भ्रम - भाग-9 Surbhi Goli द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भ्रम - भाग-9

"भ्रम" भाग - 9

देवीना के साथ भी वही घटा जो सेजू और उसके दोस्तों के साथ हुआ था; उसने देखा कि सुरंग से कोई पत्थर का दरबाजा खिसकते हुए खुल रहा है। यह देख देवीना की आंखे चौड़ी हो गईं, जैसे जैसे पत्थर खिसकता जाता था वैसे ही नीले रंग का प्रकाश बढ़ता जा रहा था। देवीना ने देखा कि सामने से वह पत्थर पूरी तरह हट चुका हैं उसने डरते हुए ही उस रास्ते से अंदर जाने की हिम्मत जुटाई और अंदर पहुँची.. सब कुछ सुनसान था जैसे कोई गुफा हो; किसी शेर की बड़ी सी मांद। वहां सफाई ऐसी थी की धूल का एक कण भी नही दिखता था। जैसे देवीना किसी शून्य में पहुँच गई थी; न ही कोई आवाज, न ही कोई वस्तु..हां मगर हवा थी, प्रकाश था..!

देवीना को वहां और दूसरा दरवाजा नजर नहीं आया..बहुत देर तक देखते रहने के बाद उसने इक पल को तो सोच ही लिया था कि वह गलत जगह आ गई हैं। मगर दरवाजा खुदसे ही कैसे खुल सकता था?? देवीना भूत प्रेतों और जादू टोनो में कतई विश्वास नहीं रखती थी..हां! मगर विज्ञान पर उसे दुनियाभर का भरोसा था। उसके माथे से पसीने की नन्ही नन्ही बूंदे चू रही थी..उसके बदन पर चिपके कपड़े पसीने से सन चुके थे..वह बहुत हिम्मती लड़की थी। उसने सोच लिया था कि अब वह यहां से जाएगी तो अपने दोस्तों के साथ वरना..उसकी जिंदगी का भी समापन यहीं इसी जगह मानेगी वह।

"पीहू......सेजू......कहाँ हो तुम सब????? पीहू...सेजू..." देवीना पूरे जोश के साथ चिल्ला रही थी.."जो भी हमारे साथ यह घिनोना खेल खेल रहा है..उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी..यह मेरा प्रॉमिस है..मेरा! कोई यह न सोचें कि..वो जैसा चाहेगा वैसा ही होगा...अगर हमने कुछ चाह लिया..न! तो भगवान भी उसे मिलने से नहीं रोक सकता..अंडरस्टैंड?????"

"ओह्ह...इतना गुस्सा बेबी डॉल...???" सूनी गुफा ने शब्द उगले।

"यह कुछ भी नहीं हैं?? यह केवल चेतावनी हैं..इसका अंजाम..तुम सोच भी नहीं सकते! मेरे दोस्तों को विजुअल करो....अभी, अभी, अभी के अभी..." देवीना गरज उठी, जैसा आसमान टूटने के लिए बेताब हो।

"क्या करोगी..बताओ???" फिर अनजान आवाज सुनाई दी।

"मेरे दोस्तों को विजुअल करो..आई से...!!" देवीना पुनः चीखी।

अचानक गुफा का प्रकाश लाल रंग में परिवर्तित होने लगा। धीरे धीरे देवीना की आंखों को के सामने उसके सभी दोस्त आने लगे..उसने देखा लाल प्रकाश की उपस्थिति में सभी की देह हल्की हल्की दिखाई पड़ने लगी थी। सभी चेयर्स से बंधे हुए थे उनके मुंह पर पट्टी बंधी हुई थी।

"सेजू...पीहू...दीपक..तुम लोग सब..." देवीना अपने दोस्तों को देखकर रो पड़ी।

"वाह.. वाह.. वाह.. अपने दोस्तों के लिए आंसू निकल आये..और हम?? हम कुछ नहीं थे...??" एक जानी पहचानी आवाज गूंजी।

देवीना तुरंत समझ गई कि यह समर की आवाज थी। "समर! तुम कहाँ हो...और तुम तो कुएं में कूदे ही नहीं थे...तुम यहाँ कब और कैसे पहुँचे??"

"अब जब दो तीन सालों से भूली हुई हो तो जरा और सब्र करो..देवू!" फिर समर की आवाज गूंजी। किसी के कदमो की आवाज देवीना के कानों में आ रही थी। देवीना सतर्क हो गई थी।

तभी…
किसी ने उसके दोनों हाथों को पीछे से पकड़ लिया।
देवीना चीखी...

