कहानी प्यार कि - 1 Dr Mehta Mansi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कहानी प्यार कि - 1




PART- 1

सिंघानिया मेंशन में चारो तरफ भाग दौड़ मची हुई थी। सब इधर से उधर काम मे लगे हुए थे। घर को बहुत ही अच्छे से सजाया जा रहा था। रागिनी जी संजना तैयार हुई कि नहीं ये देखने के लिए संजना के कमरे में आई। पर कमरे में आते ही उनके गुस्से का ठिकाना ना रहा।

" संजू ये सब क्या है... ? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई ? " रागिनी जी ने चिल्लाते हुए संजना से कहा ।

पर संजना पर उनकी बातो का कोई असर नहीं हुआ । वो तो बस खुद में ही सिमटी हुई रोए जा रही थी।

" संजना ... " रागिनी जी फिर से जोर से चिल्लाई।

इस बार संजना का ध्यान उनकी तरफ गया। पर तुरंत उसने रागिनी जी को नजरंदाज कर दिया ।

" ये क्या बत्तमिजी है संजना...? लड़के वाले तुझे देखने आ रहे है और तू जानती है ना कि वो लोग कितने बड़े आदमी है.. "

रागिनी कि बात सुनकर संजना रोती हुई बोली
" होंगे वो बड़े आदमी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता .. मुझे अब किसिसे भी शादी नहीं करनी "

" ये क्या जिद लगा रखी है तूने.. वो एम एल ए साहब का बेटा है .. इतना अच्छा रिश्ता हमें कहीं नहीं मिल सकता , और तू है कि वो भगौड़े अनिरुद्ध कि वजह से आज भी आंसू बहा रही है ! कैसे वो तुझे सगाई के दिन छोड के भाग गया था । उस दिन कितनी बेज्जती हुई थी हमारी सब के सामने , और तू चाहती है कि इस बार भी तेरी वजह से तेरे पापा का सीर शर्म से जुक जाए .. "
रागिनी कि बात सुनकर संजना उसे एकटक देखने लगी.. आंखो से अभी भी आंसू बह रहे थे.. और आंख और नाक तो एकदम लाल हो चुकी थी।

रागिनी ने उसके पास जाते हुए प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा " बेटा प्लीज़ मान जा , अनिरुद्ध अब वापस नहीं आने वाला है । हमने तेरे लिए एकबार तेरी बात मानी थी और उसका अंजाम क्या हुआ तू अच्छी तरह से जानती है , अब तू अपने मम्मी पापा के लिए उनकी बात नहीं मानेगी..? "

ये सुनते ही संजना रागिनी जी को गले लगा के जोर जोर से रोने लगी।

" मम्मा वो मुझे छोड़ के क्यों चला गया..? मे तो उसे बहुत ही प्यार करती थी , तो फिर उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया .. क्यों ? पर मुझे अभी भी एसा लगता है कि उसके वहा से जाने के पीछे कोई तो बहुत बड़ी बात है .. " संजना की ये हालत देखकर रागिनी के भी आंखो से आंसू बहने लगे..

" बेटा जो हुआ उसमें तेरी गलती नहीं थी, वो अनिरुद्ध ने तुजसे कभी प्यार किया ही नहीं.. बस तेरा इस्तेमाल करता रहा और जब उसका मन उठ गया तो तूझे छोड़कर चला गया , पर अब और नहीं .. अब तेरे जीवन में सिर्फ खुशियां होगी.. इसीलिए तू जल्दी से तैयार हो जा .. वो लोग आते ही होंगे "

रागिनी जी ने बड़े ही प्यार से संजना के सीर को चूमते हुए कहा..
संजना ने भी हा मे अपना सिर हिला दिया और तैयार होने लगी।

अब जब बात अपने मां बाप कि इज्जत की आती है तो एक बेटी कैसे पीछे हट सकती है ! चाहे उसे अपनी मोहबब्त भी क्यों ना भूलानी पड़े ! संजना ने भी कुछ एसा ही किया था। अपने मम्मी पापा के खातिर वो किसी दूसरे लड़के से भी शादी करने के लिए तैयार हो गई थी।

