अतीत के पन्ने - भाग ८ RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग ८

काव्या को अब एक बात सच लगने लगा कि बाबू अब कभी नहीं आएगा। फिर एकाएक उसे लगा कि अब बस बहुत हुआ अपनी दिल का दर्द अब और छुपाए नहीं जाता।काव्या ने एक डायरी निकाल कर लिखने लगीं। क्या लिखूं कहा से शुरू करूं।
कहने को तो मेरी तीन बहनें हैं पर कोई भी मेरा साथ नही दे सकता। रेखा दीदी को हमेशा से लगा कि मैंने उनका सब कुछ छिन लिया पर आज मैं सबकी गलतफहमी मिटा देना चाहतीं हुं। रेखा दीदी जब तक आप ये डायरी पढ़ेंगी तो बहुत देर हो चुकी हो गई।
शायद मैं कभी भी ये सब नहीं कह पाती अगर मेरा आलेख भी मुझे छोड़ कर चला ना जाता।



रेखा दीदी आप को तो याद ही होगा जब आलोक और उनकी मां मेरा रिश्ता लेकर हवेली आएं थे पर बात नहीं बना क्योंकि आप की शादी टूट गई थी तो उसमें मेरा दोष कहा?
उस समय अगर मैंने आपको नहीं बचाया होता तो क्या होता।।
मैंने ही अपने जज्बातों का गला घोंटा और आलोक को राजी किया कि वो आप से शादी करें।मगर आलोक मेरे सिवा और किसी से भी शादी करने को तैयार नहीं थे।हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे बहुत सालों से।मगर मैंने अपना सबकुछ गंवा कर आपको आबाद किया।
और फिर जब एक रोज आलोक और मैं बहुत करीब आ गए थे तो हम खुद को नहीं सम्हाल पाएं थे। और तुम्हारे मां बनने की खबर हमने सुनी थी उससे पहले मैं मां बनने वाली थी ‌पर कहते हैं ना बिन बिहाई मां कैसे बन सकती थी।पर मैं हिम्मत करके नौ महीने तक अकेले सब कुछ सहा।फिर मेरे नन्हें आलेख का जन्म हुआ।
हां दीदी आलेख मेरे और आलोक के सन्तान है।
उस समय भी अगर मैंने अपना ज़िगर का टुकड़ा आप को नहीं दिया होता तो ना जाने आपका क्या होता।
हां दीदी आप ने एक मरे हुए बच्चे को जन्म दिया था और आलोक के विनती करने पर ही मैंने आलेख को आपको सौंपा था। क्यों कि डा का कहना था कि आप ये दुःख सहन नहीं कर पाएंगी कि आपको एक मरा हुआ बच्चा पैदा किया है।
इन सब से मुझे क्या मिला।ना तो पति का प्यार ना ही एक सिन्दूर और ना ही एक परिवार।।
मैं यहां सिर्फ आलेख को देख कर जी रही थी। आलेख के आने के बाद हम आलोक से कभी भी किसी भी चीज की आशा नहीं किए अगर हम चाहते तो कुछ भी कर सकते थे पर हमने सब कुछ सहा है।
आज तक कभी भी किसी से कोई शिकायत नहीं की।
पर अब और नहीं सहा जाता है एक मां ही थी जो हमेशा मेरा साथ दिया।
रेखा दीदी आप कभी भी हमें नहीं समझ पाई।
हम बांझ नहीं है दीदी, हमने नौ महीने तक आलेख को अपने गर्भ में पला है।
और ना ही हम कलंकित है,हम और आलोक अपनी स्वेच्छा से ही एक दूसरे को समर्पित किया था हां बस एक पल के लिए उसके बाद आलोक ने कभी हमारे तरफ देखा तक नहीं। आप ने जरूर कोई पुन्य किया होगा जो आलोक जैसे पति मिले।
मैंने कभी भी खुद के लिए आलोक को नहीं कभी परेशान किया।
आलेख का जन्मदिन सही मायने में आज ही है।
जैसा कि आप सभी लोगों जानते हो वो हवेली जो सालों से गिरवी पड़ी थी वो आज हमारी हो गई और मां ने एक वसीयत बना रखी थी उस हिसाब से ये हवेली अब मेरी है इसमें आप लोगो का कोई हिस्सा नहीं है।
और जो मेरा है वो पुणत मेरे बेटे आलेख का ही होगा और मेरा दुकान जो मैंने अपनी जमा पूंजी निवेश किया था वो भी आलेख का ही होगा।
मैंने अपनी पुरी जायदाद, दुकान सब आलेख के नाम कर दिया है।
सारे कागजात आलमारी में सुरक्षित है।

रेखा दीदी अगर मैं चाहती तो आलेख को मां बोलना सिखा सकती थी पर मैंने उसे आपको बड़ी मां और मुझे छोटी मां बोलना ही सिखाया।
मेरा जो था उसको कभी भी अपना नहीं कहा।
आलोक इस जन्म आप ने मुझे सिन्दूर नहीं पहनाया तो क्या हुआ अगले जन्म में मैं आपसे ही सिन्दूर पहनुगी।

मेरे लिए कभी भी आप लोगो ने सोचा ही नहीं।
सोचा कि ये इस दुनिया से विदा लेती तो अच्छा होता।

अब और सहा नहीं जाता मेरी अवस्था अब अच्छी नहीं है।

आलेख हो सके तो एक बार आ जाते छोटी मां को देख लेते मेरी मां ही मेरे लिए सब कुछ थीं।
और आलेख तुम भी नहीं समझ पाया अपनी छोटी मां को। कोई मुझे प्यार नहीं करता सब अपने अपने में लगे हुए हैं। मैंने जिसको दिलों जान से चाहा क्या वो भी कुछ कर पाया। आलोक आप सोच रहे होंगे कि में ये आपके लिए ही बोल रही हुं पर नहीं मैं ये सिर्फ अपने सन्तान के लिए बोल रही हुं आप पर तो मेरा कोई हक ही नहीं, पर हां आप तो सिर्फ आलेख के पिता हैं और वो ही रहेंगे।मैं किसकी गुनहगार हुं यह मैं नहीं जानती हूं पर मैंने कोई पाप नहीं किया। मेरे पास समय बहुत कम है अगर एक बार आप को और आलेख को देख पाती तो मेरी आत्मा को शांति मिलती पर शायद आप लोगों को मेरी कोई चिंता नहीं है, मैं ही सदा दुसरे के लिए जीना सिखा, दूसरों की खुशी में अपनी खुशी देखी पर शायद मैं ग़लत थी मेरा कोई नहीं है।सब लोग अपने में खुश हो।आप लोग इस हवेली का हिस्सा पाने के लिए क्या क्या कर करते पर देखा ना इन्सान कितना भी हाथ पैर मार ले जो उसका है नहीं तो वो कभी नहीं मिला।
मुझे कभी किसी को कुछ भी नहीं कहना है जैसे जिसने किया वैसा ही पाया। रेखा दीदी मैंने अपनी सन्तान को आपको सौंपा था पर आप हमेशा आलेख को ग़लत शिक्षा देना चाहती थी।पर जो मेरा है उसका मुझे गुरूर है और मरने के बाद भी रहेगा।मेरा बाबू मुझे कभी ग़लत नहीं समझेगा।वो अपनी छोटी मां को सदा आदर करेगा।





क्रमशः।।