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अतीत के पन्ने - भाग ७

काव्या ने कहा हां सब कोई चले जाओ मुझे छोड़ कर रह लूंगी मैं अकेली।
मुझे अब आदत हो गई है। अब कोई जीने की चाह नहीं रही देखा मां बाबू भी चला गया आखिर मुझे छोड़ कर। तुम तो कहती थी ना कि बाबू कभी ना जाएगा। ये बोल कर काव्या जोर जोर से हंसने लगी अब आगे।।
दूसरे दिन सुबह राधा काव्या का पैर छुए और फिर बोली दीदी कोई नहीं रहा मैं भी एक लाचार औरत की तरह जा रही हुं तुम कैसे रहोगी इतनी बड़ी हवेली में। अच्छा मैं चलती हूं। काव्या ने कहा हां ठीक है जब मैं नहीं रहुंगी तब तो आएगी है ना। राधा बिना कुछ कहे ही निकल गई।राधा भी अपने पति के साथ चली गई।
हवेली में अब पुरा सन्नाटा छा गया था।
छाया ने कहा दीदी चाय बना दूं क्या?

काव्या ने कहा हां बना दे। अब सिर्फ दो कप बनाना मेरा बाबू तो मुझसे रूठ कर चला गया।

छाया ने कहा हां दीदी वहीं तो। अब आप किस के सहारे रहोगी।अगर आप ने शादी कर ली होती तो आज आप यूं अकेले ना रहतीं।
काव्या ने कहा नहीं रे, अकेले ही आना है और अकेले ही जाना है।
छाया ने कहा दीदी क्या नाश्ता बनाऊं।
काव्या ने कहा अरे बाबा बाबू से पुछा क्या?
काव्या ने हंस कर कहा अरे मैं भी कितनी पागल हूं मेरा आलेख अब तो चला गया।वो भला अब क्यों आएगा अपनी छोटी मां के पास किस हक से आएगा।दूध तो मैंने ही पिलाया है उसे।

काव्या अपने मां के कमरे में जाकर कर बैठ गई और फिर बोली मां देख आज तेरी लाडो बहुत अकेली पड़ गई उसका अपना खुन भी उससे रूठ गया।
मां मैं क्या करती। रेखा दीदी के ताने अब सहा नहीं जाता और फिर मैं रेखा दीदी का घर कभी नहीं तोड सकती थी।
तूने हमेशा मेरा साथ दिया पर आज उम्र के इस पराव में खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही हूं।
काव्या फिर अपने अतीत के पन्नो को पलटने लगी।
एक बार तो मैं आलेख को अपनी गोदी में सुला कर दुध पिलाने लगी थी और रेखा दीदी ने मुझे कहा कि हे राम ये क्या कर रही हैं।
तू ठहरी एक कंवारी और मेरे बेटे को स्तनपान करा रही है।
मां ओ मां जरा देखो तो इस काव्या के लक्षण मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं।
सरस्वती ने कहा रेखा तुम बहुत बोलती हो। जन्म देने से ही मां नहीं बनता है कोई ।
एक लड़की भी मां बन‌ सकती है अगर उसमें मातृत्व सुख हो तो।
काव्या ने आलेख को सुला कर सीधे अपने कमरे में चली गई और रोने लगी। मुझे मेरा दर्द किसी को नहीं बता पा रही थी बस केवल रो रो कर बुरा हाल कर लिया था मैंने।
तुम्हें याद है ना मां जब राधा की रिश्ते आ रहे थे तो सब मुझ पर उंगली उठा रहे थे कि मैंने अभी तक शादी क्यों नहीं कि। मां एक तू ही तो थी जो जानती थी कि मैं क्यों नहीं शादी कर रही थी।
मैं भला कैसे किसी को धोखा दे पातीं और हम लड़किया शादी भी एक बार करतीं हैं और प्यार भी एक बार।
जब मैंने खुद को आलोक को समर्पित कर चुकी थी तो किसी और से शादी करना मतलब मर जाना।
आलेख के आने के बाद मेरी जिंदगी बदल गई थी पर मैं ये किसी को भी नहीं बता सकती थी।
मां ओ मां।
अब शायद मैं और ना जी पाऊंगी।
मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए मां।

