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भ्रम - भाग-7

"रुक जाओ समर!" देवीना ने दौड़ते हुए समर के पास जा कर उसे रोका। "मैं जानती हूं कि तुम बिना मुसीबत की जिंदगी को जिंदगी नहीं समझते और हमेशा खतरों का इंतजार करते हो, जो आज तुम्हारे सामने है, लेकिन क्या तुम इन खतरों के लिए सही और गलत पर भी ध्यान नहीं दोगे..??" देवीना ने समर को सभी से कुछ दूर ले जाकर कहना शुरू किया...."जरा सोचो हमारे टीचर जो हमे खुद अपने साथ लाये हैं, वह क्या पागल हो गए हैं जो हमे ऐसे काम करने के लिए उकसा रहे हैं? तुम जानते हो न! हमारे गर्ग सर कितने अच्छे हैं, वह हमसे इतनी बेफिक्री के साथ ऐसा करने को कैसे कह सकते हैं? जरा इस जगह को देखो यह ही कितनी अजीब है और कुए में क्या कोई जादू है जो वहां खूबसूरती नजर आयेगी??" देवीना कुछ देर रुक कर बोली.."तुम पागल मत बनो..समर! और हाँ! तुम्हे इक और बात बतानी है, जो सेजू ने मुझे आज सुबह बताई..मनीष और प्रिया के बारे में।" देवीना इसके आगे कुछ कहती कि तभी मनीष उन दोनों को पास आकर खड़ा हो गया उसके चेहरे पर देवीना और समर के लिए शक के भाव दिखाई दे रहे थे।
"क्या हुआ सर! आप हम दोनों को ऐसे क्यों घूर रहे हैं?" समर ने मनीष से पूछा।
"मैं तुम्हे रोकने आया हूँ समर! तुम उस कुएं में मत जाओ।" मनीष समर को देखकर बोला।
समर को देवीना की बातें समझ में आने लगीं थीं। माहौल बिल्कुल ठंडा पड़ गया था। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। किसी को समझ कुछ नहीं आया कि आगे क्या करना है और क्या नहीं।
तभी मनीष ने अपने बैग से एक किताब निकाली और अपना हाथ ऊपर उठाकर सबको वह किताब दिखाते हुए कहा..."इस किताब में इस कुएं के बारे में सबकुछ लिखा हुआ है..अगर हम लोग यहां आयें हैं तो हमें कुछ न कुछ लेकर ही यहां से जाना चाहिए। इस किताब में केवल चित्र हैं कोई शब्द नहीं। आप बस इसे ग्रुप में देख सकते है।"
प्रिया ने मनीष को टोकते हुए धीरे से कहा..."ये तुम क्या कर रहे हो मनीष??"
मनीष ने प्रिया के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। देवीना ने मनीष के हाथ से किताब छीन ली और अपने दोस्तों के साथ उसे देखने लगी। इसी तरह सभी स्टूडेंट्स ने वह किताब देख ली थी।
"सर! यह तो बहुत ही इंटरेस्टिंग है। तभी मैं सोचू आपने समर को जाने से रोका क्यों नहीं।" किताब को देखते हुए पीकू मिस्टर गर्ग से बोला।
मिस्टर गर्ग ने खामोशी पहन रखी थी। सभी लोग कुएं के अंदर जाने के लिए उत्सुक थे। मगर देवीना के मन मे कुछ और ही चल रहा था। सेजू की आँखे मनीष और प्रिया पर ही टिकीं हुई थीं।
समर, पीकू और बाकी लोग कुएं के अंदर जाने की तैयारी में जुट गए.."देखो वह लताएं देखो..क्यों न हम उनका रस्सी की तरह इस्तेमाल करके कुएं के अंदर उतरें?" सभी ने अमर की बात पर सहमति जताई और सब लताओं का इस्तेमाल करते हुए कुएं के अंदर उतरने लगे। लगभग आधे से ज्यादा स्टूडेंट्स कुएं के अंदर पहुंच चुके थे। अब समर, सेजू, पीकू, देवीना और कुछ लोग बाँकी रह गए थे।
"सर! आप सब भी हमारे साथ चल रहे हैं न?" पीकू ने मिस्टर गर्ग से सवाल किया।
"नहीं! एक ही घण्टे की बात है, तुम सब घूम कर आओ मैं यहीं रुक रहा हूँ।" मिस्टर गर्ग ने पीकू से कहा।
"हां! पीकू मैं और प्रिया भी आ रहे है।" मनीष ने कहा।
