अथ गूँगे गॉंव की कथा - 20 ramgopal bhavuk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 20

उपन्यास-  

रामगोपाल भावुक

 

                         अथ गूँगे गॉंव की कथा 20

               अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति

 

20

 

 

     दूसरा बोला-‘भैया, अनाज तो साहूकारन के यहाँ से ही लेनों पड़ेगो कि नहीं? हम तो झें काऊ कैसी कहिवे बारे नाने।’

    मौजी वहाँ पहले से ही मौजूद था। कुन्दन बिन बुलाये ही, हनुमान बब्बा के दर्शन करने के बहाने वहाँ पहुँच गया। जिन-जिन से मौजी ने आने की कहा था, वे सभी वहाँ आ गये। आपस में खुसुर-पुसुर के स्वर में सलाह-मसवरा किया जाने लगा। खुदावक्स बोला-‘काये मौजी भज्जा, जे सब काये कों इकट्ठे करे हैं?’

    मौजी ने इस बात का उत्तर पहले से ही सोच कर रखा था। बोला-‘जों सोची कै, गरीबन को दान-पुन्न ही काम आ जाय। शायद हनुमान बब्बा पाईं वर्षा दें।’

    काशीराम तेली को मौजी की इस बात के विरोध में बोलना पड़ा-‘जे बातिन में का धरो है। अरे! अपुन पै दान-पुन्न करिबे का धरो?’

    कुन्दन समझ गया मौजी असली बात नहीं कह पा रहा र्है। इसलिये बात को सही दिशा देने के लिये बोला-‘बात ये है, गाँव का अनाज बाहर बिचने चला जाये। फिर गाँव के लोग उलटे शहर से अनाज पुड़ियों में खरीद कर लाये, बोलो ज बात बिचार करिबे की है कै नहीं?’

   सभी के मुँह से निकला-‘आप ठीक कहतओ। बात विचार करिबे की तो है, आज ठाकुर साहब अपईं गाड़ीं भरवा ले गये।, कल सभी यही करेंगे। इस बात पै रोक तो लगनो ही चहिये कै नहीं? बोलो...।’

    मौजी ने दम पकड़ी, बोला-‘देखो, ज बात में दलित-सवरण कछू नाने। सारे गरीबन ने ज लड़ाई मिलकें लड़नों है। चाहे जो होय, ज गाँव को नाज बाहर न जाने पावे।’

    कुढ़ेरा ने अपनी राय दी-‘ज बात की रिपोट तहसीलदार को पहुँचा देनों चहिये। अपये एम0 एमए0 से ज बात कह देनों चहिये। वे बोट लेवे तो घर-घर फिरंगे। ज बात बिनके ध्यान देवे की है कै नहीं?’

     मिश्री धोबी ने अपना सुझाव दिया-‘एक समिति बना लेऊ। अरे! ज काल की साल में जीवे को इन्तजाम मिलकें कन्नों परैगो कै नहीं?’

     इस बात पर समिति के निर्माण की चर्चा चल पड़ी। समिति का नाम ‘अकाल रक्षा समिति ’रख लिया। अध्यक्ष का चुनाव किया जाने लगा। कुछ लोगों ने माजक के मूढ़ में अध्यक्ष के लिये मौजी के नाम का प्रस्ताव कर दिया। इस बात पर कुछ लोग उसके नाम का समर्थन इसलिये करने लगे, जिससे बुराई का थेगरा मौजी के सिर ही रखना उचित रहेगा। मौजी को लगा-वह अब बहुत बड़ा आदमी बन रहा है। उससे अब बड़े-बड़े डरा करेंगे। उसकी इज्जत एम0 एमए0 सरीखी बढ़ जायगी। यों बुराई का थीगरा मौजी के सिर मढ़ दिया गया। सचिव के पद पर खुदावक्स खाँ को सर्व सम्मति से चुन लिया गया। कुढ़ेरा काछी को उपाध्यक्ष बना दिया। सह सचिव पर रामहंसा काछी का नाम लिख दिया। जितने लोग वहाँ उपस्थित थे सभी के नाम सदस्य के रूप में लिख लिये। केवल कुन्दन का नाम सरकारी कर्मचारी होने से छोड़ दिया गया।

