भारी भीड़ थी।
कैप्टन को बार - बार आकर दखल देना पड़ता था पर लोग थे कि मानते ही नहीं थे। आते - जाते उसी केबिन के बाहर खड़े हो जाते और इधर - उधर ताक- झांक करके पता लगाने की कोशिश करते कि ये कौन से विचित्र जीव हैं जो शिप पर अभूतपूर्व रूप से विशेष सुरक्षा में न्यूयॉर्क ले जाए जा रहे हैं।
अब तक कोई भी उन्हें देख नहीं पाया था। सब सुनी- सुनाई बातों के आधार पर ही एक दूसरे को इनके बारे में बता रहे थे या पूछ रहे थे।
कोई कहता - मैं तो लोडिंग के समय वहीं था। शुतुरमुर्ग जैसे दिखाई देते हैं। लेकिन आंखें इंसानों जैसी हैं बड़ी - बड़ी।
एक युवक बोल पड़ा - भाईसाहब, मैंने तो उनकी ट्रॉली में धक्का लगाया था। सिर्फ़ आंखें ही नहीं, वो पूरे इंसान जैसे ही हैं, बस गर्दन पक्षीनुमा है। पेंगुइन की तरह सीधे खड़े थे।
एक छोटा लड़का हंसा। फिर एक ओर मुंह करके धीरे से बोला - कुछ पहना हुआ है क्या?
- पागल, वो जंगली प्राणी हैं। पहनेंगे क्या? कभी हिप्पो पोटामस को जींस में देखा क्या?
- बिल्कुल नंगे हैं?
- जा, छूकर देख ले। युवक ने कहा तो आसपास के लोग हंस पड़े। दो महिलाओं ने कुछ गुस्से से छोटे लड़के की ओर देखा। लड़का सहम कर चुपचाप वहां से चला गया।
- क्या वो दिखाई देते हैं? एक बुजुर्ग सी महिला ने पूछा।
- नो, नॉट एट अल.. बिल्कुल नहीं। अंदर से केज पूरी तरह कलर्ड शीट से कवर्ड है। गहरा रंग है।
- हाय, बेचारे इंसान की आक्रामक जिज्ञासा का मोल चुका रहे हैं। कितना सफोकेशन होगा? बाप रे।
- नहीं मैम, दे आर क्वाइट कंफर्टेबल! एसी है। ऊपर से पिंजरा खुला हुआ है।
- ये क्या खाते हैं? महिला ने जैसे ही पूछा, भीड़ से निकल कर एक सलीके- मंद बूढ़ा आदमी आगे आया। बोला... रिसर्च इज़ स्टिल गोइंग ऑन.. मैं बर्ड्स म्यूज़ियम का टेक्निकल डायरेक्टर हूं।
- ओह! ग्रेट.. महिला ने आगे बढ़ कर हाथ मिलाया।
बूढ़ा आदमी बोला - ऑब्जर्वेशन के दौरान तो ये सारस या पेंगुइन जैसा भोजन लेते ही देखे गए थे। पर देखते- देखते हाल ही में इनके शरीर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं। अतः हमारे लोग समझ नहीं पा रहे कि काई, इंसेक्ट्स और छोटे- मोटे वनस्पति प्रोडक्ट्स से इनका पोषण कैसे होगा। इन्हें मांस, मछलियां, केकड़े आदि भी दिए गए हैं।
- स्ट्रेंज! खा रहे हैं ये सब?
- थोड़ा- थोड़ा...हो सकता है कि अभी पकड़ लिए जाने से थोड़े नर्वस भी हों। ऐसे में खाने के प्रति वन्य प्राणी कुछ उदासीन भी हो जाते हैं।
- मेल हैं?
- नो, पेयर...एक मादा है और एक नर। जोड़ा है।
- ओह, फॉर्चुनेट..
- एक्सीलेंट! नहीं तो हमें इनका कंपेनियन तलाश करना पड़ता। बाय द वे.. आपका इंटरेस्ट इनमें क्यों है? जस्ट क्यूरियोसिटी या फिर एनी प्रोफेशनल इन्वॉल्वमेंट? योर अटैचमेंट इज़ अप्रिशिएबल! आपको इनमें रुचि है, ये तारीफ़ - योग्य बात है। आजकल तो लोग बहुत व्यस्त हैं वो इंसान के भी जीने - मरने से ताल्लुक नहीं रखते!
- ओह नहीं। ऐसा मत कहिए। अपना - अपना केबिन छोड़ कर यहां खड़े हैं न सब??
- देट्स ट्र्यू। आप ठीक कहती हैं। सॉरी..
- इट्स ओके, बाय देन..नमस्ते।
अब भीड़ कुछ कम हो गई थी। उत्सुक लोग उस जिज्ञासु महिला और बर्ड्स म्यूज़ियम के डायरेक्टर के वार्तालाप से काफ़ी कुछ समझ गए थे और उनकी जिज्ञासा भी कुछ कम हो गई थी।
म्यूज़ियम का एक केयर- टेकर लड़का बूढ़े व्यक्ति के लिए कॉफी का प्याला और सैंडविच लेकर आया तो रहे- सहे लोग भी तितर- बितर हो गए।
कॉफी लेकर आने वाले लड़के ने एक ओर से थोड़ा पर्दा उठा कर देखा। ऐश और रॉकी का भय अब कुछ कम हो गया था। वो दोनों कुछ सहज थे। रॉकी तो सामने तार से लटकाई गई एक बड़ी सी मछली का काफ़ी सारा हिस्सा खा भी चुका था।
दोनों बेहद स्मार्ट प्राणी थे जिन्होंने दुनिया देखी थी और घाट- घाट का पानी पिया था लेकिन अब संयोग से मनुष्यों की दुनिया में आ गए थे इसलिए जानवर समझे जा रहे थे, और वैसा ही बर्ताव मिल रहा था।
मनुष्य...आख़िर सृष्टि का सबसे बुद्धिशाली प्राणी!