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भ्रम - भाग-6

"तुम जानती हो रानी जी को लापरवाही बिल्कुल पसंद नहीं हैं। गलती से भी गलती न करना, वरना भगवान ही जाने तुम्हारा क्या होगा।" सेजू को समझाते हुए महल की एक दासी बोली।
सेजू यह सुन कर जरा घबराई, मगर उसे तो अब खतरों की आदत सी हो गयी थी अब बस उसे आगे बढ़ने की सुध रहती थी..आगे क्या होना है उसके साथ उसे उसकी परवाह नही रहती।
सेजू ने भी सभी दासियों की तरफ लहंगा-चोली पहन कर सिर पर घूंघट ले लिया था। और उसकी कलाइयों, गले, माथे पर आभूषण खिलने लगे थे। सेजू ने रानी के कक्ष का मार्ग पूछा तो एक दासी उसको समझाते बुझाते हुए खुद ही रानी के कक्ष की ओर ले जाने लगी।
"जरा संभल कर।" दासी ने सेजू के कक्ष के अंदर जाने से पहले कहा।
सेजू ने कुछ सोचते हुए हाँ में सिर हिला दिया।
रानी के कक्ष के बाहर भी दो सैनिक थे। सेजू ने उनसे अंदर जाने की इजाजत मांगी। उनमें से इक ने कक्ष के अंदर उपस्थित किसी दूसरी दासी से सेजू को अंदर भेजने के लिए पूछा।
"ठीक है जाओ।" सैनिक ने सेजू से कहा।
सहमी हुई सेजू ने कक्ष के अंदर प्रवेश किया.."प्रणाम रानी जी।"
बड़े से लकड़ी के आसन पर सिर ठिकाय बैठी रानी ने आँखे बंद किये ही पूछा.."तुम हमारा श्रृंगार करोगी?"
"जी..आपकी अनुमति से रानी जी!" सेजू ने सिर झुकाए हुए हाथ जोड़ कर कहा।
"हुन..तो तुम्हारा नाम क्या है?"
"सेजू..मेरा मतलब सेजल।"
"अरे! यह तो बड़ा नया है, सेजू! सेजल!" रानी ने आंखे बंद किये हुए ही धीमी हँसी के साथ कहा। "ठीक है..चलो! आओ..हमारा श्रृंगार करो।" रानी ने कहा।
सेजू आगे बढ़ने लगी। उसे अपने भीतर कुछ तेजी से भागता महसूस हो रहा था। यह उसका हृदय ही था।
सेजू ने सबसे पहले रानी के निकट पहुचते ही हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाया। और फिर रानी के रेशमी बालों को अपने कोमल हाथों से बांध लिया।
"रानी जी! कंघी..किधर मिलेगी।" सेजू ने डरते हुए पूछा।
सेजू की बात सुनकर रानी खिलखिला कर हँस पड़ी.."तुम कहीं दूसरे राज्य से आयी हो क्या?" रानी ने खिलखिलाते हुए ही पूछा। "तुम्हे हमारे बारे में कुछ नहीं पता..?? अरे! हम तो सोचते थे। यहां की चींटी भी हमारे बारे में बूझती होगी। मगर यह क्या? इतनी बड़ी..विहाई लड़की हमारे विषय में...सच हम भी बड़े बुद्धू हैं, अपने आपको जाने क्या समझ बैठे थे।" रानी हँसते हुए ही बोलती जा रहीं थीं।
सेजल का कलेजा मुँह को आ रहा था उसे रानी की बातें सुनकर बस यही ख्याल आता कि कहीं उसने कुछ गलती तो नहीं कर दी है।
"अरे! अरे! तुम तो सहम गयी.. हम तुमसे नाराज नहीं हैं।" रानी ने सेजू की ओर अचानक देखकर कहा। यहां रानी ने चेहरे पर निश्छल मुस्कान थी।
सेजू ने आंखे उठा कर रानी की ओर इक पल को देखा..और सेजू की घबराहट कुछ कम हुई। सेजू ने झट से आंखे नीचे कर लीं।
"देखो! हमें हमारे बाल बहुत प्रिय हैं, और हम खुदही इन्हें सुलझाते है..बड़े प्रेम से। तुम्हें बस इन्हें सुंदरता से बांधना है, और बहुत ही सावधानी से।" रानी ने अपने बालों को बहुत प्यार से आगे लाते हुए कहा।
सेजू को समझ नहीं आ रहा था कि रानी का यह कौनसा रूप है। उसे तो कुछ और ही बताया गया था दासियों द्वारा और वह देख कुछ और ही रही थी। इतनी सरलता, चंचलता..आंखों में स्नेह..सेजू ने रानी में अभी तक यहीं गुण देखे थे।
"अब जल्दी जल्दी हमें श्रृंगारित कर दो। हमे अपने और भी काम होते हैं।" रानी ने अपने लंबे और सुंदर बालों को पीछे फेंकते हुए कहा।