      तत्काल ही समिति की पहली बैठक मौजी की अध्यक्षता में शुरू हो गई। समिति का पहला काम तय किया जाने लगा-किसी भी हालत में गाँव का अनाज बाहर न जाने दिया जाये।

     मौजी बात गुनते हुये बोला-‘हनुमान बब्बा पै साब जने सौगन्ध खा कें जाओ, कै सब संग देउगे। नहीं मैं ज चक्कर में नहीं पत्त।’

     बात इतनी बढ़ गई थी कि पीछे हटने में हँसी होगी,सभी ने जोश में सौगन्ध खाली-‘जो हटे ताको पन घटे।’

      मौजी को पूरा विश्वास हो गया कि वह बहुत ताकतवर बन गया है। उसमें हजारों हाथियों का बल आ गया है।

      जब कुन्दन अपने घर पहुँचा, उसके पिता लालूरामजी लाल-पीली आँखें किये बैठे थे। कुन्दन को देखते ही उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया-‘भले आदमिन की मदद न करकें बिनकी इज्जत बिगारें चाहतओ। ज अच्छी बात नाने। अरे! गरीब तो कहूँ न कहूँ मजूरी करकें पेट भर लेगो। अपुन बीच बारे जोईं मरैं लेतयें। तुम ने ज बिना बात की दुश्मनी अपने सिर बाँध लई। नहीं, जे इतैक बातें का जाने!’

      कुन्दन ने बात का जबाव देना उचित नहीं समझा। उसे चुप देख वे पुनः बोले-‘अरे! ठाकुर साहब की दिल्ली नों चलते। अपये सरपंच पै हाथ डारिवो खेल नाने । आदमी मज्जायगो।’

      कुन्दन को जबाव देना आवश्यक हो गया। बोला-‘आप ही बतलाइये, गाँव में अनाज न बचा तो कहाँ से आयेगा? लोगों की यह पीड़ा मुझ से देखी नहीं जा रही है। अब चाहे जो हो, मैं पीछे हटने वाला नहीं हूँ।’

     यह सुनकर उनका चेहरा तमतमा गया। वे क्रोध उड़ेलते हुये बोले-‘ जे बड़ी-बड़ी बातें छोड़। बहिन को ब्याह करनो है। जे सब के सहारे की जरूरत पड़ेगी।...और तुम्हाये जे एक पइसा की मदद करिबे बारे नाने। गोद भर गये और बिन्हें घर जाकें तीस हजार नगदी की माँग भेज दई। अरे! वे जे बातें पहिले कह देतये तो हम गोद न भरवातये। भगवान जाने ज काल की साल में कैसें पार लगायगो?’

     कुन्दन ने उन्हें साँन्त्वना देने का प्रयास किया-‘आप चिन्ता नहीं करें। अब सगाई छोड़वो खेल नाने। फिर अपुन हू देवे में कसर तो राखेंगे नहीं। न होय तो बन्डा ताल को खेत बेच देऊ।’

     उसके पिता जी इस बात पर झट से बोले-‘काल की साल में खेत को ले रहो है। पानी बरस जातो तो सब गैलें खुल जातीं। मोय तो जों लगते कैं अब जे बड़े-बड़े मिलकें तेरो झें से ट्रासफर करबायें बिना नहीं मानंगे।’

     कुन्दन ने उन्हें फिर से समझाया-‘मैने कहा न, पिता जी आप चिन्ता नहीं करैं। नौकरी कहीं करना। न्याय की बात तो करना चहिये कै नहीं?’

