हडसन तट का ऐरा गैरा - 31 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हडसन तट का ऐरा गैरा - 31

बहुत गहरी नींद आई।
लोग उखड़ी - उखड़ी नींद को मुहावरे के तौर पर "चिड़िया की सी नींद" कह देते हैं, पर आज उस चिड़िया को गहरी और लंबी नींद आई।
एक तो थकान, दूसरे भय, तीसरे पश्चाताप... इतने सारे कारण हों तो नींद क्यों नहीं आएगी। नींद भी आख़िर शरीर की एक क्रिया ही तो है, शरीर बेदम होगा तो नींद भी आयेगी।
लेकिन हल्की- पीली धूप की तिरछी किरणों ने ऐश के मुंह पर आकर भी उसके शोक को कम नहीं किया। उसे हल्की भूख भी लग आई थी।
उसने एक बार नीचे झांक कर दलदल की ओर देखा और पंखों को फड़फड़ाती हुई पानी के किनारे चली आई। उसे एक छोटी सी मेंढकी फुदकती हुई दिखी। उसने चोंच से झपट्टा मारकर उसे मुंह में ले लिया।
वह उसे निगलना ही चाहती थी कि न जाने क्या हुआ, उसने एकाएक चोंच खोली और मेंढकी उसके मुंह से फिसल कर नीचे एक पत्थर पर गिरी। अब पत्थर पर गिर कर मेंढकी स्थिर तो बैठी रहती नहीं, उसने बदन झटकार कर तेज़ी से एक छलांग लगाई और पानी में कूद गई।
ऐश झेंप कर रह गई। उसे ख़ुद पर आश्चर्य हुआ कि इतनी तेज़ भूख में भी उसने शिकार को मुंह से निकल जाने दिया। उसकी चोंच उसके नियंत्रण में क्यों न रह सकी।
लेकिन बुद्धिमान ऐश तभी समझ गई कि शायद कुदरत उसे कोई सबक सिखाना चाहती है। एक पल में ही उसे याद आ गया कि रात को जिस तरह शिकारी बाज उस पर झपटा था और वह अपनी जान बचा कर भागी थी ठीक वही तो मेंढकी ने भी किया। उसकी पकड़ से फिसल कर भाग छूटी।
ओह! कुदरत ने पेट भरने का ये तरीका बनाया ही क्यों कि सब एक दूसरे का निवाला बनें? क्या कोई और तरीका नहीं हो सकता था साथ- साथ रह कर गुज़र बसर करने का? ऐश को एक क्षण के लिए ये अहसास हुआ कि जब अपने पेट की आग को बुझाने के लिए वो और उसके साथी छोटी मछलियों, कीड़े- मकोड़ों, तितली, झींगुर आदि पर झपटते हैं तो उन्हें भी ऐसा ही लगता होगा जैसा ख़ुद ऐश को लग रहा है। उनका भी तो अपना संसार होता ही है! उनके भी संगी - साथी होते हैं।
लेकिन शायद इसीलिए प्रकृति ने जीव जंतुओं को अतार्किक और शॉर्ट - साइटेड बनाया है कि आगा पीछा सब भूल जाओ। जब उदर भूख से कुलबुलाए तो जिस पर भी अपना वश चले उसे मार कर खा डालो। बस।
ऐश ने यही किया। उसे सामने ही तैरते हुए मछली के बच्चों का एक झुंड दिखाई दे गया। हो गई दावत।
ऐश का जी भी अब अच्छा हो गया था। उसने अपने हमलावर बाज को भी मन ही मन माफ़ कर दिया। उसने सोचा, हम सब एक से ही तो हैं।
पेट भरने के बाद ऐश ने एक ऊंची उड़ान भरी और वह खुले आकाश में अकेली ही चल दी।
ऐश को आज एक नया अनुभव हो रहा था। वह सोच रही थी कि अकेले पंछी की ज़िंदगी भी कितनी बेफ़िक्री की ज़िंदगी है। न एक दूसरे की टोका- टाकी की परवाह और न किसी से कोई जिद- बहस। जो चाहो वो करो।
आकाश साफ़ था। मौसम भी ठीक - ठाक ही था। ऐश बहुत ऊंचाई पर पहुंच गई थी। अब उसे अपने साथियों से मिल पाने की कोई उम्मीद भी नहीं रह गई थी। वह अपनी ही धुन में उड़ी चली जा रही थी।
कुछ देर इसी तरह उड़ते- उड़ते ऐश के मन में एक ख्याल आया। उसने सोचा, यदि उसे अपने रास्ते की दिशा का कोई बोध हो सके तो वो क्यों न वापस लौट ले! किसी न किसी दिन तो वो वापस अपने घर हडसन तट पर पहुंच ही जायेगी।
लेकिन तभी उसे ये भी लगा कि वो वहां भी तो अभी अकेली ही रहेगी। उसके साथी लोग और रॉकी जब तक लौट न आएं तब तक वहां भी अकेले ही रहना है, इससे तो अकेले दुनिया घूमने का मज़ा ही क्यों न लिया जाए। इस विचार से उसके परों में और भी चपलता आ गई और वह गुनगुनाती हुई उड़ती रही।
और अपनी इसी मस्ती में उसने नीचे ज़मीन की ओर झांका तो उसे एक भव्य आलीशान सी इमारत दिखाई पड़ी। इस इमारत के चारों ओर इंसानों की भारी भीड़- भाड़ तो दिख ही रही थी, उसकी लंबी - चौड़ी छत पर पक्षियों की भी खूब चहल - पहल थी।
ऐश का दिल मचल उठा। उसने अपने पंखों को नीचे उतरने के लिए ढीला छोड़ दिया।