कहानी प्यार कि - 30 Dr Mehta Mansi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कहानी प्यार कि - 30

चारो तरफ होली की धूम मची हुई थी... सब लोग मस्ती में नाचते हुए एक दूसरे को रंग लगा रहे थे.. इधर अनिरुद्ध संजना को ढूंढने में लगा था.. अनिरूद्ध को अपनी तरफ आता देखकर संजना खंभे के पीछे छुप गई..

" इतनी आसानी से हाथ नही आऊंगी.. तुम्हारे .. "

अनिरूद्ध संजना की आवाज सुनकर उसकी तरफ मुड़ा पर तब तक संजना भाग कर भिड़ में घुस गई..

" अब बस हो गया ये पकड़म पकड़ाई का खेल.. संजू.. अब तुम देखो कैसे तुम मेरे पास दौड़ी दौड़ी आती हो..." अनिरूद्ध ने कुछ अच्छा सा सोच लिया था..

वहा आंगन में होली खेलने के लिए पानी का बड़ा सा होज रखा गया था .. अनिरूद्ध उसके पास गया.. वहा चारो और बहुत सारा पानी गिरा हुआ था.. अनिरूद्ध ने जूठ मुठ का पैर फिसलने का नाटक किया और वहा पर गिर गया...

" ओह मां...कितनी बार मना किया यहां पानी मत गिराओ पर कोई सुनता कहा है.... आउच बहुत जोर की लगी है... " अनिरूद्ध जोर से नाटक करते हुए बोला...

यह देखकर सब वहा आ गए..

" अरे ! अनिरूद्ध गिर कैसे गए तुम ..? बहुत ज्यादा चोट लगी है क्या ..? " अनुराधा जी चिंता करती हुई बोली..

" हा.. आंटी... बहुत दर्द हो रहा है... आह..खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है..."

यह सुनकर संजना वहा भागती हुई आई..

" क्या हुआ अनिरुद्ध...? अरे तुम वहा पर क्यों बैठे हो ? "

" में बैठा नही हू संजू... में यहां फिसल गया.. और बहुत दर्द हो रहा है... कोई तो हेल्प करो मेरी.."

" ये कुछ ज्यादा ही ओवरएक्टिंग नही कर रहा है ? " सौरभ ने पास खड़ी दादी से कहा..

" लग तो ऐसे ही रहा है.. पर ये ऐसा क्यों कर रहा है...? " दादी अपनी दिमाग पर जोर देती हुई बोली..

" कोई तो बात है.. क्योंकि आज तक मैंने उसे ऐसा करते कभी नही देखा है.. पता है ना एक बार ये पहले माले से गिर गया था... तब एक आउच भी उसने नही किया था.."
सौरभ को बचपन की बात याद आ गई थी..

" हा और तुमने तो गिरने पर पूरा घर सिर पर उठाया था... जबकि चोट उसे लगी थी ..."

" क्या दादी आप भी .. हम दोनो साथ ही गिरे थे.. तो उसके साथ मुझे भी तो चोट लगेगी ना.. आप तो हमेशा उसकी ही साइड लेते हो..." सौरभ मुंह फूलाता हुआ बोला..

" हा हा बस अब .. ज्यादा मुंह मत बिगाड़ो.. अभी यहां जो हो रहा है वो देखो.."
दादी की बात सुनकर सौरभ चुप हो गया..

" एक मिनिट रुको में हेल्प करती हु..." संजना ने कहा और वो अनिरुद्ध के पास जाने लगी..

" संभलकर नही चल सकते हो..! आज के दिन ही चोट लगवा ली.. ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा है ना.." संजना ने अनिरुद्ध को उठाते हुए कहा.. अनिरूद्ध को संजना के चेहरे पर खुद के लिए चिंता साफ दिखाई दे रही थी..

" मैंने थोड़ी ना जानबूजकर किया है..."

" में अनिरुद्ध को अंदर ले जाती हु आप सब होली खेलिए.." संजना के कहने पर सब वापस चले गए.. पर सौरभ और दादी थोड़े दुर खड़े होकर दोनो को देखने लगे..

