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अपनी सभी चिंताओं तथा समस्याओं से मुक्ति कैसे हो ?

अपनी चिंताओं तथा समस्याओं से मुक्ति कैसे सुनिश्चित हो?

हमसें संबंधित सभी पर अपना नियंत्रण नहीं होने के कारण असंतुलन सभी में होता है, जिससे परिणाम स्वरूप समस्याओं और चिंताओं का जन्म होता हैं और समाधान की खोज भी सभी करते हैं तथा सभी इस हेतु पूर्णतः समर्थ भी हैं परंतु समाधान की प्राप्ति नहीं होती और चिंता तथा समस्या इस कारण से बड़ती ही जाती है।

ऐसा होता हैं क्योंकि हम कभी खोज हेतु अपनी ऊर्जा को या तो मन के अनुसार (योग अनुसार इड़ा नाड़ी के माध्यम् से) बहाते जाते हैं और मस्तिष्क या उसकी समझ (सुषुम्ना नाड़ी) को महत्व नहीं देते जिससे कि हम भावों में बह जाते है; दरअसल भावों में असंतुलन का कारण मस्तिष्क का उनकी अति को नियंत्रित करने में उपयोग नहीं करना होता हैं।

इसके अतिरिक्त या फिर हम खोज हेतु अपनी ऊर्जा को मस्तिष्क के अनुसार ही (योग अनुसार पिंगला नाड़ी के माध्यम् से) बहाते हैं और मन को महत्व नहीं देते; जिससे कि हम अपने मन की इच्छाओं या कामनाओं को दबाते जाते है तथा एक समय बाद जब अति हो जाती है, तो नयी इच्छाओं को तो दबाना दूर वरन पुरानी अपूर्ण इच्छाओं के विरोधी बल को हम नियंत्रित नहीं कर पाते तथा हमारी इच्छायें अपूर्ण होने के कारण हमारी वासना बन जाती है, जो कि नियत समय के पूर्व, अनुचित स्थान पर अनुचित तरह से पूर्ण होती हैं। हमें ऐसी इच्छायें नहीं करनी चाहिये, जिनकी पूर्ति जब भी हो, उनसे असंतुलन ही हो तथा अन्य इच्छाओं को अधूरी नहीं छोड़ ऐसे वक्त पर पूर्ति करनी चाहिये समझ के माध्यम् से जानकर; जिस समय स्थान आदि पर करने से असंतुलन नहीं हो।

इस तरह हम हमारी समस्या और चिंता को कम करने के स्थान और और बड़ा लेते हैं।

अब प्रश्न यह कि समस्याओं या चिंताओं को बढानें की जगह उनसे मुक्ति कैसे प्राप्त करें?

समाधान की खोज के पूर्व मन-मस्तिष्क की समझ का सानिध्य प्राप्त कर, मन तथा मस्तिष्क दोनों को कब और कितना महत्व देना उचितानुकूल हैं, यह समझ के माध्यम् से जानकर दोनों को महत्व देने से समाधान प्राप्ति सुनिश्चित हो जायेगी अतः धैर्य को साध कर स्थिर हो जायें तथा पश्चात इसके जागरूकता पूर्वक सर्वप्रथम जाने कि खोज कहाँ करनी है; क्या जहाँ में खोज रहा/ रही हूँ वहाँ समाधान क्या सत्य में प्राप्त होगा?

कुछ लोग खोज हेतु ऊर्जा होने के पश्चात भी, धैर्य और आत्म संयम की कमी के कारण यह ज्ञात नहीं कर पाते कि समाधान उसी दिशा में हैं, जहाँ में मेरी ऊर्जा बहा रहा हूँ और ऊर्जा तथा समझ होने के पश्चात भी समझ की सहायता नहीं लेने के कारण कस्तूरी मृग की भांति गलत जगह पर अपनी समस्या का समाधान खोजने हैं। तो समाधान कैसे प्राप्त होगा?

कहने का अर्थ स्पष्ट है कि यदि मन को ही महत्वपूर्ण समझ मस्तिष्क को महत्व नहीं दोगे तो भी समाधान प्राप्ति नहीं होंगी तथा यदि मस्तिष्क को महत्वपूर्ण समझ कर यदि मन को महत्व हीन समझोगे, तो भी समाधान प्राप्त नहीं होगा। समाधान की प्राप्ति मन तथा मस्तिष्क दोनों को समान महत्व देने से हैं क्योंकि यह दोनों समान महत्वपूर्ण हैं। अनंत में जो भी हैं, वह कुछ न कुछ महत्व रखता है, जो कि उसे उसके महत्व के आधार पर महत्वपूर्ण बनाता हैं। समझ के उपयोग करने पर कब तथा किसे कितना महत्व देना हैं यह ज्ञात करके उसकी महत्वपूर्णता अनुसार उसे महत्व देने से ही समाधान हैं।

- R. S. Sharma

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