अतीत के पन्ने - भाग ६ RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग ६

काव्या की अब ये आदत बन गई थी कि चुपके-चुपके अपनी सन्तान को दुध पिलाती थी और फिर एक दिन जब रेखा ने देखा तो वो भड़क गई थी अरे तू क्या जाने मां का दूध क्या होता है हां शर्म नहीं आती बच्चे के साथ नाटक कर रही है।अब काव्या भी क्या बोले कि नाटक नहीं है एक मां का दूध ही अपने बच्चे को पिला रही है। क्या दर्द है ये तो भगवान ही जानते है। रेखा ने कहा मां मुझे तो दूध ही नहीं आता है क्या आप जानते हो? सरस्वती ने कहा हां बेटा तुम बहुत कमजोर हो गई है इसलिए ये सब होगा। सरस्वती ने मन में सोचा शायद भगवान भी ये चाहते हैं कि काव्या ही अपने बच्चे को दूध पिलाएं। रेखा ने कहा हां ये मुसीबत है और ऊपर से काव्या ये सब कर रही है। सरस्वती ने कहा नहीं बेटा काव्या तो अपनी दिलों जान से आलेख को पाल रही है और आलेख देख कितना हिष्ट पुष्ट है। काव्या ने कहा जाने दो मां दीदी नहीं समझेंगी।
आलोक सब सुन कर कहा काव्या ये सब कुछ मेरे कारण हो रहा है तू मुझे किस राह पर छोड़ दिया। मैं शादी करके निभाना चाहता हूं बस । काव्या ने कहा अरे आलोक जी आप जरा सा न सोचें मैं सब कुछ ठीक कर दुगी। आलोक ने कहा नहीं रेखा तुम्हारे साथ गलत कर रही है। काव्या ने कहा अरे जब तकदीर ने मेरे साथ इतना बड़ा मजाक किया तो और क्या किसे कहें।आप जाइए रेखा दीदी के पास। बाबू तो सो गया।
आलोक ने कहा काव्या हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।।
काव्या के आंख से आंसु बहते जा रहे थे और बाबू का पेट भरते ही वो सो गया।।
वो अतीत के पन्नो को पलटते हुए आज सोलह साल बीत गए पर अब और इसी कलंक को नहीं सहा जाता है मां, तुने भी मेरा साथ छोड़ दिया और अब मेरा आलेख भी चला गया तो मैं जी नहीं पाऊंगी मां।।
कह कर काव्या रो रही थी पर उसके आंसु पोंछने वाला कोई नहीं था।
सब जल्दी जल्दी उठकर तैयार हो गए थे।आज मां की बरसी थी हवेली पूरी भरी हुई लग रही थी। यकीन नहीं हो रहा था कि आज मां हमारे बीच नहीं हैं। मां का स्पर्श, मां की ममता, मां की हंसी, मां का प्यार, मां की छवि, मां की मुस्कान, मां की हाथ का स्वाद,सब कुछ तो है पर शायद मां, मां बुलाने पर जो एक बार चली आती थी वो शायद अब नहीं आयेगी। क्योंकि मां अब नहीं है सिर्फ है तो उनकी तस्वीर, उनकी यादें, उनकी बातें बस और कुछ नहीं। ये सब क्या हो रहा है काव्या ये सोच कर रो रही थी कि मां अब नहीं है और ना ही बुलाने पर आएंगी। ये कैसा दुख है भगवान जो कभी खत्म नहीं होगा क्या जब मैं नहीं रहुंगी तब ये खत्म हो जाएगा।आलेख ने कहा छोटी मां अब बस भी करो। कैसे आंसु बहा रही हो। मुझसे ना देखा जाएगा हां।
आलोक ने कहा हां बेटा छोटी मां को रो लेने दो बेटा।।

पर पापा आज तो नानी जी की पुण्यतिथि है और शायद वो यही कहीं है तो उनको कितना दुख होगा ये देख कर कि काव्या रो रही है।
काव्या ने कहा अच्छा ठीक है बाबू जल्दी से माला पहना दें नानी जी को।