थोड़ी देर में एम एल ए जगदीशचंद्र त्रिपाठी उनके बेटे हरदेव त्रिपाठी और उनके परिवार के साथ सिंघानिया मेंशन मे आ गए। वैसे संजना के पिता राजेश सिंघानिया भी शहर के जानेमाने बिजनेस मैन थे इसलिए वो जगदीशचंद्र को अच्छे से पहचानते थे। उन लोगो ने तो संजना को देखते ही रिश्ते के लिए हा कह दिया। पर संजना ने अभी कुछ कहा नहीं था। सबसे मिलने के बाद वो फिर से कमरे में चली गई.. और फिर से उसकी आंखों से आंसू बहने लगे..

" सब भले ही कहे की तुम मुझे छोड़ कर भाग गए हो , पर में जानती हूं .. कि मेरा अनिरुद्ध मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता , में जानती हूं कि तुम भी मुझे बहुत प्यार करते हों.. मे नहीं जानती कि तुम क्यों गए , कहा गए पर मुझे पूरा भरोसा है कि तुम जरूर आओगे .. जरूर आओगे " संजना बस रोए जा रही थी.. उसकी ये हालत देखकर कमरे के बाहर खड़े उसके भाई मोहित की आंखें भी नम हो गई ।

" संजू ... " मोहित ने खुद को संभाल के अंदर आते हुए कहा। उसकी आवाज सुनकर संजना ने तुरन्त अपने आंसू पौछ लिए और कहा " हा भाई.."

" तूने क्या फैसला लिया है ? " मोहित ने उस के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा ।

" भाई जो आप और मम्मी पापा का फैसला होगा वो ही मेरा फैसला होगा " संजना ने स्माइल करते हुए कहा।

" तू खुश तो है ना..? " मोहित के इस सवाल पर संजना ने फीकी मुस्कुराहट देते हुए कहा...

" भाई अब मेरी खुशी ज्यादा मायने नहीं रखती .. मे बस अपने परिवार कि खुशी चाहती हूं.. मे नहीं चाहती कि मेरी वजह से उनको कोई तकलीफ़ हो.."

संजना का जवाब सुनते ही मोहित ने संजना को गले लगा लिया और फिर तुरंत वहा से चला गया..ताकि उसके आंसू कहीं संजना देख ना ले।

थोड़ी देर बाद सब ने मिलकर दोनो का रिश्ता पक्का कर दिया और सगाई कि रस्म भी निभा ली। संजना ने भी बेमन से ही सही पर सारी रस्में निभाई। एक महीने मै चुनाव आ रहे थे इसीलिए जगदीशचंद्र के कहने से दोनो कि शादी भी पंद्रह दिन बाद फिक्स हो गई। फिर त्रिपाठी परिवार ने इजाजत ली और शादी में मिलने का कहकर चले गए।

रात को संजना को नींद नहीं आ रही थी । उसने एक बैग उठाया और उसमे से कुछ सामान निकालकर देखने लगी। उसने एक मुरझाया हुआ गुलाब का फुल निकाला और एक फीकी मुस्कुराहट लेते हुए कहा,

" तेरे बगैर किसी और को देखा नहीं हमने,
सुख गया तेरा गुलाब मगर फेंका नहीं हमने !!"

वो उस यादों मे खो गई जब अनिरुद्ध ने उसे ये फूल दिया था।

सुबह का समय था और संजना अपनी सहेलियों के साथ कोलेज जा रही थी।
मीरा : रुको.....

