सेजू (सेजल) ने मुड़ कर देखा। तो वह चौक गई। पास खड़े सेजू के दोस्त भी आश्चर्यचकित हो गए। देव को भी कुछ समझ नही आ रहा था कि अचानक से ये कैसे प्रकट हुई, लेकिन देव समझ चुका था कि यही वह औरत है जिसके बारे में सेजू बात कर रही थी।
"जी..जी..नानी जी।" सेजू थोड़ी हड़बड़ा कर बोली।
"चलो तुम्हें कुछ दिखाना है।" कमलाबती ने सेजू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"मैं..आती हूँ अभी नानी जी, अपने दोस्तों को बाय बोल कर।"
सेजू की आँखों मे कमलाबती के लिए गुस्सा तो दिख रहा था। मगर जुबान पर उसका रंग नही चढ़ने दिया।
"बाय बोलने में कितना वक़्त लगता है। बताओगी..??"
कमलाबती कुछ देर रुक कर बोली "मैं खड़ी हूँ। देखती हूँ कितना वक़्त लगता है तुम्हे।"
"ओके फ्रेंड्स..फिर मिलते हैं।" सेजू के शब्दों में मजबूरी साफ झलक रही थी।
"ठीक है, आफत छूटी" समर ने बहुत धीमी आवाज में कहा।
"क्या? क्या कहा समर?" सेजू ने चिढ़ते हुए पूछा।
"कुछ नही। चलते हैं अब हम। आओ पिकू।" समर ने आगे बढ़ते हुए कहा।
देव की नज़रे कमलाबती को परखने में व्यस्त थीं। और सेजू के चेहरे की परेशानी उसे इस बात की वजह दे रही थी।
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"नानी जी! क्या दिखाना था आपको? " सेजू अपना गुस्सा पीती हुई कमलाबती से बोली।
"आओ..मेरे पीछे।" कमलाबती आगे बढ़ते हुए बोली।
"आज से तुम यहाँ रहोगी।"
"यहाँ..?" सेजू को जैसे यह मंजूर नही था। तेज स्वर में कहा।
"हाँ! और क्या? यहीं। वैसे भी तुम्हें नींद तो आती नही रातों में, और तुम्हें शौक भी तो है भूतों की कहानियों का। लिखने का पढ़ने का। और दिन में तो तुम ज्यादा वक्त घर मे बिताती नहीं न! तो यह जगह तुम्हारे लिए बिल्कुल ठीक है। तुम अब यहीं सोना, जागना, कहानियां लिखना, पढ़ना..जो करना है यहीं करना। ठीक है? सेजू!" कमलाबती ने इक झूठी मुस्कान के साथ कहा।
"नहीं! मैं यहाँ नही रहूँगी।" सेजू के लहजे में मजबूती दिखी।
मुड़ कर जाती हुई सेजू को रोकते हुए..
"हूं.. तो तुम यहाँ नही रहोगी? ठीक है तो फिर समझो गई तुम.."
कमलाबती कह कर चली गयी।
"यार ये है कैसी औरत! मेरे ही घर मे आकर मुझे ही डराती-धमकाती रहती है लेकिन मैं भी कम नहीं हूँ। इसका दिमाग ठिकाने भी मैं ही लगाउंगी।"
"ये..किसका दिमाग ठिकाने लगायेगी तूँ?" पीछे से सेजू की माँ आकर बोली।
"देखो न माँ, ये नानी जी मुझसे कह रही है कि मैं यहाँ रहूँ सबसे लास्ट वाले कमरे में। यहाँ कितना अजीब लगता है न! ठीक है मुझे भूत वाली कहानियां अच्छी लगती है तो क्या मैं भूत हूँ? जो ऐसे डरावने कमरे में अकेली रहूँ।" सेजू बच्चों की तरह बोली।
"अरे! वो उनको तेरा कमरा चाहिए है। उनको वहां अपना कुछ काम करना है। उन्हें अपने काम के लिए तेरा ही कमरा ठीक लगा इसलिए। उन्होंने मुझें भी बोला था। तू चिंता मत कर रात में मेरे साथ सोया करना जब तक वो है तब तक। ठीक है?" सपना सेजू को समझती हुई कहती है।
"ऐसा कौन सा काम करना है इन्हें!" सेजू आश्चर्य के साथ बोली। "माँ मुझे तो ये कम्मोबाई बिल्कुल ठीक नही लगती हां.. आप इन्हें जल्द से जल्द भगाओ यहां से। वरना मैं नही जानती। कुछ का कुछ.."