"जी! रानी जी!" सेजू ने रानी से कहा।
"हुन..हो गया न!" रानी ने अपना सिर दाएं-बाएं घुमाते हुए कहा।
"जी! रानी जी!" सेजू ने सिर झुकाए हुए कहा।
"अरे! चंपा! इधर को तो आओ जरा!" रानी ने कुछ दूरी पर खड़ी अपनी दासी को बुलाया। "देखो तो हम कैसे लग रहे हैं?" रानी ने पूछा।
"रानी जी! बड़ी सुंदरता से बाल सवारें हैं आपके इस लड़की ने।" दासी ने रानी की ओर देखकर कहा।
"अरे! क्या सच कह रही हो!" रानी ने खुशी से चहकते हुए कहा।
"चलो! हम तुम्हे ईनाम देंगे अब! बताओ क्या चाहिए?" रानी ने सेजू की ओर देखकर एक बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ कहा।
सेजू को अपना लक्ष्य याद आया..वह कुछ सोचने लगी।
तभी रानी ने उसे टोकते हुए कहा..."अरे! क्या कोई बेशकीमती चीज चाहती हो..जिसे मांगने से इतना डर रही हो, डर क्या रही हो सोच में ही पड़ गयीं।" रानी ने हँसते हुए कहा।
"रानी जी! चाहिए तो है..मगर अभी नहीं।" सेजू ने बड़ी शांति से कहा।
"अरे! अच्छा! तो यह बात है हां! तुम्हे लगता है हम तुम्हे देंगे नहीं..?? वह इनाम जो तुम मांगोगी..तुम क्या हमे ऐसा समझती हो।" रानी ने बच्चों की तरह रूठते हुए कहा।
"नहीं! रानी जी! ऐसी बात नहीं है।" सेजू ने कहा।
"तो कैसी बात है??" रानी ने बहुत तेज स्वर में पूछा..रानी के व्यवहार में गंभीरता थी।
सेजू यह देख कर घबरा गई। उसे समझ नहीं आया कि अचानक से रानी को क्या हो गया।
"हा.. हा.. हा.. देखो देखो डर गई ये इतनी बड़ी विहाई लड़की।" रानी ख़ूब जोर से ठहाका लगाकर बोली।
"रानी जी..मुझे आपसे कुछ जानना है।" सेजू ने घबराते हुए कहा।
"जानना है..???? क्या जानना चाहती हो??" रानी ने फिर गंभीरता से पूछा।
सेजू फिर डर गई अब उसने फैसला कर लिया था कि जब तक रानी का व्यवहार ठीक से नहीं जान लेगी तब तक कुछ भी नहीं पूछेगी। और न ही कोई शक होने देगी उसे की वह कौन है।
"अरे! पूछो, क्या हुआ?? हम तो मजाक करते हैं। तुम तो डर ही जाती हो।" रानी ने सेजू को कुछ सोचते हुए देखकर कहा।
"जी! नहीं रानी जी! मैं बाद में पूछ लूँगी।" सेजू ने कहा।
"हां! हां! क्यों नहीं अब आप हमारी महारानी जो हैं..और हम आपकी दासी, तो हम आपके लिए हर घड़ी उपलब्ध रहेंगे? हैं न!" रानी ने सेजू को देखकर कहा।
"जी! नहीं रानी जी! यह आप क्या कह रहीं है! क्षमा.." सेजू आगे कहा ही रही की..."ठीक है जब जी चाहे पूछ लेना। हम तो यूँही मजाक कर रहे थे।" रानी ने सेजू की बात काटते हुए कहा और कोई किताब लेकर पढ़ने बैठ गईं।

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"क्या हुआ? सब ठीक रहा न?" जयंत ने सेजू से धीमें स्वर में अपने आजू बाजू आंखे घुमाते हुए पूछा।
"यार! मैं रानी का स्वभाव नही समझ पा रहीं हूँ। बाकी दासियों ने मुझे उनसे बचकर रहने के लिए कहा है..और जब मैं खुद रानी से मिली तो वो बिल्कुल विपरीत हैं दासियों की कही बातों से। और हां! कुछ जगहों पर रानी का व्यवहार दासियों के मुताबिक ही लगा। मगर फिर वो हँस देतीं थीं। यह सब क्या है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।" सेजू ने परेशान होते हुए जयंत से पूछा।
"मैं तुम्हे बता रहा हूँ..तुम किसी भ्रम में हो पक्का! मगर तुम इससे इतने आसानी से नहीं निकल सकतीं। तुम्हे क़ई खतरों का सामना करना पड़ेगा।
अरे! वो सब छोड़ो यह बताओ...रानी कैसी दिखतीं हैं..बहुत सुंदर होंगी न! परियों की तरह..या अप्सराओं जैसी, हैं न!"