"ठीक है पीकू, और सेजू तुम लोग भी आगे बढ़ो।" देवीना ने कुछ सोचते हुए कहा।
बाकी लोग सेजू और पीकू भी अब कुएं के अंदर पहुँच चुके थे।
"समर और देवीना तुम लोग भी जाओ? हम दोनों पीछे से आतें हैं।" मनीष ने प्रिया की ओर देखकर कहा।
"नहीं! सर! मैं नहीं... मुझे बहुत ही डर लग रहा है। पहले आप और मेम चले जाइये। मैं समर के साथ आऊंगी।" देवीना कुएं के अंदर झांक कर डरते हुए बोली।
"तो क्या हुआ पहले और बाद से क्या होता है मिस देवीना? आप पहले समर के साथ चली जाइये...क्या परेशानी है??" मनीष ने देवीना को घूरते हुए अपनी आवाज को संभालते हुए कहा।
"नहीं! सर! हम दोनों बाद में आयेंगे।" देवीना ने समर की बाह पकड़ते हुए कहा। अब समर को भी समझ नही आ रहा था कि देवीना ऐसा क्यों कर रही है क्योकि समर जानता था कि देवीना ऐसी चीजों से तो कभी नहीं डरी।
मनीष ने देवीना की तरफ बढ़ते हुए घूरकर कहा.."ठीक है!"
मनीष के कदम देवीना की ओर बढ़ते ही चले जा रहे थे। देवीना को मनीष पर जरा भी विश्वास नहीं था। उसकी धड़कने तेज होतीं जा रहीं थीं.."तो तुम्हारा डर मुझे ही निकालना पड़ेगा?" मनीष देवीना के बिल्कुल नजदीक पहुँच चुका था।
समर, देवीना को गुरते हुए मनीष की आँखों में देखे जा रहा था। तभी मनीष ने देवीना का हाथ पकड़ा और उसे कुएं की तरफ खींचते हुए ले जाने लगा। तभी समर ने देवीना का हाथ पकड़ लिया और देवीना को मनीष के द्वारा इस तरह खींच कर ले जाने का विरोध किया।
"तभी कुएं के अंदर से एक जोरदार चींख सुनाई दी..." समर और देवीना का ध्यान उस चींख पर चला गया मगर मनीष के चेहरे पर कोई आश्चर्य नहीं था वह बस देवीना को घूरे जा रहा था।
"बताओ मुझे अंदर क्या है? बताओ वहां मेरे दोस्त हैं।" देवीना ने मनीष की कॉलर पकड़ने की कोशिश करते हुए चीख कर पूछा। उसकी आँखों में गुस्सा साफ नजर आने लगा था।
"इतनी इच्छा है जानने की तो खुद ही देखकर आओ न!" इतना कहते ही मनीष ने देवीना को कुएं के अंदर ढकेल दिया।
कुएं के अंदर देवीना की चीख गूंज गयी।
समर यह देख कर तय नहीं कर पा रहा था कि वह क्या करे। वह बस कुएं में ही झांकता रह गया। जैसे ही समर को होश आया उसने मनीष की कॉलर पकड़ ली और उसे एक पत्थर की ओर फेंक दिया..जिससे मनीष का सिर खून से सराबोर हो गया। समर का अब खुदपर कोई काबू नहीं बचा था वह लगातार मनीष की ओर बढ़ता जा रहा था और चीखते हुए उसपर अपने हाथों और पैरों से वार करता जा रहा था। तभी पास खड़े चारों गार्ड्स ने समर को पकड़ लिया मगर समर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। वह लगातार खुदको गार्ड्स के हाथों से आजाद करने की भरपूर कोशिशें कर रहा था।
"शांत हो जाइए समर बाबू! अब बहुत नाटक हो चुका है आपका। बेचारे पर और कितना अत्याचार करेंगे।" मिस्टर गर्ग ने समर के कांधे पर हाथ रखते हुए कहा।

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"वाह भाई यह सुरंग तो काफी दिलचस्प लग रही है! देखतें हैं आगे क्या मिलता है।"
"पीकू! अभी तक समर और देवीना का कोई अता-पता नहीं चला है हम कैसे ओर आगे बढ़ सकते हैं उनके बिना। मुझे लगता है हमे उनका इंतजार करना चाहिए।" सेजू ने चिंता जताते हुए कहा।