आज घर में सब लोगों का आना-जाना लगा है।आज तो मां के पसन्द का खाना बन रहा है। आलेख ने नानी मां के फोटो में एक सुंदर सी रजनीगन्धा वाली माला पहनाया गया था और तरह तरह के फल , मिठाई सब कुछ सजा कर रखा गया था।
फिर चारों बहनें,चाहे दिल में जगह ना सही पर एक साथ ही सब बैठी थी।
फिर पंडित जी ने पुजा शुरू किया और हर साल की तरह इस साल भी पंडितों को भोज कराया गया। काफी देर तक पुजा हो रही थी।
सभी पुजा पाठ अच्छी तरह से हो गया। फिर
आलेख ने ही नानी के नाम की हवन करवाया।हर साल की तरह इस बार भी आलेख ने गरीबों को भोजन और कम्बल देने के लिए निकल गए।
उसके बाद सभी को अच्छी तरह से सत्कार किया और भोजन कराया गया।सारे लोग हवेली से भोजन करके निकल गए थे।हम सब एक साथ ज़मीन पर बैठ कर भोजन करने लगे। आलेख भी जल्दी आ गया।
फिर हम सब एक साथ मिलकर खाना खा लिया और फिर सब थके हुए थे औरअपने कमरे में सोने चले गए।

काव्या भी धीरे- धीरे मां के कमरे तक पहुंच गई। काव्या ने आज मां की साड़ी पहनी थी। और फिर खुद को शीशे में देख कर बोली अरे मां देखो तो कैसी लग रही हुं मैं। बिल्कुल भद्दी सी है ना मां। मुझे माफ़ कर दो मां मैं तुम्हारी अच्छी बेटी नहीं बन पाई तभी तो तुम मुझे छोड़ कर चली गई और अब सब चले जाएंगे है ना। मैं यहां और नहीं रह पाती हुं। तुम तो सब जानती हो बहुत तकलीफ़ होती है मां जब एक मां होकर भी अपने सन्तान को अपनी ममता नहीं दे पातीं। ये कैसा अभिशाप है मां मुझे नहीं पता तुम मुझे अपने साथ ले जाती।
फिर उसने मां को महसूस भी किया और कहा मां अब मुझे ले चलो अपने साथ।मेरा कोई नहीं है मां।।आलेख को भी जाना होगा। रेखा दीदी तो अब उसे ले कर जाएगी मां मैं क्या करूं। कैसे कहूं कि आलेख कौन है।। आलोक का घर मैं कैसे तोड़ सकती हुं।
आलेख आकर कहा अरे बाबा छोटी मां अब सो जाओ ना सब सो गए।
काव्या ने कहा पर क्या आलेख को मैं सब कुछ बता पाऊंगी।
पीछे से आलेख बोला अरे क्या छोटी मां?
ऐसा क्या है जो मैं नहीं जानता हूं।
काव्या ने कहा अरे बाबू कुछ नहीं।।
आलेख ने कहा छोटी मां आज कितने अच्छे से सब काम हो गया नानी का।
काव्या ने कहा आलेख अगर आज तेरी छोटी मां तुझसे कुछ मांगे तो देगा? आलेख ने मायूस हो कहा ऐसा कुछ मत मांगो की मैं ना दे पाऊं।
काव्या ने कहा तुझसे मेरी विनती है कि तू रेखा दीदी के साथ चला जा।
आलेख ने कहा छोटी मां ये क्या बोल रही हो मैं कैसे जा सकता हूं। आप को अकेला छोड़ कर मेरा शरीर जाएगा पर मेरी आत्मा नहीं।।
काव्या ने कहा अच्छा अगर मैं मर जाती तो तुझे छुटकारा मिल जाता है ना?
आलेख रोते हुए कहा कि छोटी मां मैंने बचपन से लेकर अब तक आपके साथ जिया है और आज आपने मुझे पराया कर दिया।अगर मैं आपका अपना बेटा होता तो क्या आप ऐसा बोलते।
काव्या ने कहा नहीं रे आज तू भी अपनी छोटी मां को ग़लत समझ रहा है।देख ना रेखा दीदी के ताने सुन कर मैं अब बस हो चुका मैं अकेले रह लुंगी आलेख तु यहां रह कर अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकता है।तू चला जा बेटा वरना मैं कुछ कर लुंगी और सहन नहीं होता मुझे।तू सुन रहा है ना। मैं तेरी मां नहीं हुं हां। अब जा यहा से।
आलेख वहां से चला गया।

