हमने दिल दे दिया - अंक २० VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक २०

अंक २० - सच या गलत कोनसे रास्ता सही ? 

   यार अंश पता नहीं क्यों पर अब तुम्हारे बगेर रहा नहीं जाता | मेरा चेन मेरी नींद सबकुछ जैसे खो सा गया है क्योकी हमें लगता है की तुम हमें मिल से गए हो जिस वजह से सबकुछ खो सा गया है | जब तुम नहीं होते तो ना तो खाना अच्छा लगता और ना ही सोना अब यही तो प्यार है की जब साथ ना हो तो चेन नहीं पड़ता और प्यार की भाषा क्या हो सकती है ...अपने झरुखे में बैठी ख़ुशी मन ही मन सोच रही थी |

     ख़ुशी अब अंश के प्यार में पुरी तरह से डूब चुकी थी | दोनों बचपन से ही दोस्त थे और आज उस दोस्ती को ख़ुशी ने प्यार का नाम अपनी और से दे दिया है लेकिन अंश इसके लिए तैयार नहीं था क्योकी उसने भी किसी और के साथ की दोस्ती को प्यार समझ लिया है और शायद वो सही भी है पर पता नहीं कब और कैसे होगा इजहार और क्या अंजाम लेके आएगा यह इजहार |

     एक तरफ ख़ुशी का अंश के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा था और दुसरी तरफ दिव्या और अंश एक दुसरे के नजदीक आने लगे थे | तीनो का एक दुसरे के साथ लगाव होना यह अच्छी बात नहीं थी क्योकी यह सब जब तक तीनो के अंदर था तब तक गंभीर बात नहीं थी पर जब यह जजबात बहार आएंगे तब क्या होगा और कैसे होगा यह सवाल बड़ा था क्योकी अंश हर तरफ से फसा हुआ था एक तरफ मानसिंह जादवा की बेटी थी और दुसरी तरफ मानसिंह जादवा के बेटे की विधवा हो चुकी बहु थी और इसका एक ही मतलब था की अंश के एक तरफ खाई थी और एक तरफ कुआ था और उसको किसी एक में गिरना जरुर था | खाई यानी ख़ुशी और कुआ यानी दिव्या | परिस्थिति का झोल और जादवा परिवार का झोल दोनों अंश के प्रति विपरीत तरीको से कार्यरत थे | जादवा परिवार अंश को खाई में डालना चाहता था और परिस्थिति अंश को कुए में डालना चाहती थी | आगे जाकर अंश के लिए जो भी परिस्थिति बनने वाली थी वो ज्यादा भयानक और अंश के जीवन में भूचाल समान होने वाली थी |

    अंश और दिव्या अभी भी एक दुसरे को गले लगाये हुए थे | कुछ देर बाद दोनों एक दुसरे को छोड़ देते है और फिर से बातो का सिलसिला दोनों के बिच शुरू होता है | अंश दिव्या के आशु अपने हाथो से पोछता है और यही सारी चीजे बार बार न चाहते हुए भी दिव्या को अंश के प्रति प्रभावित और आकर्षित कर रही थी जिस वजह से अंश और ख़ुशी दोनों को अंश से प्यार होने लगा था | अंश लडकियो को बहुत सम्मान देता था और उनकी देगभाल भी बहुत अच्छे तरीको से करता था जिसका अंजाम यह हुआ की दोनों लडकिया अंश को अब प्यार करने लगी थी या करने वाली थी जिस वजह से अंश बड़े ही संकट में फसने वाला था |

     चलो अब यह सब रोना छोड़ते है क्योकी यह थोडा सा गंभीर हो गया है तो कुछ मजा आए एसा करते है जिससे आज से तुमको यह हवेली बहुत प्यारी लगने लगेगी ...अंश अपनी जेब से अपना फोन निकालकर उसमे से किसी को फोन करते हुए कहा |