"अरे! चुप कर। क्या-क्या बोल रही है। वो ऐसी वैसी नहीं हैं। बस जरा चेहरे से गुस्से वाली दिखतीं हैं। बहुत अच्छी हैं वो। समझी! मेरे कमरे में आजा अपना सामान लेकर।" सपना सेजू को डाँटते हुए और समझाते हुए कहती है।
"उहुंहुँ...बाहर जाओ, मैंने तुम्हारा सामान कमरे में रखवा दिया है।" सेजू को सेजू के कमरे से बाहर रोकते हुए कमलाबती कहती है।
"इस कम्मो को तो मैं.." सेजू दरवाजे के बाहर से चिड़चिड़ायी।
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"यह टॉपिक आप सब कल पढ़ कर आयेंगे..अभी के लिए गुड डे!"
"यार ये प्रोफेसर है या तेन्थ क्लास के मास्टर जी! जब देखो तब यह पढ़कर आना। वह पढ़ कर आना। अपना काम करके चुपचाप निकल नहीं सकते?" समर अपनी बुक बंद करते हुये बोला।
"अरे! तो अच्छा ही है न कुछ पढ़ाई में दिमाग तो लगता है वरना यार मुझें तो जब तक कोई डांटे न, या कोई कहे न मेरा मन नही लगता पढ़ने में।" पिकू बेंच से उठता हुआ बोला।
"तुम्हारा मन और तुम्हारा दिमाग! बाप रे!" देवीना व्यंग कसते हुए आयी।
"चलो चले यार! सेजू ने तो आज क्लास ली नहीं। बाहर बैठी पत्तियों से बाते कर रही होगी।" देवीना बोली।
"हाँ! बेचारीं कितनी बेबस! न कहीं भाग पा रहीं होगी। न ही उसे भगा पा रहीं होगी। इस दुनिया मे कोई सुखी नहीं। सच कोई सुखी नही।" समर पत्तियों का हितैषी बना हुआ था।
देवीना कुछ हँसी कुछ मुस्कुराई। पिकू अपनी बुक हाथ में लिए हुए क्लास से बाहर निकला, समर और देवीना भी पीछे पीछे चल दिए।
"हेलो मिस.." समर सेजु के पास बैठता हुआ कहता है।
"हेलो" सेजू कुछ सोचते हुए कहती है।
"ऐसे यहां क्यों बैठी है सेजू? क्लास क्यों नहीं ली आज?" देवीना बेंच के पास आती हुई कहती है।
पलास की छांव तले बिछी सीमेंट की इक कुर्सी पर सेजू और समर बैठे हुए थे। देवीना कुर्सी के पीछे खड़ी हुई कुर्सी पर अपने हाथ के दोनों पंजे जमाये हुए थी। पिकू पलास से टिका हुआ अपनी किताब के पन्ने उलट पलट रहा था। सेजू और समर की आँखे बहुत दूर तक देखती है तो पेड़ो के कहीं घने कहीं उजड़े हुए देह। इन देहो तक जाने वाले रास्ते कहीं हरी दूब तो कहीं धूल से भरे हुए थे। पलास के अलावा भी कुछ पेड़ सेजू, समर, देवीना और पिकू के आस पास खड़े थे।
"मेरा न! मन नही कर रहा यार कुछ पढ़ने-लिखने का। अब तो मेरा स्टोरीज़ पढ़ने में भी दिल नहीं लगता। आज माँ के कहने पर कॉलेज आ तो गयीं लेकिन क्लास में जाने का.." सेजू अचानक से इक पल रुक कर बोली "खैर यह बताओ पिकू, देव चला गया क्या?"
