उपन्यास-
रामगोपाल भावुक
अथ गूँगे गॉंव की कथा 24
अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति
अ
24
जन जीवन से जुड़ी कथायें ही भारत की सच्ची तस्वीर है।’
यह बात हमारे मन-मस्तिष्क में उठती रही है। किन्तु इस प्रश्न को हल करने से पहले मैं अपने इस गाँव की गढ़ी के इतिहास की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ। यह किला जाट राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के राजा बदन सिंह की वीरता प्रसिद्ध रही है। इसकी हम चर्चा कर चुके हैं।
राजा बदनसिंह के बाद इतिहास की एक प्रसिद्ध घटना यहाँ 17 मई 1782 ई0 में घटित हुई। अंग्रेज बायसराय वॉरेन हेस्टिंग और ग्वालियर के महाराजा महादाजी सिंन्धिया के मध्य हुई सन्धि के दस्तावेज इतिहास के ताने-बाने बुनने में लगे रहते हैं।
यहाँ प्रश्न आकर खड़ा होजाता है कि क्या राजा-महाराजओं का इतिहास ही देश का सच्चा इतिहास है। हिन्दुस्तान का सच्चा इतिहास जानने के लिये हमें यहाँ के जन-जीवन से जुड़ना पड़ेगा तभी हम अपने देश की सच्ची तस्वीर जान पायेंगे।
मानव विकाश का दस्तावेज ही सच्ची कहानी के रूप में ही लाया जाये और उसे जन-जन तक पहुँचाया जाये। उनके मन-मस्तिष्क में इतिहास की लकीरें अंकित की जायें। इससे आदमी को संघर्ष करने के लिये जो उर्जा मिलेगी वह हिन्दुस्तान की काया पलट देगी।
हम विश्वविद्यालयों में जो इतिहास पढ़ते और पढ़ाते हैं, उसमें अधिकांश लुटेरों का ही इतिहास जैसा है। इससे जन-सामान्य के मन पर कोई असर होने बाला नहीं है। इससे आदमी कुण्ठाओं के गर्त में डूबता चला जा रहा है। ऊँचे महल बालों की कहानी से क्या कुछ सीख मिल सकती है। फिर हमें बन्द कर देना चाहिये ऐसा इतिहास पढ़ना और पढ़ाना।
आदमी को संधर्ष की ओर जो प्रेरित करै वह कहानी ही इतिहास की सच्ची कहानी है।
जब एक जुट होकर सभी लोग समस्या के हल के लिये निकल पड़ते हैं, संघर्ष का नाद सुनाई पड़ने लगता है। उस स्थिति में समस्या का निदान निकल कर ही रहता है। समस्या के निदान के साथ ही किसी रचना का अन्त हो जाता है। इस तरह कुन्दन जाने कैसे -कैसे सोचे जा रहा था।
जयराज अपनी पत्नी लता को ग्वालियर से लिवा लाया था। यह हवा गाँव भर में फैल गई। गाँव के सभी लोग सोचने लगे-यह शहरी लड़की गाँव में कैसे रहेगी?
गाँव के साहूकार ठाकुर लालसिंह से तिवारी लालूराम अपनी बेटी के ब्याह के लिये ऊँची ब्याज की दर पर व्ययनामे की सर्त पर जमीन गिरवी रखकर कर्ज लेने को तैयार हो गये थे।
मौजी के मन में सुबह से ही उधेड़बुन चल रही थी-ज गाँव जो गूँगो है। जामें कोऊ ऐसो नाने ते अपईं बात हू कह सके। सब दबे-दबे से जी रहे हैं। सबई पइसा वारिन के गुलाम हैं। गाँव में चौपे भूखिन मर रहे हैं। साहूकारन कें भुसेरा भुस के छिके हैं। बी0डि0यो0 ससुर इतैक बदमास है कै जब टेम निकर गओ जब बाने पानी के काजें पम्प देवे की बात कही है। अब गाँव के बाकों का आग लगायेंगे। जे बातें मैं कह देतों सो सब कहतयें मुजिया नेता बन गओ है। आज अपयीं समिति की मीटिंग सोऊ कन्नो है। न होय तो मीटिंग को बुलउआ दे आऊँ। यह सोचते हुये वह गाँव में चला गया था।
रात्रि के सात बजे से ही लोग हनुमानजी के मन्दिर पर इकत्रित होने लगे। बातें चलने लगीं। रामहंसा ने प्रश्न कर दिया-‘काये मौजी भज्जा जे आदमी काये को इकट्ठे करे हैं?’
