Father's letter (name of society and sons) books and stories free download online pdf in Hindi

पिता का पत्र (समाज व पुत्रों के नाम)


पिता का पत्र समाज व पुत्रों के नाम...

शहर के एक मध्यवर्गीय बूढ़े पिता ने अपने पुत्रों के नाम एक पत्र लिखकर खुद को गोली मार ली ।

चिट्टी क्यों लिखी और क्या लिखा । यह जानने से पहले संक्षेप में पत्र लिखने की पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है...

पिता सेना में कर्नल के पद से रिटार्यड हुए । वे शहर की एक मौहल्ले में अपनी पत्नी के साथ रहते थे । उनके दो पुत्र थे । जो सुदूर विदेश में रहते थे । यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि माता-पिता ने अपने लाड़लों को पालने में कोई कोर कसर नहीं रखी ।

उच्च सफलता की सीढ़िंया चढ़ते गए । पढ़-लिखकर इतने योग्य हो गए कि दुनिया की सबसे प्रसिद्ध कपड़ा मील में उनको नौकरी मिल गई । किस्मत से दोनों भाई एक ही देश में, लेकिन अलग-अलग अपने-अपने परिवार के साथ रहते थे ।

एक दिन अचानक पिता ने दु:खी ह्रदय से बेटों को खबर दी...

बेटे... ! तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं रही । पिता अपनी पत्नी की शव के साथ बेटों के आने का इंतजार करते रहे । एक दिन बाद छोटा बेटा आया, जिसका घर का नाम सोनू था।

पिता ने पूछा सोनू...! मोनू क्यों नहीं आया । मोनू यानी बड़ाबेटा । पिता ने कहा कि उसे मोबाइल मिला, पहली उड़ान से आये ।

सामाजिकता के आधार पर बडे़ पुत्र का आना, सोच बुजुर्ग फौजी ने जिद सी पकड़ ली ।

छोटे बेटे के मुंह से एक सच निकल पड़ा । उसने पिता से कहा कि मोनू भाई साहब ने कहा कि _

*"मां की मौत में तुम चले जाओ । पिताजी मरेंगे, तो मैं चला जाऊंगा।"*

कर्नल साहब (पिता) कमरे के अंदर गए । खुद को कई बार संभाला फिर उन्होंने चंद पंक्तियो का एक पत्र लिखा । जो इस प्रकार था-

प्रिय पुत्रों...

_मैंने और तुम्हारी मां ने बहुत सारे अरमानों के साथ तुम लोगों को पाला-पोसा । जगत् के सारे सुख दिए । देश-दुनिया के बेहतरीन जगहों पर तालीम दी। जब तुम्हारी मां आखरी सांस ले रही थी, तो मैं उसके पास था । वह जगत् को अलविदा करते समय तुम दोनों का चेहरा एक बार दीदार करना चाहती थी, और तुम दोनों को बाहों में भर कर चूमना चाहती थी । तुम लोग उसके लिए वही मासूम मोनू और सोनू थे । उसकी निधन के बात उसके शव के पास तुम लोगों का इंतजार करने लिए मैं था । मेरा मन कर रहा था कि- "काश तुम लोग मुझे ढ़ांढ़स बंधाने के लिए मेरे पास होते । मेरे निधन के बाद मेरी शव के पास तुम लोगों का इंतजार करने के लिए कोई नहीं होगा।" सबसे बड़ी बात यह कि मैं नहीं चाहता कि मेरे शव को चिता लगाने के लिए तुम्हारे बड़े भाई साहब को आना पड़े । इसलिए सबसे अच्छा यह है कि अपनी मां के साथ मुझे भी चिता लगाकर ही जाना । मुझे जीने का कोई हक नहीं क्योंकि जिस समाज ने मुझे जीवन भर धन के साथ सम्मान भी दिया, मैंने समाज को असभ्य नागरिक दिये । हाँ अच्छा रहा कि हम विदेश जाकर नहीं बसे, सच्चाई दब जाती ।_

_मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे मैडल तथा फोटो बटालियन को लौटाए जाए तथा घर का पैसा नौकरों में बाटा जाऐ । जमापूँजी आधी वृद्ध सेवा केन्द्र में तथा आधी सैनिक कल्याण में दी जाऐ ।_ *तुम्हारा पिता*

कमरे से ठांय की आवाज आई । कर्नल साहब ने खुद को गोली मार ली ।

यह क्यों हुआ, किस कारण हुआ ?कोई दोषी है या नहीं । मुझे इसके बारे में कुछ नहीं कहना ।

हाँ यह काल्पनिक कहानी नहीं । पूरी तरह सत्य घटना है ।


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