अनिरूद्ध सीधा घर पहुंचते ही सौरभ के पास गया.. सौरभ ने जैसे ही अनिरूद्ध को अपने पास आता हुआ देखा तो वो समझ गया की कुछ तो गड़बड़ हुई है..
" क्या हुआ भाई .. तूने संजना से बात कि या नहीं ? "
पर अनिरूद्ध ने उसका कोई जवाब नहीं दिया और वो सीधा बेड पर बैठ गया..
" मतलब तू उसे नहीं बता पाया है ना..? "
" हम..." अनिरूद्ध के मुंह से बस यही शब्द निकला..
ये सुनते ही सौरभ भी उसके पास बैठ गया..
" सुन .. किंजल संजना कि बहन है .."
अनिरूद्ध धीमे से बोला..
" हा तो..." सौरभ को जैसे अनिरूद्ध कि बात सुनाई नहीं दी थी या फिर उसे अभी समझ नहीं आया था..
पर जैसे ही उसकी दिमाग़ कि घंटी बजी वो तुरंत बोल पड़ा ..
" क्या ? "
" हा इसीलिए आज मे उसके सामने नहीं जा पाया "
" हे भगवान .. क्या दुनिया में और कोई नहीं है जो आप सिर्फ हमारे ही पीछे पड़े है.. मुसीबतें कभी खत्म ही नहीं होती.. या आपको हमसे कुछ एक्स्ट्रा लगाव है ! " सौरभ कि बात सुनकर अनिरूद्ध के चहेरे पर फीकी स्माइल आ गई ..
" अबे तू स्माइल क्यों कर रहा है ..? "
" ये सब भगवान ने नहीं बल्कि तेरी वजह से हुआ है और तू भगवान को दोष दे रहा है ..! "
" अरे मेरी वजह से कैसे ? "
" ये चेहरा बदल के जाने का आइडिया किसका था ? "
" हा पर तभी तुझे भी ये आइडिया अच्छा लगा था याद है ना..? "
" हा पर आइडिया तो तेरा ही था ना .."
दोनो ही एक दूसरे को दोष देने में लगे हुए थे ..
" ओए बंदरो चुप करो.. नई तो दोनो के गाल पर एक थप्पड़ लगाऊंगी..." ये जोर कि आवाज सुनते ही दोनो चुप हो गए और एक दूसरे के सामने आंख फाड़े देखने लगे जैसे उन दोनों को अंदाजा हो गया था कि तूफान आ चुका है...
दोनो ने एकसाथ दरवाजे कि तरफ देखा.. सामने दादी छड़ी हाथ मे ली हुई दोनो को घूर रही थी..
" दादी आप...? " दोनो एकसाथ बोले..
" क्यों मे यहां नहीं आ सकती ..? "
" अरे दादी आपका ही तो घर है आप तो आ ही सकती है ना ..! " सौरभ दात दिखाते हुए बोला ..
" पहले तू यहां आ ..." दादी ने अपनी छड़ी से सौरभ को अपने पास खींचते हुए कहा..
" दादी मैने क्या किया अब ..? "
" तूने क्या किया .. अभी बताती हूं तुझे तो .." दादी सौरभ को छड़ी से मारने लगी..
" आऊ... दादी लग रही है.. उइमा.. दादी .. ओये तू क्या खड़ा है दादी को रोकना .." वैसे दादी कोई जोर से नहीं मार रही थी पर हमारा सौरभ था हि थोडा हाइपोकोंड्रिएक ( जो कोई भी चीज को ज्यादा बढ़ा के और चढ़ा के बोलता है 🤭) इसलिए थोड़े ज्यादा नखरे दिखा रहा था..
" ये क्या मुझे रोकेगा .. तू भी आ.." दादी अनिरूद्ध को भी अपनी छड़ी से मारने लगी..
" अरे दादी मुझे क्यों मार रही है..? मारना है तो इस बंदर को मारिए ना.." अनिरूद्ध और सौरभ दोनो ही दादी से बचने के लिए इधर उधर उधम मचा रहे थे😂
" मार तो दोनो को पड़ेगी.. लंगूर कहिके.. कितने फोन किए .. पर दोनो मे से कोई भी इस लीला का कोल नहीं उठा रहा था.. मुझे इसलिए ऑटो से आना पड़ा एयरपोर्ट्स से "
" दादी आपको बता कर आना चाहिए ना .. " सौरभ के मुंह से गलती से निकल गया..
" गया ये तो .." अनिरूद्ध ने मन मे बोला और आगे होनेवाले एंटरटेनमेंट देखने के लिए तैयार हो गया..
" तेरी तो.. मे क्यो बता कर आऊ .. मेरा घर है मे कभी भी आऊ ..." दादी तो कमर तोड़कर सौरभ के पीछे पड़ गई थी..