समर ने सेजू की तरफ बड़ी गंभीर नजर से देखा।
"नही अभी नही गया, अभी तो आया है। अभी रुकेगा वो।" पिकू किताब में नजर टिकाए हुए कहता है। "पर क्या हुआ सेजू? तुम क्यों पूछ रही हो?" अब पिकू की नजर सेजू पर जा रुकी थी।
"कुछ नही, ऐसे ही पूछ रही हूँ।" सेजू उसी लहजे में बोली।
"ये मिस सेजू..क्या हुआ क्या है तुझे?" समर सेजू की ओर देखकर तेजी से कहता है। "क्यों मन नहीं लग रहा पढ़ाई में, स्टोरीज़ में?"
"मुझें नहीं पता। मैं जा रही हूँ अब।" सेजू बेंच से बैग उठाती हुई खड़ी होकर कहती है।
"अजीब बात है यार। सेजू बताओ मुझें, क्या हुआ तुम्हें? मुझे जानना है बस।" समर की बातों से हँसी खो चुकी थी। और अब गंभीरता का साया चेहरे पर दिखाई पड़ने लगा था।
"प्लीज! समर तुम अब इतने सीरियस मत हो जाओ। मैं ठीक हो जाऊंगी। ओके? अब मैं जाती हूँ शायद कल न आऊँ..बाय!"
सेजू समर को समझाते हुए व सबसे विदा लेते हुए कहती है।
अब देवीना, समर और पिकू बस सेजू को जाते हुए देख रहे थे। उनके बीच कोई चर्चा नही हुई।
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"आज एक हफ्ता हो गया भाई! सेजू ने अपनी शक्ल नहीं दिखाई है।" समर क्लास की बेंच पर बैठा हुआ बोला।
"रेस्ट करने दे यार उसे। शायद उसे समझ आ गया है की भूतो जैसी नेगेटिव चीजो के बारे में जानकारी निकालने से लाइफ में कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए उसका मन उन किताबो में भी नहीं लग रहा है।" पिकू किताब में कोई निशान लगाता हुआ बोला।
"क्या यार! रेस्ट करने दे! वो बीमार है क्या कोई? कम से कम यार बताती तो सही कि वो क्या सोच रही है। क्या फील कर रही है। ऐसा क्या हुआ की उसका मन नहीं लग रहा कॉलेज में, कहानियों में, स्टडी में।" समर कहता गया "मैंने कॉल भी की दो-चार बार लेकिन वो.."समर कहते हुए रुका। अब कक्षा में मास्टर जी आ चुके थे।
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"सेजल तुम्हे अब इन तस्वीरों में से कोई इक को चुनना है। तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य चाहिए। तो जाओ आज़माओ इन्हें। क्या यह सच्ची है? या सब इक मिथ्या है? जाओ..जाओ.. जाओ, आगे बढ़ो।"
"हाँ! हाँ मैं जाऊँगी, मुझें अपना लक्ष्य पूरा करना है। मैं इन तस्वीरों को आजमाउंगी।"
"सेजू..सेजू क्या हुआ तुझें उठ.." नींद में बड़बड़ाती हुई सेजू को सपना झकझोरते हुए कहती है।
"हाँ! माँ!" सेजू यकायक होश में आकर बोली।
"क्या हुआ है तुझे। रोज रोज इक ही बात बोलती है नींद में। अपना दिमाग शांत क्यों नही रखती? दिन भर पता नहीं क्या सोचती रहती है। कल से कॉलेज जाना शुरू कर दे, समझी! पढ़ाई लिखाई में दिमाग लगा बेटा!" सपना सेजू को पानी का गिलास देते हुए समझाती है।
सेजू कुछ बोले बिना ही सो जाती है।
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"क्या हुआ सेजल? ऐसे क्यों बैठी हो उदास? कुछ हुआ है क्या तुम्हें?"
"नहीं नानी जी। कुछ नहीं।"
गार्डन की हरी घास पर बैठी हुई सेजू कमलाबती के सवाल का जबाब देती है। यहाँ सेजू की बातों में गुस्सा, शरारत, शिकायत कुछ नही दिखा। सेजू के शब्दों में बड़ी सादगी और सरलता दिखाई दे रही थी।
"मुझें रोज रात इक सपना आता है। मैं दिन भर उस सपने के बारे में सोचती रहती हूँ। न चाहते हुए भी। मैंने कई जादुई कहानियां पढ़ी हैं। प्रेतों की, परियों की, एलियन्स की, बगैरह-बगैरह..