■■■

"तुम्हारा..सपना..कहाँ गया तुम्हारा सपना सेजू???" सुनते ही सेजू नींद में ही छटपटाई। "कितनी लापरवाह हो! कितनी लापरवाह! मौका है..तो गवा रही हो। जाग जाओ...जिंदगी जिओ..यही तुम्हारी जिंदगी है..रो कर सो गई??? रोकर सोने से क्या हासिल हुआ..??? जागो..सेजू जागो! तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं हैं..वक़्त की कद्र करो..वक़्त खुद तुम्हे पुकार रहा हैं..जगा रहा है..जाग जाओ..!!" सेजू यकायक उठ बैठी.. उसके चेहरे से पसीना चू गया, उठते ही हांफने लगी..और हड़बड़ाते हुए उसने पानी का जग ढूंढा..कांच के गिलास जमीन से टकराया और चूर.. गिलास टूटने की आवाज से मोहिनी की नींद भी भंग हो गई..वह भी हड़बड़ा कर उठी..."क्या हुआ..सेजू क्या हुआ??" मोहिनी ने सेजू की बाह पकड़ते हुए पूछा। सेजू ने मोहिनी को तुरंत अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद सेजू ने पानी पिया और बोली.."मोहिनी! तुम मेरी दोस्त हो न? मेरी मदद करोगी..??"

"हाँ! हाँ! जरूर सेजू! कहो न क्या हुआ तुम्हे।"

"तुम मीनपरी..."

"मीनपरी..??" मोहिनी सुनकर चौकी और बोली। "मीनपरी तो एक खतरनाक और बुरी परी थी। झूठ की देवी कही जाती है वह..उसने हमारे पिता को पूरे राज्य में बदनाम करने की कोशिश की थी ऐसा नगर का हर आदमी कहता है।"

"क्या..?? मोहिनी क्या तुम मुझे मीनपरी के बारे में आगे बता सकती हो?" सेजू ने मोहिनी के गालों को सहलाते हुए कहा।

"यह मैं नहीं बता सकती..यह बहुत लंबी कहानी है सेजू! मेरे पिता के पास मीनपरी के बारे में सबकुछ लिखा रखा हुआ है..ऐसा मैंने सुना हैं।"

"लेकिन! मेरा मीनपरी के बारे में जानना बहुत जरूरी है..मोहिनी! तुम्हारे पिता ने वह किताब या जो कुछ भी है..वह कहां रखा हुआ है..मैं उसे पढ़ना चाहती हूं!"

"लेकिन! सेजू तुम तो वह पढ़ चुकी हो.." मोहिनी ने सेजू की आंखों में आंखे डाल कर कहा। सेजू एक पल के लिए मोहिनी को देख कर डर गई..मोहिनी में उसे मोहिनी नहीं उस एक पल में कोई और ही नजर आया था।

"क्या हुआ सेजू..." मोहिनी बड़ी मासूमियत से बोली। सेजू का दिमाग काम नहीं कर रहा था..मोहिनी अभी बच्ची है और उनके चेहरे पर वो भाव..??? सेजू जैसे पागल होने वाली थी।

"तुम..इतना देखकर डर रही हो??? अभी तुम्हारे आगे कई चुनोतियाँ हैं सेजू!" हवा में फिर कोई आवाज गूंजी। मोहिनी मासूमियत से सेजू की ओर देख रही थी। सेजू को उसपर प्यार भी आ रहा था..और शक भी हो रहा था। मगर वह क्या कर भी क्या सकती थी। उसने मोहिनी से हिम्मत जुटाकर कहा..."मैं कब पढ़ चुकी हूं?? मोहिनी??"

"अरे! तुम कहानियों की रानी हो..तुम्ही ने तो कहा था..तुमने सारी कहानियां पड़ी हैं।" मोहिनी की यह बात सुनकर सेजू को कुछ सहूलियत सी तो हुई मगर उसे अब मोहिनी पर भी शक होने लगा था..उसने मोहिनी को लिटा दिया और खुद भी लेट गई.. सेजू के मन में बहुत अजीब अजीब विचार आ रहे थे...मगर वह "छी.. मैं इतनी नन्ही सी बच्ची पर भी शक कर रही हूं..मैं ऐसा सोच भी कैसे सकती हूं??? वह बच्ची हैं..वह कैसे??? नहीं मुझे शांति से सो जाना चाहिए..और सुबह उठकर आगे के लिए सोचना चाहिए।" ऐसा सोचते हुए सेजू की नींद लग गई।

■■■
"मां! हमारा मोती हमें कहीं दिखाई नहीं देता...वह हमें मिल तो जाएगा न?" बीच जंगल में मचलते हुए मोहिनी अपनी मां का पल्लू झँझकोरते हुए बोली।

"हाँ! हाँ! बेटा.. वह मिल जाएगा..आप रोइये मत!" रानी के मोहिनी को समझाया.."सेजू! तुम..वहां खड़ी क्या देख रही हो??"

