The story of Rani Savalde and Raja Karak books and stories free download online pdf in Hindi

रानी सावलदे ओर राजा कारक की कथा

पुंडीर राजवंश- रानी सावलदे ओर राजा कारक की कथा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे राजा कारक ओर रानी सावलदेह का किस्सा लोक गीत ओर रागनियो मे बहुत गाया जाता है ।
लेकिन बहुत कम ही लोग जानते है की रानी सावलदे ओर राजा कारक का सम्बंध किस राजवंश से है। ये केवल किस्सा मात्र नहीं है ,ये पुंडीर वंश के गौरवशाली इतिहास की वो कड़ी है जिसे हमारी आज की पीढी अंजान है , जिस तरह सावित्री ओर सत्यवान की कथा अमर है ,उसी तरह रानी सावालदे ओर राजा कारक की कथा भी अमर है ।।
मनहारखेडा(राजा मनहार सिंह पुंडीर द्वारा बसाया गया ) जिसे आज जलालाबाद(जिला -शामली ) के नाम से जाना जाता है कभी राजपूत राजांओ की बहादुरी ,तापस्या ,एकता ओर बलीदान का प्रतीक था जिसके किले के गुम्बद आज भी महान राजाओ ओर उनके बालिदान की कहानिया कहते है ।
मनहारखेडा राजवंश मे राजा केशर सिह पुंडीर एक प्रतापी राजा हुए,जिनकी पुत्री सावलदे का विवाह दिल्ली के तंवर वंशी राजा कारक के साथ हुआ ।
सावलदे बहुत तपस्वी ओर अध्यत्मिक थी , विवाह के बाद सावलदे जब मायके आई ओर कुछ दिन बाद जब राजा कारक उनहे लिवा कर वापस दिल्ली जा रहे थे तब रस्ते मे एक बड़ के पेड के नीचे विश्राम के लिए रुके । तभी एक चील अपने पंजे मे सर्प को दबाकर उडी जा रही थी ,ओर वह उस वृक्ष पर बैठ गयी , जिसके नीचे राजा-रानी विश्राम कर रहे थे ।राजा कारक ने सार्प को चील के पंजे से छुडाने के लिए तीर निकाल लिया ,तभी सावलदे ने उनहे सर्पो से उनके वंश वैर की बात कही ओर उनहे धोखे होना का आभास कराया । लेकिन राजा क्षात्र धर्म मे बांधे थे एक न सुनी ओर तीर चला दिया ,चील सर्प को छोड़ उड गई ,सर्प खोकर मे छिप गया ।रानी के द्वारा राजा को धोखे से सावधान करने पर भी राजा न माने ओर तीर लेने वृक्ष पर चढे ,तभी सर्प ने डस लिया ज़िस्से राजा प्राण त्याग देते है ,रानी राजा की लाश लेकर दिल्ली पहुची ,जहा उसे सास के ताने सुन्ने पडे तथा उसे मनहूस कहकर महल मे नही आने दिया गया । रानी डोल्ले मे लाश लेकर वापस उसी वृक्ष के नीचे आ गई ओर विलाप करने लगी । सावलदे बहुत तपस्वी थी उसके तप के प्रभाव से वहा नारद मुनी प्रगट हुए ओर 12 साल वृक्ष के नीचे लाश को घास के पालने मे रखकर तप करने को कहा ,12 साल बाद वहा देवताओं के वैद्य धनातर के आने की बात कहते है ।नारद मुनी के आशीर्वाद से राजा कारक की देह सुरक्षित रहती है ।
12 साल सावलदे उस बड़ के वृक्ष के नीचे तप करती है ओर जब वैद्य धानातर घूमते हुए वहा आते है ओर उसके तप का कारण ओर उसका परिचय पुछते है तब वह बताती है की वह मनहारखेडा के राजा केसर सिंह की पुत्री है ओर अपने दुख का कारण् बताती है ओर नारद जी के वचन के बारे मे बताती है ,तब वैद्य से प्रार्थना करने पर वैद्य राजा कारक को पुन : जीवित कर देते है।/राजा को जब होश आया तो लगा जैसे गहरी नींद मे थे ओर रानी की दशा देखकर बहुत दुखी हुए तथा उनहोने दिल्ली जाने से मना कर दिया ,लेकिन सावलदे की प्राथना पर वो दोनो दिल्ली लौट गए ,ज़िससे दिल्ली मे खुशी की लेहर दोड़ गई ओर राजा कारक ओर रानी का नाम ओर किस्सा हमेशा के लिए अमर हो गया ।
जय हो पुंडीर वंश की पुत्री महातपस्वीनी रानी सावलदे की ।

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