अतीत के पन्ने - भाग 25 RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग 25

फिर दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो कर दोनों निकल पड़े।
आलेख ने कहा पापा ज़रुरी कागजात ले लिए?
आलोक ने कहा हां, और तुमने अपना फोटो लिया है ना।।
आलेख ने कहा हां, पापा जैसा कहां था आपने।
फिर दोनों नाश्ता करने के बाद अपनी गाड़ी से निकल गए।
कचहरी परिसर में पहुंच कर आलोक ने अपने पहचान दोस्त शेखर के पास जाकर बैठ गए और फिर सारी बातें बताई।
शेखर ने कहा हां, कागजात सब ठीक है पर आलेख को अपना एक दस्तावेज देना होगा कि वो अपनी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है।
आलेख ने कहा हां, ठीक है मुझे फार्म भरना होगा है ना?
शेखर ने कहा हां, ये लो फार्म अच्छे से पढ़ कर भरना होगा।
आलोक ने कहा हां, उसकी चिंता मत करो मेरा बेटा अभी एक होनहार छात्र है अभी गोल्ड मेडल भी जीता था।
शेखर ने कहा हां, पेपर में तस्वीरें आईं थीं।
आलोक ने कहा हां ठीक है अब कुछ देर के लिए चाय , समोसे खानें चले।
शेखर ने कहा हां, याद है जब तुम और काव्या आया करते थे।
आलोक ने कहा हां, कैसे भुल सकता हूं और फिर वो लो॑गलत्ता कितने चाव से खाती थी।
आलेख ने कहा अरे बाबा अब मुझे खाना है वो लोगलत्ता जो छोटी मां खाया करती थी।।
आलोक ने कहा हां, ठीक है चलो अब।।
फिर सब मिलकर एक दुकान में जाकर बैठ गए।
फिर समोसे और चाय पीने के बाद लोगलत्ता खाने लगे।
आलेख ने लोगलत्ता खाने के बाद बोला कि कुछ पैक करवा लिजिए।।
आलोक ने कहा हां, हां ठीक है मैं ले लेता हूं।
फिर कुछ लोगलत्ता पैक करवा लिया।।
फिर वहां से हम वापस आ गए।

आलेख ने पूछा पापा सब कुछ हो गया है ना?
आलोक ने कहा हां,सब कुछ हो गया अब तो अगले महीने से सब काम शुरू हो जाएगा।
आलेख ने कहा हां काव्या कोचिंग सेंटर वाला साइन बोर्ड बनवाना होगा।।
आलोक ने कहा हां एक मैटर बनाना होगा उसके बाद उसे देना होगा जहां पर साइन बोर्ड बनता है।
हां ठीक है पापा।
चलो अब थोड़ी देर आराम कर लेते हैं।
आलेख भी कमरे में जाकर आराम करने लगा।
और दूसरे कमरे में आलोक भी आराम करने लगे और फिर अचानक आंख खुली तो सामने काव्या नयी नवेली दुल्हन बन कर खड़ी मुझे निहार रही थी और फिर बोली अरे आलोक जी आप तो हीरो बन गए बाबू के लिए।। मैं हमेशा से यही तो चाहती थी कि बाबू को उसके पिता का प्यार मिलें भले ही मां का प्यार उसके नसीब में नहीं रहा।
अरे! कुछ बोलेंगे नहीं क्या मैं बहुत ही खुश हुं, तुम्हारे यादों के सहारे पुरी जिंदगी बिताने का सोचा था मगर कमबख्त मौत ने सारा किस्सा ही खत्म कर दिया।। चलो अब सो जाओ मैं बहुत खुश हूं तुम मेरे बाबू का ख्याल रखना हां।।
फिर अचानक ओझल हो गई और आलोक उठ कर इधर उधर देखने लगें और फिर वहां से सीधे काव्या के कमरे में पहुंच गए।।
इधर उधर देखने लगें और कुछ देर बाद ही आलेख आ गया और फिर बोला।