जैसे ही सब गए.. अनिरूद्ध ने पास रखी थाली से लाल रंग लिया और वो जैसे ही संजना को रंग लगाने जा रहा था.. संजना ने उसे धक्का दे दिया.. और धक्के की वजह से अनिरुद्ध पीछे रखे हुए पानी के होज में गिर गया...

ये देखकर संजना हसने लगी...अनिरुद्ध की चाल नाकामियाब हो गई .

" तुम्हे क्या लगा.. में तुम्हारी चाल नही समझूंगी... " संजना हस्ती हुई बोली..

" घिस इस नोट फेयर संजू.. ये तुमने ठीक नही किया... "

" बुरा ना मानो होली है..." इतना बोलकर संजना फिर से भागी..

" आज तो सबका बहाना बन गया है.. बुरा ना मानो होली है .. बुरा तो लगेगा ही ना.. होली के दिन कोई दिल बदल नही जाता है वो तो वही रहता है तो दूसरे दिन की तरह आज क्यों बुरा ना लगे भला.. सच ए नॉनसेंस थिंग्स " अनिरूद्ध बिगड़े मुंह के साथ बड़बड़ करता पानी के होज से बाहर निकला..

और इस बार सच्ची में उसका पैर फिसल गया और वो गिर गया...और यह देखकर सौरभ और दादी जोर जोर से हसने लगे..

अनिरूद्ध फिर से खड़ा हुआ और फिर उसने जोर से पानी के होज पर पैर मारा...और फिर संजना जिस तरफ गई थी उस तरफ जाने लगा..

" रुको संजू अब में तुम्हे दिखाता हु की अनिरुद्ध ओब्रॉय है कोन...! "


इस तरफ संजना घर के अंदर गुजिया और कुछ नाश्ता लेने किचन में आई थी..वह सब लेने के बाद वो बाहर जा ही रही थी की अनिरुद्ध ने उसे कमरे के अंदर खींच लिया..

" आऊ...कौन है.." संजना अचानक से यह सब होने की वजह से चिल्लाई...

" शी....में हु..." अनिरूद्ध ने संजना का मुंह बंध कर दिया..

" तुम ऐसे चोरों की तरह अपने ही घरमे क्यों घूम रहे हो...?"

" तो तुमने मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन छोड़ा है क्या..? "

यह सुनकर संजना चुप हो गई..

अनिरूद्ध ने अपने दोनो हाथ दिवाल पर रखे और संजना को घेर लिया...

" अब कहा बचके जाओगी... हा ? " अनिरूद्ध के चहेरे पर शरारती मुस्कुराहट थी..

संजना सिमटी हुई सी चुप खड़ी थी...

" लो...." अनिरूद्ध ने अपना हाथ आगे करते हुए कहा जिसमे लाल रंग था..

यह देखकर संजना उसे घूरने लगी...

" लो और मुझे रंग लगाओ..." अनिरूद्ध मुस्कुराता हुआ बोला..

" पर...? "
" शी....कुछ मत बोलना...में चाहता हु की तुम मुझे पहले रंग लगाओ..." अनिरूद्ध संजू की बात काटते हुए बोला..

संजना भी यह सुनकर मुस्कुराई.. उसने रंग लिया और दोनो हाथो से अनिरुद्ध के दोनो गाल पर रंग लगाया..
" हैपी होली.. अनिरूद्ध..."

"अब मेरी बारी..." अनिरूद्ध संजना की आंखों में देखते हुए बोला.. संजना ने शर्म से अपनी नजरे जूका ली..

अनिरूद्ध ने संजना को अपनी और खींचा और उसे घुमा कर अपनी बाहों में भर लिया...और अपने एक गाल से संजना के गाल पर रंग लगाया...



" हैप्पी होली संजू..." अनिरूद्ध ने बहुत ही प्यार से कहा..
दोनो इश्क के रंग में रंगे एक दूजे में खो गए ..और इस तरफ किंजल और रीमा मासी.. अपने नए घर के महोल्ले में होली खेल रहे थे..