मेरी इच्छा है कि मैं भी किसी दिन वैसी ही कहानियां लिखूँ। जिसे कोई पढ़े तो पढ़ता ही रह जाये।
आज भी यह सपना मुझमें जीवित है। लेकिन मैं कोशिश करना भूल चुकी हूँ। मैं अब इक सपने में खो चुकी हूँ। मुझें समझ नही आता मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। मैंने आपको अपने मन की बाते बता दी है। नानी जी! क्या आपके पास इन बातों का कोई जबाब है?" सेजू नानी की ओर देख कर बोली।
कमलाबती ने सब कुछ सुना। मगर अनसुना करते हुए बोली।
"यह पेड़ बहुत पुराना है सेजल। इसे मैंने और मेरी बहिन मतलब तेरी माँ की माँ ने लगाया था। मेरी उम्र सत्तर साल हो गई है। दस साल की थी शायद तब पौधा रोपा था।" कमलाबती आम के पेड़ को देखते हुए बोली।
सेजु कमलाबती की ओर किसी मौन आश्चर्य से देख रही थी। उसे महसूस हो रहा था कि उसकी बात को जानबूझ कर दबाया गया है।
सपना और कमलाबती शायद कहीं जाने वाली थी। कमलाबती ने इशारा करते हुए सेजू से कहा
"ठीक है सेजल.." और कमला उठ खड़ी हुई। अब वह गार्डन से रवाना भी हो चुकी थी।
घर मे अब सिर्फ सेजू थी। कमलाबती और सपना बाहर जा चुकी थी। सेजल अभी भी गार्डन की घास पर लेटी हुई पेड़ को देखे जा रही थी। शायद सेजू की आँखे थक चुकी थी। समय भी बीत रहा था। नींद सेजू पर छा चुकी थी।
कुछ देर बाद सेजू घबरा कर उठी। शायद उसने वही सपना फिर देख लिया था। और अब सेजू अपने (माँ के) कमरे की ओर बढ़ रही थी। अचानक सेजू ने कहीं से कोई आवाज सुनी। लग रहा था जैसे कोई बड़ा सा दरवाजा खोल रहा था। सेजू आवाज की और बढ़ी। सेजू ने सामने जो देखा। शायद वो पहले कभी न देखा था। उसकी आँखें फटी की फटी रह गई थी। शरीर वही जम गया था। सेजू के तीनों ओर अंधेरा घिरा हुआ था। सामने इक दरवाजा था। बिल्कुल राजाओ-महाराजाओं के समय का दिखता था। सेजू को समझ नही आ रहा था कि उसके घर मे यह दरवाजा कहाँ से आया था। इस दरवाजे को तो सेजू ने आज पहली बार देखा जो ईंट पत्थरो की दो दीवारों के बीच खड़ा था। सेजल कुछ सोच कर आगे बढ़ने लगी। उसके कदमो में जैसे बेड़िया पड़ी थी। बहुत कमजोर चाल से जाती हुई सेजू के चहरे पर डर का साया साफ दिखाई दे रहा था। आखिरकार सेजू दरवाजे के नदजीक पहुच चुकी थी। पर अब उसे ढकेलने की, खोलने की हिम्मत तो सेजू को ईश्वर ही प्रदान कर सकते थे। सेजू ने मन ही मन न जाने किस देवता को गुहार लगाई। और सेजू ने दरवाजे को ढकेल दिया। सामने घोर अंधकार, जैसे जंगल मे अमावस्या देख रही थी। सेजू की इक पल को पीछे देखने तक की हिम्मत न हो रही थी। आगे जाने की सोचना तो सेजू के लिए जाने क्या था। सेजू करीब पांच मिनिट तक उस अंधकार में आँखे डुबाये रही। सेजू का चेहरा पसीने से नहा गया था। तभी यकायक सेजू ने सुना-
"आओ..चली आओ..तुम्हारा गंतव्य तुम्हारी राह में है..आओ सेजल।"
सेजू अचरज के मारे हक्की-बक्की वहीं के वहीं जड़ सी हो गयी। चारों ओर का अंधियारा सेजू को मुँह फाड़े देख रहा था। अब तो बल्बों ने भी आँखमिचौली शुरू कर दी थी। रौशनी तब डरावनी हो जाती है जब वह जलना-बुझना शुरू कर देती है। खेल खेलना शुरू कर देती है। फिर वह डर की दुश्मन नही साथिन सी जान पड़ती है। इस माहौल के बीच सेजू के प्राण मुँह को आ रहे थे। न जाने क्या होने को था। पूरा घर खाली..आवाजें सेजू सेजू पुकार रही थी। हवाएँ जाने कौन सा रूप धर कर आ रहीं थी। सेजू के बाल और कपड़े हवाओं के बस में थे। सेजू का तन कांप रहा था। आवाजे गूंज रहीं थी। हवाएँ साय-साय कर रही थी। रोशनी कभी जीती थी कभी मरती थी।
अब सेजू ने मुट्ठी कस ली। आँखे भींच ली। जैसे मन मे कुछ ठान लिया हो। होंठ कपकपा रहे थे। बाल हवाओ में ही खोए थे..बिजली अपनी हरकतों से बाज नही आई थी। मगर मगर मगर..