( जाते हुए मीरा अचानक से रुकते हुए बोल पड़ी )

संजना : अरे क्या हुआ... तूझे?
मानसी : हा.. मीरा एसे क्यों रुक गई तू ?
मीरा : अरे मेरी अंधी सहेलियों .. वहा देखो सामने .. ( मीरा ने एक तरफ उंगली करते हुए कहा )
संजना और मानसी दोनों ही उस तरफ देखने लगी।

मानसी : ओह माई गोड... ये में क्या देख रही हूं .. मीरा जरा चिमटी तो काट मुझे..!
मीरा ने जोर से चिमटी काटी तो..
मानसी : आऊच क्या कर रही हो.. !
संजना : अरे एक मिनिट .. पहले मुझे कोई बताएगा कि ये क्या चल रहा है .. ? तुम दोनो क्या देख कर ये नौटंकी कर रही हो ? मुझे तो वहा कुछ नजर नहीं आ रहा ..

मीरा : हे भगवान.. ! इस लड़की का क्या होगा..?
संजना : मेरा जो होगा अच्छा होगा पर तुम दोनो ने अभी मुझे नहीं बताया ना तो तुम दोनो के लिए अच्छा नहीं होगा समजी..!
मानसी : देख... वहा पर ..
( मानसी ने एक लडके कि तरफ इशारा करते हुए कहा )
मीरा : देखा ... कितना हेंडसम हैं....!
मानसी : डेशिंग भी है...
मीरा : स्मार्ट भी है ..

( दोनो उस लड़के को देख कर पागल हुई जा रही थी और उसकी तारीफ किए जा रही थी )

संजना : अब बस भी करो .. यहां उसकी तारीफ करने से कुछ नहीं होगा .. उसके सामने जा कर करो.. बोलने कि तो हिम्मत नहीं होती दोनो कि और दूर से बड़ी बड़ी बाते करती रहती हो..!
मीरा : तो .. तो उसमे क्या बड़ी बात है..?

संजना : ओह अच्छा .. मिहिर के सामने जाते ही किसकी बोलती बंध हो गई थी..? और मानसी तुम .. तुम्हारी तो सागर के पास जाने से पहले ही तबीयत खराब हो गई थी .. याद आया..?

मानसी : हा.. तो .. बोलने मे और करने मे बहुत फर्क होता हैं..

मीरा : सही कहा.. तुम्हे जब एक्सपीरियंस होगा तब तुम्हे पता चलेगा संजू ..।
संजना : ओह.. सब कहने कि बात है .. तुम जैसे डरपोक एसे ही बहाने बनाते है...।

मानसी : अगर एसा है तो संजू मे तुम्हे एक डेर देती हूं.. तुम अगर डरपोक नहीं हो तो डेर एकसेप्ट करो!
मीरा : हा यह सही है..
संजना : हा .. मे तैयार हूं।
मानसी : तो ये लो ये गुलाब का फूल.. और जा के उस हेंडसम लड़के को दो और कहा कि " ये गुलाब का फूल आपके लिए.. मेरी तरफ से .."

संजना : ओके.. wait and watch..

संजना ने फूल लिया और उस लड़के कि तरफ बढ़ने लगी । ब्लेक शर्ट और जीन्स , आंखो पर गोगल्स लगाए हुए वो फोन पर बात कर रहा था।

संजना उसके पास गई और बोली..
" एक्सक्यूज्मी .. "
उस लड़के ने संजना कि तरफ देखा और फिर.. फिर तो वो संजना को देखते ही रह गया...

संजना : ये गुलाब का फूल आपके लिए मेरी तरफ से ..
संजना ने स्माइल करते हुए कहा और वहा से जाने लगी।
लड़का फूल हाथ मे लिए अभी भी उसे जाते हुए देख रहा था ।

संजना कब उसकी सहेली के साथ वहा से चली भी गई उसे कुछ पता नहीं चला। और जब उसका ध्यान गया तब तक तो वहा पर कोई नहीं था। ये देखकर उसके चहेरे पर स्माइल आ गई और उसी स्माइल के साथ वो भी वहां से चला गया।

संजना जब कॉलेज से घर जा रही थी तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला
" हेय संजना ! "
संजना उसे देखकर हैरान हो गई और चिढ़कर बोली " तुम.. यहां क्या कर रहे हो..? और तुम्हे मेरा नाम कैसे पता ? "