     वे झुझला कर बोले-‘ठीक है, तोय जो ठीक लगे सो कर। लेकिन बेटा, अपने हाथ-पाँव बचाकें तो चल। मेरी तो ज सलाह है कै सरकारी नौकरी वारिन कों राजनीति में नहीं पन्नों चहिये।’

     कुन्दन यह सुनकर तो घर से बाहर निकल गया।

     दूसरे दिन कुन्दन ने सुबह ही जयराज से कहा-‘भैया, सुना है आज सरपंच अपनी अनाज की गाड़ी शहर ले जा रहा है। गाँव के बहुत से लोग गाड़ी रोकने जा रहे हैं। मैं सोचता हूँ , मैं भी वहाँ जाकर देखूँ तो क्या होता है?’

     कुन्दन का दिमांग जल्दी-जल्दी काम करने लगा। सोचने लगा सरपंच ताकत के नशे में चूर है। कहीं कुछ अनहोनी न हो जाये। यह सोचते हुये वह टोह लेने घर से बाहर निकल गया।

                                                   000

    जब वह टोह लेकर घर लौटा सरपंच का आदमी मौती दरवाजे पर बैठा था। कुन्दन को देखते ही बोला-‘तुम्हें, सरपंच साहब बुला रहे हैं।’

   कुन्दन घर के बाहर से ही उसके साथ चल दिया। जब वह वहाँ पहुँचा सभी जातियों के साहूकार मौजूद थे। वहाँ उनकी जातियाँ का लय हो  गया था। जातियों की ऊँच-नीच तिरोहित हो गई थी। सभी का लक्ष्य अपने पैसे की हिफाजत करना था। यों सभी एक होकर पैसे की जाति के थे।

    कुन्दन को देखकर सरपंच ने व्यंग्य बाणों से सत्कार किया-‘कहो, मास्टर साहब आपकी नेतागिरी कैसी चल रही है?’

    नन्दू लाला ने उनकी बात का साथ दिया-‘भले आदमिन ने लूटबे की योजना बन रही है। अरे! गरीबी-अमीरी सब भगवान की कृपा से होते। जो मिलै ताय भगवान की कृपा मानकें स्वीकार कर नेनो चहिये। अब तो सब लूट के माल से पइसा बारे बनें चाहतयें।

    ठाकुर लालसिंह बोले-‘हम तुम्हाई नौकरी झें के काजें करा कें लायें हैं। अब तुम ही हमें काटन लगे। बोलो...का जई तुम्हाओ धर्म है।’

यह सुनकर कुन्दन को लगा-ये सब लोग यह चाहते हैं कि गरीब चाहे जिये मरै ,उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़े। यह सोचकर बोला-‘गाँव के गरीबों को भूख से मर जाने देना भी तुम्हारा कौन सा धर्म है।’

सरपंच ने तीखे स्वर में उत्तर दिया-‘अभै नों कितैक मर गये?’

कुन्दन संतुलित होते हुये बोला-‘आप लोगों के कानों पर जूँ किसी के मरने के बाद ही रेंगेगी। आप लोग इन्हें राजी से नहीं देंगे तो ये लोग छीनकर लेना जानते हैं।’

ठाकुर लालसिंह ने अपना आदेश जारी किया-‘तो तुम्ही उन्हें इस काम के लिये भड़का रहे हो। कोऊ हमारे घर की तरफ आँख उठाकर तो देखे, उसकी आँख फोड़ दूंगा।’

नन्दू लाला ने अपनी लालागिरी का पैतरा दिखाया-‘अरे! न होगा तो डाकुअँन कों कछू ले दे कें बिन्हें ठिकाने लगवायें देतो। गड़रिये का गोल झेंईं आरसपास फिर रहो है।’

कुन्दन समझ गया, उसे मरवाने की धौंस दी जा रही है। ब्याज-त्याज से इतना कमाया है, फिर भी इनकी भूख नहीं मिटी। सरपंच क्रोध में लाल-पीली आँखें करते हुये बोला-‘अरे! ताकी अटकते ते आकें नाक रगड़तो, हम काऊ ससुर के की देहरी पै नहीं जात।’