" ओए किंजल वहा देख... वहा कोई लड़का खड़ा है और वो भी बिना होली के रंगों में रंगे..." किंजल की दोस्त आरती ने कहा..

" हा यार... होली के दिन ऐसे कोई कोरे चट्टे की तरह रहता है क्या...? चल आज उसे हम होली खेलना सिखाते है... आज हमारे हाथो से कोई बचना नही चाहिए... " किंजल अपनी पूरी गैंग को साथ लेकर उस लड़के की और जाने लगी.. वो लड़का फोन पर किसी के साथ बात कर रहा था...

तभी किंजल ने एक बाल्टी उठाई और पूरा पानी उस लड़के की और फेंका...

" हैप्पी होली... " किंजल जोर से चिल्लाई...

वो लड़का पूरा पानी से भीग गया.. थोड़ी देर तो उसे कुछ समझ ही नही आया...

" अरे किंजल लगता है ये तो बुरा मान गया... भाग..." आरती इतना बोलकर भागी वहा से.. किंजल भी वहा से भाग ही रही थी की..

" स्टॉप..." वो गुस्से से बोला...

यह सुनकर किंजल के पैर वही जम गए.. वो लड़का किंजल की तरफ मुड़ा ... उसका चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था...

पर उस लड़के को देखकर किंजल के होश उड़ गए... और किंजल को देखकर उस लड़के के भी..

" करन...! " किंजल घबराती हुई बोली...

" तुम ..! " करन उसे घूरता हुआ बोला...

" वो वो में..."

" हाउ डेयर यू... मुझ पर पानी फेंकने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...? " करन गुस्से में चिल्लाया..




" सोरी... वो मुझे नही पता था तुम हो... में तो बस..."

" शट अप... अपनी हरकतों से बाज नहीं आती हो ना तुम ..? एक मिनिट रुको तुम्हे अभी दिखाता हु..." करन इतना बोलकर इधर उधर कुछ ढूंढने लगा..

किंजल डर की मारी वही खड़ी उसे देख रही थी..करन की नजर पास रखी बाल्टी पर गई उसने भी बाल्टी उठाई और सारा पानी किंजल की और फेंका... किंजल तो हैरान रह गई यह देखकर... उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला...

" हैप्पी होली... " करन ने किंजल को घूरते हुए कहा और वहा से जाने लगा...

" क्या यह सब सच में हुआ क्या..? " किंजल को अपनी आंखो पर यकीन नही हो रहा था..

" करन रुको..." किंजल को कुछ याद आया और वो भी करन के पीछे जाने लगी..

" करन... " किंजल जोर से चिल्लाई तो करन रूक गया.. किंजल भागती हुई उसके पास आई..

" अब क्या है..? " करन बिना पीछे मुड़े ही बोला..

" तुम यहां कैसे..? "

" यही सवाल में तुमसे पुछु तो ? " करन ने किंजल की और मुड़कर कहा..

" पहले मैंने पूछा तो तुम पहले बताओ..."

" क्यों तुम क्या कोई राजकुमारी हो की में तुम्हारी बात मानू ..! " करन अकड़कर बोला..

" यार प्लीज... " किंजल चीड़ गई..



" व्हाट यार.. ? "

" कुछ नही... अच्छा में ही पहले कहती हु.."

" तो पहले ही बोल देती ना .. इतना टाइम वेस्ट क्यों किया ? "

" हे भगवान..! सोरी मेरी गलती थी ठीक है मि करन... "
किंजल हाथ जोड़ती हुई बोली..

" ठीक है ठीक है अब नाटक मत करो.." करन ने किंजल के बिगड़े हुए चहेरे को देखकर कहा..

" हा वो में यही इसी मोहल्ले में रहती हु इसीलिए यहां होली खेल रही हू पर तुम यहां कैसे..? "

" वो में भी यही रहता हु.. सामने उस घर में.." करन ने अपना घर दिखाते हुए कहा..

" क्या तुम यहां रहते हो..? ये तो मुझे पता ही नही था.." किंजल खुश होती हुई बोली..