सौरभ भागता हुआ होल मे चला गया..
दादी भी उसके पीछे गई.. अनिरूद्ध खुश था कि सौरभ कि वजह से दादी का ध्यान उस पर से हटा तो सही..
सौरभ होल मे अखील जी कि पीछे जाकर खड़ा हो गया..
" अरे मा क्या कर रही है आप .. आपकी उम्र का तो लिहाज कीजिए.." अखिलजी ने दादी को रोकते हुए कहा..
" तू मुझे उम्र के नाम पर बूढ़ी कह रहा है..! " दादी का निशाना अब अखीलजी बन गए थे..
इसका फायदा उठाकर सौरभ वहा से खिसक गया और अनिरूद्ध के पास जाकर खड़ा रह गया..
" ये दादी नाम का तूफान कभी भी कहीं भी आ सकता है .." सौरभ धीमे से बोला..
" अबे दादी है हमारी एसे नहीं बोलते.. वैसे गलती हमारी भी थी हमने उनका कोल नहीं उठाया.." अनिरूद्ध को थोड़ा बुरा लग रहा था..
" मुझे क्या पता था कि वो यहां आने वाली है नहीं तो उनका कोल उठा लेता ..."
" अबे मेरा फोन तो गाड़ी मे ही रह गया था इसलिए मुझे पता नहीं चला पर तूझे पता था कि उनका कोल आ रहा है फिर भी तूने उठाया नहीं ? "
" हा .. वो मतलब मुझे क्या पता था.. पर वो कभी बता के कहा आती है .. और तू तो जानता है ना मेरी दादी को .. कब से मेरी शादी के पीछे पड़ी है मुझे लगा इसीलिए कोल कर रही है .."
" तू भी ना सौरभ.. दादी को कितनी तकलीफ़ हुई होगी .. ओटो से आने मे .."
" तकलीफ़ और उनको.. ! मुझे तो चिंता उस ओटो वाले कि हो रही है .. बिचारा कैसे लाया होगा दादी को.."
ये सुनते ही अनिरूद्ध मुस्कुराने लगा...
" तुम दोनो खुसुर पूसुर क्या कर रहे हो .. यहां आके मेरे पैर छुओ.." दादी ने दोनो को टोकते हुए कहा.
अनिरूद्ध और सौरभ ने बड़े आदर से दादी के पैर छुए.. और दादी ने भी भर भर के आशीर्वाद दिए..
तभी बाहर से ओटो वाला आया जो कब से अपने पैसे कि राह देख रहा था..
" ओ साब... मेरे पैसे तो मुझे दे दीजिए.. दादी तो अभी अंदर से लाती हूं कह कर आयी ही नहीं "
" कितने पैसे हुए ? " अनिरूद्ध ने अपना वॉलेट निकालते हुए कहा..
" देढ़सो रुपए.. "
" ये लो.." अनिरूद्ध ने पैसे दिए और वो ऑटो वाला वहा से चला गया..
" मा आप लंडन से निकली तभी हमे बता दिया होता तो हम आपके आने से पहले वहा आ जाते ना .."
" अखिल तू जानता है ना मुझे.. मेरा मन किया यहां आने का तो तभी निकल गई .. और ये फोन करना ये मुझे याद नहीं रहता .. हमारे जमाने मे तो हम एसे ही किसी के भी घर पहुंच जाते थे.."
" दादी पर ये नया वाला जमाना है .. " सौरभ ने बीच में अपनी टांग अड़ाते हुए कहा..
" तू ना बीच मे बोलयो ही मत.. " दादी ने सौरभ को आंख दिखाते हुए कहा..
" मा आप आराम करिए थक गई होगी.. मे मनीष को कोल कर देता हूं कि आप सही सलामत पहुंच गई है .."
" हा .. ले छोरे मेरा सामान कमरे में रख दो..बेटे अनिरूद्ध मेरे साथ चलो .. और सौरभ तुम भी" दादी ने सामान सर्वेंट को पकड़ाया और अपने कमरे में चली गई.. अनिरूद्ध और सौरभ भी दादी के साथ गए...
" तो बताओ क्या खिचड़ी पकाई है तुम दोनो ने ? " दादी ने दोनो के चहेरे को देखते हुए कहा..
ये सुनते ही दोनो एकदुजे के सामने देखने लगे..
" एक दूसरे को घूरते ही रहोगे या फिर कुछ बताओगे भी ! "
वैसे दादी थोड़ी स्वभाव से डेंजरस थी पर सौरभ और अनिरूद्ध पे जान छिड़कती थी.. और उन्हें समजती भी थी.. स्कूल में या कोलेज मे कोई भी गड़बड़ होती थी दोनो ही दादी के पास ही सॉल्युशन लेने आते थे .. और दादी के आइडिया इतने ही इफेक्टिव होते थे ।
" वो दादी बात ये है कि ...." अनिरूद्ध ने दादी को शुरुआत से सब कुछ बताया.. दादी सौरभ वाला प्लान तो पहले से ही जानती थी पर आगे कि कहानी उन्हें मालूम नहीं थी...