"हां! इस बात पर तो हमनें ध्यान ही नहीं दिया है।" पीकू ने सुरंग के द्वार की और देखते हुए कहा। कुएं के तल से कुछ ऊंचाई पर इक गोलाकार सुरंग का रास्ता बना हुआ था। देवीना कुएं के तल पर पड़ी सूखी पत्तियों और कचड़े में गिरी पड़ी थी। उसके पैर में इतनी ऊंचाई से गिरने पर मोच आ गई थी और वहीं पड़े नुकीले पत्थरो ने उसके शरीर पर जगह जगह घाव बना दिये थे। देवीना दर्द से कराह रही थी। उसे कुएं की दीवारों और कचरे के सिवा उस कुएं में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। अब वह जोर जोर से चींखने लगी थी "समर मुझे बचाओ.." मगर उसे किसी के आने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं पड़ रही थी।
"बहुत देर हो गयी है सेजू और पीकू अब हमें आगे बढ़ना चाहिए हो सकता है समर और देवीना नहीं आ रहे हो। मिस्टर गर्ग भी तो अकेले थे। हो सकता है उन्ही के साथ रुक गए हों और हाँ.. मिस्टर गर्ग ने हमसे एक बात कही थी। टाइम उन्होंने कहा था "एक ही घण्टे की बस बात है।" तो देखो 15 मिनट हो चुके हैं और हमे अभी तक ऐसा कुछ नहीं दिखा जो मनीष सर की बुक में हमने देखा था। हमें आगे बढ़ना चाहिए गाइस!" अमर के पास खड़ी 'रिनी' ने सबको समझाते हुए कहा।
"हां! सेजू, रिनी ठीक कह रही हैं.. हमे आगे बढ़ना चाहिए। और फिर एक घण्टे की ही तो बात है न!" पीकू ने सेजू से कहा।
"लेकिन पीकू!"
"ओके! गाइस अब हम बढ़ते हैं।" सेजू के आगे बोलने से पहले ही रिनी ने कहा और आगे बढ़ने लगी। सभी लोग सुरंग को घूरते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। सुरंग में जगह जगह मकड़ियों के जाल लगे हुए थे। कहीं कहीं मधुमक्खियों के छत्ते और चिमगाड़े दिखाई दे रहीं थी। जब कोई बोलता था तो उसकी आवाज गूंज जाती थी। बहुत दूर तक आ जाने के बाद सब लोग थक कर चूर होने लगे। सभी वहीं बैठ गए। किसी ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली तो किसी ने खाने का सामान...
"अरे! महारथियों..यहां हम पिकनिक मनाने नहीं आये हैं! क्या तुम लोग? नाश्ता पानी लेकर बैठ गए।"
"अरे! भाई पीकू मैं तो सोच रहा हूँ कुछ देर सो भी लूँ! देख न भाई! कितना शांति है यहां..."
"अरे! टॉर्च बुझा देती हूं..फिर यही शांति तुझे खाने दौड़ेगी समझा..?" मोहित की बात सुन कर तान्या अपनी टॉर्च ऑन-ऑफ करते हुए बोली।
तभी वातावरण में एक आवाज गूंजी.."स्वागत है आपका इस सुंदर नगरी में, मेरे भाइयों और बहिनों।"
"अबे! ये कौन है..?? हम कोई ड्रामा देखने आए हैं क्या जो ये ऐसे स्वागत कर रहा है।" मोहित अपने कान खड़े करके बोला।
सभी के चेहरों पर उस आवाज को सुनकर 12 बज चुके थे। अब सबकी आंखे डरते डरते उस अंधेरी सुरंग में उस शख्स को तलाश रहीं थीं जिसकी आवाज ने सबको आश्चर्य में डाल दिया था।
तभी सेजू की ओर वाली दीवार से एक बहुत मोटी चट्टान किसी दरवाजे की तरह खुली। सेजू को बिल्कुल अंजादा नहीं था कि उसके पीठ पीछे क्या हो रहा है। सभी ने उस चट्टान के खिसकने की आवाज सुनी थी। मगर सेजू उस आवाज को यहां वहां देख रही थी। "सेजू..सेजू..तेरे पीछे देख।" मोहित ने सेजू को सावधान करते हुए कहा। यहां सभी लोग इस नजारे को देख कर हैरान थे। आखिर ये उनके साथ क्या हो रहा था।

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यहां परेशान हुई सेजू अपना सिर पीट-पीट कर मरी जा रही थी। वह किस भ्रम में जी रही है उसे कुछ पता नहीं लग पा रहा था। तभी उसके पीछे से एक आवाज आयी...
