मन का जीना ही सात चक्रों में होश अर्थात् जीवन का होना हैं और मन की अंतिम मृत्यु ही एक मात्र यथार्थ मुक्ति।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ भौतिक शारीरिक इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा मूलाधार चक्र पर हैं।
यदि भौतिक शरीरिक इच्छायें सक्रिय हैं अर्थात् मूलाधार चक्र में सक्रियता हैं।
यदि भौतिक शरीरिक इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् मूलाधार चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि भौतिक शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् मूलाधार चक्र में संतुलितता हैं।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ भावनात्म शारीरिक इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा स्वाधिष्ठान चक्र पर हैं।
यदि भावनात्म शरीरिक इच्छायें सक्रिय हैं अर्थात् स्वाधिष्ठान चक्र में सक्रियता हैं।
यदि भावनात्म शरीरिक इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् स्वाधिष्ठान चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि भावनात्म शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् स्वाधिष्ठान चक्र में संतुलितता हैं।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ तार्किकता या तर्क की योग्यता रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा मणिपुर चक्र पर हैं।
यदि विचारत्मक शरीरिक इच्छायें यानी तार्किकता सक्रिय हैं अर्थात् मणिपुर चक्र में सक्रियता हैं।
यदि विचारत्मक शरीरिक इच्छायें या तर्क की योग्यता असंतुलित हैं अर्थात् मणिपुर चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि विचारत्मक शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् मणिपुर चक्र में संतुलितता हैं।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ कल्पनिक अर्थात् स्मरणात्मक, वर्तमान कल्पित या अधोकल्पित शारीरिक इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा अनाहत चक्र पर हैं।
यदि काल्पनिक शरीरिक इच्छायें सक्रिय हैं अर्थात् अनाहत चक्र में सक्रियता हैं।
यदि कल्पना संबंधित शरीरिक इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् अनाहत चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि काल्पनिक शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् अनाहत चक्र में संतुलितता हैं।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ आत्मिक शारीरिक इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा विशुद्ध चक्र पर हैं।
यदि आत्मिक शरीरिक इच्छायें या योग्यता सक्रिय हैं अर्थात् विशुद्ध चक्र में सक्रियता हैं।
यदि आत्मिक शरीरिक इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् विशुद्ध चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि आत्मिक शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् विशुद्ध चक्र में संतुलितता हैं।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ ब्रह्म या हर आकार की शारीरिक योग्यतायें या इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा आज्ञा चक्र पर हैं।
यदि ब्रह्म शरीरिक इच्छायें सक्रिय हैं अर्थात् आज्ञा चक्र में सक्रियता हैं।
यदि ब्रह्म शरीरिक इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् आज्ञा चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि ब्रह्म शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् आज्ञा चक्र में संतुलितता हैं।
होश का मन में वहाँ होना जहाँ शुन्य या आकार रिक्त शारीरिक योग्यतायें या इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा सहस्त्रार चक्र पर हैं।
यदि शुन्य या आकार रिक्त शरीरिक इच्छायें सक्रिय हैं अर्थात् सहस्त्रार चक्र में सक्रियता हैं।
यदि शुन्य या आकार रिक्तता वाली मानसिक या मन की इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् सहस्त्रार चक्र में असंतुलितता हैं।
यदि शुन्य या आकार रिक्तता की मानसिक या मन की इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् सहस्त्रार चक्र में संतुलितता हैं।
मैं न मेरे किसी चक्र को सक्रिय रखता हूँ और न ही निष्क्रिय भी.. बस उन पर पूर्ण नियंत्रण को उपलब्ध होना मेरी वास्तविकता हैं जिससें जरूरत या सहूलियत होने पर जिसें चाहूँ सक्रिय कर लूँ और जिसकी चाहूँ उसकी निष्क्रियता तो भी अंजाम दें सकुँ..! न आकारिता की स्वीकृति और न ही उससें मोक्ष या मुक्ति केवल मेरा मार्ग हैं..! बस सहूलियत अनुसार मुक्ति और स्वीकृति दोनों की बारी-बारी उपलब्धि अर्थात् ही मेरा स्वभाव हैं।
- © रुद्र एस. शर्मा
समय - ०४:०६ (प्रातः) ०६:०१:२३