     किसे फोन लगा रहे हो अंश ...दिव्या ने अंश से कहा |

     हा सुन अशोक तुम्हारा काम हो गया की नहीं ...अंश ने फोन लगाकर कहा |

     इतनी देर में थोड़ी होगा यार कैसी बात कर रहा है तु ...अशोक ने कहा |

     अगर नहीं हुआ है तो छोड़ कल कर लेना दवाई लेकर सीधा हवेली पहुच और हा आते वक्त एक सेंसर लेते आ जिससे कल अगर हम हवेली में हो और अगर कोई आ जाए तो हमें अंदर बैठे बैठे पता चल सके ठीक है ...अंश ने इतना बोलते हुए अपना फोन रख दिया |

     अरे उनको काम है तो करने दो ना ...दिव्या ने कहा |

     यह लोग कॉलेज का फॉर्म भरने के लिए गए है वो एग्जाम वाला उसमे फीस है ७०० रुपये जिसे यह लोग दान स्वरूप वहा पर देने के लिए जाते है क्योकी घंटा एक भी दोस्त एक भी सब्जेक्ट में पास होता हो तो ...अंश ने अपने दोस्तों के बारे में दिव्या से बात करते हुए कहा |

    वो तो कॉलेज लाइफ होती ही इतनी बढ़िया है ...दिव्या ने अपने चहरे पे छोटी सी मुश्कान लाते हुए कहा |

    मैं क्या कहता हु आज रात को फिर से ख़ुशी को में यहाँ पर बुला लेता हु और मेरे दोस्तों को भी थोडा खाना पीना लेकर फिर पुराने दिनों की बाते करेंगे और मजे उड़ायेंगे साथ मिलकर ...अंश ने दिव्या से कहा |

    ठीक है बुला लो करते है सारी बाते तो तुम्हे भी पता चले की कॉलेज के समय हम भी किसी से कम नहीं थे ...दिव्या ने अपनी बात करते हुए कहा |

    भाई भाई क्या बात है मैडम ...अंश ने दिव्या से कहा |

     रात के लगभग १० बज रहे थे | विश्वराम ने और अंश ने आज साथ बैठकर खाना खाया था और फिर विश्वराम अपना कुछ काम निपटा रहे थे और अंश खाने के बाद छत के उपर चला जाता है और वहा जाकर बिना सर्ट के खुले आसमान के निचे खड़े रहेकर गाव को देख रहा था और मन ही मन कुछ ना कुछ उल्टा सीधा सोच रहा था | अंश एकदम फिट था जिसकी बॉडी किसी माचोमेन से कम नहीं थी | अंश के दिमाग में अनेको सवाल चल रहे थे | बहार एक दम ख़ामोशी थी पर अंश के अंदर भुचाल सा चल रहा था | कहा जाता है की अक्सर वो लोग शांत होते है जिनके अंदर सोच का भुचाल भरा होता है | आधा घंटा बीतता है | विश्वराम केशवा अंश को ढूढ़ते हुए छत पर आते है और कुछ देर अंश के पीछे खड़े रहकर उसकी ख़ामोशी को देखते है बाद में अंश के बगल में जाकर खड़े रहे जाते है |

    बहार तो शांति सी छाई हुई है पर तुम्हे देखकर लग रहा है जैसे तुम्हारे अंदर सोच का भूचाल चल रहा हो ...विश्वराम केशवा ने अपने पुत्र की और देखते हुए कहा |

    अंश कुछ देर तक अपने मु से एक भी सवाल जवाब नहीं निकालता बस अपने पिता की और देखकर चहरे पर थोडा सा स्मित दिखता है |

    क्या हुआ बेटा क्या बात है आज इतने शांत हो और बहार नहीं जाना है वो जंगलीपना करने के लिए... विश्वराम केशवा ने कहा |

    आप उसे जंगलीपना बोलते हो पापा ...अंश ने कहा |

    हा कहेता तो जंगलीपना ही हु पर साथ में यह भी मानता हु की इस उम्र में जंगलीपना करना आवश्यक है ...विश्वराम केशवा ने कहा |

    आप भले ही उम्र से मुझ से बड़े हो पर आपने हमेशा मुझ जैसा बनकर ही मुझसे बात की है कभी भी मुझे आज तक एसा नहीं लगा पापा की आपने मुझे ना समझा हो thank you पापा और love you ...अंश ने अपने पिता से कहा |