"दासी!"
सेजू ने यह आवाज सुनते ही अपने सिर पर घूंघट ले लिया था। उसने उस शख्स की ओर घूमते हुए कहा.."जी!"
"आज! शाम को राजा जी की बेटी..राजकुमारी मोहिनी का जन्मदिन समारोह है। इसलिए तुम सबको मेहमानों की देखदेख और खान-पान पर पूरा ध्यान देना है किसी भी तरह की भूल होने पर निश्चित ही दंड दिया जायेगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने काम को पूरी निष्ठा से करने का प्रयत्न करो।" इतना कह कर सेजू के सामने खड़ा शख्स चला गया।
सेजू के सामने से जाने वाला व्यक्ति और कोई नहीं खुद सुभासा था जिससे सेजू उस भयानक जंगल मे मिल चुकी थी। सुभासा को देखकर सेजू को फिर मीनपरि की बातें याद आने लगीं थी मीनपरि ने कहा था सुभासा एक ईमानदार आदमी है वह तुम्हे मेरे बारे में कुछ नहीं बतायेगा लेकिन तुम राजा से यह राज उगलबा सकती हो।
"सेजू! आप हमारा श्रृंगार कर दीजिए। हमें हमारी बेटी का श्रृंगार करना है आखिर आज हमारी राजकुमारी जी के जन्म की 5वी सालगिरह है। हम खुद उन्हें अपने हाथों से सजायेंगे।" रानी ने अपने मुखड़े को शीशे में बहुत गुरुर से देखते हुए कहा।
"जी! रानी जी!" सेजू ने रानी को देखकर कहा।
रानी तैयार हो चुकी थी, और अब वह अपनी बेटी राजकुमारी मोहनी के कमरे की ओर बढ़ने लगीं थीं। सेजू ने तभी रानी को टोकते हुए कहा.."रानी जी क्या मैं भी आपके साथ आ सकतीं हूँ।"
"जरूर!"
अब सेजू और रानी एक बड़े से खूबसूरत दरवाजे के सामने खड़ी थीं।
"प्रणाम रानी जी!" द्वार पर खड़ी दासियों ने रानी के सामने सिर झुकाते हुए कहा। और दरवाजे खोल दिए।
पूरा कमरा खिलौनों से भरा हुआ था। एक बहुत ही खूबसूरत पलंग के पास कांच के पॉट में एक बहुत ही प्यारी छोटी सी रंगीन मछली तैर रही थी। कमरे में लगी एक बहुत बड़ी खिड़की जिसके बाहर से सांझ का फीका सा चाँद झांक रहा था और गुलाबी शाम अंगड़ाइयां लेती दिखाई पड़ती थी। उसी खिड़की के पास एक सुनहरे रंग का पिंजरा लटका हुआ था..जिसका दरवाजा खुला हुआ था और उसके भीतर सन्नाटा पसरा हुआ था। कमरे के भीतर यहां वहां फूलों से भरे हुए गुलदस्ते महक रहे थे।
"मेरी राजदुलारी कहाँ हैं आप??" रानी ने बड़े प्यार से कमरे में यहां वहां नजर घुमाते हुए पुकारा। "आइये हम आपको आपकी प्यारी गुड़िया "कली" की तरह सजा दें!" कली राजकुमारी मोहिनी की गुड़िया (खिलौना) का नाम था जिससे वह बहुत प्रेम करतीं थीं।
रानी के बहुत पुकारने पर भी राजकुमारी मोहिनी का कोई उत्तर नहीं मिला न ही वह कहीं दिखाई दे रहीं थीं।
फिर कहीं से सिसकने की आवाज आयी। सेजू का ध्यान उस आवाज की ओर खिंचा। सेजू पलंग की ओर बढ़ने लगी। सेजू ने पलंग के दायीं ओर देखा तो कोई छोटी सी बच्ची खूबसूरत फ्रॉक पहने हुए किसी नन्ही सी गुड़िया को अपने सीने से लगाये रो रही थी। उस बच्ची का चेहरा सेजू को पूरा नहीं दिखाई पड़ रहा था।
"राजकुमारी मोहनी!" सेजू ने बहुत आहिस्ता से उस बच्ची की ओर देखते हुए पुकारा।