मौजी व्यंग्य के भाव से बोला-‘महाराज, इकट्ठे करिबे तो मेरें मोड़ी को ब्याह नाने। बात ज है बी0डि0यो0 ने खबर भेजी है, ते पम्प लयें चाहे ताय पम्प मिल जायगो। सरकारी लाभा लेवे में चूकनों नहीं चहिये।’
रमेश तिवारी झट से बोला-‘मौजी तेंने झें के सबरे साहूकार मरवा डारे।’
मौजी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा-‘ये तिवाई, ऐसे काये कहतओ?मैंने का कद्दओ?’
रमेश तिवारी व्यंग्य करते हुये झट से बोला-‘ओ....हो ...जैसें तोय पतो नाने।’
रमेश तिवारी की बात पर मौजी अनजान बनते हुये बोला-‘ महाराज, मेई बात झूठी मान रहे हो,मोय सच में कछू पतो नाने।’
रमेश तिवारी ने उसकी बात का उत्तर दिया-‘वेचारे साहूकारन के झाँ सरकारी आदमी चेक करिबे आओ। कौन के झाँ कितैक कितैक अनाज भरो है?’
मौजी ने पुनः आश्चर्य व्यक्त किया-‘ अरे! महाराज जामें मेरो नेकऊ कसूर नाने।’
रमेश पुनः बोला-‘वे तो बिना मौत के मर गये।वे सब तो तोय दोष दे रहे हैं। काउने श्किायत जरूर करी होयगी।’
मौजी ने आत्मनिवेदन किया-‘मैंने तो नहीं करी। फिर मैं कछू कहूँ, मेरो बद्दू नाम हो गओ है, तासे चाहें सो कह लेऊ।’
यह प्रसंग छूटा तो दूसरा चल निकला-काम के बदले अनाज मिलतो व कम तौलो जातो।
इसी समय गाँव के बाहर से किसी ने बन्दूक चला दी। बैठक में सभी की बोलती बन्द होगई। सभी के थूक सूखने लगे। प्राण गले तक आ गये। वे समझ गये कुछ न कुछ होने वाला है। सभी उठकर भाग जाना चाहते थे, किन्तु बड़ी-बड़ी बातें कहाँ चलीं गई। लोग उन्हें कायर समझेंगे इसीलिये भाग भी नहीं सके। वे समझ गये ये सब साहूकारों की ही कारस्तानी है।
खुसुर-पुसुर के स्वर में बातें होने लगीं। वे जान गये-जो कुछ हो रहा है मौजी के चक्कर में हो रहा है। का पतो मौजी कों मरैं चा रहे हों। यह सोचकर एक बोला-‘ मौजी तेरे तो प्रान गये। अब तें बचिबे बारो नाने।’
मौजी सब कुछ समझ गया। वह अपने को सहज बनाते हुये बोला-‘मैं तो बैसें ही मरो मराओ हों। मोय मारें से का फायदा। फिर मारें तो मार डारें। भज्जा हो तुम जिन डरपो। दुश्मनी तो बिनकी मौसे है। अब मोय मरनों तो है ही। एक बात को इन्तजाम और हो जातो, सोई मोय मरिबे में चैन मिलैगो।’
यह सुनकर कुढ़ेरा ने साहस करके उसकी अन्तिम इच्छा जानना चाही-‘झट से बोल, का कह चाहतो। पंचो जाकी ज बात और सुन लेऊ।’
किसी ने साहस करके प्रश्न कर दिया-‘ मौजी झट से सुना देऊ।’
मौजी कड़क आवाज में दनदनाते हुये बोला-‘जाटव मोहल्ला में चार चौपे भूखिन मर गये। एक दरखास बना लेऊ। मैं जाको इन्तजाम और कद्दऊँ। साहूकारन के झाँ भुस के भुसेरा भरे हैं। हमाये चौपे भूखिन मरै, ज बात ठीक नाने।’
इसी समय आठ-दस आदमी हनुमानजी के मन्दिर की तरफ आते दिखे। सभी यह देख चुप्पी साध गये। साँसें रुक गईं। कुछ अपरिचित लोग हाथों में डण्डे ,तलवारे और कुछ बन्दूकें लिये थे। उनमें से एक दादा टाइप लट्ठधारी आदमी हनुमानजी के चबूतरे की सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ ऊपर की सीढ़ी पर आकर खड़ा रह गया। यहाँ से आगे जूते पहने,चबूतरे पर पैर रखना उसे धर्म के खिलाफ लग रहा था, इसलिये उसने वहीं से खड़े होकर कड़क आवाज में पूछा-‘ इनमें से मुजिया को है। बाय हमाये नेताजी नीचे बुला रहे हैं।’