    आज के ज़माने में एसा कोनसा बेटा होगा जो अपने पिता को प्यार भरे दो शब्द बोल सके तु बोल देता है तो शायद यही वजह है की मुझे तुझ जैसा बनने की इच्छा होती है और अगर अपने बेटे को सही रास्ता दिखाना है तो उसके जैसा बनकर और वो जैसे समझता है वैसे समझाया जाए तो संतान जल्दी समझते है ...विश्वराम केशवा ने कहा |

    आप को लगता है की मै अपने जीवन में सही रास्ते पर हु पापा ...अंश ने अपने पिता से कहा |

    वो तो में तुम्हे तुम्हारे आने वाले दिनों में तुम व्यापार में और जीवन में क्या गुल खिलाते हो उसको देखकर कहूँगा की अंश तुम सही रास्ते पर हो या गलत रास्ते पर ...विश्वराम केशवा ने कहा |

    मेरी यह कोशिश रहेगी की आप यही बोले की बेटा तुम बिलकुल सही रास्ते पर हो पर आप को उसके लिए मुझे एक वचन देना होगा ...अंश ने अपने पिता से वचन मांगते हुए कहा |

    क्या मतलब ...विश्वराम केशवा ने अंश की बात समझ मे ना आने की वजह से पूछा |

    मतलब यह की आप मुझे जब में सही रास्ते पर हु या गलत रास्ते पर यह जज करे तो मेरा ना सोचते हुए धर्म की तरफ से और संस्कारो की तरफ से में सही हु या नहीं वही सोचकर जज करेंगे ... अंश ने अपने पिता से कहा |

    जरुर में उस वक्त ना तो अपना ओर ना ही तेरा स्वार्थ सोचूंगा में उस वक्त नीती से सोचूंगा चाहे मेरा जो भी बुरा हो रहा हो पर अगर तु नीती से सच्चा होगा तो में तुझे सच्चा ही बोलूँगा और उस वक्त तु शायद किसी भी मुश्केली में हो या मेरे खुद के विरुध में क्यों न हो पर करना वही जो सच हो ... विश्वराम केशवा ने कहा |

       कुछ देर की बातो के बाद दोनों के बिच थोड़ी सी शांति बनी रहेती है फिर अंश अपने पिता से वो सवाल करता है जिस सवाल के बारे में वो बार बार सोच रहा था |

    पापा यह गाव कभी नहीं बदलेगा ...अंश ने अपने पिता से कहा |

    कैसे मतलब ...विश्वराम केशवा ने कहा |

    मतलब में जानता हु की यहाँ के रिवाजो और गलत सोच को आप भी नहीं मानते पर कुछ बोलते नहीं हो पर मुझे पता है | क्या यह गाव हमेशा एसा ही रहेगा की यहाँ पे जन्म लेने वाली हर एक स्त्री का कोई भविष्य ही नहीं होगा उसको हमेशा एसे ही जुर्म सहेने है ...अंश ने अपने पिता को सवाल करते हुए कहा |

    में जब छोटा था और मेरी माँ के साथ भी यह सब होता था | मेरे पिताजी यानी तुम्हारे दादाजी ने मेरी माँ को बहुत से रिवाजो के द्वारा बहुत बार मेरी आखो के सामने जलील किया है और हर वक्त में यह सोचता की मै अपनी माँ के लिए कुछ करू पर कभी भी हिम्मत ही नहीं हुई की में उनके लिए कुछ भी कर सकू ...विश्वराम केशवा ने अंश से कहा |

    तब आपने उस हादसों से क्या सिखा पापा ...अंश ने अपने पिता से कहा |

    तब मैंने यह सीखा की जब आपको सही गलत पता चल जाए की यह सही है और यह गलत तो बिना उस चीज का अंजाम सोचे आप सच के लिए कूद पड़ो बाकी जो होगा वो भगवान देख लेंगे क्योकी अगर आपने उसके अंजाम के बारे में सोचना चालु कर दिया तो आपको १०० में से ९० एसे कारण मिलेंगे बेटा जो आपको सच की तरफ झुकने से रोकेंगे ...विश्वराम केशवा ने कहा |