वह बच्ची बिल्कुल शांत हो गयी। उसने धीरे धीरे अपना चेहरा सेजू की ओर करना शुरू किया। सेजू ने उस बच्ची को देखा तो वह देखती ही रह गयी बिल्कुल फूल सा चेहरा, पंखुड़ियों से हाथ, हिरनी की सी कोमल आंखे, बहुत ही खूबसूरत बाल मगर बिखरे हुए। पूरा तन.. कमल की भांति गुलाबी दिखाई पड़ रहा था।
"कौन हो तुम?" बहुत ही कोमल आवाज में मोहिनी ने मासूमियत से सेजू को देखकर पूछा।
"अरे! मेरे बच्चे! यहां क्यों छिपे हैं आप? और ये ये मोटे मोटे आंसू हमारी प्यारी की गुड़िया की आंखों में कैसे आये??" रानी ने मोहिनी को गोद मे लेकर उसके आंसू पोछते हुए पूछा।
"मां! हमारा मोती हमे छोड़ कर भाग गया।" मोहिनी अपनी मां के गले से लग कर रोते हुए बोली।
रानी ने उस सुनहरे पिंजरे को देखा और कहा.."मोती की इतनी हिम्मत की हमारी गुड़िया को उसके जन्मदिन के दिन छोड़ कर भागे। रुको! मैं अभी उसे ढूंढ़वाती हूँ।"
"नहीं! मां! उसे हम खुद ढूंढने जायेंगे और उसे ख़ूब डांट लगायेंगे की हमे छोड़ कर क्यों गया।" मोहिनी ने बड़ी मासूमियत से कहा।
"हां! कल हम और आप दोनों चलेंगे! और दोनों उसे ढूंढकर ख़ूब डांट लगायेंगे लेकिन अभी आप तैयार हो जाइए सारे मेहमान आ गये हैं और आपका इंजतार कर रहे हैं।"
"नहीं मां! जब तक आप हमसे वादा नहीं करेंगी। तब तक हम हमारा जन्मदिन नहीं मनायेंगे।" मोहिनी ने अपनी मां की गोद मे ही रूठते हुए कहा।
"कैसा वादा! मेरी गुड़िया!"
"यही! की कल हम और आप दोनों हमारे मोती को ढूंढने जाएंगे।" मोती मोहिनी का प्यारा तोता था।
"ठीक है बेटा! चलिये तैयार हो जाइए!"
"नहीं! मां! आपने वादा नहीं किया है।"
"अच्छा बाबा! वादा! अब तैयार हो जाइए ठीक है??"
महल बहुत ही खूबसूरती से सजा हुआ था। सभी के लिए बैठने के लिए बहुत ही सुंदर आसनों का इंतजाम किया गया था। पूरा राजदरवार तरह तरह के इत्रो से महक रहा था।
सेजू सभी को शरबत बांटती फिर रही थी। राज दरवार में एक सबसे अनोखे आसन पर राजा जी बैठे हुए थे और उनके पास ही रानी और रानी की गोद मे परियों की तरह सजी हुई राजकुमारी मोहिनी थीं। राजा के कुछ दूरी पर सुभासा बैठा हुआ था जो राजा का मंत्री था। सेजू सुभासा से खुदको बचाएं फिर रही थी। उसको घूंघट में रहने की आदत नहीं थी मगर यहां वह मजबूर थी।
"सु..सु..." जयंत सेजू को एक पर्दे से झांककर बुलाने की कोशिश कर रहा था। सेजू ने जयंत को देखा और वह उसके पास चली गयी। "देखो! अपना ख्याल रखना मैं अंदर नहीं आ सकता हूँ। ये लोग बहुत बुरे हैं अगर इन्हें जरा भी भनक लगी कि तुम यहाँ की नहीं हो और उनसे झूठ बोल कर उनके बीच बनी हुई हो तो वो तुम्हारी कैसी दुर्गति करेंगे यह तो वही जानते होंगे।"
"तुम मुझे डराने के लिए बुला रहे थे?" सेजू ने गुस्से में जयंत से पूछा।
"देखो! मैं बस तुम्हे सावधान कर रहा हूँ।" जयंत ने कहा।
तभी किसी ने सेजू को आवाज दी.."दासी!"
