अतीत के पन्ने - भाग 24 RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग 24

आज सन्डे है और आलोक और आलेख जल्दी उठकर तैयार हो कर नाश्ता करने लगे और फिर कुछ देर बाद ही शाम भी आ गया और आलेख ने कहा भाई आज दोपहर को पार्टी है आ जाना दुकान बंद कर के।
शाम ने कहा हां, जरूर पर आज तुम्हारा जन्मदिन है,?
आलोक ने कहा नहीं, बेटा वो आलेख मेडिकल में अव्वल आया है इस खुशी में यह सब है।
फिर कुछ देर बाद ही खाना बनाने वाले महाराज भी आ गए।
आलोक ने कहा हां ठीक है छाया तुम सब कुछ समझा देना।
और फिर बरामदे में सब कुर्सी टेबल रखा देना।
हम चाहते हैं कि सब बैठ कर खाना खाएं।
आलेख ने कहा हां, पापा।
फिर सब टेंट हाउस से सामान भी आ गया और फिर सारे कुर्सी टेबल व्यवस्थित करके लगवा दिया गया।
आलेख बहुत ही उत्साहित हो गया था कि आज इस हवेली में वर्षों बाद कुछ अच्छा हो रहा है।
कहां हो तुम छोटी मां, देखो आज तुम्हारा बाबू कहां से कहां पहुंच गया।।
ये सब कहते कहते रो पड़ा बाबू!
आलोक ने आलेख को गले लगा लिया और फिर बोलें,देख तेरी छोटी मां कहीं भी गई नहीं है आज भी है वो यही पर इस घर में और सब कुछ देख भी रही है,जानता है बाबू जब तुम छोटे से थे तभी से भाग कर छोटी मां के पास जाकर उसके आंचल में छुप जाते थे और फिर तुम्हारी छोटी मां भी तुम्हें सम्हाल लिया करती थी।
आलेख ने अपने आंसु पोंछ लिया और फिर बोला हां पापा, चलिए चल कर तैयार हो जातें हैं।
फिर दोनों ऊपर चलें गए और फिर अपने कमरे में जाकर तैयार होने लगें।
कुछ देर बाद ही आलेख को राधा मासी का फोन आया और फिर बोली कि बाबू नीचे आ जल्दी।
आलेख भी खुशी के मारे फुला ना समाया।
दरवाजा खोलते ही देखा तो रोने लगा छोटी मां के बाद अगर बाबू किसी को मानता था तो सिर्फ राधा मासी को।।
गले लगा लिया और फिर राधा ने कहा मेरे लाल।।
दरअसल आलोक ने ही ये खुशखबरी सबको दिया था। जबकि रेखा को तो बिमारी ने पकड़ा की अब बिस्तर पर ही रहती है कि अब मौत आ जाएं ।
कहते हैं कि करनी का फल हमें इस दुनिया में ही मिलता है सारा हिसाब किताब यही पर होता है तभी तो कहते हैं खाली हाथ आएं थे और खाली हाथ जाना है।।
राधा ने कहा आलेख तुने काव्या दी कि हर इच्छा पूरी कर दी बेटा ।
आलेख ने कहा हां,मासी आप आइए, और सब नहीं आएं?मौसा जी और नीति?
राधा ने कहा नहीं बाबू, मुझे से रहा नहीं गया सो मैं ही आ गई।
ये लो तुम्हारे लिए।
आलेख ने पैर छुए और फिर बोला अरे वाह!
आलोक ने कहा कहो राधा!कैसी हो?
राधा ने कहा हां, जीजू ठीक हुं। और मेरी घर की बहू कहां है?
आलोक ने कहा हां,बस आने वाले हैं।
आलेख ने कहा आओ,मासी नाश्ता कर लो।
राधा हंसने लगी और फिर बोली बिल्कुल मेरी काव्या दी कि छवि है।। वहीं आंख, वहीं चहेरा वहीं हंसी,
फिर छाया ने आकर चाय नाश्ता दे दिया।
राधा खाने लगी और फिर बोली कि जीजू अगर नहीं बोलते तो मैं सब कुछ मिस कर जाती।
आलेख ने कहा हां,मासी।
कुछ देर बाद ही जनित और पिया आ गए।
आलोक ने राधा से पिया और जतिन का परिचय करवाया और फिर राधा ने पिया को गले से लगा लिया और फिर बोली कि वाह ! बहुत ही खूबसूरत हो।
पिया ने पैर छुए और फिर बोली कि अरे मासी ऐसा कुछ नहीं है।
राधा ने कहा जीजू शादी कब करवा रहे हैं?
आलोक ने कहा हम तो चाहते हैं कि जल्दी ही हो जाएं पर आलेख ने कहा कि मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद ही करेगा।।
राधा ने कहा ओह! फिर तो चार साल का इंतजार!
आलेख ने कहा हां,मासी जितना इन्तजार उतना ही -----!
राधा हंसने लगी और फिर बोली अरे आज अगर काव्या दी होती तो कितना खुश होती वो भी।।
छोटी मां के बिना ये हवेली बहुत ही सुना है पर मैं उन्हें महसूस तो कर पाता हूं। कहते हैं कि जाने वाले चलें जातें हैं पर पीछे छोड़ जाते हैं अपनी यादें,जो लोग रहकर उन्हें अपने हर खुशी में या गम में याद करते हैं वो शायद मुक्त हो जाते हैं।।
आलेख कहते हुए रोने लगा।
पिया ने गाना शुरू किया।।।।
मनमोहना , मनमोहना।।।
मनमोहना....मनमोहना...
कान्हा सुनो ना...
तुम बिन पाऊं कैसे चैन...
तरसूं तुम्ही को दिन रेन..