     अगर सच के लिए लड़ना बहुत ही मुश्किल हो तब ? अगर इसमें आपका सबकुछ लुट भी जा सकता है तब ? ...अंश ने सवाल करते हुए अपने पिता से कहा |

     बेटा तुमने वही करना शुरू कर दिया जो मैंने अभी तुमसे कहा की सच की तरफ झुकने के बाद अंजाम के बारे में मत सोचना क्योकी सच का रास्ता हमेशा से मुश्किल ही होता है और अभी तुमने जो सवाल किए वो सच के अंजामो के बारे में थे अगर वो सोचने गए फिर तो तुम्हारा सच की तरफ झुकाव कम होने लगेगा ...विश्वराम केशवा ने बहुत ही अमूल्य बात करते हुए कहा |

     सही बात है पापा ...अंश ने अपने पिता से कहा |

     सच के साथ चलोगे तो बहुत सी परिक्षाए देनी होगी और बहुत कुछ खोना भी पड़ेगा लेकिन तुम जब जीतोगे तो तुम्हारा खोया शायद तुम्हे मिले या ना मिले पर बहुतो को बहुत कुछ मिलता है और अक्सर बेटा जिसकी सच के रास्ते पे चलकर जय जय कार होती है लोग उसकी जय जय कार की तरफ ही देखते है पर उसके पीछे उसने कितना कुछ खोया है वो कभी नहीं देखते इसलिए अगर सच के साथ चलना है तो बिना उसका अंजाम सोचे चलो क्योकी सच हमेशा इश्वर का होता है और इश्वर के साथ होने से अंजाम के बारे में नहीं सोचा जाता ...विश्वराम केशवा ने कहा |

    दोनों के बिच छत पर बाते हो ही रही थी तभी निचे अपनी मोटर-साईकल लिए अंश के दोस्त आते है और हॉर्न बजाकर उसे बुलाते है |

    ओह अंश बाबु चलना नहीं है ...अशोक ने हॉर्न बजाते हुए कहा |

    नमस्ते काका ...अशोक, चिराग और पराग ने विश्वराम से कहा |

    नमस्ते बेटा कहा का प्रोग्राम है आज का ...विश्वराम केशवा ने कहा |

    हवेली पे जाना है बस काका ...पराग ने बड़ी गलती करते हुए कहा |

    पराग के इस शब्दों से बाकी के तीनो दोस्तों के दिमाग हिल जाते है |

    हवेली पे मतलब ...विश्वराम केशवा ने सवाल करते हुए कहा |

    मतलब हवेली नाम की फिल्म आई है पापा और यह उसमे पता नहीं एसा क्या है की पागल हो गया है की वो फिल्म देखनी है तो तब से सबको यही बताए जा रहा है की हवेली पे जाना है हवेली पे जाना है ...अंश ने अपने पिता को झूठ बोलकर समझाते हुए कहा |

    साले तुझे ना १०० दिन तक गुटखा व्रत रखवाऊंगा | नो दिन तक गुटखा नहीं खाने दूंगा सेल ...चिराग ने धीरे से पराग को इस गलती के लिए धमकाते हुए कहा |

    ठीक है जाओ जाओ पर संभालकर और जल्दी आ जाना ...विश्वराम केशवा ने अंश और उनके दोस्तों से कहा |

    अंश वहा से अपने दोस्तों के साथ मोटर-साईकल में बैठकर चला जाता है और जाते वक्त भी अंश के दिमाग में वही ख्याल दोड रहे थे की क्या उसे गाव के सामने पड़कर गाव की सोच को पड़कार फेकना चाहिए और उसे बदलने के लिए उसे लड़ना चाहिए और यह करने से उसका बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता था और अंश इसी असमंजस में फसा हुआ था अब देखना यह रसप्रद होगा की अंश कोनसे रास्ते को चुनता है और उस रास्ते पर कोनसी कोनसी मुश्किलें आती है और अंश उसका सामना कैसे करता है |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY