महारानी जयवंताबाई - महाराणा उदय सिंह की पहली धरमा द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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महारानी जयवंताबाई - महाराणा उदय सिंह की पहली

महारानी जयवंताबाई

महाराणा उदय सिंह की पहली पत्नी थी, और इनके पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था। यह राजस्थान के जालौर की एक रियासत के अखे राज सोंगरा चौहान की बेटी थी। ... जयवंता बाई उदय सिंह को राजनीतिक मामलों में सलाहें देती थी। 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद, जगमल अपने पिता की इच्छा के अनुसार सिंहासन पर चढ़ गए।

जयवंता बाई एक बहादुर, सीधी राजपूत रानी थी। वह भगवान कृष्ण की एक प्रफुल्लित भक्त थी और कभी उनके सिद्धांतों और आदर्शवादी विश्वासों से समझौता नहीं करती थी। उन्होंने प्रताप को अपने पोषित सिद्धांतों और धार्मिकता को पारित कर दिया, जो उनके द्वारा बहुत प्रेरित थे। बाद में उनके जीवन में, प्रताप ने उसी आदर्शवादी और सिद्धांतों का पालन किया जो जयवंता बाई ने किया। प्रताप एक महान राणा (राजा) बन गए। उन्होंने प्रताप को नैतिकता दी और उन्होंने इसका पालन किया और जिसके कारण उन्होंने महान लोगों की सूची में अपना नाम लिखा। उन्होंने प्रताप के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

महाराणा उदयसिंह अरावली की दुर्गम घाटियों में भटक रहे थे। भूख प्यास से स्वयं और उनका घोडा दोनों जर्जर हो उठे थे। प्यास के मारे तो प्राण निकले जा रहे थे। ऐसी स्थिति में एक-एक कदम पहाड़ जैसा हो रहा था।


अकबर की विशाल सेना से चित्तोड़ का बचा रहना संभव नहीं लगा तो उन्होंने वहाँ का भार जयमाल व पत्ता सिसोदिया पर छोड़ दिया। और स्वयं इस उद्देश्य से निकल आये थे कि किसी और जगह सैन्य संगठित करके फिर चित्तोड़ छुड़ा लेंगे पर अब तो जान के ही लाले पद गये थे।

अन्धकार में प्रकाश की किरण फूटी। उसी समय उन्हें एक किसान कन्या आती दिखी उनके मुख पर आशा की मुस्कान फुट पड़ी।

उसके सिर पर बड़ी सी टोकरी थी जिसमें दस व्यक्तिओं की रोटियां, दाल की बड़ी सी हांडी और खेती में काम आने वाले औजार रखे थे। हाथ से गाय के सात-आठ बछड़े पकड़ रखे थे तथा बिना किसी कठिनाई से वह कठिन चढ़ाई चढ़ रही थी।

पास आकर महाराणा को देखा तो उनकी वेश-भूषा तथा मुख से उनकी दशा का अनुमान लगाने में कठिनाई न हुई। उसने इनसे अपने साथ चलने का आग्रह किया।

आशा जाएगी तो मन में उत्साह अंगड़ाई लेने लगा। वे उसके पीछे चल दिए। उनके मन में विचार आया कि इस सिंहनी से उत्पन्न होने वाला बालक कितना बलिष्ठ तथा योग्य होगा ? उन्हें इस किसान की कन्या का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य अपूर्व लगा। उन्होंने निश्चय किया कि इस असाधारण कन्या से वे विवाह करेंगे।

थोड़ी दूर जाने पर पहाड़ियों के बीच मैदान निकल आया जिस पर उसके पिता के खेत थे। यही इसके परिवार की आजीविका का स्थान था।

किसान ने महाराणा का स्वागत किया। परिचय पाकर तो वह फूला न समाया। उसने अपने पांचो पुत्रों को भी यह बात बताई। महाराणा को पानी पिलाया और उनके अश्व को भी पाने पिलाकर हरी घास चरने छोड़ दिया। महाराणा ने इस परिवार के साथ अपना भोजन किया। आज तो मक्का की रोटियां व चने का साग उन्हें अमृत-तुल्य लगा।

महाराणा ने अपने मन की बात जब किसान को बताई तो वह बोला - "वैसे तो हम भी देवड़ा राजपूत है पर कहाँ आप और कहाँ हम ।"


महाराणा ने उसे समझाया कि मनुष्य अपने गुणों से बड़ा होता है पद से नहीं। महाराणा का विवाह हो गया। रानी जैसा सुयोग्य सहायक पाकर उनमें नवीन उत्साह जाग उठा। उन्होंने मिलकर अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच उदयपुर नगर की नींव डाली। सेना एकत्रित की और पुनः अपना राज्य सुव्यवस्थित किया।

इस रानी की कोख से ही नर-रत्न राणा प्रताप का जन्म हुआ जिनकी शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक क्षमता अपूर्व थी। मिट्टी से कुम्हार जैसे मूर्ति गढ़ता है वैसे ही रानी ने राणा को बड़े मनोयोग व सावधान से गड़ा था।

सामंतों के कहने पर उदयसिंह दूसरा विवाह भी कर चुके थे। इस महारानी के भी दो पुत्र थे। इन दो पुत्रों की माता जहाँ राज्य के लोभ में पड़ी रही वहीं वीर जननी ने अपने बालकों को मातृभूमि की सेवा का पाठ पढ़ाया। एक साधारण राजकुमार से उन्हें एक महान देशभक्त बनाया।

विवाह का आदर्श जीवन के लिए एक सच्चे साथी को पाना है। जब यह आदर्श महाराणा उदयसिंह ने अपनाया तो कितना शुभ परिणाम हुआ परन्तु जहाँ वे मान और यश के फेर में पद गए वहीं राजद्रोही पैदा हुए। दूसरी रानी का पुत्र शक्ति सिंह अकबर से जा मिला था और अपनी ही मातृभूमि के साथ विश्वासघात कर बैठा।