सेजू का कदम उठ चुका था। पग थरथरा रहै थे। वक़्त आँखे फाड़े बैठा था, सोचता है, देखता है..देखता ही जाता है..क्या होगा, क्या होगा..और सेजू का इक पैर दहलीज के पार..थम गया। सेजू की आँखे अभी भी पर्दे में थी, मुट्ठी खुली नही थी।
अब सेजू दहलीज के उस पार थी जिस पार अंधकार और सिर्फ अंधकार का ही संसार नजर आता था।
सेजू ने अब आँखे खोल ली थी। हृदय की धड़कनो की गति सामान्य भी न हुई थी। और अब सेजू को इस अंधेरे संसार से सामना करना था। वह धीरे-धीरे आगे बड़ती जा रही थी।
तभी सेजू यकायक चीखीं। उसके दोनों हाथ अपने दोनो कानो पर जम गये थे। आँखे बंद हो गयी थी। सेजू ने जैसे किसी की लाश पर पैर रख लिया था। सेजू ने तुरंत पैर उस चीज से हटा लिया था। उसका जी घबरा गया था। न जाने क्या था। जो सेजू के कोमल पैरों के नीचे आ गया था। सेजू ने अपने दुपट्टे से, अपने चहरे पर उभरा हुआ पसीना, बड़ी हड़बड़ी के साथ पोछा। अब सेजू उस जमीन को टटोल रही थी। जहाँ उस चीज के होने की संभावना थी। अंधेरे में कुछ, कुछ भी नजर नही आता था। सेजू के हाथ कुछ आ लगा। सेजू ने उसे छू कर उसके आकार का पता लगाया। सेजू की जान मे जान आयी। वह तो कोई कपड़े का खिलौना, शायद कोई गुड़िया थी। लेकिन जरा बड़े आकार की।
सेजू ने गुड़िया को अपने रास्ते से हटा दिया और आगे बढ़ गई। कुछ दो इक ही कदम रखें होंगे सेजू ने की सेजू के पैरों से कुछ लिपट गया। सेजू सकपका गई। उसके होश ठिकाने न रहे। सेजू ने मुड़ कर देखा। वह डरावनी सी दिखने वाली गुड़िया उसके पैरों से लिपटी हुई सेजू की ओर देख रही थी। उसकी डरावनी आँखे, खुले हुए लंबे भूरे बाल। और भयानक मुस्कुराहट। उस गहरे अंधकार में केवल वह गुड़िया ही नजर पड़ रही थी। सेजू ने उसे देखते ही उसका सिर पकड़कर उसे दूर फेका। और सेजू तीव्र गति से भागी।
सेजू पूरी तरह थक-हार चुकी थी। अब उसकी हिम्मत न थी और भागने की। वह बहुत दूर आ चुकी थी। मगर अंधेरा कहीं नही गया था। अभी भी वह अंधकार के घेरे में ही घिरी थी। सेजू जहां थक कर रुकी थी, वही अपने घुटनों के बल बैठ गई थी। उसकी सांसे बहुत तेजी से चल रहीं थीं। सारा बदन पसीने से नहा चुका था।
अब सेजू के कंठ को पानी और आंखों को रोशनी की जरूरत थी।
"मुझें पता है। यहां कोई है। कौन हो तुम? बताओ मुझें। मुझें क्यों यहां खींच कर लाया गया? बताओ मुझें? ये कैसा अंधेरा है? खत्म ही नही होता। मुझें रोशनी चाहिए है। मुझें बताओ ये मेरे साथ क्या हो रहा है? और क्यों? ये जादू जैसा क्या है? वो गुड़िया, कैसी गुड़िया थी? बताओ मुझें। मुझें निकलना है इस अजीब जगह से। मुझें निकालो यहां से। प्लीज! कौन हो तुम। तुमने मुझें आवाजे दे कर अंदर बुलाया था। अब क्यों कुछ नही बोलते। बोलो!"
