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Two Quotes

लेखक और लेखन के बारे में :-

"मैं एक चिंतक हूँ और प्रति पल, प्रति क्षण ज्ञान की प्राप्ति ज्ञान के मूल स्रोत (चिंतन) से करता रहता हूँ। ज्ञान के अन्य स्रोतों से ज्ञान प्राप्ति को महत्व नहीं देता क्योंकि वहाँ से ज्ञान तो प्राप्त हो जाता है परंतु उसके सही मायने ज्ञान के मूल स्रोत से ही प्राप्त होते है। अन्य स्रोतों का सहारा तो केवल इसकी पुष्टि के लिये करता हूँ, उस सूत्र के माध्यम् से जो मैंने चिंतन से ज्ञात किया है; उसकी कसौटी पर कस अन्य स्रोतों के ज्ञान की पुष्टि करने हेतु मैंने। जब भी ऐसा कुछ ज्ञात होता है, जिसे की सभी के लिये जानना महत्वपूर्ण है, उसकी अभिव्यक्ति यथा संभव मैं परम् अर्थ (हित) की सिद्धि हेतु अपने लेखों, कविताओं तथा उद्धरणो के माध्यम से कर देता हूँ परंतु जिस तरह मूल स्रोत (चिंतन) को छोड़ अन्य स्रोतों से ज्ञान की प्राप्ति मेरे लिये उचित नहीं क्योंकि जब तक उस ज्ञान के सही मायनों को नहीं समझ सकता, वह मेरे लिये बाबा वचन [थोड़ी सी भी या पूरे तरीके से समझ नहीं आ सकने वाली या तुच्छ/व्यर्थ बातें (ज्ञात होने वाला ज्ञान)] ही है ठीक आपके लिये भी यह वही तुच्छ या समझ से परे ज्ञान है अतः आप भी मेरी ही तरह चिंतन से इसे प्राप्त कीजिये तथा मेरी ही तरह उस सूत्र के माध्यम् से जो आप मेरी तरह चिंतन से ज्ञात करोगें; उस सूत्र की कसौटी पर कस मेरे द्वारा दिये ज्ञान की पुष्टि करोगें तभी उसके सही मायनों में ज्ञात कर सकोगें।"

- © आर. एस. शर्मा

यदि यथार्थ प्रेम के होने से, उसके बंधन में बंध गये तो अनयं उचितानुकूल बंधनो में हम स्वतः ही बंध जाते हैं अतः प्रेम के बंधन में बंधने के पश्चात उनमें बंधना, नहीं भी हो; तो क्या? क्योंकि बंधना औपचारिकता ही तो रह जाती हैं।

【दिनांक: 06/09/21】

(01) समय -18:13

" यदि किसी के साथ यथार्थ प्रेम से, आप प्रेम के उचितानुकूल बंधन में बंधते हैं, तो अन्य किसी भी उचितानुकूल बंधन में आप चाहें बंधे हो या नहीं आपके यथार्थ प्रेम के बंधन में बंधने से स्वतः ही उन अन्य उचितानुकूल बंधनों में, आपके प्रेम के भाव-विचार के आधार पर बंध जायेंगे। अन्य बंधन जैसे कि माता-पिता और उनसे पुत्र-पुत्री के संबंध का बंधन, भाई-बहन के संबंध का बंधन, पति-पत्नी के संबंध का बंधन, मित्रता के संबंध का बंधन आदि। "

- © आर. एस. शर्मा

(02) समय -17:43

" यदि बंधन में बंधे; दोनो कर्ताओं का अहित किसी के भी कारण इससे नहीं हो; तो प्रेम के बंधन में बंधने के बाद भी, किसी अन्य बंधन की आवश्यकता ही क्या हैं? नहीं! परंतु केवल तभी; जब वह जिस प्रेम के भाव तथा विचार से बंधन में बंध चुके हैं; वह प्रेम परिशुद्ध, यथार्थ, अनंत यानी यानी सही मायनों में होना चाहिये।

उदाहरण के लिये :-

यदि किसी माता की उम्र वाली स्त्री के लिये किसी व्यक्ति के मन में वात्सल्य हैं और यही वात्सल्य स्त्री के मन में भी उस व्यक्ति के लिये हैं तो उस स्त्री को व्यक्ति को जन्म देने की क्या आवश्यकता हैं? वह दोनों ऐसा नहीं होने पर भी माता-पुत्र थे; हैं और अनंत तक रहेंगे।

यदि किसी भाई की उम्र वाले व्यक्ति के लिये किसी लड़की के मन-मस्तिष्क में यथार्थ प्रेम का भाव-विचार हैं और यही भाव-विचार लड़के के मन में भी उस लड़की के लिये हैं तो उन्हें एक ही माता पिता से जन्म लेने की आवश्यकता हैं? वह ऐसा नहीं होने के पश्चात भी भाई-बहन हैं।

यदि किसी व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में किसी अन्य व्यक्ति की आत्मा के लिये प्रेम भाव तथा प्रेम का विचार हैं और अन्य व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में भी व्यक्ति की आत्मा के लिये प्रेम भाव तथा विचार हैं, तो वह प्रेम के बंधन में बंध चुके हैं और उनका प्रेम भी यथार्थ हैं तो उन्हें किसी अन्य बंधन की क्या आवश्यकता हैं वह सदैव एक थे, एक हैं और अनंत तक एक ही रहेंगे। "

- © आर. एस. शर्मा

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