kanun so raha hai-chakresh books and stories free download online pdf in Hindi

कानून सो रहा है-अयोध्या कौशिक चक्रेश

कानून सो रहा है।

राम गोपाल भावुक
पंचमहल की धरती पर चक्रेश ग्वालियरी जैसा व्यक्तित्व विचरण करता रहा है। आपका काव्य संकलन कानून सो रहा है जनवादी लेखक संध डबरा इकाई ने प्रकाशित किया है। आपका पूरा नाम था अयोध्या कौशिक चक्रेश। इस कृति के दो भाग है। पहले भाग में उनकी कवितायें प्रकाशित की गई हैं। दूसरे भाग में उनकी लधु कथाओं को स्थान दिया गया है।
वे बरदान कविता में बरदान अपने लिये नहीं देश के लिये मांगते हैं-
दानव में मानव ढूंढ़ू
ऐसी मुझे पहचान चाहिए।
महल अटारी का न मैं भूखा।
मुझको छोटी छान चाहिए।
ऐसी भावनाओं से ओत प्रोत यह संकलन। बढते चलो कविता में-
पांव अपने फट गये
रुधिर उनसे बह रहा
तो क्या हुआ?
वे आदमी कविता में आदमी की तलाश करते दिखाई देते हैं-
बहन को बेचा है उसने, गिरवी रखदी इज्जतें।
भूख से अब बिल बिलाता, मर रहा है आदमी।
और कानून सो रहा है कविता में-
ढूढ़ता इन्सान को मैं
इन्सान मिलता कहां
नजरें उठाई जिस तरफ
शैतान दिखता है वहां।
अब किसकी परवाह रही, कविता में-
अब तो हम नेता बन बैठे
अब! किसकी परवाह रही
जनता मरे भाड़ में जाये
धन की हम को चाह रही।
वे अपने को मतवाला जोगी मानकर आगे बढ़ते रहे हैं-
मैं मतवाला जोगी

घर- घर अलख जाऊंगा।
बुझी हुई जो दीप शिखा है।
उसको फिर जलाऊंगा।
वे लोकतंत्र को किस तरह देखते है, उनकी लोकतंत्र कविता में देखें-
मैंने कहा- कौन तुम?
उत्तर मिला- सामन्तवाद
चाहते क्या?
लोकतंत्र की मौत। ऐसे ही तेवर लिये उनकी गजल का एक षेर देखें-
सैकड़ों आषिक है इसके, नोट दे कुछ भी करो
दौलत में तो वह बिक चुकी है, आज सत्ता देख लो।
क्या यह देष हमारा में कविता में तो-
सारे जहां से अच्छा यह देश है हमारा
रहने को नहीं मकां फिरता हूं मारा मारा
कवि कहता है कि श्वांस अभी बाकी है कविता में-
केश श्वेत, हो गये
पांव लगे कांपने
झुक गई कमर तो क्या हुआ?
धेर्य अभी बाकी है।
लड़ रहा हूं लड़ता रहूंगा।
रात-दिन
श्वांस अभी बाकी है।
ऐसे ही तेवर लिये जिन्दगी मेरी, आदमी हो कुर्सी के लिये और कलम यहां अब ललकारी में-
वस्त्र हीन नहीं एक द्रोपदी
लुटती है कईं पांचालीं
दुःशासन यहां मन की करता
गांडीव उठाओ अब तुम पारथ
कलम यहां अब ललकारी ।
वे दीवाली पर जब लिखते हैं तो हाय हाय दीवाली पर ही कविता लिखते हैं। ऐसी ही रचनाओं में धधक रही है, चेतावनी, लूट और चित्रकार में उनके तेवर बढ़ते ही गये हैं। भीख का कटोरा कविता तो उन्होंने अपनी पत्नी पर लिखी रचना है-
वाह री देवी
तेरे हाथों में
भीख का कटोरा देकर
मुझे रौना आता हैं।
जीवन में अनुभव की गई संवेदनाओं को उन्होंने अपना मन हलका करने के लिये कविता की पक्तियों में स्थान दे डाला है-उनकी ऐसी ही कवितायें हैं- क्यों भैया अब जीने दोगे, कहां जा रहा है देष- वह आग है और लाष मरघट में सडेगी कविता में तो-
चल रही है ऐसी हवा, मन्दिर घरनि गिर जायेंगे।
भूख से तड़पेंगे यह, वेमौत मारे जायेंगे।।
संकलन के अन्तिम पायदान पर छाती अब तो धड़कती है! और कहां गया मेरा सुभाष गांधी ये चक्रेश ग्वालियरी की पत्नी शान्ति देवी कौशिक द्वारा रचित दो रचनायें स्थान पा गई है।
चक्रेश जी के जीजा जी पं.कुन्ज विहारी लाल जी ने मेरी पत्नी श्रीमती रामश्री तिवारी के निवेदन करने पर मुक्त मनीषा साहित्यिक संस्था के लिये भू खण्ड क्रय करने करने के लिये राशी दान में दी थी। जिससे मुक्त मनीषा साहित्कि समिति के लिये भूखण्ड क्रय कर लिया गया था।
शान्ति देवी कौशिक भी बड़ी ही विदुषी थीं। उनके कोई संतान नहीं थी। पं.कुन्ज विहारी लाल जी के नाते मैं उनकी पन्नी से मामी और चक्रेश जी से मामा कहता था। वे मामा की जगह मेरे मित्र अधिक थे। मेरे जीवन का संयोग रहा कि चक्रेश जी ने देह त्याग कर दी तो साहस करके मैंने ही मामी जी से उन्हें शमशान ले जाने की आज्ञा ली थी। नगर की साहित्यिक संस्था मुक्त मनीषा और जनवादी संस्था के सदस्य मिलकर उनका अंत्येष्ठि संस्कार कर आये। उसी रात उनकी पत्नी शान्ति देवी ने भी देह त्याग कर दी। सुबह ही हम सब मिलकर भारी मन से उनका भी अंत्येष्ठि सस्ंकार कर आये। नगर के सभी साहित्यिकारो ने मिलकर उनकी संयुक्त तेरहीवी की थी। आज वे क्षण भुलाये नहीं भूलते।
अब मैं इस कृति के दूसरे पाय दान पर आ गया हूं। इसमें उनकी जनवादी दृष्टिकोण की छह लधुकथायें सौदा दहेज प्रथा,रोटी कमाऊं पूत पत्थर की हसीना, तेरी तस्वीर और रोती चली गई आदि पाठकों के सामने हैं।
इसी कृति के अन्तिम पृष्ठ पर में दतिया निवासी डॉ.सीकर जी के प्रश्न और चक्रेश जी द्वारा दिये गये उत्तर साहित्यि की धरोहर के रूप में हमारे समक्ष हैं।
इस कृति की कवितायें बिना प्रतीकों के सपाट सी तो लगती हैं ,लेकिन उनकी कहन के तेवर प्रतीक बनकर पाठक को आनन्द देने में समर्थ हैं। निश्चय ऐसी कवितायें पढ़ी जानी चाहिए।
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