रामदयाल जाटव इन सभी बातों को मनोयोग से सुन रहा था। उसने भी अपने मन की बात कही-‘अरे! जनी को खसम आदमी होतो और आदमी को खसम पइसा है। अपये मतलब से दबके चलनों ही पत्तो। झें तो आँखें बता के लयें चाहतयें। बताऊ ऐसें को दे देगो। खून-पसीना एक भओ है तब मेरे झाँ वे नेक अनाज के दाने दिखा रहे हैं। सो बिनपै सब की नजर है। हमाये बारे तो मो पै नाज के काजें रोज चढ़े हैं।’

साहूकारों के सामने कुन्दन की पेशी की बात, वे तार के तार की तरह गाँव भर में फैल गई। जो इस पेशी की बात सुनता वह साहूकारों की चौपाल की तरफ चल देता। यों वहाँ अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई। राम दयाल जाटव की बात पर परसराम जाटव कह रहा था-‘नजर में कोऊ काऊ की नहीं चढ़ो। ज अकाल को टेम है, सो सबये अपनी-अपनी परी है। जई बात सोचिकें कुन्दन मास्टर ज बात कह रहे हैं। नहीं बिन्हें जा से का कन्नो है। और काऊ ने बिन्हें धौंस दई तो बिनके पीछे हू झें तमाम बैठे हैं। हम तो जौं जानतयें कै अब कोऊ ज गाँव से नाज ले जा कें देख ले। ताय पतो पज्जायगो।’यह कह कर वह वहाँ से चला आया।

उसकी यह बात सुनकर साहूकार भड़क उठे। सरपंच ने अपना फरमान जारी किया-‘मोय पइसा की जरूरत हती, सो कल एक गाड़ी अनाज अड्डा भेजनों परी । अब मैं भरवातों गाड़ीं, तुम रोकियो। आदमी मज्जायगो।’

   खुदाबक्स बड़ी देर से चुपचाप बैठा, सभी बातें सुनते हुये सह रहा था। उसे इनकी बातें सहन नहीं हुईं तो बोला-‘हम तो महाराज पहलें से ही मरै मराये हैं। मरै- मराय कों मारोगे तो हमाओ का बिगन्नों है। तुम्हाई सबरी इज्जत ठिकाने लग जायगी।’

मौजी बड़ी देर से पंचायत में आकर चुपचाप बैठ गया था। खुदाबक्स की बातें सुनकर बोला-‘अरे! सरपंच साब तुम हमाये बोट से सरपंच बने हो। तुम्हें हमाओ संग देनों चहिये कै नहीं?तुम तो उल्टे हम पै ही टडार रहे हो।’

इस बात पर सरपंच लाठी उठाने के लिये झपटे। ठाकुर लालसिंह ने उन्हें रोक लिया। क्रोध में भनभनाते हुये बोले-‘गाँव की जनता तो अभै हू हमाई तरफ है। तुम चार-छह लोग मिल गये हो, सो हमाओ का बिगन्नों है। तुम्हें कछू पतो है, मैंने काम के बदले अनाज मिलवे की व्यवस्था कर दई है। कल्ल- परसों से काम चलवायें देतों।’

ठाकुर लालसिंह ने अपनी राय दी-‘जे बातिन की रिपोट सोऊ थाने में कर देनों चहिये। झें आदमी मरिवे बारो है, तुम हो कै जिनके पीछें बी0डि0यो0 के झें चक्कर लगा रहे हो।’

रामहंसा काछी बोला-‘पुलिस ले चले हमें। हमें का है भें रोटी मिलंगीं।’

कुन्दन ने नरम पड़ते हुये सलाह दी-‘सरपंच साहब, अपनी सब की खैरियत इसी में है कि काम के बदले अनाज बारो काम जल्दी शुरू करवा देऊ। आप सब जानतओ। खाली दिमांग सैतान को घर होतो।’

परिस्थिति को समझते हुये सभी ने कुन्दन की बात का समर्थन किया। बात सुनकर मौजी चलने के लिये उठ खड़ा हुआ। यह देख बहुत से लोग उसके पीछे-पीछे चल दिये। मौजी के पीछे भीड़ दिखने लगी। यह देखकर तो साहूकारों के प्राण ही सूख गये।