सेजू थकी हुई हालत में भी, अपनी पूरी हिम्मत के साथ चिल्लाते हुए बोल रही थी। वह कहीं कहीं अटक जाती थी। उसका गला सूख चुका था। उसकी आँखें पसीज रही थी। उसे लगभग रोना आ गया था।
"तुम्हें आगे बढ़ना होगा। तुम्हारा लक्ष्य तुम्हारी प्रतीक्षा में है। बढ़ो आगे। तुम इतनी जल्दी हार नही मान सकती। तुम्हे अभी बहुत कुछ सीखना है..सेजल! यह क्या है? क्यों है? यह तुम्हें तब पता चलेगा जब तुम खुद इसे किसी को बताओगी। तुम केवल आगे बढ़ो। तुम्हे किसी पानी किसी रोशनी की कोई जरूरत नही। तुम्हे जहां जाना है। वहां तुम्हारा हौसला तुम्हे ले जायेगा। निडरता से कदम बढ़ाओ, और देखो तुम्हारा भविष्य तुमसे क्या चाहता है। तुम्हारा नाम केवल तुम्हारी डायरी तक सीमित रहता है या पूरे विश्व की जिह्वा पर इस पृथ्वी के अंतिम काल तक बना रहता है।
उठ जाओ! तुम्हें सब मिल जायेगा। बस चलती जाओ।"
यह वही आवाज थी जो सेजू को इस अंधेरी दुनिया में लाने के लिए द्वार से पुकार रही थी। केवल आवाज, कोई शरीर नही।
सेजू को समझ नही आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है वह क्या करें, क्या न करें। कुछ नही सोच पा रही थी। मगर उसे अचानक कोई अनुभूति हुई। और वह फिर चकित रह गई। उसे महसूस हुआ कि उसे अब सचमुच पानी की जरूरत नही थी।
वह जैसे बिल्कुल स्वस्थ हो गई थी। उसमे कोई ऊर्जा प्रविष्ट हो गयी थी। मगर उसका मन शांत नही हो पाया था। उसके जहन में हजारों सवाल नाच रहे थे।
सेजू फिर उठ खड़ी हुई और पुनः उसी तिमिरयुक्त पथ पर चल पड़ी। सेजू की आँखों से कुछ टकराया। सेजू ने अपनी पलके आँखों पर उतार दी। और अपना मुख मोड़ लिया। हाथ के पंजे की ओट भी सेजू ने अपनी आँखों को दी थी।
वह चीज..वह थी..आभा, वह थी..रोशनी। सेजू के चहरे पर मुस्कान खिल उठी। सेजू ने जैसे सुकून की सांस ले ली थी। अब सेजू को कोई उम्मीद नजर आ गई थी। सेजू ने उस रोशनी को अपनी आँखों मे चुभने से बचने के लिए खुदको जरा बाजू किया। और सेजू ने फिर देखा क्या?
