भ्रम - भाग-4 Surbhi Goli द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भ्रम - भाग-4

बुढ़िया के गायब होते ही गुफा की चट्टानें चटकने लगीं थी। सारी कांच की शीशियां कंपन के साथ गिरने लगीं। सेजू को ना चाहते हुए भी अब उस गुफा से बाहर जाना था। उसने अपने कदम गुफा के बाहर जाने वाले रास्ते पर बढ़ा दिए। चारों तरफ से शीशियों के टूटने और चट्टानों के चटकने की आवाजें आ रहीं थीं। जगह जगह कांच के टुकड़े और उसमें शीशियों से निकला पदार्थ पड़ा हुआ था। सेजू अब असमंजस में पड़ गयी थी उसके इक ओर कुआँ तो इक और खाई थी। यहां गुफा में तूफान आया हुआ था और बाहर न जाने कौनसा शैतान उसका इंजतार कर रहा था।
इतनी मुश्किल परिस्थितियां शायद कभी सेजू ने अपने जीवन मे नही देखीं।
सेजू गुफा के द्वार तक आ चुकी थी। उसकी आँखों मे डर साफ साफ दिखाई दे रहा था। वह चारों और अपनी डरी हुई आंखों से देखती है न जाने क्या कहाँ से आ जाये।
तभी सेजू को किसी के पदचापों की आवाजें आना शुरू हुईं। सेजू फिर पत्थर की तरह वहीं जमी रह गई।
'न जाने कौन है? कैसा है? और क्यों है?' सेजू मन ही मन मे घुटी जा रही थी।
सेजू के सामने कोई साया था। सेजू ने देखते ही अपनी आंखों को हाथों से मूंद लिया।
अब यह कैसा नाद होने लगा था? इतना मधुर? इतना कर्णप्रिय? यह कैसा चमत्कार था? घंटियों की आवाजें, बुलबुल और कोयल की तुकबंदी, चिड़ियों का चहचहाना, झूमते पेड़ो की आवाजें, तैरती हवाओ की ध्वनियां, नदियों का मचलना, उनमें मछलियों का उछलता...सबकुछ सेजू के कानों में मां की लौरी सी मिठास घोल रहा था। फूलों की महक और सोंधी मिट्टी की सुगंध ने सेजू का मनमोह लिया। अब उसकी आँखों को बस महसूस कराना बाकी था कि वह किसी खूबसूरत प्राकृतिक स्थान पर है।
"वाओ…." सेजू ने अपनी आंखों से हाथ हटाते ही कहा।
"यह कितना खूबसूरत है? क्या इसके लिए ही मुझे उस डरावने सफर से गुजरना पड़ा। अगर हां! तो मुझे जरा भी अफसोस नही उसका। ये तितलियां कितनी अनोखी तितलियां हैं। इतनी बड़ी और खूबसूरत.. मैंने अपनी पूरी लाइफ में ऐसी तितलियों के बारे में नही सुना। और ये फूल...हाय! इनकी खुशबू..। ये नदी..ये नदी तो लगता है जैसे इसमें पानी नही अमृत भरा है..कितनी साफ है...रंगबिरंगी मछलियां पानी के अंदर से भी साफ साफ नजर आ रहीं हैं। ये पर्वत जिसपर हरे-भरे पौधे है..कितने सुंदर मोहक लग रहे हैं। इस धरती का मैं क्या करूँ इसमें ही समा जाऊँ? इसकी मिट्टी कितनी सुगंधित है..!
हाय! सेजू! तूँ कहाँ थी इतने दिन तक..पहले क्यों नही तूने वो कमरा खोला जहां से तूँ यहां आयी है। काश! मेरे दोस्त भी यहां होते..देवीना, समर, पीकू।
आई मिस यू अ लॉट, मय डिअर फ़्रेंड्स। मेरी प्यारी मम्मा आप भी मेरे साथ इस खूबसूरत पल को जीने के लिए नहीं हैं। मैं आपको भी बहुत मिस कर रही हूं।" सेजू ने खुशी से झूमते हुए कहा। वह खुदसे ही बातें करने लगी थी। उसके साथ अभी तक जो भी हुआ था उसे उसका कोई अफसोस नहीं था, शायद प्रकृति की इतनी न्यारी छटा ने सेजू को अपने मोह में बांध लिया था तभी उसे इस बात का ख्याल नही आया था कि वह अपनी दुनिया से बाहर है और यहां उसके साथ कुछ भी हो सकता है। वह बस सब कुछ भूल चुकी थी।
"अरे! सुनों! प्यारे पीले रंग के फूले-फुले फूल..तुम बताओ तो जरा। क्या मुझसे दोस्ती करोगे?