"पहले यह बताओ..मैं कौनसे भ्रम में हूँ? और हां! सबसे पहली बात तुम्हें कैसे पता की मैं भ्रम में हूँ?" सेजू ने जयंत की आंखों में देखते हुए गंभीरता से पूछा।
"क्योकि जिस मीनपरि की तुम बात कर रही हो वैसी मीन परियां सिर्फ कहानियों में ही होती हैं। यह सब काल्पनिक बातें हैं..समझी तुम।" जयंत से सेजू की आंखों में आंखे डालकर कहा।
"जब तुम्हे पता है मैं भ्रम में हूँ तो तुम मेरे लिए इतना खतरा क्यों मोल ले रहे हो?" सेजू ने उझलन के साथ पूछा।
"कैसा खतरा?" जयंत बोला और हँस दिया।
सेजू अब अपने मन के मायाजाल में उलझने लगी थी। तरह-तरह के ख्याल सेजू के दिमाग मे नाचने लगे। जयंत आखिर क्या कह रहा था और सेजू खुद क्या कर रही थी उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था.."मेरे साथ यह हो क्या रहा है..यह मैं कर क्या रही हूं, गॉड मुझे बचाओ।" अपने सिर को दोनों हाथों की पूरी ताकत से दबाये हुए सेजू चिड़चिड़ा कर बोली। उसकी आंखें सब कुछ भूल जाना चाहतीं थीं। उसके कानों को सारी बातें विसार देनी थीं, उसके मन को परमशान्ति की आश थी। उसके दिमाग को हजारों सवाल या जबाब नही केवल एक मौन चाहिये था।

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शाम 7 बज कर 5 मिनट पर..
"उफ़..यह भी करना पड़ेगा?" देवीना ने सभी स्टूडेंट्स को एक साथ बैठ कर खाने की तैयारी करते देखा।
शाम ढलती जा रही थी, पास के दो पेड़ो पर इलेक्ट्रिक लालटेन टंगी थी। सभी लोग आग को घेरे हुए अपने अपने कामो में व्यस्त थे। सभी के चेहरे खुशी से चमक रहे थे। मिस्टर गर्ग (टीचर) स्टूडेंट्स के साथ ही बैठ कर सब्जियां काट रहे थे।
"हमें अपना काम कब करना है मनीष??" एक तंबू के बाहर खड़ी किसी लड़की ने अपने पास खड़े इक लकड़े से पूछा।
"अभी वक़्त नहीं हुआ प्रिया! हमे अभी इंतजार करना होगा।" मनीष ने आग के पास बैठे सभी स्टूडेंट्स की ओर देखकर कहा।
मनीष और प्रिया दोनों सभी के साथ जा कर बैठ गए..और बिल्कुल सहज हो गए।
"हम सबको कल सुबह इस जंगल की सबसे खूबसूरत जगह देखने जाना है। चूंकि वह जगह जंगल के बहुत अंदर है इसलिए हम सबको सुबह जल्दी निकलना होगा। हमें वहां से लौटने में शाम भी हो सकती हैं, जो नहीं जाना चाहता हो वह यहीं पर रुक सकता है।" मिस्टर गर्ग स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए बोले।
मिस्टर गर्ग की बात सुन, मनीष और प्रिया इक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराये।
"सर! ऐसा कौन होगा जो नहीं जाना चाहेगा?" मनीष ने मिस्टर गर्ग से सवाल किया।
"वैसे तो हमारे सभी स्टूडेंट्स काबिल है, हो सकता है सभी हमारे साथ चलें।" मिस्टर गर्ग ने सभी की ओर नजर घुमा कर देखते हुए कहा।
"यस सर! हम सब चलेंगे।" पीकू ने कहा।
चौथे तंबू में सेजू, किसी के आने का इंतजार कर रही थी। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरी दिखाई दे रहीं थीं।
