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अतीत के पन्ने - भाग ५

ये सत्य है कि मां अब नहीं है पर क्या मैं ये सहन कर सकती हुं क्यों नहीं मैं भी मां के साथ चली गई ‌भगवान ने मुझे किस के सहारे छोड़ दिया हां।। यहां तो सब अपने ही है पर व्यवहार क्यों परायों जैसा है। ये सब कुछ सोच रही थी और फिर कब नींद आ गई और काव्या सो गई।

फिर कब फिर सुबह हो गई और फिर देखा कि मां के कमरे में ही सो गई थी काव्या।
सरिता अपने पति के साथ पहुंच गई अलीगढ़।

सरिता ने कहा रेखा दीदी बड़ी मोटी हो गई। आलोक जीजाजी कहा है?
रेखा ने कहा सामान लेने गए हैं।
रेखा ने कहा और बताओं रूक कर जाओगी।
सरिता ने कहा हां अब तो हवेली के हिस्से मिलेगा।
राधा ने गुस्से से कहा अरे कहां थी जब मां तकलीफ़ में थी। और काव्या ने घर वार सब कुछ सम्हाल लिया था।
कितनी मेहनत से दुकान को कहा से कहा पहुंचा दिया।
रेखा ने कहा हां राधा तू अपना हिस्सा काव्या को दे देना।
काव्या ने कहा अरे बाबा आप लोग को मेरी चिंता क्यों हो रही हैं।ना तब किसी के सहारे की जरूरत थी और ना अब किसी के सहारे रहूंगी।
रेखा ने गुस्से में कहा हां तभी तो आलेख को बांध कर रखी है।।
काव्या ने हंस कर कहा अरे बाबा रेखा दीदी आलेख अब बड़ा हो गया है वो जो चाहे कर सकता है।
आलोक ने कहा हां, काव्या ने ठीक कहा।
रेखा ने कहा हां काव्या तो हमेशा सही कहती हैं।
आलेख भी आ गया और बोला बड़ी मां मैं हवेली और छोटी मां को छोड़ कर नहीं जा सकता।
रेखा ने कहा हां लगता है तुझे तो तेरी छोटी मां ने जन्म दिया है।
आलेख ने कहा बड़ी मां आप हद से आगे बढ़ रही है।
काव्या ने कहा आलेख तू जा अपने कमरे में।।
रेखा ने फिर कहा, काव्या क्या तू बिन बिहाई मां बनी थी।। हंस कर बोली अरे वाह काव्या तू तो एक बाझ जैसी है जो ना कभी मां बन सकती है और ना ही किसी की पत्नी बन सकती है।
काव्या रोते हुए वहां से निकल गई।वो क्यों भला सब कुछ चुपचाप सह रही थी जाने क्या बात है।
सरिता ने कहा जाने दो दीदी हमें क्या करना है।
आपके पास तो किसी चीज की कमी नहीं है आलोक जीजू तो तुम पर जान देते हैं।।
रेखा ने कहा नहीं मुझे मेरा आलेख वापस चाहिए।
सरिता ने कहा अरे नीरज है तो आपका सहारा।
नीरज ने कहा हां मासी , मम्मी तो बस भाई,भाई करती है।
काव्या अपने कमरे में पहुंच कर रोने लगी और बोली अरे रेखा दीदी मैंने जो सहा है वो एक मां ही समझ सकती थी। क्या क्या न किया मैंने तुम्हारे लिए पर मुझे क्या मिला?
मां ही तो थी जो मेरा अतीत जानती थी और मरते दम तक मेरा साथ भी दिया था। और मुझे ये सब कुछ सुनना ही पड़ेगा क्योंकि गलती मेरी है।
आज भी मुझे याद है जब शादी के बाद ही आप और आलोक अलीगढ़ आए । और मैं आलोक को देखकर अनदेखा कर दिया और खुद को सम्हाल कर अन्दर आ गई और पता नहीं एक तपिश सी मेरे मन और आत्मा को क्या क्या सपने दिखा रही थी। फिर किसी तरह चार नाश्ता करने दिया तो आलोक बोले अरे काव्या कैसी हो? मैंने कहा हां ठीक हुं। आलोक ने कहा पर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रही हो। काव्या ने कहा हां ठीक हुं आप मेरी चिंता मत करिए हां।
और रात के खाने के बाद सब कोई अपने कमरे में जाकर सो गए थे।

