकी बुन्देली फाग में बगरा पड़ता है-
घर परिवार सबई के लाने, पांव न कबहूं पिराते,
दादा करत बडाई निश दिन, ‘आनन्द’ उर न अघाते।।
उनकी श्रृंगार रचना में भी बुन्देली की आनवान दर्शनीय है-
यौवन के चार दिन अपने पिया के बिना।
इठलाती बेजां नैन चऊअर चलाती है।।
डण्डा के महत्व पर दो कुण्डलियां और हकीकत, मालिक मकान और किरायेदार विशय पर भी कलम चलाई है।
मृत्यु और अद्वैत और मौत जैसे विशय पर भी आपकी सार्थक कलम चली है-
‘आनन्द’ करता तुम्हें सलाम।
करता रहता अपना काम।
लेता प्रभु संग तेरा नाम,
लगता है तुम ही महती हो।। ऐ री मौत तुम कहां रहती हो।
मैं उनकी रचनाओं का पाठ करने के वाद इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि आनन्द जी का यह संग्रह उनके अपने खट्टे- मीठे अनुभवों का दस्तावेज है। उनहोंने अपना जीवन परिचय देने में भी यह स्वीकार किया है कि पच्चीस वर्ष तक के अच्छे- बुरे अनुभवों में जैसा देखा, पाया वही आपके कर कमलों में प्रस्तुत कर खुद को एक साधारण जन की तरह अपने को कृतार्थ अनुभव करता हूं।
मैं चाहता हूं वे पाठकों को इसी तरह अपने अनुभवों से रू-ब-रू कराते रहें।
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कृति का नाम- मंथन काव्य संकलन,
कृतिकार का नाम- पं. रमाशंकर चर्तुवेदी ‘आनन्द
प्रकाशन वर्ष-2008
प्रकाशक-श्रीमती शकुन्तला चतुर्वेदी मो0-9926220953
मुल्य-50 रु.
समीक्षक- राम गोपाल भावुक। मो0 9425715707

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