छाया ने आकर कहा अरे दीदी आलोक जी आए हैं।
काव्या ने कहा अच्छा ठीक है।
आलोक ऊपर पहुंच कर मां के कमरे में जाकर बोलें
काव्या ये क्या हाल बना लिया है। मुझसे तुम्हारी ये तकलीफ़ देखी नहीं जाती।
तुमने मुझे दोषी बना दिया।
काव्या ने कहा आलोक आप क्यों ये सब बोल रहे हैं।
आलोक ने कहा खुद को तुमने इतनी तकलीफ़ क्यों दिया। मैं तुम्हारा गुनहगार हुं।
काव्या ने कहा नहीं नहीं आलोक आप ने तो मुझे एक मां होने का हक दिया। मुझे कोई शिकायत नहीं है आपसे।
आलोक ने कहा मुझे अब सब सच ,सच आलेख को बताना होगा।
काव्या ने कहा नहीं, नहीं ऐसा ना करें सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। रेखा दीदी ये सब सुन कर तो मर जाएंगी।
आलोक ने कहा अब भी दूसरो के बारे में सोच रही हो।
जो आज सब रेखा का है वो तो सिर्फ तुम्हारा था काव्या।।
काव्या ने कहा आलोक मुझे अब कुछ नहीं चाहिए मैं ठीक हूं।
आलोक ने कहा पर आलेख ठीक नहीं है वो खुद को तकलीफ़ दे रहा है तुमने उसे खुद से क्यों दूर कर दिया?
काव्या ने कहा अब मैं हार चुकी हूं।
आलोक ने कहा काव्या तुम मेरे साथ चलो।
काव्या ने हंस कर कहा नहीं ऐसा अब नहीं हो सकता। आप मेरी चिंता मत करिए।
आलोक ने कहा मैंने तुम्हें पलभर की खुशी भी ना दे सका। मुझे माफ़ कर दो।
इतना कहकर आलोक वहां से निकल गए।
काव्या के आंखो से बहते हुए आंसु पोंछने वाला भी कोई नहीं था।
काव्या की आंख कब लग गई पता ही नहीं चला।
फिर दूसरे दिन सुबह सोहनलाल आकर बोले काव्या आलेख कहा है?
काव्या ने कहा सोहनलाल जी अब वो दुकान आप ही सम्हाल लिजिए।।
सोहनलाल जी ने कहा हां अच्छा ठीक है।
काव्या एक जिन्दा लाश बन कर रह गई थी उसने खाना पीना सब छोड़ दिया था और फिर एक दिन उसने एक डायरी निकाला और फिर लिखने बैठ गई। उसे लगा कि जब मैं नहीं रहुंगी तब ये कुछ अतीत के पन्ने शायद मेरी आत्मा को शांति प्रदान कर पाएगा। मैं क्या करूं जिंदगी ने मुझे जो कुछ दिया और पलभर में छिन भी लिया। कैसे भगवान किसी को इतना दुख और किसी को इतना सुख दे सकता है। मेरी क्या गलती है जो मुझे इतनी तकलीफ़ मिली। मैंने तो कोई पाप नहीं किया और फिर मैं भी एक नारी हुं कोई खिलौना तो नहीं।मेरा शादी का जोड़ा, गहने, कपड़े,आस, प्यास,इसकी कोई कीमत नहीं कोई मोल नहीं, मेरी बाकी बहने तो सिर्फ खुद के लिए सब कुछ अच्छा सोचती और मैं हमेशा दूसरों के लिए ही जी रही थी।ये कैसी उलझन है, ये कैसा कशमकश है यह कौन सा नया मोड़ मेरा इंतजार कर रहा है।

अतीत के कुछ भुले बिसरे पल को क्यों ना एक डायरी में कैद कर लूं। ये कैसी बेरंग जिंदगी है। आलेख के जाने के बाद मैं क्यों जीना नहीं चाहती हुं क्या मेरा बाबू वापस आएगा। आलेख के शरीर में मेरा खून दौड़ रहा है तो वो कैसे छोड़ कर चला गया। मैंने तो उसे मजबूर नहीं किया।
ओह मां मैं क्या करूं जिंदगी में एक और नया अध्याय शुरू होने वाला है क्या? बाबू की शादी मैं भला कैसे देख सकती हुं।

छाया ने कहा अरे दीदी बाबू का फोन आया था फिर करेगा वो
काव्या ने कहा क्या मेरा बाबू फोन किया था क्या वो वापस आ जाएगा।
छाया ने कहा इतना नहीं पता पर वो फिर से करेगा।
काव्या बेसुध हो कर नीचे पहुंच गई और फोन के पास जाकर बैठ गई।मेरा आलेख फोन करेगा।

एक घंटे होने को आएं पर अभी तक कोई फोन नहीं आया। काव्या ने कहा छाया तू सच बोल रही है।। छाया ने कहा हां दीदी सच्ची। काव्या ने बार ,बार रिसिवर उठा कर देखा पर कोई संकेत
नहीं मिल रहा था शायद बाबू भूल गया होगा वरना वो कभी ऐसा नहीं करता। काव्या वहीं बैठ कर इन्तजार करने लगी। छाया अचानक से आकर बोली अरे दीदी एक बज रहे हैं पर आप सोने नहीं गई। काव्या ने कहा अरे बाबू का फोन आने वाला है तो यहां पर बैठ गई हुं। छाया ने कहा नहीं दीदी अब और फोन नहीं आएगा।आप सो जाओ। काव्या ने कहा ना बाबा ना मैं तो यही ठीक हुं रात भर जाग कर काटनी पड़ी तो बाबू जरूर करेगा वो भूल नहीं सकता है। छाया सोने चली गई। फिर युही बैठ कर सुबह हो गई। और फिर अचानक काव्या बेहोश हो गई।
छाया जब दूध लेने निकली दरवाजे पर तो देखा कि काव्या जमीन पर पड़ी हुई थी। छाया जल्दी से पानी का छिड़काव किया और फिर काव्या को होश आया और फिर बोली अरे मेरा बाबू का फोन आया क्या? छाया ने काव्या को उठाते हुए कहा अरे दीदी बाबू बदल गया है और कभी नहीं आएगा ये सच है।
क्रमशः

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