इन्हें देखो ये प्यारी तितली रानी कैसे आराम से आपका रंग चुराये जा रहीं हैं और ये भ्रमर गुन गुन गुन करते नहीं थक रहें..।" सेजू फूलों से बातें करती हुई किसी छोटी नादान भोली-भाली बच्ची की तरह लग रही थी।

अब वह नदी की ओर बढ़ती है बिल्कुल नटखट बच्चे की तरह अपने दोनों हाथ हवा में फैलाये हुए दौड़ती हुई जाती है। सेजू के बाल हवा में लहरा रहे थे…"प्यारी नदी तुम्हारे भीतर तो खूबसूरती की इक दुनिया बसी हुई है, जिनमे ये मासूम मछलियां नाचती गाती रहती है...और ये जलीयपोधे कैसे इन रंगबिरंगी तरह तरह की रूपरेखा में ढली कोमल मीनों को अपने अंचल में ढाल लेते हैं। लगता है जैसे उनके बच्चे खेल-कूद करके आये हो..और मां की गोद मे जाकर सो गए हो और तुम्हारा यह नीर..देखो तो जरा, तुम कितनी पवित्र हो! काश मैं तुम्हारे किनारों पर यूँही बैठी रहूँ और इस पवित्रता को खुदके पास महसूस करती रहूँ।" नदी के किनारे पर बैठी हुई सेजू उसके पानी से खेलती है और कहती जाती है।
"काश! काश मैं इक मछली होती...नीले रंग की, नारंगी रंग की, पीले रंग की..किसी भी रंग की होती मगर होती तो तुम्हारी पवित्र गोद में मेरा जीवन बीतता रहता।" सेजू की भावभंगिमाएँ उसके हृदय की पावनता को प्रकट कर रहीं थी। उसकी बातों में जो सादगी थी वह अतुलनीय थी।
"सुनो! बच्चे!" नदी के अंदर से इक आवाज आयी।
सेजू का ध्यान भंग हुआ। उसने पहले अपने आगे पीछे देखा। फिर जब उसे कहीं कुछ न दिखा तो उसने पानी को देखा।
"नही………" सेजू की चीख निकली।

■■■
"चलो! सब रेडी हैं फ्रेंड्स?" एक लड़के ने टूरिस्ट बस के पास खड़े होकर जोर से कहा।
"हां! मुझे भी तो आने दो…" सेजू अपने कंधों पर बड़ा सा बैग टांगे हुए दौड़कर बस की तरफ आते हुए कहती है।
"अरे! आराम से पागल!" समर सेजू को दोड़ता हुआ देख, कहता है।
15-20 स्टूडेंट्स बस के पास खड़े थे। सबके चहरे पर खुशी और उत्सुकता के भाव फूट रहे थे।
"चलिये! अब हम अपने सफर के लिए तैयार हैं। अब आप सब बस में अपनी अपनी जगहों पर बैठ जाइए।" स्टूडेंट्स को गाइड करने वाले टीचर ने कहा।
सब लोग बस में चढ़ चुके थे। देवीना और पीकू इक साथ बैठे थे और समर और सेजू उन दोनों की सीट के पीछे वाली सीट पर साथ में बैठे थे। बस स्टार्ट हो चुकी थी और अपनी गति पकड़ चुकी थी।
"ये रास्ते कितने खूबसूरत होते है न पीकू?" देवीना खिड़की के तरफ बैठी हुई रास्तों को देखकर बोली।
"हां! लेकिन देवू...इन रास्तों को ऐसे मत देखो ये जितने खूबसूरत होते है उतने ही डरावने भी। ना जाने हमे कहाँ से कहाँ ले जाए और मैं तो कहता हूँ तुम खिड़की के बाहर ही मत देखो क्या पता कोई तुम्हे बाहर की ओर खींच ले। और इक बात तुमने देखा नहीं है फिल्मों में लोग कहीं घूमने जाते है उनके साथ कैसे कैसे हादसे हो जाते है, कहीं बस खराब हो जाती है, कहीं रास्ते मे कोई मिल जाता है जो बिल्कुल विचित्र होता है..और फिर वह इक इक करके सबको मार डालता है..और….." पीकू धीरे-धीरे सारी बातें कह ही रहा था कि तभी…
