हडसन तट का ऐरा गैरा - 38 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 38

अगली सुबह से ही ऐश की ज़िंदगी बेहाल हो गई। उसके बारे में बंदर महाराज से ये सारी कहानी जान लेने के बाद उसके सारे दोस्त उससे कटे - कटे से रहने लगे। न जाने कब क्या हो जाए और ये भोली सी चिड़िया न जाने किस तरह कोई युवती बन जाए।
एक शंकालु से बगुले ने तो बंदर महाराज से तत्काल पूछ भी लिया था - "आपको कैसे पता चला कि आपके पिताजी ने मानव का मस्तिष्क इसी चिड़िया को खिलाया है। और ये तो बहुत पुरानी बात हो गई, यदि इसने मनुष्य का दिमाग़ खाया भी है तो इस पर अब तक उसका असर क्यों नहीं हुआ? ये युवती कब बनेगी?"
इस सवाल पर बंदर महाराज हौले से मुस्कुरा कर रह गए थे। वो बोले- यहां पर कुछ छोटे- छोटे बच्चे भी हैं उनके सामने मैं कुछ कहना नहीं चाहता अतः मैं इसका जवाब अकेले में केवल तुम्हें ही दूंगा। या चाहो तो तुम और ऐश एक साथ मिलकर आ सकते हो।
इस रहस्यमय वार्तालाप के बाद बंदर महाराज ने बताया कि ऐश पर उस खाए हुए मस्तिष्क का असर तब होगा जब ये किसी से संबंध बनाएगी।
- क्या आपके साथ भी ऐसा ही हुआ था? बगुले के इस सवाल से बंदर महाराज झेंप कर रह गए थे।
बंदर महाराज ने ही उस जिज्ञासु बगुले का ये रहस्य भी सुलझाया कि उन्हें इस चिड़िया के मानव मस्तिष्क खाने की बात कैसे पता चली?
महाराज ने बताया कि उनके पिता ने साफ़ कहा था कि इंसानी दिमाग़ को उदरस्थ करने वाली चिड़िया के माथे के पीछे एक छोटा लाल निशान दूर से ही दिखाई देगा। पहली बार में ही बंदर महाराज ने मंदिर के अहाते में दाना चुगती ऐश को देखते ही पहचान लिया था। इसीलिए उसे रहस्य बताने की बात की गई थी।
अब तो ऐसा कोई कारण नहीं था कि बंदर महाराज की बातों पर अविश्वास किया जाए।
कुछ ही देर बाद ऐश को उसके हाल पर छोड़ कर सब तितर - बितर हो गए। वैसे भी सारी रात के जागरण के बाद पौ फटने लगी थी जिससे सभी उनींदे से हो रहे थे।
ऐश को तो ऐसा लगता था कि मानो वह कोई लंबा सपना देख कर चुकी हो।
इस समय उसे हल्की भूख भी लग आई थी। पर उसका मन उन सब साथियों के साथ समूह में शामिल होकर कहीं दाना - पानी चुगने का बिल्कुल नहीं था।
इस समय वह बिल्कुल एकांत चाहती थी। उसने पलकों को झपका कर जैसे मन ही मन सब लोगों से विदा ली और पंखों को फड़फड़ा कर एक ऊंची उड़ान भरी। वो खुद नहीं जानती थी कि वो कहां जा रही है लेकिन तेज़ी से खुले आसमान में आते ही उसे कुछ राहत सी मिली।
उसे बिलकुल भी अनुमान नहीं था कि वो किस दिशा में जा रही है। वो नहीं जानती थी कि वो अपनी यात्रा में आगे की ओर बढ़ रही है या वापस उसी दिशा में लौट रही है जहां से वो आई थी। वह निरुद्देश्य आगे बढ़ती चली जा रही थी।
न जाने क्यों उसे बंदर महाराज के बताए हुए युवती बन जाने के रहस्य को सुन कर अच्छा नहीं लग रहा था। वो अपने साथी रॉकी को बुरी तरह याद कर रही थी। उसे ये याद करके भी भारी पछतावा हो रहा था कि वो अकारण ही रॉकी से बिछड़ क्यों गई? वह बेचारा इस वक्त न जाने कहां होगा।
उसे हडसन तट की वो शाम भी याद आ रही थी जब तूफान से बच कर अपनी जर्जर नाव खेता हुआ बूढ़ा नाविक उन लोगों के घर आया था। वह बूढ़ा इस बंदर महाराज का पिता था ये जानकर ऐश को अजीब सी अनुभूति हो रही थी। और इससे भी बड़ी रोमांचक बात तो ये थी कि ये बंदर वास्तव में कोई युवा लड़का था जो अपने पिता द्वारा दिए गए मानव अंग को खा लेने से रूप बदल कर बंदर बन बैठा था। ओह, बेचारा न जाने कब तक इस तरह रहेगा!
काफ़ी दूर तक उड़ते चले आने के बाद ऐश के दिल में एक शरारती ख्याल आया। उसने सोचा, बंदर महाराज कहते थे कि मानव मस्तिष्क खाने का नतीजा उस समय सामने आयेगा जब वो किसी से शरीर संबंध बनाए। उस समय तो लज्जा के कारण कोई बंदर महाराज से ये भी नहीं पूछ सका था कि बंदर महाराज ने किससे संबंध बनाए? क्या उन्होंने विवाह कर लिया? यदि ऐसा था तो अब उनकी जीवन - संगिनी कहां है? वह मानवी है या बंदरिया है! कई सवाल थे।
उसकी आंखें चपल - चंचल होकर इधर - उधर देखने लगीं। उसे एक बड़ी सी झील के किनारे अपनी ही प्रजाति के पखेरुओं का एक बड़ा सा झुंड दिखाई दिया।