अथगूँगे गॉंव की कथा - 3 ramgopal bhavuk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 3

उपन्यास-  

रामगोपाल भावुक

 

                         अथ गूँगे गॉंव की कथा 3

               अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति

अथ गूँगे गॉंव की कथा वह प्रसिद्ध उपन्यास है जो ऐसे भारत के लाखों गांवो की कथा कही जा सकती है जिनमें जाति पाँति और शोषण की निर्मम घटनाओं के बाद भी न प्रतिकार होता न विद्रोह, हर आदमी  गूँगा है लाखों गाँवों में। सन 78 में लिखा अविस्मरणीय उपन्यास है यह।

 

 

3

     इस बस्ती के जमींदार ठाकुर लालसिंह का यह पुस्तैनी मन्दिर है। जमींदारी के जमाने से ही दानास के यहाँ ठहरने की परम्परा रही है। ठाकुर साहब तो गाँव के बीच में अपनी हवेली में रहते हैं। जमीदारी गये पचास वर्ष होने को हैं। यह मन्दिर वर्षों से सूना पड़ा है। अब तो यह गिर रहा है। किन्तु दानास अपनी पुरानी परम्परा का निर्वाह करता आ रहा है।

        इसमें राम-जानकी,राधा-कृष्ण और श्री गणेश जी की अलग-अलग मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। लोग मूर्तियों को गुलाल अर्पित करने मन्दिर के अन्दर चले गये। फगुआ फागें गाने लगे। अब फाग के बोल निपट गये तो दानास यहाँ से शीघ्र ही उठ पड़ा। इस मन्दिर के पास में ही गाँव के सेठ श्याम लाल ने शंकरजी की एक तिवरिया बनवा दी है। इसके आसपास अब कोई सेठ-साहूकार नहीं रहते। सब के सब डाकुओं के डर से पास के शहर में जा बसे हैं।

       इसके पास में एक पेन्टर का घर है। वह भी दानास का सम्मान करने गुलाल थाली में भरकर ले आया। वह यहाँ का रहने वाला नहीं है। विहार प्रान्त का वह रहने वाला है।वह डाबर कम्पनी में पेंन्टर का काम करता था। इस गाँव में कम्पनी की ओर से पेंन्टिग करने आया था। उसने गाँव में फैली गरीबी देखी और उसने यहाँ जमीन खरीदना शुरू कारदी। लोगों की सिधाई का लाभ लेकर, लोगों को चुपड़ी-चुपड़ी बातें देकर कम से कम दामों में बहुत बड़ी जायदाद बना ली है। यों वह एक जमीदार बन बैठा है।

      वह इस वर्ष बीमार पड़ गया। तमाम इलाज कराया गया किन्तु उसे बचाया नहीं जा सका। होली के अबसर पर लोग उसकी स्मृति में उसके लड़के अखिलेश के गुलाल लगाने लगे। गुलाल लगाते में लोगों को याद हो आई अखिलेश के भाई महेश की। जिसे पिछले वर्ष डाकुओं ने मार डाला था।

       बात यह थी, पेंन्टर की माली स्थिति इस क्षेत्र के डाकुओं से भी छिपी नहीं रही। वे उसके लड़के महेश की पकड़ करने के इरादे से आ धमके । डाकू उसे अपने साथ ले जाने के लिये डराने धमकाने लगे। वह लड़का बड़ा बहादुर था। उसने एक डाकू की बन्दूक छीनना चाही तो दूसरे डाकू ने उसके गोली मार दी। उसकी उसी समय मृत्यु हो गई। आज तक लोग उसकी बहादुरी को नहीं भूल पाये हैं। अब लोग अखिलेश को गुलाल लगाते हुये आगे बढ़ गये। थेाड़ा ही चले कि गाँव के सुनार का घर आ गया। पता नहीं कितनी पीढ़ियों से इसके दरवाजे पर दानास रुकता आया है।