काव्या रोते रोते सो गई।
अगली सुबह राधा ने काव्या को उठाया और बोली दीदी आप मेरे साथ चलो यहां अब कुछ रहा नहीं। काव्या ने कहा नहीं रे,इस हवेली में मेरा अतीत है जिसे मैं कभी झुठला नहीं सकतीं।
मेरी मां है यहां पर शायद वो नहीं चाहती कि मैं कहीं जाऊं।।तू समझ मेरी व्यथा।।
राधा ने कहा नहीं दीदी अब आप इतने बड़े हवेली में कैसे रहोगी?
काव्या ने हंस कर कहा अरे मेरा बाबू तो है। मैं उसे कुछ भी कहुं पर वो अपनी छोटी मां को छोड़ कर नहीं जा सकता है।
राधा ने कहा नहीं दीदी अब आलेख भी चला गया है रेखा दीदी, जीजाजी के साथ। काव्या ने कहा हां ऐसा नहीं हो सकता है बाबू कही नहीं जा सकता है।तू झूठ बोल रही है। राधा ने कहा ना दीदी मैं सच बोल रही हुं। आज ही सुबह जल्दी उठकर निकल गए।

काव्या ने जब ये सुना तो सुन्न पड़ गई और फिर बोली चलो अच्छा हुआ अब मैं शान्ति से रह पाऊंगी।
पर वो मुझे बिना कुछ बोले चला गया। एक बार भी उसने बोला नहीं।। चलो अच्छा हुआ जो चला गया कल की बातों ने उसे मजबूर किया होगा जाने के लिए।

राधा ने कहा हां दीदी वो बहुत परेशान था और फिर रेखा दीदी ने कहा कि अब तू मेरा बेटा होकर कब तक छोटी मां के पास रहेगा।
आलेख ने कहा हां बड़ी मां अब मैं समझ चुका हूं कि कौन अपना है कौन पराया।

आलोक ने कहा आलेख तुम बिना सोचे कुछ भी बोल रहे हो बेटा।।
आलेख ने कहा नहीं पापा अब मैं हवेली में कभी वापस नहीं आऊंगा।

काव्या ने ये सुनकर कहा ऐसा कहा आलेख ने।।
राधा ने कहा हां दीदी,पर हमें भी आज जाना होगा। दोपहर तक हम चले जाएंगे। काव्या ने कहा हां ठीक है क्या सरिता दीदी भी गई। राधा ने कहा हां वो भी तो रेखा दीदी के पास गई है कुछ दिन रहने।
काव्या ने कहा हां राधा तुम लोग भी चले जाओ।
मेरी तो आदत बन चुकी हैं। अकेले रहने की। राधा ने कहा पर दी मुझे हमेशा आपकी चिंता रहेगी। काव्या ने कहा नहीं रे मैं एकदम अच्छी हुं पर एक बात समझ नहीं आ रहा है कि आलेख मुझे बिना बोले ही चला गया। राधा ने कहा हां दीदी पर बहुत मायुस था कुछ भी नहीं खाया। काव्या ने कहा क्या उसे तो आदत नहीं है फिर कैसे गया बिना कुछ खाए-पिए।
छाया ने कहा नहीं कुछ। राधा ने कहा हां कहा भी पर।।

क्रमशः।।