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बस का सुहाना सफ़र

एक नज़र में भी प्यार होता है...

एक नज़र में भी प्यार होता है...



देर लगी आने में तुमको...

शुक्र है फिर भी आये तो...



बस में ये गाना उस वक़्त और भी शानदार लगने लगा,

जब बस रुकी और एक बेहद खूबसूरत परी-सी लड़की,

जो शायद स्वर्ग से भटककर यहाँ भू-लोक चली आई थी, बस में बैठी ।



आज केकड़ी से अजमेर तक दो घंटे का सफ़र रोमांटिक गानों की चपेट में रोमांटिक होता जा रहा था ।

यूँ ही नज़रों का बार-बार मिलना और दिल का तेज गति से धड़क उठना चलता रहा ... चलता रहा...।

अब ये ड्राइवर की करामात थी या क़िस्मत की, अब या चालक जाने या क़िस्मत, पर यहाँ हर गाना मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को ही पढ़कर बजता रहा ।



हैं जो इरादे बता दूँ तुमको शर्मा ही जाओगी तुम,

धड़कने जो सुना दूँ तुमको घबरा ही जाओगी तुम।

शायद हम दोनों का गाने के हर एक बोल पर उतना ही ध्यान था जितना एक दूसरे पर... और गानें के ये बोल सुनते ही उसका, अपनी तिलिस्मी निगाहों को झुकना और एक हल्की सी मुस्कान... मेरा दिल का बुरा हाल करने के लिए काफ़ी थी, मानों दिल को सीने के अंदर रखकर मैंने उसके साथ बेमानी कर दी हो और वह ज़ोर ज़ोर से धड़क कर वहां से हटने के लिए बेताब हो । और मैं लम्बी-लम्बी सांसे छोड़कर उसे कह रहा होऊं, "ऐ नादान और बेक़ाबू दिल, क़ाबू कर ख़ुद पे तेरी वहीं जगह है" ।



ज़बाँ ख़ामोश रहती है, नज़र से काम होता है।

इसी पल का ज़माने में, मोहब्बत नाम होता है।।

और इस गाने ने तो मानों, जान ही निकाल दी थी।।।



इन गहरी ख़ामोशी के बीच नज़र शोर मचाते हुए क्या काम कर रही थी, ये उसकी नज़र जानती और मेरी नज़र जानती थी। कुमार शानू का ये जादुई गाना, शायद हमारे दिल की बात एक दूसरे को बता रहा था ।

"आज क़यामत पे भी शायद क़यामत आ पहुंची थी"

बस नक्खास से आगे बढ़ चुकी थी, मंजिल अभी 60 मिनट की दूरी पर, पर सामने एक और मंज़िल थी जिसने गज़ब का मंज़र बना रक्खा था ।

तभी उसका फ़ोन बजा, -- " हाँ भइया कहाँ ? ..... क्या ? .... नसीराबाद नहीं, सराना .... ठीक है ।

'भइया नसीराबाद रोक लेना' -- बस वाले को अपनी सुरीली, और जादुई आवाज़ में उसने इत्तला किया और एक नज़र मेरी तरफ देखा, वो शायद बता रही की अब और ज़्यादा देर नहीं ।

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'भइया नसीराबाद रोक लेना' -- बस वाले को अपनी सुरीली, और जादुई आवाज़ में उसने इत्तला किया और एक नज़र मेरी तरफ देखा, वो शायद बता रही की अब और ज़्यादा देर नहीं ।

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हाँ मुश्किल से मेरे पास बीस मिनट और था,

तभी मेरे दिल में छिपे ग़ालिब बोल उठे,

"छोड़ दूँ उन्हें यूँ ही जाने के लिए, या

बहका लूँ ख़ुद को उन्हें पाने के लिए ।"

कुछ करना पड़ेगा, मोबाइल नंबर मांगता हूँ -- सोचते हुए मैं, कुछ हरकत में आता हूँ और वो भी ...

और एक लंबी साँस लेके, बस में बैठे सभी लोगों को नज़रन्दाज़ करते हुए, आख़िरकार, बड़े ही सहज अंदाज़ में मैंने उससे बोला -- "अच्छा भूमिका, अपना मोबाइल नंबर दो यार"

(नाम इसलिए ताकि औरों को शक़ ना हो ।)

हाँ, ए-बी का तो होगा ही, ये सी-डी वाला नोट करलो -- उसने मुझसे ज्यादा सहज अंदाज़ में कहा ।

एक दो--

हाँ,

तीन चार--

क्या ?

तीन चार--

हाँ,

जल्दी आओ भई, नसीराबाद -- (सह चालक का ये कहना मानो ऐसा लगा के परीक्षा में समय समाप्त के बाद एक सवाल थोड़ा हुआ तबतक अध्यापक का आ के उतर पुस्तिका छीन लेना)

और तभी तुरंत ही तिराहे के पास खड़े उसका भाई बिल्कुल बस के गेट के पास आ गया -- जल्दी उतरो, देर हो रही है ।

उसने एक नज़र देखा, परेशान सी नज़रों से, अधूरी मुहब्बत समेटे हुए नज़रों से, मानों कह रही हो, हम फिर जरूर मिलेंगे ..... और वो बैठ के चली जाती है ---

वो आख़िरी पल, दिल की धड़कन रोकने के लिए काफी थे। एक दो तीन चार .......... उफ्फ्फ्फ्फ़ ......उस वक़्त दृश्य पटल पर ये चार अंक देख कर मैं पत्थर का हो चूका था, दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी । मैं बिल्कुल हताश था, अभी क्या हुआ था मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसके बाद कौन गाना बजा .... मुझे ख्याल तक नहीं, ।

उतरो भाई की यहीं सोने का इरादा है -- सहचालक की तेज़ आवाज़ सुनकर मैं होश में आया।

क्या भाई, चौथी बार बुलाया हूँ तब सुने हो --

अरे भाई वो थोड़ी आँख लग गई थी -- पैसे देकर मैं आगे बढ़ गया ।

(क़िस्मत को भी खिलवाड़ करने का बहुत शौक होता है, ये मुझे आज पता चला था । ये बात आज पता चली थी की क़िस्मत हमारी नहीं होती बल्कि हम क़िस्मत के होते हैं उसे जो अच्छा लगेगा वही हमें देगी और शायद क़िस्मत को भी कुछ मनोरंजन चहिए होता हो, चाहे जैसे, खिलौने से खेलकर या फिर किसी के दिल से ।)



हाँ, एक नज़र में भी प्यार होता है ।

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