छोड़ के अपने काशी- मथुरा
आके बसो मोरे नैन
यौम बिन पाऊं कैसे चैन...कान्हा....
तरसूं तुम्ही को दिन- रैन

इक पल उजियारा आये,
इक पल अँधियारा छाये,
मन क्यूं ना घबराये,
कैसे ना घबराये..
मन जो कोई गाना हाँ अपनी राहों में पाए
कौन दिशा जाए
तूम बिन कौन समझाए

रास रचइया वृन्दावन के गोकुल के वाशी
राधा तुम्हरी दासी


श्याम सलोने नंदलाला कृष्णा बनवारी
तुम्हरी छवि है न्यारी
मैं तो तन- मन हारी

मनमोहना....मनमोहना...
कान्हा सुनो ना...
तुम बिन पाऊं कैसे चैन...
तरसूं तुम्ही को दिन रेन..

जीवन इक नदियां है
लहरो- लहरो बहती जाए
इसमें मन की नइया डूबे,कभी तर जाए
तुम ना खेवइया हो तो कोई तट कैसे पाए
मझदार बहलाये,तो तुम्हरी शरण आये
हम तुम्हरी शरण आये


तुम्हारा ये मेरा जीवन
तुमको देखूं मैं ,देखूं कोई दर्पण
बंशी बन जाउंगी,इन होठों की हो जाउंगी
इन सपनो से जल- थल
है मेरा मन आँगन।।

गाना खत्म होते ही राधा ने कहा ओह इतना मधुर आवाज।।
मेरी आंखों में आंसु आ गया है।।

आलोक ने कहा सच में मनमोहक प्रस्तुति।।
आलेख ने कहा हां, ठीक है।
फिर कुछ देर बाद ही आलेख के कालेज के सभी दोस्त आने लगें।
सब फुलों का गुलदस्ता लेकर आ रहे थे।।
फिर कुछ देर बाद शाम भी आ गया और सारे दोस्त मिल कर आलेख के लिए ताली बजाने लगे और उसके बाद एक बड़ा सा केक आ गया जो जतिन ने मंगवाया था अपने होने वाले जमाई के लिए।
फिर आलेख ने केक काटा और फिर सबको खिलाया और फिर सब को कोल्ड ड्रिंक सर्व किया गया।।