"कुछ नहीं रानी जी...मैं देख रही हूं कि, वो दोनों कबूतर कैसे झगड़ रहे हैं..मैं भी अपने दोस्तों से झगड़ती थी। ऐसे ही.." सेजू की यह बात सुनते ही रानी जोर जोर से हँस पड़ी.."सेजू! तुम कितनी पागल हो.." और हँसती रही।

"माँ! मुझे उन दोनों कबूतरों में से एक चाहिए।" मोहिनी ने गंभीर होकर उन्ही कबूतरों की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा जिनकी बात सेजू खुद कर रही थी। यह सुन कर रानी खुश हो गई..और उसने कहा.."क्या सच में बेटा???" रानी का काम अब आसान हो गया था.."तो अब तुम्हें मोती तो नहीं चाहिए???" रानी ने थोड़ा गंभीर होकर पूछा।

"नहीं मां! मोती मुझे छोड़ कर चला गया..अब उसे हम अपने पास क्यों बुलाएं..?? अब हम इनमें से एक को लेंगे।"

"लेकिन! राजकुमारी! आप इन दोनों को अलग क्यों कर रहीं हैं?? इन्हें पिंजरे में रखना पाप होता है..हमें किसी को अलग नहीं करना चाहिए। मेरे दोस्त आज मुझसे दूर हैं!"

"दोस्त!" रानी ने सेजू की बात सुनकर चौकते हुए कहा। सेजू को कुछ याद आया और उसने रानी की बात नजरअंदाज करते हुए पुनः राजकुमारी से कहना शुरू किया.."राजकुमारी..इन्हें पिंजरे में मत रखिये, न ही इन्हें एक दूसरे से जुदा कीजिये।"

"मां! मुझे चाहिए!"

मोहिनी का गंभीर स्वर सुनते ही रानी ने अपने सैनिकों को कबूतर पकड़ने की आज्ञा दी।

■■■
"हमारे पास ज्यादा समय नहीं है मनीष..आज की रात सबसे खतरनाक रात है हमारे लिए.. यहां हम.."
"तुम चुप भी करो..प्रिया! तुम जानती हो हम कैसी जगह पर हैं??"

मनीष और प्रिया आपस में बातें कर रहे थे..बहुत ही खामोशी से। उस गुफा में सभी बेहोश पड़े थे, कुर्सियों पर बंधे हुए सभी स्टूडेंट्स.. अब तो देवीना भी उन्ही की कतार में थी। तभी यकायक वहां कोई घण्टी बजी..बिल्कुल जैसे कोई वक़्त आ गया हो..किसी काम का। उस घण्टी की आवाज सुनते ही सबको होश आने लगा। सबको...

"अब वक्त हो गया है अपना मिशन शुरू करने का।"

"हां! मनीष..मुझे पता नहीं आज इतनी घबराहट क्यों हो रही है!"

"चिंता मत करो बस विश्वास बनाये रहो सब ठीक होना है!"

"हूं...!" प्रिया और मनीष कुछ तैयारी करते हुए खड़े हुए।

प्रिया ने देवीना के कान में एक ब्लूटूथ लगा दिया..और देवीना के बालों से ढक दिया था देवीना पूरी तरह होश में आ चुकी थी..वह खुदको छुड़ाने की लाख कोशिशें कर रही थी, देवीना ही नहीं बल्कि जितने स्टूडेंट्स रस्सियों से बंधे थे वह अपनी पूरी ताकत उन रस्सियों से छूटने में लगा रहे थे। उनके मुंह पर पट्टी बंधी हुई थी जिससे वह कुछ बोल नही पा रहे थे।

"प्रोफेसर.. तूने मुझे मौत के घाट उतारा था न???? अब तूँ देख..मैं तुझे कैसी मौत देता हूँ!" एक लंबा सा आदमी जिसकी सिर्फ पीठ दिखाई दे रही थी वह किसी कुर्सी से बंधे हुए आदमी से बात कर रहा था। जैसे सबकी नजरें उस आदमी को पहचान गयी थीं। सबकी आंखे उसे ही घूरने में व्यस्त थी।