पर कहां सो पाई थी मेरे अन्दर की अग्नि को तो कोई शान्त नहीं करा सकता था तो मैं नहाने चली गई और उस रात जब आलोक पानी पीने के लिए नीचे उतर आए थे और फिर वो मुझे देख कर दंग रह गए थे।
अरे काव्या तुम इतनी रात को नहाने गई थी? काव्या ने कहा हां, आलोक जी आप को कुछ चाहिए क्या? आलोक ने कहा हां मुझे प्यास लगी थी तो पानी पीने आया।पर तुम इतना कांप क्यों रही हो तबीयत ठीक है ना? काव्या ने कहा हां मेरी तबियत को भला क्या होगा। रुकिए मैं पानी लाती हूं। और फिर काव्या ने एक गिलास पानी लाकर दिया और फिर दोनों के हाथ एक दूसरे से स्पर्श हुआ। और फिर आलोक बोला तुम तो एक दम पानी पानी हो रही हो।
काव्या ने हाथ हटा कर कहा आप ऊपर जाईए।
आलोक ने कहा काव्या तूने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। बहुत ही याद आती है तुम्हारी ऐसा क्यों किया मेरे साथ??
काव्या ने कहा क्या कहना चाहते हैं। मैंने जो किया अच्छा किया।। आज आप ये सब नहीं कह सकते हैं। ये आपको शोभा नहीं देता है।
आलोक ने काव्या के करीब आकर कहा मैं तुम्हारे बिना कैसे जी रहा हूं ये मैं जानता हूं और तुम क्या चाहती हो ये भी पता है मुझे। तुमने तो खुद को शान्त करने के लिए स्नान कर लिया और मेरे अन्दर की अग्नि का क्या करूं।।
काव्या ने आलोक के आंखो में देखते हुए कहा आलोक तुम शादी शुदा हो।
आलोक ने कहा हां कहने को पर आज तक मैंने रेखा को छूआ तक नहीं है।
काव्या ये सुनकर बोली बहुत गलती कर रहे हैं। मैं जा रही हुं। ये कह कर सीधे अपने कमरे में पहुंच जाती है और फिर आलोक भी बेसुध हो कर काव्या के कमरे के अन्दर जाकर कर दरवाजा बंद कर देता है।
आलोक जब अन्दर पहुंच कर देखा तो काव्या रोने लगती है और आलोक उसके आंसु को पोंछते हुए कहता है काव्या तुमने जैसा कहा वैसा ही किया मैंने पर मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा हुं। और मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता हूं। ये कह कर आलोक काव्या को अपने आगोश में ले लेता है।उस पल दोनों ही कमजोर पड़ जाते हैं और फिर एक दूसरे में खो जाते हैं और अपने प्यार को जताते है और फिर काव्या आलोक को खुद से दूर नहीं कर पाती है और अपने आप को समर्पित कर देती है। सच्चा प्यार करने वाले ही एक-दूसरे को ऐसे ही एक खास पल दे पाते हैं।
भोर होते ही दोनों एक-दूसरे को इतने करीब देख कर बहुत ही घबरा जाते हैं।
आलोक काव्या को अपने गले से लगा लेता है। काव्या कहती हैं आज जो तुमने मुझे दिया है शायद कभी कोई नहीं देता और मैं बस रुही पुरी जिंदगी बिता सकती हुं। आलोक ने कहा हां मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं काव्या काश आज हम साथ होते।।
काव्या एक बार फिर वादा लेती है कि वो रेखा को वह सब देंगे जो एक पत्नी का हक होता है।
आलोक ने कहा काव्या हम-दोनों अपनी मर्जी से यहां तक आए और अगर किसी को पता चला तो कभी पीछे नहीं हटना।
काव्या ने कहा आलोक हमें डर लग रहा है।
आलोक ने कहा हम एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
काव्या ने कहा हां पर आज के बाद फिर कभी हम कमजोर नहीं पड़ेंगे।
फिर आलोक उठकर अपने कमरे में पहुंच कर सो जाते हैं।
और काव्या जब खुद को सम्हाल कर उठने लगी तो मां ये सब देख लेती हैं और वो आकर काव्या के गले लगकर कर फुट फुट कर रोने लगी ‌
काव्या ये मैंने क्या किया बेटी।
काव्या ने कहा मां मुझे।।।
मां कुछ मत बोलो मैं सब कुछ समझ गई जो तेरा हक था वो रेखा को मिल गया।
सुबह जब काव्या और आलोक मिले तो जैसे दो अजनबी की तरह।।
फिर रेखा और आलोक हनीमून पर चले गए।