फिर सब एक रूम में जाकर लगें हुए टेबल कुर्सी पर बैठ गए।
दो लोग मिलकर सबको खाना सर्व करने लगे।
आलेख के सारे दोस्त बहुत ही मज़े से खाना खाने लगे और खानें की तारीफ करने लगे।।

पिया भी अपने घर जैसा ही इधर उधर सबको खाना सर्व करने लगी।
आलेख ये देख कर बोला कि अरे मैडम अभी से प्रैक्टिस कर रही है?
पिया हंसने लगी और फिर बोली अरे वाह यह मेरा घर ही तो है।।
आलोक ने कहा हां, मेरी बेटी एकदम ठीक कहा तुमने।।
फिर सब दोस्तों का खाना हो गया और सब अपने अपने घर को निकल गए।
फिर शाम, आलेख, पिया, जतिन, आलोक,राधा सब एक साथ मिलकर खाना खाने बैठ गए।
पिया ने कहा अरे छाया जी आप भी बैठ जाओ साथ में।।
आलोक बहुत ही खुश हुएं ये देख कर कि पिया को सबका ख्याल है छाया जो कि वर्षों से यहां पर इस हवेली की होकर रह गई थी उसके लिए पिया के दिल में ये भावना।। बिल्कुल काव्या की तरह!
छाया भी खाना खाने बैठ गई और रोने लग पड़ी फिर बोली पिया दी इतने सालों में सिर्फ काव्या दी ही मुझे यह कहा करती थी और आज आपने कहा,मेरे आंसु थमेगा नहीं।।
आज जी भर कर रो लेने दो।।।

अब लगता है इस हवेली में भी खुशियां वापस आ गई है। काव्या दी ने जैसा चाहा था वैसा ही हुआ।
फिर सब खाना खाने के बाद बैठक में जाकर बैठ गए।
और बातचीत करने लगे।
राधा ने कहा मुझे लगता है जीजू दोनों की शादी करवा दिजिए।
आलेख ने कहा नहीं, नहीं जब तक छोटी मां का सपना पूरा न हो जाए तब तक मैं शादी नहीं कर सकता हूं ये बात पिया को भी पता है।
जतिन ने कहा हां, हमें कोई एतराज़ नहीं है पिया भी यह चाहती है।
राधा ने कहा हां, जैसा ठीक समझो।
फिर कुछ देर बाद ही पिया और जतिन वापस जाने लगें।
राधा ने छाया से कह कर रात का डिब्बा भी दे दिया।
पिया ने कहा अरे इसकी जरूरत नहीं थी।।
राधा ने कहा इस हवेली का रिवाज है कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
पिया ने सबके पैर छुए।
आलेख भी जतिन के पैर छुए।
फिर जतिन और पिया अपने गाड़ी से निकल गए।

आलेख और आलोक और राधा बैठ कर बातें करने लगे।
कब रात हो गई पता नहीं चल पाया। आलोक ने कहा अच्छा चलो अब सो जाते हैं।
आलेख ने कहा हां, पर कल आप चले जाएंगे क्या?
आलोक ने कहा नहीं, नहीं इस बार कोचिंग सेंटर के बारे में कुछ जरूरी कागजात तैयार करवाना है तो दो दिन रुक कर जाऊंगा।
आलेख ने कहा पापा काव्या कोचिंग सेंटर कैसा रहेगा?
आलोक ने हंसते हुए कहा अरे वाह! ये देखो फाइल।।
आलेख ने देखा कि उस फ़ाइल में काव्या कोचिंग सेंटर ही लिखा हुआ था।
आलेख ने कहा अरे वाह पापा, आपने भी यह सोचा।
आलोक ने कहा हां,इस लिए कल कचहरी जाकर कुछ काम करवाना होगा। तुम्हें भी जाना होगा क्योंकि तुम्हारी छोटी मां ने यह हवेली तुम्हारे नाम की है।।
आलेख ने कहा हां, ठीक है।
क्रमशः