सेजू अपना घूंघट संभालते हुए शरबत के गिलासों से भरी थाली ले कर उस व्यक्ति के पास पहुँची।
उस आदमी ने शरबत का एक गिलास उठा लिया। वहां पर आए सभी लोग राजा रानियों की तरह ही दिखाई दे रहे थे।
सेजू और राजकुमारी मोहिनी की दोस्ती उनके कमरे में तैयार होने के दौरान हो गई थी। अब मोहिनी की नजरें सेजू को ही तलाश रहीं थीं तभी मोहिनी ने यकायक सेजू को देखा और वह जोर से चिल्लाई "सेजू.."
राजकुमारी की आवाज सुनते ही सभी का ध्यान राजकुमारी की ओर गया। सबलोग राजकुमारी को देखने लगे। सेजू को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे अब सबकी निगाहें उसी पर जाने वाली थी। आखिर राजकुमारी ने उसे पुकारा था और उसे उनके पास जाना ही जाना था। राजकुमारी की इस हरकत पर रानी ने उन्हें डांटा। मगर सेजू को तो अब जाना ही था।
सेजू के कदम राजकुमारी मोहिनी की ओर बढ़ने लगे। अब वहां कोई भी कोई हरकत नहीं कर रहा था। सहमी हुई सेजू को ही सबकी निगाहें घूर रहीं थीं।
"बच्चें! हैं वह क्या जाने दासी और दास किसी से भी मोह लगा लेते हैं "वहीं बैठे किसी व्यक्ति ने कहा।
सेजू ने अपने सिर का घूंघट और भी नीचे कर लिया था आखिर उसे सुभासा की नजरों से बचना बहुत ही जरुरीं था। जैसे ही सेजू राजकुमारी के पास पहुँची राजकुमारी ने सेजू के दोनों हाथ अपने नन्हे नन्हे हाथों में लेकर कहा "सेजू! तुम हमारे साथ खेलो न!" एक हट सी मोहिनी के कमल समान मुख पर दिखाई देने लगी।
"नहीं! राजकुमारी जी..आप अभी नहीं कल खेलियेगा, अभी सब आपके लिए आये हुए है न! हां! मगर हम एक काम कर सकते है..नृत्य..आपको नृत्य करने वाली गुड़िया पसंद है न! तो सेजू आपको नृत्य करके दिखायेगी।" राजा ने राजकुमारी को समझाते हुए कहा। राजा ने अब सेजू की तरफ निगाह की.."सेजू! हमारी राजकुमारी जी के लिए कोई सुंदर सा नृत्य कर दे दिखाओ। आखिर आज हमारी गुड़िया का जन्मदिन है..नृत्य तो होना ही चाहिए।" राजा ने सेजू को आज्ञा देते हुए बोले।
"सेजू! बेटा, अब तो तूँ गई! इस घूंघट में चलना दुस्वार हो रहा है अब नाचकर दिखा।" सेजू खुदकी ही परिस्थितियों पर व्यंग मारे जा रही थी। असल मे उसे मन ही मन रोना आ रहा था
सेजू के लिए बीच मे नाचने की व्यवस्था अन्य दासों के द्वारा कर दी गई थी।
सेजू ने अपने घूंघट से तनिक भी छेड़ नहीं की थी। उसने नृत्य मुद्राएं बना ली थी। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि बिना म्यूजिक के राधा कैसे नाचेगी??
रुकी हुई सेजू को देख कर सभी लोग गुटरगूँ-गुटरगूँ करने लग गए थे। सेजू अब सोच सोच कर पागल हो रही थी कि वह क्या करे।।
तभी सेजू ने खुद ही गाना गाना शुरू कर दिया और वह नाचने लगी। सभी जन गाना और सेजू का डांस देख कर सन्न रह गए थे "आखिर यह किस तरफ का नृत्य है, किस प्रकार के गीत हैं जो इस बेहद खूबसूरत दासी द्वारा गाये जा रहे हैं।"
नाचते-नाचते सेजू का सिर चकराने लगा था वह वहीं गिर पड़ी और उसका घूंघट जरा फिसल गया। लगभग सेजू का चेहरा सभी को दिखाई देने लगा था।
क्रमशः...


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