और फिर कुछ दिनों से काव्या की तबीयत कुछ ठीक नहीं लगती है।ेएक दिन काव्या को जिस बात का डर था वहीं हुआ वो बिन बिहाई मां बनने वाली थी।
काव्या रोने लगी तो सरस्वती ने कहा रो मत बेटी सब भगवान पर छोड़ दो।
और जब ये सब बात आलोक को बताया काव्या ने तो आलोक खुशी से झूम उठे और फिर बोले देखा काव्या भगवान ने हमारे प्यार की निशानी को तुम्हारे अन्दर भेज दिया।
काव्या ने कहा आलोक एक बिन बिहाई मां को कौन पूछता है।
आलोक ने कहा देखना बेटा ही होगा और तुम्हें हमेशा मान देगा।
फिर समय बिताने लगा रेखा भी मां बनने वाली थी।और उधर काव्या को सात महीने चढ गया था और फिर रेखा को भी छः महीने चल रहे थे। रेखा ने एक दिन फोन पर कहा मां मैं नौवें महीने में आपके पास आ जाऊंगी अभी तो डा ने मना किया है कहीं जाने से। बहुत कमजोरी है।

काव्या ने कहा मां अब क्या होगा।
सरस्वती ने कहा अरे सब अच्छा होगा।
फिर काव्या को नौ महीने होने वाले थे और फिर उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गया और फिर उसने एक बेटे को जन्म दिया।।
आलोक को जैसे ही पता चला तो वो तुरंत अलीगढ़ आ गए और हवेली पहुंच कर देखा तो काव्या अपने बेटे को सुला रही थी।
आलोक ने कहा हमारा आलेख।
काव्या और आलोक का आलेख।।
काव्या ने कहा अरे आलोक आप दीदी को छोड़ कर आ गए।
आलोक ने कहा क्या करता मुझसे रहा नहीं गया। तुमने हमारी वजह से बहुत दुःख झेला है। अरे इसकी आंखें तो बिल्कुल तुम्हारी तरह है। काव्या ने कहा हां और इसके नाक बिल्कुल आप के जैसा। आलोक हमें एक डर सा लग रहा है कि रेखा दीदी को कुछ पता चला तो।। आलोक ने कहा तुम कुछ मत सोचो अपना सेहत का ख्याल रखना।। मैं आज ही निकल जाता हूं।


कुछ दिन बाद ही रेखा को लेकर आलोक हवेली पहुंच गए और उसी दिन अचानक रेखा को एडमिट करना पड़ा।
डा ने कहा कि आपरेशन करना होगा क्योंकि की बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है।।और एक घंटे बाद ही डा ने कहा कि एक मरे हुए बच्चे को जन्म दिया था रेखा ने।
आलोक तो एक दम घबरा गया और फिर बोला। रेखा कैसी है?। डॉ ने कहा कि अभी अगर पत्नी को पता चला तो उनकी मौत भी हो सकता है। उनकी हालत बहुत ही गंभीर है।।

आलोक ने बिना कुछ कहे सीधे काव्या के पास आकर बोले कि रेखा ने एक मरे हुए बच्चे को जन्म दिया है और अगर उसको पता चला तो कुछ भी हो सकता है।
काव्या ने कहा ओह भगवान ये क्या?आलोक ने कहा काव्या तुम एक एहसान कर दो ना।। हमारे बच्चे को रेखा को सौंप दो फिर उसको एक नाम मिल जाएगा।। काव्या ने कहातुम चाहते हो कि आलेख को मैं रेखा दीदी को सौंप दूं।
काव्या ने कहा हां ठीक कहा तुमने आलोक।। मैं तो एक बिन बिहाई मां हुं तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत कहां जो तुम सब कुछ बता सको।।
फिर आलोक रोते हुए आलेख को उठा कर सीधे अस्पताल पहुंच गए और रेखा के पास रख दिया। रेखा को जब होश आया तो वो उस बच्चे को निहारने लगी। पर कुछ दिनों में रेखा की तबीयत बिगड़ी गई तो फिर काव्या ने आलेख कि जिम्मेदारी लें ली।
काव्या चुपके- चुपके से अपने सन्तान को दुध पिलाती थी। उसे सुलाती थी दिन रात वो आलेख को लेकर खुश रहती थी। रेखा की तबीयत सम्हाल नहीं रह गई थी सरस्वती जी को भी रेखा के लिए चिंता हो रही थी। और इधर काव्या आलेख की तेल मालिश से लेकर सब कुछ करती रहती थी। आलेख अब सिर्फ एक महीने का ही था पर रेखा की हालत में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। आलोक छुट्टी लेकर आ जाया करता था हवेली।
रेखा की हालत गंभीर बनी हुई थी शायद कर्मों का फल हमें यही भोगना पड़ता है। और इधर काव्या अपने सन्तान को ममता में समेटे हुए अपना दुध पिलाती और उसे प्यार करती थी सब कुछ काव्या के लिए इतना आसान नहीं था उसे भय था कि एक दिन रेखा दीदी उसके सन्तान को लेकर चली जाएगी और वो कुछ भी नहीं कर पाएंगी। ऐसा क्यों होता है हमें वो नहीं मिलता जो हमारा है,पर क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा था मेरा आलेख मेरी कोख में नौ महीना तक था मैं कैसे इसे रेखा दीदी को सौंप दूं क्या सिर्फ इसलिए कि मैंने इसे बिना शादी के जन्म दिया है। एक मां की ममता का कोई मोल नहीं इस संसार में सिर्फ समाज क्या बोलेगा लोग क्या कहेंगे?इस बात के भय से मुझे मेरे ममता से मुंह मोड़ लेना होगा। ये सब सोच कर काव्या कब सो गई पता नहीं चल पाया।