सेजू ने देखा वह रोशनी अब एक सुनहरे रंग की किसी धातु की प्लेट पर पड़ रही थी। जिसपर कुछ लिखा हुआ था। सेजू उसको पढ़ने के लिए आगे बढ़ी। उस प्लेट पर हिंदी भाषा में, केवल और केवल आठ शब्द ही लिखे हुए थे। और वह थे-
"तुम इसे पढ़ कर कहीं और पहुँच जाओगी।"
सेजू अब किसी ऐसे कमरे में थी। जहां चारों ओर अलग-अलग आकार, आकृति के शीशें लगे हुए थे। बिल्कुल अलग शोभा थी उनकी। सेजू ने ऐसे शीशे तो अपने जीवन में कहीं कभी न देखे थे। कक्ष भी कोई आम नही था। बहुत ही विचित्र प्रकार के चित्र कक्ष की दीवारों पर बने हुए थे, कमरे में रखी वस्तुओं पर अनोखी आकृतियाँ थी। जैसे वह वस्तुएं, वह विचित्र चित्र कुछ बोल रहे थे।
सेजू ने पूरे कक्ष को एक नजर में देखा। सेजू को वह शीशे देख कर कुछ याद आ रहा था। वह एक शीशे की ओर बढ़ी। जैसे जैसे सेजू शीशे की ओर बढ़ रही थी, वैसे वैसे सेजू को शीशे का आकार बढ़ता हुआ महसूस होता था। सेजू शीशे को ही देखे जा रही थी। सेजू का प्रतिबिंब सेजू को निहार रहा था। जैसे सेजू खुदमे ही विलीन होने जा रही थी। तभी सेजू को जैसे होश आया। और वह रुकी। उसने अपनी पलके झपका ली थी। सेजू फिर अपने ही सवालों में उलझने लगी थी। उसे समझ नही आ रहा था कि वो उस जगह से इस जगह कैसे आ गयी। उसे पता था कि उसने क्या पढा था उस सुनहरी धातु की प्लेट पर। मगर वह इस जादू पर विश्वास नही कर पा रही थी। उसे शीशें के कुछ बाजू से एक कुर्सी रखी दिखी। वह वहां जाकर बैठ गयी। और कुछ सोचने लगी। कुर्सी के पास रखी एक टेबल पर कुछ किताबें रखी देखी। उसने उनमें से बीच वाली किताब उठा कर खोली। जिसके पहले पन्ने पर बड़े अक्षरों में "भ्रम की सीमा" लिखा हुआ था। उसने वह पन्ना पलट दिया। तो दूसरे पन्ने पर एक चित्र देखा जिसमें एक औरत एक सोती हुई लड़की के चेहरे को किसी अजीब तरह के पंख से सहला रही थी। सेजू ने उस पन्ने को कुछ देर देखा और अगला पन्ना देखा, जिसमें वह लड़की आँखे बंद किये हुई थी और उसके होठ कुछ बोलते से दिखाई दे रहे थे। उस लड़की का चेहरा बहुत परेशान दिखाई दे रहा था। जैसे वह बहुत अशांत थी और वह पंख वाली औरत उसके पास खड़ी उसे बहुत शान्ति से देखे जा रही थी। सेजू ने फिर अगला पन्ना देखा। जिसे देख कर सेजू को कुछ अजीब सा लगा। उस चित्र में वह लड़की बेड पर बैठी हुई थी और वह औरत उसे डांटते हुए कुछ समझा रही थी और वह औरत भी उस लड़की के साथ ही पलंग पर बैठी हुई थी। इस चित्र में उस औरत के हाथ से वह पंख गायब था। जिससे वह उस लड़की के चेहरे को सहला रही थी। सेजू इस चित्र को बहुत देर तक देखती रही। सेजू अगला पन्ना देखने ही वाली थी कि..उस कक्ष में कुछ अंधियारा सा छाने लगा था। सेजू डर गई थी। क्योकि अब वह पुनः किसी अंधकार का सामना नही करना चाहती थी। उसने वह किताब वहीं रख दी। और उठ खड़ी हुई। जैसे ही सेजू ने किताब रखी कमरा फिर उसी आभा से रोशन हो उठा। सेजू यह देख कर समझ चुकी थी कि उस किताब के अगले पन्ने में कुछ ऐसा था जिसे देख कर वह कुछ जान सकती थी। सेजू ने उस टेबल की और देखा की, वह हैरान रह गयी। अब वह किताब वहां से गायब थी। सेजू को कुछ समझ नही आ रहा था कि यह हो क्या रहा है और क्यों तभी उसकी नजर वहां रखी इक मूर्ति पर गयीं..
……...क्रमशः