"शट अप" देवीना खीझकर कहती है। "क्या बकवास किये जा रहे हो तबसे, मैंने इतनी सी बात क्या की तुमसे तुमने पता नहीं क्या क्या दिमाग चला लिया अपना। रास्ते खूबसूरत होते है..इस सेंटेंस पर तुमनें भाषण ही सुना दिया वो भी बेसिरपैर का।" देवीना गुस्से में चिड़चिड़ाकर पीकू से बोली।
"अरे! क्या हुआ देवू? क्यों भड़क रही हो इस नालायक पर।" समर ने देवीना से कहा।
"तूँ शांत बैठ समझा।" पीकू ने समर को डांटते हुए कहा।
"क्या हुआ देवीना, पीकू, समर यह कैसा शोर मचा रखा है?" टीचर ने तीनों से थोड़े गुस्से भरे लहजे में घूरते हुए पूछा।
"कुछ नहीं सर! यह पीकू फालतू बातें कर रहा है। कह रहा है ये रास्ते डरावने होते हैं तुम इन्हें मत देखो।" देवीना ने पीकू की शिकायत टीचर से करते हुए कहा।
"पीकू! तुम उठो चलो पीछे जाओ।" टीचर ने पीकू को आदेश देते हुए कहा।
"सॉरी सर! अब नही होगा।" पीकू कान पकड़ते हुए बोला।
टीचर ने कुछ देर पीकू की तरफ देखा और फिर अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। देवीना पीकू से रूठ कर फिर से रास्तों को देखने लगी और पीकू फिर अपनी किताब खोल कर पढ़ने लगा।
दोपहर के 12 बजे…
"डिअर! स्टूडेंट्स! हमें ट्रेबलिंग करते हुए पूरे 3 घंटे हो चुके है। अब हम सब पास में एक ढाबे पर रुककर कुछ खायेंगे-पीयेंगे फिर उसके बाद अपना सफर शुरू कर देंगे। हम 2 घण्टे में अपनी मंजिल पर पहुच जायेंगे… आपसब को जहाँ एन्जॉय के साथ-साथ वहां के बारे में बहुत सी जानकारियां भी जुटानी हैं यह काम भी हम बहुत मजेदार तरीके से करेंगे। क्या आप सब समझ गए मेरी बात को ठीक से..??"
"यस सर!" बस में सभी स्टूडेंट्स की आवाज इक साथ गूंजी।
"ओये! हीरो! व्हाय आर यु साइलेंट यार..? कुछ बोलो भी।" देवीना ने चुपचाप बैठे पीकू से मस्ती भरे अंदाज में कहा।
"कुछ नहीं यार! ऐसे ही।" पीकू ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा।
"अरे! गुस्सा हो गए क्या?" देवीना ने पीकू के बालो पर तेजी से हाथ घुमाते हुए कहा।
"नही! मैं नही होता गुस्सा। तुम्हारी कोई गलती भी नही है तो मैं गुस्सा कैसे हो सकता हूँ।" पीकू बड़े शांत ढंग से बोला।
"अच्छा?" देवीना ने कहा।
"हम्म" पीकू ने जबाब में कहा।
"चलो तो फिर यह बताओ? दूसरा भूत कहाँ है? साहेब!" देवीना आवाज को बदलने की कोशिश करते हुए बोली।
"कौन? देव?" पीकू ने देवीना की तरफ देख कर पूछा।
"जी! साहेब!" देवीना ने अपनी हँसी छुपाते हुए कहा।
"वो नहीं आया। मैंने उससे कहा भी था, की चल मैं बात कर लूंगा सर से। मगर उसने ही मना कर दिया आने से।" पीकू बोला।