"देवीना! तुम आ गई? मुझे तुमसे बहुत ही जरूरी बात करनी हैं।"
"क्या बात है सेजू, बोलो न तुम इतनी घबराई हुई क्यों लग रही हो?" देवीना ने सेजू के चेहरे पर डर के भाव देखकर उसके चेहरे को दोनों हथेलियों में भरते हुए पूछा।
"वो जो लड़की हमारे साथ यहां रह रही हैं न!" सेजू धीरे स्वर में जल्दी-जल्दी बात खत्म करने की कोशिश कर रही थी। " उसको और इक लड़के को जो समर और पीकू के साथ रुका हुआ है। उससे.." सेजू आगे बोल ही रही थी कि..
प्रिया ने सेजू और देवीना के बीच आते हुए अपनी जैकेट निकालकर चटाइ पर रखे बैग्स पर फेंकी।
"हे..तुम में कोई मेनर्स है या नहीं? इक तो बिना कुछ बोले हम दोनों के बीच आ गईं और ऊपर से ये हरकत।" देवीना ने प्रिया पर चिल्लाते हुए कहा।
"यार! कितना चिल्लाती हो? मेरे कान फोड़ोगी क्या.." प्रिया ने देवीना के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए कहा। लग रहा था जैसे उसे देवीना की बात से कोई फर्क नहीं पड़ा था।
"बेवकुफ़ लड़की!" देवीना ने मुँह बनाते हुए धीरे से कहा।
प्रिया एक किताब लेकर चटाइ पर रखे बैग्स पर सिर रख कर लेट गई। सेजू और देवीना अपनी अपनी जगह पर सो गयीं।

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"हां! कहो क्या करना है कल हमें?" प्रिया ने पूछा।
"धीरे बोलो अभी भी कुछ और उल्लुओं की तरह अपने-अपने टेंट में जाग रहें हैं..याद रहे किसी को कोई शक न हो हम पर।
सुनों! कल जब सब जंगल के अंदर मरने जायेंगे। तब हम अपना काम कर देंगे।" मनीष ने प्रिया को समझाते हुए कहा।
"इसका मतलब हम कल इन सबके साथ जंगल के अंदर नहीं जायेंगे?" प्रिया ने मनीष की कॉलर पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए पूछा।
"अब ये तुम क्या कर रही हो? छोड़ो मुझे.." मनीष ने प्रिया को झिड़कते हुए कहा।
"तुम मुझसे प्यार करते हो या नहीं? कहीं कल तुम मुझको ही तो.." प्रिया आगे कुछ कहती इसके पहले ही मनीष ने प्रिया के होठो पर उंगली रख दी..."शायद कोई आ रहा है प्रिया। चलो हमको अब टेंट में लौटना चाहिए। बाकी की बात कल सुबह तुमको पता लग जायेगी।"
"पता लग जायेगी से क्या मतलब है तुम्हारा।" प्रिया ने मनीष को घूरते हुए पूछा।
"अरे! चुप करो! मरवाओगी तुम तो।" मनीष ने प्रिया को चुप कराते हुए कहा। "देखो तुम्हे मुझ पर भरोसा है न! कल हम दोनों अपना काम करके यहां से छूमंतर हो जायेंगे और फिर जैसा तुम कहोगी मैं वैसा ही करूंगा। ठीक?? लेकिन अभी चलो।"

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सब लोग जंगल के अंदर चलने के लिए तैयार थे। सेजू एकटक प्रिया को ही घूरे जा रही थी। तभी देवीना ने पीछे से सेजू के कंधे पर हाथ रखा। सेजू हाथ के स्पर्श से थोड़ी सहमी मगर जैसे ही देवीना ने उसका नाम लिया वह सहज हो गई।