अरे पापा क्या बात है किस से बात कर रहे थे?
आलोक ने कहा अरे बेटा तुम्हारी छोटी मां थी।।
आलेख ने कहा हां, क्या कहां??
आलोक ने अपने आंखों से बहते हुए अश्रु को छुपाते हुए कहा अरे ये कहा कि आप बाबू के साथ हमेशा रहें मैं यह चाहती हू बस।।
आलेख भी यह सुनकर रोने लगा और फिर अपने पापा के गले लग गया।। और फिर फूट फूट कर रोने लगा।‌

आलोक ने कहा बेटा रो रो,दिल हल्का हो जाएगा इस बार तो मैं कुछ दिन रुक गया।
पर अब मुझे जाना होगा।। और हां अगले महीने वो कोर्ट से कागजात आ जाएगा। आलेख ने कहा हां, ठीक है पापा।।
आलोक ने कहा हां, मैं कल चला जाऊंगा।। आलेख ने कहा हां ठीक है पर आप फिर आओगे ना?
आलोक ने कहा हां, जरूर आऊंगा।।
आलेख ने कहा कल से मेरा भी कालेज शुरू हो रहा है।।
आलोक ने कहा हां पर बेटा पिया को कब इस हवेली में लाओगे??
आलेख ने कहा पता नहीं पापा, पहले हमारी मेडिकल की पढ़ाई पुरी हो जाएं।।।
आलोक ने कहा हां यह भी ठीक है।।
फिर पापा और बेटे में बहुत सारी अनकही बातें होने लगी तो कहीं ना कहीं दबी हुई थी।
फिर किसी तरह से सुबह हो गई और फिर आलोक जाने की तैयारी करने लगे ‌।।
छाया ने जल्दी से नाश्ता करने को दिया और फिर दोनों ने नाश्ता किया।

छाया ने रास्ते के लिए खाना पैक कर दिया।।
आलोक ने कहा छाया तुम भी काव्या की तरह।।
छाया ने कहा सहाब दीदी तो आपके लिए हमें हमेशा कहती रहती थी कि आलोक जी तो उनको यह देना,वो देना।।
आलोक ने कहा हां, काव्या थी ही ऐसी सबका ख्याल करने वाली पर खुद का ख्याल नहीं रखती थी वो।
आलोक फिर थोड़ी देर तक भावुक हो गए और फिर बोलें अच्छा चलता हूं।
आलेख ने हाथ हिलाकर और फिर बोला पापा वहां पहुंच कर एक फोन कर देना।
आलोक ने गाड़ी में बैठ कर हाथ हिलाकर अभिवादन किया और फिर गाड़ी निकल गई।

आलेख भी कुछ देर बाद तैयार हो कर कालेज के लिए निकल गए।
फिर वही बस स्टैंड पर इन्तजार करने लगा और फिर कुछ देर बाद पिया आ गई अपने चहरे पर मुस्कान लिए आ गई और फिर बोली अरे आलेख अंकल चलें गए?
आलेख ने कहा हां, पापा चले गए।
पिया ने कहा ओह!इस लिए जनाब का चहेरा उतर गया है।
आलेख ने कहा हां, ठीक कहा तुमने।।
फिर बस आ गई और फिर दोनों एक साथ बैठ गए।
पिया ने कहा देखो आज मैं कालेज के बाद मार्केट जाऊंगी।
कुछ किताबें खरीदनी है।
आलेख ने कहा हां, ठीक है मैं भी जाऊंगा।
फिर इस तरह से मेडिकल कॉलेज पहुंच गए और फिर आज सभी स्टूडेंट्स को अस्पताल ले जाया गया।
आलेख को बस इस पल का इंतज़ार था कि डाक्टर बन कर कैसा प्रतीत होता है।।
सभी छात्रों और छात्राओं को एक, एक विभाग में ले जाकर सब तरह की जानकारी दी गई।।
काफी देर तक यह सब चलता रहा।
फिर वहां से आलेख और पिया अपने किताब खरीदने मार्केट पहुंच गए।

क्रमशः