      सुनते हैं सोनी जी के बाबा तन्त्र-मन्त्र विद्या के अच्छे जानकार थे। सोनी चरन दास ने यह विद्या विरासत में पाई थी। गाँव का प्रतिष्ठित आदमी भी सोनी जी को प्रणाम करता है। वे काम चलाऊ वैद्यगिरी भी जानते हैं। मोतीझरा के मरीजों को भी ठीक करने का दावा करते हैं। अब एलोपैथिक इलाज ने इनकी पूछ कम करदी है। गाँव के गरीब लोग जो अपने मरीज को पैसे के अभाव में शहर नहीं ले जा पाते, वे इलाज इन्हीं से कराते हैं। इस वर्ष इनका स्वयं का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है। बेचारे कूलते हुये दानास का स्वागत करने हाथ में गुलाल की थाली लेकर, लोगों के गुलाल लगाने लगे। नगड़िया फाग की लय में तेजी से भागने लगी-

                  हरि को बारह गज कौ फेंटा।

                  हरि को बारह गज कौ फेंटा।

                  सब सखियन के मन कौ भातो।

                  राधा  जी  के  प्राण  सुखातो

                  हरिको बारह गज कौ फेंटा।। हरि को....।

     कुछ आपस में गले मिल रहे थे और कुछ सोनी जी की मोरी के कीचड़ में सन कर खुश हो रहे थे। कुछों ने अपना लक्ष्य गाँव भर की मोरियों की सफाई का बना लिया था। जिस किसी के घर की मोरी दिखी, वे टूट पड़े अपने साथियों को उसमें बिगाड़ने के लिये। यों सफाई अभियान भी अपने आप चल रहा था। बीड़ी-सिगरेट का विस्तार प्रतिष्ठित लोगों तक ही सिमिट कर रह गया था। फाग के बोल समाप्त होते ही तुरही आगे बढ़ने के लिये बज उठी। सभी चल पड़े। काछियों का मोहल्ला आ गया। स्वतंत्रता के बाद ये लोग अपने को कुशवाह ठाकुर कहने लगे हैं।

       यह गाँव के उत्तर का हिस्सा है। इस मोहल्ले में बसे कुशवाहों ने एक बैठका बनवा लिया है। दानास के स्वागत में सभी यहाँ खड़े मिले। दानास थम गया। सारे मोहल्ले के लोग अपनी-अपनी थालियों में गुलाल ले आये। गवैया फागें गाने लगे। मौजी मस्ती में नाचने लगा। लोग आपस में गुलाल लगाकर गले मिलने लगे। उस मोहल्ले में जगनू कुशवाह की अच्छी चलती रही है। देवीराम कुशवाह के वोट अधिक हैं। जब कभी दोनों में ठन जाती है,लेकिन जगनू उम्र में बड़े हैं, इसीलिये देवीराम को उम्र का लिहाज कर झुकना पड़ता है। उसके इस झुकने में बोट भी झुक जाते हैं ।

       इस मोहल्ले के अधिकांश परिवारों के पास जमीनें नाम मात्र की हैं। जिसमें वे कछवाई करके पेट पालते रहते हैं। कुछ दूसरों के खेतों में बटाई से कछवाई करते हैं। सिर पर टोकरी रख कर सब्जी बेच आते हैं और कैसे भी अपना पेट पालते रहते हैं।

        कुछ रामहंस जैसे मन मौजी भी इस मोहल्ले में बसते हैं। यह तो पूरा आलसीराम है। यह भगवान पर पूरा विश्वास रखता है। उसे आशा है कि किसी दिन भगवान स्वयं आकर अपने हाथ से खाना खिलायेंगे। वह भंग के नशे की मस्ती में लोगो के गुलाल लगा रहा है। छोटे-बड़े सभी के पैर छूने को आतुर दिखाई दे रहा है।

         अभी गुलाल का कार्यक्रम चल ही रहा था। इसी समय मिर्धापुरा के लड़के एक जत्था बनाकर शराब में धुत दानास में आकर मिल गये। मर्यादा छोड़कर फूहड़ और अश्लील रसिया गाने लगे। कुछ शान के देवताओं को यह बात अच्छी नहीं लगी पर कौन कहे, होली के हुड़दंग में सब चलता है। वे कड़वे घूँट पीकर ऐसे मुश्कराने लगे, मानो उनकी बातों का आनन्द लेकर उन्हें ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हों।