"तुम चिंता मत करो सेजू! मैंने समर और पीकू को भी बता दिया है..हम चारों मिल कर इन दोनों की हरकतों पर ध्यान देंगे, और इन्हें कुछ भी गलत नहीं करने देंगे।" देवीना ने सेजू के कंधे पर हाथ रखे हुए ही प्रिया और मनीष को घूरते हुए कहा।
"हुन्न.." सेजू ने देवीना की बात कर सहमति जताई।
"माफ! करना कल मैं आप सब को मनीष और प्रिया से मिलवाना भूल गया। ये लोग आप सबके सीनियर हैं जो कॉलेज से पढ़ कर निकल चुके हैं। यह हमारे साथ इस जगह से कुछ जानकारियां जुटाने के लिए आये हैं। जो इनके लिए बहुत जरुरीं हैं।"
"ओह्ह..हेलो सर! हेलो मेम!" मिस्टर गर्ग की बात सुनते ही समर ने मनीष और प्रिया की और हाथ बढ़ाते हुए कहा।
कुछ ही देर बाद सब लोग अपने अपने जरुरीं सामान के साथ जंगल की ओर बढ़ गए। बहुत घने और बड़े बड़े पेड़ो के बीच निकली एक पतली सी पगडंडी पर स्टूडेंट्स, टीचर और गार्ड एक कतार में चल रहे थे, मिस्टर गर्ग सभी स्टूडेंट्स के आगे आगे चल रहे थे और मिस्टर गर्ग के आगे दो गार्ड्स और सभी स्टूडेंट्स के पीछे दो गार्ड्स अपनी अपनी राइफल्स के साथ बढ़ रहे थे। वातावरण में पक्षियों और कीटों की आवाजें सुनाई दे रहीं थी। जंगल घना होने के कारण धूप कहीं कहीं ही दिखाई पड़ती थी।
"मनीष! क्या हम भी इन्ही के साथ जायेंगे?" प्रिया ने अपने आगे चल रहे मनीष से बहुत धीमी आवाज में पूछा।
"हम काफी दूर आ गए हैं सर! मुझे लगता है अब हमें थोड़ा आराम करना चाहिए।"
"हां! सर! मैं तो बहुत थक गई हूँ।" मनीष की बात सुनते ही इक लड़की ने कहा।
"ठीक है वहां देखो वहां एक नदी है और उसके पास क़ई बड़े बड़े पत्थर भी हैं हम सब वहीं चल कर बैठते हैं।" मिस्टर गर्ग ने नदी की ओर उंगली से इशारा करते हुए कहा। नदी कुछ ही दूरी पर थी।
"उफ्फ..!" देवीना
"क्या इतने जल्दी थक गई?" एक बड़े से पत्थर पर बैठता हुआ समर देवीना को देखकर बोला।
"ओहो! आप नहीं थके न! आप जाइये आगे बढिये।" देवीना ने व्यंग करते हुए समर से कहा।
"तुम लोगों को लड़ना ही आता है क्या?" पीकू ने समर और देवीना से कहा। "अरे! लो अब इसे देखो...इधर आजाओ वापिस वहां कोई मगर न उड़ा ले जाये तुम्हे।" पीकू ने सेजू को नदी के किनारे बैठ कर पानी से खेलते हुए देख कहा।
"अरे! सेजू इधर आ तूँ जल्दी।" समर पत्थर से कूद कर नीचे उतरा। "तुझे पता है न? 3 साल पहले क्या हुआ था तेरे साथ इंदौर ट्रिप पर।" समर ने सेजू को किनारे से उसका हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा।
"अरे! ये बच्चे क्या कर रहे हैं वहां?" मनीष से बात करते हुए मिस्टर गर्ग ने समर और सेजू को नदी के किनारे पर देख कर पूछा।
"तुम लोग पागल तो नहीं हो न? वहां से जल्दी लौटो।" मनीष ने चिंता जताते हुए गुस्से में समर और सेजू से कहा।
मनीष को सेजू और समर की चिंता करते हुए देख प्रिया ने मनीष को शक की निगाह से देखा।
"सेजू! अगर उस दिन पीकू वहां नही होता तो तुम आज हमारे साथ नहीं होतीं याद है न तुम्हे? तुम्हे अपना ख्याल रखना होगा सेजू!" देवीना ने सेजू को समझाते हुए कहा।