" हा क्योंकि मैंने तुम्हे बताया ही नहीं था.." करन के यह कहने से किंजल का मुंह फिर से उतर गया..

" अब कुछ पूछना है की में जाऊ...? "

" हा.. मतलब नहीं.. .."
किंजल की यह हा ना सुनकर करन मुंह फेरकर जाने लगा.

" सुनो... ! " किंजल ने फिर से करन को रोकते हुए कहा..

करन रुका और उसकी तरफ मुड़ा..

किंजल ने अपने हाथों में लगा नीला रंग करन के गालों पर लगा दिया और " बुरा ना मानो होली है ..." कहकर भाग गई..

" ये लड़की भी ना... पूरी पागल है..." करन ने अपने गाल को छूते हुए कहा.. और फिर हमेशा की तरह मुंह चढ़ाए हुए वहा से चला गया..

" अरे सौरभ तुमने मीरा को रंग लगाया या नही..? " संजना ने सौरभ को चिढ़ाते हुए कहा..

" नही अभी तक तो नही.."

" तो फिर जाओ ना.. होली खत्म होने के बाद लगाओगे क्या..? " संजना हस्ती हुई बोली..

" पर कैसे.. " सौरभ कन्फ्यूज्ड था..

" ऐसे..." बोलकर संजना ने मीरा जिस तरफ खड़ी थी उस और सौरभ को धक्का दे दिया..

" अरे धक्का क्यों दे रही हो....हो..." सौरभ ने इतना बोलते ही जैसे देखा की वो मीरा के बहुत ही पास खड़ा था..

" जाओ..." संजना ने इशारा किया..

सौरभ हिम्मत करके मीरा के सामने गया.. सौरभ को सामने देखकर मीरा मुस्कुराई और उसने सौरभ को अपने हाथो से रंग लगाया..

" हैप्पी होली..." वो मुस्कुराती हुई बोली..
सौरभ को तो जैसे ये कोई सपना ही लगा.. वो बस उसी पल में खो गया...

" सौरभ... सौरभ..." मीरा ने दो बार कहा पर सौरभ ने कुछ सुना ही नही... मीरा ने फिर चुटकी बजाई तो सौरभ एक झटके से होश में आ गया..

" तुम रंग नही लगाओगे क्या..? " मीरा ने सौरभ को ऐसे खड़े हुए देखकर कहा..

" हा.. हा..." सौरभ हड़बड़ी में बोला और उसने रंग लिया और मीरा को लगाया ..

" हैप्पी होली मीरा..."



फिर मीरा वहा से चली गई.. उसके जाते ही सौरभ खुशी के मारे नाचने लगा.. संजना भी यह देखकर हसने लगी..

पर इस तरफ मोहित शांत सा कोने में बैठा था । बस थोड़ा सा ही रंग उसके चहेरे पर लगा था.. और यह खंभे के पीछे खड़ा कोई देख रहा था..

तभी वहा संजना आई..

" क्या भाई आप ऐसे बैठे है.. चलिए ना हमारे साथ... "

" नही संजू मेरा मन नहीं कर रहा.."

" अरे ऐसे कैसे..? चलिए.. मैने कहा ना..." संजना खींच के मोहित को सब के बीच लेकर गई.. मोहित भी सब का मन रखने के लिए वहा उनके साथ नाचने लगा..

तभी एक लड़की माथे पर चुनरी ओढ़े हुए मोहित के पास आई और उसके गाल पर रंग लगाकर जाने लगी.. मोहित ने तुरंत उसकी तरफ देखा.. पर वहा इतने ज्यादा लोगो की वजह से और सब के चेहरे पर रंग लगे होने की वजह से मोहित उसे ठीक से देख नही पाया.. पर फिर भी वो वहा भिड़ में से बाहर निकलकर उस लड़की को इधर उधर ढूंढने लगा..

" मुझे ऐसा क्यों लगा की वो लड़की कोई और नही बल्कि अंजली थी...! " मोहित अपने गाल को छूते हुए बोला..

🥰 क्रमश: 🥰