" वों में तो तुम्हे ये फूल देने के लिए आया था .."
उसने संजना को एक बहुत ही सुन्दर रोज देते हुए कहा..
" सोरी मे ये नहीं ले सकती.. " संजना ने गुस्से में कहा।
" क्यों ? तुमने भी मुझे फूल दिया था तो मैने भी तो रख लिया था ना " उसने मासूम चहेरा बनाते हुए कहा।
ये सुनते ही संजना झेंप गई ।

" क्या हुआ .. संजना जी.." उसने संजना को टोकते हुए कहा..
" वो.. वो तो मैने ऐसे ही दे दिया था.. मुझे क्या पता था कि तुम सीरियसली ले लोंगे ! " उसने मुंह फेरते हुए कहा।

पर थोड़ी देर तक कोई जवाब नहीं आया तो संजना ने उस तरफ देखा तो वो लड़का बिना पलकें झपकाए उसे ही निहार रहा रहा था। थोड़ी देर के लिए तो संजना भी उसकी आंखो मे खो गई थी।
उसने संजना को फिर से फूल देते हुए कहा
" आई लव यू संजना .. " पर संजना ने तो मानो कुछ सुना ही नहीं वो बस उसे ही देख रही थी।

" आई लव यू संजना " उसने फिर से फूल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
ये सुनते ही संजना ने अपनी नजर हटा ली।

" ये ..ये तुम क्या कह रहे हो.. अब ये प्यार कब हुआ ? " संजना ने घबराते हुए कहा।

" जब तुम्हे पहली बार देखा था तब ..
वो गाना तो सुना होगा तुमने ..
" पहली नजर में कैसा जादू कर दिया,
तेरा बन बैठा है मेरा जिया .. "
उसने संजना की आंखो मे झांकते हुए कहा।

" ये फिल्मी तरीके यूज करना बंध करो और .. हटो मेरे रास्ते से और मुझे जाने दो... " संजना ने गुस्सा दिखाते हुए कहा..

" ठीक है पर ये फूल तो लेते जाईए.. " ये सुनते ही संजना ने फूल उसके हाथो में से ले लिया और जाने लगी।

तभी उस लड़के ने जोर से आवाज लगाई..
" संजना सुनो...."

ये सुनते ही संजना के पैर रुक गए..पर उसने पीछे मुड़ के नहीं देखा..

" अनिरुद्ध नाम है मेरा... और तुम इस अनिरुद्ध के प्यार में पड़ने से खुद को रोक नहीं पाओगी.. देख लेना...और ये अनिरुद्ध जिसे मोहब्बत करता है बेइंतहा करता है.. तो मेरे लिए तुम्हारे बारे में जानना मुश्किल नहीं था। अब इश्क़ मे तो जान भी कुर्बान है .. तो ये आशिक इतना तो कर ही सकता है.. जल्दी मिलते है... बाय..." उसने चिल्ला के कहा और वहा से चला गया।

ये सुनते ही संजना को हसी आ गई । उसने मुस्कुराते हुए मन में कहा .. " ये तो आशिक़ भी बन गया इडियट " पता नहीं क्यों पर उसे भी अनिरुद्ध की ये हरकत प्यारी लगी थी। फिर वो मुस्कुराते हुए वहा से चली गई।

तभी उसके कमरे का दरवाजा खुला और संजना अपनी यादों में से बाहर आई।
मीरा : अरे ! तू यहां बैठी है और में कब से बाहर तुझे बुला रही थी।
संजना : ओह.. सॉरी मैने सुना नहीं था..
मीरा : हम्म.. गुलाब का फूल देख कर अनिरूद्ध को याद कर रही है ना..?
संजना : हा..
मीरा : ये तो वही गुलाब है ना जो अनिरूद्ध ने तुम्हे दिया था?
संजना : हा ये वही गुलाब है ।
मीरा : हमम.. पर अब तुम उस के बारे में मत सोचो .. अब तुम्हारी शादी होने वाली है तो उस पर ध्यान दो समझी...चल मेरे साथ आंटी बुला रही है।
संजना : हा..

🥰 क्रमशः 🥰