       इसी समय तुरही बजी। सभी आगे बढ़ने के लिये उठ खड़े हुये। गाँव के पूर्व में पहुँचकर होली की परिक्रमा लगाते हुये हनुमान चौराहे पर पहुँच गये। यहाँ दानास के अधिक देर तक ठहरने की परम्परा है। सभी खेरापति हनुमान लला के गुलाल लगने लगे। बैठक जम गई। फागें होने लगीं। होली के अश्लील रसिया नव युवक एक झुन्ड में खड़े होकर गाने लगे-    

          ओऽऽ धेाती फट गई, रेऽऽ भैाजी की धोती फट गई।

          ओऽऽ बम्बई बारी भैाजी की धोती फट गई।

          ओऽऽ चोली फट गई, रेऽऽ भैाजी की चोली फट गई।

          ग्वालियर बारी भैाजी की, चोली फट गई।

       तिवारी लालूराम गुलाल की थाली लेकर आ गये । लोग एक दूसरे के गुलाल लगाने लगे। मल-मल कर एक-दूसरे के गाल लाल रंग से रंगने लगे।

        गाँव के चौधरियों की पंचायत शुरू हो गई। किसी ने कहा-‘ अभी तक तो दानास जाटव मोहल्ले से होकर जाता था, अब कहाँ से होकर जायेगा? ’

       यह सुनकर विशन महाराज बोले-‘जहाँ से जाता था, वहीं से जायेगा।’

      पण्डित नन्दराम झट से बोला-‘ यार, तुम्हें बिनसे वोट लेनों होयंगे। तुम सबै काये अपने संगें घसीट रहे हो। तुम्हें बिन्हें सरपंच बनाओ है सो तुम चले जाओ बिनके मोहल्ला से।’

       वे बोले-‘ अरे! ज बात नाने। बिनके वोट हमें काये कों मिले हैं। हम तो जों सोचकें कह रहे हैं कि हमें सबको संग ले कें चलनों चहिये कै नहीं,बोलो?’

      बाला प्रसाद शुक्ल ने शंका व्यक्त की-‘एक ही बात को डर है कि झगड़ा हो परो तो का होयगो?’

      नन्दराम ने बाला प्रसाद की बात का समर्थन करते हुये कहा-‘जही बात तो मैं कह रहों हों। अरे !लड़ाई-झगड़ा बरकाबे में ही फायदा है। तासे गैल बरका के गढ़ी पै से निकर चलो। हमईं छोटे भये जातैयें।’

      बैजू नाई ने पण्डित नन्दराम की बात का समर्थन किया-‘ज बात ठीक है। काये को रट्टे में पत्तओ। भैया बिनकी मदद सरकार हू कर रही है।’

     भीड़ में से कोई बोला-‘यह बात देश की एकता ,अखंड़ता के लिये अच्छी नहीं है। सब एक गाँव में मिल-जुल कर रहें, सब लोग शान्ति पूर्वक चलें। वहाँ से निकलते में गन्दे रसिया न गायें फिर झगड़ा ही क्यों होगा?’

      भीड़ में से किसी ने उसे डांटा-‘बड़े आये देश की चिन्ता करिबे बारे। नेक कछू बात भई देश को बीच में ले आँगे।’

      पाण्डे राममोहन ने उसे भी डाँटा-‘ हम अपनो धर्म खतम करदें। तुम होटलन में खात होगे। हमने तो आज तक कहीं होटलन में पानी ही नहीं पिओ। समझ नहीं आत बिनसे दवै ही काये चाहतओ?’

      बाला प्रसाद शुक्ल पुनः बोले-‘अपन तो एन चले चलें पर वो लोग भी तो इतैं नहीं आये।’

     तिवारी लालूराम बड़ी देर से इन बातों को सुन रहे थे। सोच के सागर में डुबकियाँ लगाते हुये बोले-‘न हो तो जाटव मोहल्ला के चार भले आदमिन ने बुला लेऊ।’