उसकी यह बात बज्र के प्रहार सी लगी, सभी समझ गये, ये अपरिचित लोग साहूकारो के भेजे हुये गुण्ड़े है। मौजी समझ गया-ये मुझे मारना चाहते हैं। अब मैं कायरों की तरह ही क्यों मरूँ। मरना तो है ही फिर वीरों की तरह क्यों न मरूँ। अब मोय सबै बतानो ही परैगो कै मुजिया चमार कैसो वीर आदमी हतो। यह सोचकर वह ऐंड़ाई लेते हुये वीरों की तरह सीना तान कर खड़ा हो गया। कड़क आवाज में बोला-‘अरे! महाराज ,मुजिया चमार सबन्न की आँखिन में इतैक खटक रहो है। कह देते तो मैं ज गाँव ही छोड़ जातो। फिरू मारनों है तो ज ठडों हों हनुमान जी बब्बा के सामू। मार डारो, हटंगो नहीं।’
नीचे से आवाज आई-‘अबे चमरा ,हनुमान जी के चबूतरा से नीचें तो उतर, फिर तोय और तेरे हिमायतियन ने पतो चल जायगो।’
जोर-जोर की कहा-सुनी की आवाजें गाँव भर में पहुँच रही थी।
कुन्दन का जब से स्थानान्तर हुआ था, उसी दिन से उसने अपना कार्य क्षेत्र उस दूसरे गाँव को बना लिया था। इसके बावजूद उसकी यहाँ नजर बनी रहती थी।
इस घटना के पूर्व ही, कुन्दन और मौजी को इस बात का अहसास हो गया था। इसीलिये उन्होंने इस समस्या से निपटने की तैयारी कर ली थी। कुन्दन बन्दूक लेकर पास के खेत में छिपा था। वह जान गया था-अब मौजी कहीं से कमजोर आदमी नहीं है।
गाँव के बाहर के गुण्डों की बन्दूक की आवाज एवं मौजी को मारने की ललकार उसे सहन नहीं हुई। उसने भी गुण्डों को डराने के लिये बन्दूक से एक फायर कर दिया। उसकी बन्दूक ने गोली उगली , इसके साथ ही कुन्दन ने ललकारा-‘मौजी को किसी ने छुआ भी तो ठीक नहीं होगा। आप लोग भी बचकर नहीं जा सकते। आप अपनी खैरियत चाहते हैं तो चुपचाप वापस लौट जायें।’
यह सुनकर किराये के गुण्डों के पाँव उखड़ गये। उन्हें चुपचाप लौटने में ही अपनी भलाई लगी। वे धीरे-धीरे एक-एक करके खिसक लिये। मौजी चबूतरे पर खड़ा-खड़ा उन्हें जाते हुये देखने लगा। मौजी का आत्मविश्वास गजभर का हो गया। उसने उन्हें ललकारा-‘अरे! मैं तो ज खड़ों हो, जो हटे ताको पन घटे। तुम तो अब आके निपट ही लेऊ।’
वहाँ कोई होता जो उसकी बात का उत्तर देता। बात शून्य में विलीन होकर सारे गाँव को सन्देश दे रही थी-मानवता का पक्ष लेना प्रभु की सबसे बड़ी सेवा है।
मौजी टड़ारते हुये मन्दिर से नीचे उतरा। कुन्दन भी वहाँ आ गया। मौजी के सामने पड़ते ही बोला-‘मौजी कक्का ,तें तो बड़ो हिम्मती है, ज सब तेरी जान को जमूरा है, बाकी सब तो घास को कूड़ा है।’
मौजी ने दुलार भरी आवाज में कहा-‘ ज बात नाने, तुम मोय न चेतातये तो आज हम कछू न कर पातये। ज अकाल की साल में भूखिन मन्नो पत्तो।’
कुन्दन ने उसे समझाया-‘ यह तो तुम सब की बजह से ही हुआ है। अन्यथा एक अकेला क्या कर लेता?’सभी मन ही मन एक दूसरे के साथ का आभार मान रहे थे।
इसी समय मोरों ने कुहकना शुरू कर दिया। आकाश में घनघोर बादल घिर आये थे। पानी के बड़े-बड़े बूँदा धरती पर पड़ने लगे। सभी के मुँह से निकल रहा था-
‘देर से ही सही प्रकृति ने गरीबन की टेर सुन ली है।’
समाप्त