अब काव्या वर्तमान में लौट आईं थीं और उसके आंखों से आंसु ऐसे निकल रहे हो जैसे कि बहुत दिनों के बाद गांव में सूखा पड़ने के बाद एक मूसलाधार बारिश हो रही हो। आलेख ने कहा अरे छोटी मां अब बस करो कितना रोएगी आप। मैं कहीं नहीं जाऊंगा आपको छोड़ कर ये बात मैंने बड़ी मां को बता दिया है। और कोई मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता है। काव्या ने कहा हां मैं जानती हूं आलेख पर ये तो सही नहीं है ना?बोल तू।आलेख ने कहा क्या सही है क्या ग़लत ये हम भगवान पर छोड़ दें।अब चलिए नाश्ता करने बहुत देर हो गई है। काव्या ने कहा हां देर तो बहुत ही हो गई है चल मै आ रही हुं।
फिर नीचे पहुंच कर सब नाश्ता करने लगे। अरे क्या हुआ काव्या अभी से मातम मान रही हो क्या देख तू इस बार मैं क्या करती हुं। ये बात कोई और नहीं रेखा ने खाना खाते हुए कहा।। आलोक ने कहा अरे कैसी दीदी हो जरा सा भी शर्म नहीं है तुम्हें? रेखा ने कहा हां तुम्हें तो जलन हो रही है पता है क्यों? काव्या ने कहा क्या आप लोग मेरे बारे में ही बात करेंगे या कुछ और।। आलेख ने कहा छोटी मां आप कमरे में जाओ मैं आपका और अपना नाश्ता लेकर आता हूं। काव्या उठ कर चली गई। फिर आलेख ने छाया को कहा तो छाया ने थाली लगा कर दे दिया। आलेख ने कहा पापा आप तो बड़ी मां को समझा सकते हो। आलेख ऊपर आकर देखा तो छोटी मां बरामदे में बैठी थी। आलेख ने कहा क्या हालात बना लिया है।चलिए मैं खिलाऊं या फिर आप।। काव्या ने थाली लेते हुए कहा हां, हां इतना लाड़ मत कर ।।ये ले मुंह खोल। आलेख हंसते हुए खाने लगा। काव्या ने कहा मैं जिंदगी भर तेरी देख भाल नहीं कर सकती हुं तु कब तक मेरी ढाल बना रहेगा जीने दे मुझे अकेले।। आलेख ने कहा बहुत बोलती है आप कह कर एक कौर मुंह में डाल दिया। काव्या खाने लगीं। क्यों हम जो चाहते हैं वो नहीं मिलता है हमें। तेरी पढ़ाई का क्या हां।। ऐसा न हो की बाद में तू छोटी मां को कोसे हां।। आलेख ने कहा हां कुछ भी आप बोलतीं है छोटी मां।।नानी जी हमेशा कहा करती थी कि काव्या का ख्याल रखना। काव्या ने कहा हां पर मुझे ये डर लगता है कि तू भी मुझे छोड़ कर शहर चला जाएगा। आलेख ने कहा क्यों आप ऐसा सोचती हो। मैं कभी नहीं जाऊंगा।। काव्या ने कहा अच्छा ठीक है मेरी चाय छाया से भिजवा दें।
फिर काव्या अतीत में जाने को मजबूर हो गई।



क्रमशः

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