"10 मिनट हो गए है अब हमें बढ़ना चाहिए।" मनीष ने सबसे कहा।
"मुझे तो बड़ा मजा आ रहा है..यहां कितना सुकून है।" सभी स्टूडेंट्स एक दूसरे से बातें करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
अब पीकू, देवीना समर और सेजू को पीछे छोड़ कर मिस्टर गर्ग के साथ चल रहा था। "सर जिस जगह हम जा रहें हैं वहां ऐसा है क्या..?? कोई बड़ी नदी या झील या फिर कोई किला..या कोई मंदिर..झरना?? इनमें से कुछ।"
"पीकू बेटा! तुम वहां चलो फिर तुम खुद देखकर कहोगे..ये क्या है?? यह तो मैं सोच भी नहीं सकता था।" मिस्टर गर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ओके सर!" पीकू ने बिना किसी सवाल जबाब के कहा।
कुछ देर बाद सब लोग एक बहुत ही भयानक जगह पर खड़े थे। जहां पेड़ो पर चमगादड़ों का कुटुंब बसा हुआ था। चारों तरफ से भयानक आवाजें सुनाई देतीं थीं।
"वो कुआँ देख रहे हो..आप सब?" मिस्टर गर्ग ने एक बड़े क्षेत्र में फैले कुएं की और इशारा करते हुए कहा।
"हां! सर मगर वह आपने तो कहा था कि हम जिस जगह पर जा रहे है वह बहुत ही खूबसूरत जगह है..लेकिन यह तो.." पीकू आगे कुछ कहता इसके पहले मिस्टर गर्ग बोले.."वह खूबसूरती कुएं के भीतर है..जो भी देखना चाहता हो कूद जाए।" मिस्टर गर्ग ने सभी स्टूडेंट्स की ओर गम्भीरता से देखते हुए कहा।
"क्या सर..आप भी मजा..." उन्ही में से इक स्टूडेंट्स हँसते हुए कह ही रहा था, तभी मिस्टर गर्ग.."मैं कोई मजाक नहीं कर रहा।"
"सर! अगर ऐसी बात है तो मैं वह खूबसूरती जरूर देखना चाहूंगा। चाहे उस कुएं से फिर वापस आ सकूं या नहीं। क्योकि..रिस्क जिंदगी का दूसरा नाम है और जबसे पैदा हुआ हूँ रिस्क में ही तो जी रहा हूँ..तो आज कैसे पीछे हटूँ।" समर की आंखों में डर का कोई साया नहीं था वह कुएं को निहारता जा रहा रहा। मिस्टर गर्ग की बात सुनकर समर जोश से लबालब भर चुका था।
"अबे ये! पागल हो गया है क्या? इस जगह को जरा ध्यान से देख..ऐसा लग रहा है की यहां कभी भी कुछ भी हो जाएगा। और वो कुआँ.. उसके अंदर की खूबसूरती के चक्कर में इतनी खूबसूरत जिंदगी की बाट लगाएगा क्या, और बेटा! क्या गारंटी है कि उसके अंदर कुछ देखने जैसा भी होगा? तू मेरी सुन और ये हीरोगिरी पेंट के पीछे वाली जेब मे खिसका दे चुपचाप।" समर की क्लास का एक लड़का उसके पास खड़ा होकर धीमें स्वर में बोलता चला गया।
"बंटी भाई! मेरी चिंता करने के लिए थैंक्स.." इतना कह कर समर ने सेजू को इक बार प्यार से देखा और कुएं की ओर बढ़ गया।
"ये क्या चल रहा है? यहां तो सब उल्टा ही हो रहा है मनीष!" प्रिया ने मनीष से कहा।
"सब ठीक हो रहा है मेरी जान! तुम बस देखती जाओ..इन सबको इस मौत के कुएं में मैं कैसे उतारता हूँ।" मनीष की आंखों में हैवानियत झलक रही थी।
क्रमशः...


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