वह लंबा आदमी घूमा और सबकी आँखे खुली की खुली रह गई..."हां! हां... चौकों चौकों... आज तुम सबका इतना बुरा हाल होने वाला है कि सोचकर ही रूह कांप जायेगी।" उस लंबे आदमी ने कहा। "प्रिया! और मनीष...तुम दोनों ने मेरा काम कितना आसान कर दिया है..इस प्रोफेसर और इन जालिमो को यहां लाकर, सबसे बड़ी दुश्मन ये..भोली भाली..दिखने वाली सेजू! इसी की वजह से आज तक...मैं इसे सबसे बद्तर मौत दूंगा..सबसे बद्तर!" कहते ही उस आदमी ने आंखे बंद की.. उसके चेहरे पर क्रोध टूटा पड़ रहा था; होंठो ही होंठो में उसने कुछ बका... और सामने वह नदी प्रकट हो गई। "यह वही नदी है, जिसमें डूबता छोड़कर; तुमलोग हिरन की चाल से भागे थे..मेरे साथ क्या क्या न घटा। क्या क्या नहीं!" दांत किसमिसाता हुआ वह आदमी क्रोधाग्नि में जलते हुए बोला। "जानना तो चाहोगे ही! चाहोगे न?? जरूर तुम्हारी चाहत पूरी होगी..मेरे दोस्तों जरूर…

प्रिया! दीपक और उसकी स्वीटहार्ट को इस नदी में धकेलो! और दिखाओ तमाशा।"

प्रिया लंबे लंबे कदमो से दीपक और काजल के पास पहुँची। सबसे पहले उन्हें रस्सियों से आजाद किया..और उस गुफा में ही प्रकट हुई नदी के पास ले आई। नदी बिल्कुल किसी जादू की तरह लग रही थी, वह कहां से निकल रही है और कहां को जा रही है कोई समझ नही पाता था, सब कुछ धुंधला। नदी के पास दीपक और काजल को खींच कर लाती हुई प्रिया..कहीं से भी साधारण लड़की नहीं लगती थी। उसके बाजुओं में इतनी ताकत थी कि वह दीपक जैसे हट्टेकट्टे लड़के को एक हाथ से खींचकर ला रही थी और साथ ही दूसरे हाथ में काजल को दबोचे हुए थी।

"अरे! इनकी चीखे तो निकलने दो..जैसे मेरी निकली थीं और किसी ने मुड़कर भी न देखा था। किसी ने भी नहीं।" वह आदमी घूरते हुए बोला। आदेश पाते ही प्रिया ने दोनों के मुँह से पट्टी हटा दी। दीपक और काजल के लिए एक आजादी ऐसे ही थी जैसे किसी बच्चे को तुरंत मर जाने के लिए जिंदगी दी जाती है। दोनों हांफ रहे थे..वह बोलने के लिए तड़प रहे थे मगर जीभ जैसे बस में ही न थी..अचानक..बहुत दबी हुई सी आवाज में दीपक चीख पड़ा..."ह..हमने क्या किया है..क्या??? कम से कम बताओ..उसके बाद जो भी सजा मिलेगी.. सुकून से भुगतेंगे "

"सुकून..?? सुकून..की सजा..ये कैसी सजा..हैं भाई?? सजा में भी सुकून होता है क्या?? सच मुच बौखला गया..वे! तूँ तो..सुकून, कि सजा...हा हा हा!
जरूर जरूर बताता..जरूर बताता क्या गलती थी तुम लोगो की..अगर तुम्हें खुद न पता होता। तुम 25...के 25 बहुत अच्छे से जानते हो, मेरी मौत कैसे हुई। कहाँ हुई...उसके जिम्मेदार तुम लोग भी हो..तुम लोग ही हो, तुम लोग ही! मेरे सारे सपने, सारे सपने राख हो गए..तुम लोग चाहते तो मुझे मौत से बचा सकते थे मगर तुमने नहीं! किसी ने भी मेरे बारे में नहीं सोचा...खड़ी क्या हो चखाओ इन्हें नदी की गहराई का स्वाद..."

प्रिया ने दोनों को नदी में धकेल दिया। "नहीं..नहीं..बचा लो हमें! बचाओ हमें..बचाओ.." दीपक ओर काजल दोनों ही तैरने की कोशिशें कर रहे थे मगर.. लग रहा था जैसे कोई नीचे से खींच रहा था।

क्रमशः...