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मेरी समाज सुधारक, प्रेरणा दायक काव्य रचनाएँ।

(१)
रचना-मेरी व्यथा
रचनाकार- ✍रूद्र संजय शर्मा   

                      ।।केन्द्रीय भाव।।

        कृपया पूर्ण पढ़े तत्पश्चाय ही टिप्पणी करे।

जैसा कि मैंने पहले भी कहा है संपूर्ण संसार में स्वार्थ व्याप्त है और बड़ी से बड़ी सामाजिक समस्या का जनक भी यही है। इस संपूर्ण संसार में इसकी अत्यधिकता है इसलिए इसकी अत्यधिकता के कारण परमार्थ भाव की पूर्ति नहीं हो पाती है।

मेरे अनुसार स्वार्थ परमार्थ की पूर्ति नहीं कर सकता परंतु परमार्थ स्वार्थ की पूर्ति अवश्य कर सकता है क्योंकि सभी में हम भी आते हैं।

इसलिए मैं मेरे जीवन में परमार्थ को ज्यादा महत्व देता हूँ। परंतु जैसा कि मैंने कहा कि संसार में स्वार्थ व्याप्त है तो दूसरे परमार्थ को कदापि नहीं महत्व देते । बहुत कम लोग हैं  जो  परमार्थ की महत्वता को समझते हैं ।स्वार्थ की अत्यधिकता के कारण सामाजिक समस्याओं का भी जन्म होता है।


सामाजिक समस्याओं का जन्म होता है क्योंकि इस संसार में रहने वाले लगभग सभी लोग नासमझ है स्वार्थ क्यहै?परमार्थ क्या है ?इसका उन्हें लेस मात्र भी भान नहीं है।

सभी लोगों से मेरी विचारधारा भिन्न होने के कारण मैं अकेला सा हो गया हूँ। अधिकतर लोग उसे ही पसंद करते हैं जिनकी विचारधारा उनके सामान हो मेरी विचारधारा लोगों से भिन्न है इसलिए वह मेरे साथ रहना शायद पसंद नहीं करते ।मैं भी उनके साथ रहना पसंद नहीं करता। 

मैं सभी के बारे में सोचता हूँ। किसी को भी मुझसे कोई काम होता है तो मैं उनकी सहायता  निः संदेह करता हूँ। परंतु आवश्यकता पड़ने पर वह लोग भी मेरी सहायता नहीं करते जिनकी कभी मैंने सहायता करी थी क्योंकि स्वार्थी व्यक्ति कि तुम कितनी सहायता कर दो वह यह नहीं सोचता कि मुझे भी इसकी सहायता करनी चाहिए ।

तो अपनी भिन्न  विचारधारा होने के कारण जिन-जिन  समस्याओं का सामना मुझे करना पड़ता है उनसे जो मुझे हानि होती है वह मैंने मेरी इस काव्य रचना के माध्यम से बताया है।

प्रस्तुत कविता के माध्यम से भिन्न विचारधारा होने के कारण जो मेरा अकेलापन है वह मैंने व्यक्त किया है। उस अकेलेपन का मैंने कारण भी बताया है।

                           ।।काव्य रचना।।

कोई नहीं है अपना;
हर कोई पराया है ।
मुझ जैसों ने तो ;
एकांत में अपना पन पाया है।

चारों दिशाओं में मैंने देखा;
स्वार्थ रूप तम छाया है।
परमार्थ रूपी प्रकाश का ;
अणु मात्र भी नजर नहीं आया है।

सभी की खुशी में ही मेरी खुशी;
परंतु मेरी सोच में नहीं किसी की रुचि।
किसी की रुचि मुझमें में भी नहीं;
निःसंदेह इसका कारण है खुदगर्जी।

हर कोई चिंतन करता है ;
निज कल्याण के संबंध में ।
हर कोई जन फसा है;
नासमझी के तम में।

सुख में सभी साथी;
नहीं कोई भी गम में ।
क्योकि हर कोई नहीं चिंतन करता;
परमार्थ के संबंध में।

स्वार्थ को पूर्णता मिटाना होगा।
स्वार्थ मुक्त विश्व बनाना होगा ।।
अपनत्व को पूर्णता मिटा कर;
परमार्थ को जग में बसाना होगा।

इस गंदगी को मिटाने मात्र से ;
सामाजिक समस्याएं मिट जाएंगी।
दावा है मेरा।
इन समस्याओं से धरती मुक्त हो जाएगी।

समझ रूपी प्रकाश पहुँचाऊँगा नासमझी के तम में ।
जो मुक्ति देगा उन्हें ;जो है उसमे फसे ।
समझ रूपी प्रकाश लोगों के चिंतन में परिवर्तन लाएगा ।
वहां उन्हें निःसंदेह परमार्थ की महिमा समझाएगा ।

परमार्थ के प्रकाश से ;
संपूर्ण सृष्टि क्या अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड करेगा स्नान।
स्वार्थ रूपी तम  के जो;
कण-कण को मिटाएगा।

मेरी खुशी में भी होगी सभी की खुशी।
मेरी सोच में होगी सभी की रुचि।।
होगी मुझमें भी रुचि सभी की निःसंदेह;
दिख जाएगी महिमा परमार्थ की।


    -✍रुद्र संजय शर्मा

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