"अच्छा..लेकिन क्यों?" देवीना ने पूछा और तभी बस एकदम से रुकी।
"चलिये! ढाबा आ गया है। आप सब बाहर आ जाइये बस से। देखिएगा देरी न हो। हमे टाइम पर अपनी मंजिल पर पहुँचना है।" टीचर ने खड़े होकर कहा।
"ओके! सर!" फिर इक बार सभी स्टूडेंट्स की आवाज साथ मे गूंजी।
सब बाहर निकलने लगे, पीकू और देवीना अपनी चल रही बात को भूल गए थे।
"यार ये ढाबा कितनी अच्छी जगह पर है न सेजू! देख कितना अच्छा लग रहा है यहां। मुझे तो लग रहा है यहीं अपनी मंजिल बना लें और यहीं रुक जायें हम सब।" समर ने तारीफ करते हुए कहा।
"हम्म.." सेजू ने सहमति दिखाई।
"पहले पानी पिया जाए।" समर ने ढाबे पर काम कर रहे इक लड़के की ट्रे से पानी का गिलास उठाते हुए कहा।
"तूँ भी न समर! पानी तो तूँ अपनी वाटर बोतल से भी पी सकता था न बस में ही।" देवीना ने समर से कहा।
"लो अब इन देवीना देवी जी की फालतू बातें.." समर आगे बोल ही रह था तभी…
"मत सुन!" समर की बात काटते हुए पीकू ने कहा।
देवीना खीझी।
सब एक टेबल पर बैठकर खाना खाने लगे तभी समर की नजर सेजू पर पड़ी।
"सेजू! तूँ ये खाना खा रही है या बस दर्शन करने के लिए सामने रखा है इसे?" समर सेजू से बोला।
"मुझे भूख नहीं है समर!" सेजू थोड़ी अलसायी आवाज में बोली।
पीकू, देवीना और समर तीनों सेजू को आँखे फाड़कर देखने लगे।
"क्या हुआ।" सेजू जरा सहम कर बोली।
"तूँ सेजू ही है न?" पीकू, समर और देवीना सेजू को आश्चर्य से घूरते हुए एक साथ बोले।
सेजू कुछ देर के लिए सोच में पड़ गयी और फिर हड़बड़ा कर बोली…."हां! क्या मैं तुम लोगो को कोई भूत दिखती हूँ?"
"हाँ!" पीकू, समर और देवीना फिर सेजू को घूरते हुए इक साथ बोले।
सेजू जड़ हो गई, उसके चेहरे पर पसीना उभरने लगा।
"हा.. हा.. हा" पीकू, समर और देवीना सेजू को देख कर जोर जोर से हँसने लगे।
"अरे! मोटी! तुझे भूख नही लगी। ऐसा हमने पहली बार देखा और सुना है तो हमे तो यही लगेगा न कि तूँ तूँ नहीं है।" समर ने अपनी हँसी पर नियंत्रण करते हुए कहा।

"प्लीज! हाँ! तुम लोग अब मेरा मजाक मत बनाओ। मुझे नहीं लगी भूख तो नहीं लगी बस।" सेजू ने कहा।
"ठीक है! मत खा भूतनी कहीं की।" समर ने खाते हुए कहा।
5 मिनट बाद सब बस में चढ़ गए और बस चालू हो गई।
"कब आयेगी यार वो जगह जहां हम जा रहे है।" पीकू की आगे वाली सीट पर बैठे दीपक ने कहा।
"बस आधा घण्टा और.." पीकू ने अपनी वॉच देखते हुए कहा।
"सर रास्ते में कुछ लोग खड़े हुए है..बस रोकने को कह रहे है?" बस ड्राइवर ने बस की स्पीड कम करते हुए टीचर से कहा।
"हां! भाई तो रोको। उनके ऊपर थोड़े ही चढ़ानी है।" टीचर ने मजाक करते हुए कहा।
"ओके! सर!" बस ड्राइवर ने आदेश का पालन करते हुए कहा।
टीचर और कुछ स्टूडेंट्स बस से बाहर निकले।
"बस यहां से आगे नहीं जायेगी।" बस को रोकने वाले आदमियों में से इक आदमी ने कहा।
क्रमशः….