" हम... मतलब हमारा प्लान अब हम पर ही उल्टा पड़ गया है... अब संजना को सच कैसे बताए .. किंजल के सामने तुम लोग जा नहीं सकते ..." दादी ने दिमाग़ के घोड़े दौड़ने शुरू कर दिए थे...
" हा दादी .. अब मे उन लोगो के घर भी तो नहीं जा सकता .. "
" तू उसके घर नहीं जा सकता पर उसे तो बुला सकता है ना ! "
" पर दादी संजना कि शादी है तो वो अकेले कैसे आ सकती है बाहर ? " सौरभ को दादी कि बात समझ नहीं आई थी पूरी तरह ..
" देख.. अनिरूद्ध तू अनिरूद्ध ओब्रॉय के नाम से एक चिठ्ठी लिख कर संजना को मिलने बुलाएगा.. अब तू हल्दी वाले दिन तो वहा जाने ही वाला है .. तब कोई अच्छा मौका देखकर उसे टेरेस पर बुलाना और फिर तुम अपने असली रूप मे उसके सामने आना और सारी सच्चाई उसे बता देना .."
" हा पर दादी किंजल के होते हुए में अपनी पहचान बदल के वहा कैसे जाऊ वो तो पहचान जाएगी की में अनिरूद्ध ओब्रॉय नहीं हूं.. क्योंकि वो तो मुझे जानती है .. " अनिरूद्ध कि बात भी सही थी.. इस पहचान बदल के जाने के चक्कर में उसने बड़ी मुसीबत मुंह मोड़ ली थी..
" नहीं पहचानेगी .. वहां पर तुम कल रात को जाना और संजना को सब पता देना फिर तो तुम्हे हल्दी वाले दिन कोई प्रॉब्लम नहीं होगी .. अब कैसे जाओगे क्या करोगे वो सब तुम देख लेना .." दादी ने अपना आइडिया दे दिया था और अनिरूद्ध को भी ये पसंद आया था..
" हम.. मुझे अब वहा जाना तो होगा ही..सिर्फ कल का दिन है और उसके अगले दिन संजना कि हल्दी.. अब संजना को मेरे नाम कि हल्दी लगानी ही पड़ेगी और वो भी मेरे हाथो से . "
" हा ये हुई ना बात ..." दादी उत्साह से बोली..
" अब आया है तू अपने ओब्रोय के फॉर्म में " सौरभ अनिरूद्ध के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला..
" अब पहले मे उस जगदीश त्रिपाठी और उसके बेटे कि थोड़ी खबर लेलू .. चल सौरभ और दादी आप सो जाइए "
अनिरूद्ध और सौरभ दोनो कमरे में आ गए.. और अपने सीक्रेट एजेंट को कोल लगाया..
" क्या माहौल है वहा का ? "
" यहां तो शादी कि तैयारियां चल रही है .. जगदीशचंद्र और उनके बेटे पर भी मेरी नजर है .. जैसे कुछ पता चलेगा मे आपको बता दूंगा .."
" ठीक है .. उन पर कड़ी नजर रखना .. वो किनसे मिलते है , कहा जाते है , घर में कौन कौन आता है सब "
" ओके सर "
अनिरूद्ध ने कोल कट कर दिया ।
" क्या हुआ कुछ पता चला ? " सौरभ ने अनिरूद्ध को कुछ सोचते हुए देखकर पूछा..
" नहीं अब तक तो नहीं.. पर हमें जल्द ही पता लगाना होगा कि इस जगदीशचंद्र के दिमाग में क्या चल रहा है .. कही वो शादी के पहले तो मेडिसीन कोरिया नहीं भिजवाने वाला है ? अगर एसा हुआ तो हमारा पूरा बना बनाया खेल फैल हो जाएगा .."
" हम .. तुम सही कह रहे हो अनिरूद्ध .. बहोत शातिर आदमी है वो.. उसे जरासी भी भनक लग गई तो वो थोड़ी भी देर नहीं करेगा मेडिसीन को कोरिया भेजने के लिए.."
" हा कल मे शर्माजी से कहकर कुछ पता लगाने कि कोशिश करता हूं .. पर अब सो जाते है .. बड़ी नींद आ रही है .. "
" हा मुझे भी चल गुड नाईट" सौरभ ने कहा और फिर दोनो ही सोने के लिए चले गए।
🥰 क्रमशः 🥰