तभी अचानक झाड़ियों में से आवाज़ आने लगी.... जिसे सुनकर तीनों अर्लट हो जाते हैं लेकिन बरखा इशिता के पीछे हो जाती है , , उसके डर को समझते हुए इशिता उसके हाथों से लालटेन लेकर खुद आगे बढ़ती है लेकिन तभी सुमित कहता है......" वीरा जी...!... संभलकर कहीं भेडिया न हो...."
इशिता गंभीर आवाज में कहती हैं....." चिंता मत करो मैं देख लूंगी.....तुम लालटेन पकड़ो..."
इशिता के कहने पर सुमित लालटेन पकड़कर उसके साथ आगे बढ़ता है.....
इशिता अपने बूट में से खंजर निकालकर उन झाड़ियों को काटते हुए आगे बढ़ती है.....
तभी उस अंधेरे को चीरती हुई लालटेन की रोशनी में दो चमकदार आंखें दिखाई देती है , , जिसे इशिता गौर से देखते हुए उसके पास जाने लगती है , सुमित और सोमेश उसे आगे जाने से रोकते हैं लेकिन उनकी बातों को इग्नोर करते हुए इशिता उसके पास पहुंचती है , जिसे देखकर एक गहरी सांस लेते हुए पीछे मुड़कर कहती हैं....." सुमित , सोमेश ये तो भेड़ है..."
इशिता की बात सुनकर सोमेश जल्दी से आगे आकर उसे देखकर हैरानी भरी आवाज में कहता है...." वीरा जी...!... इन्हें नंदिता लेकर आती है चराने...."
इशिता उसकी बात पर गौर करते हुए कहती हैं...." तो नंदिता यही आसपास होगी फिर....?... सुमित तुम बरखा के पास रुको मैं और सोमेश आगे जाते हैं....."
इशिता की बात पर सुमित बरखा को देखते हुए कहता है...." वीरा जी....! इस डरपोक को साथ नहीं लाना चाहिए था...."
बरखा उसे घूरते हुए कहती हैं...." डरपोक नहीं हूं मैं , , वीरा मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी..."
दोनों की बहस को आगे न बढ़ाते हुए इशिता हामी भरते हुए कहती हैं....." ठीक है फिर , बरखा और सुमित तुम दूसरी तरफ देखो मैं और सोमेश सामने जाते हैं...."
इशिता सोमेश के साथ आगे चली जाती हैं..... काफी ढूंढ़ने पर भी नंदिता उन्हें नहीं मिली , ,
सूरज की लालिमा छाने लगी थी , पूरी रात नंदिता को ढूंढ़ने पर भी उनके हाथ केवल निराशा ही लगी.... चारों काफी थक चुके थे , इशिता के ध्यान बार बार ढलान वाली झाड़ियों की तरफ जा रहा था , ,
जिसे देखकर इशिता बरखा से कहती हैं....." बरखा हमने उस तरफ नहीं देखा न..."
बरखा इशिता की नजरों का पीछा करते हुए कहती हैं...." हां वीरा. .."
इशिता उसी झाड़ियों की तरफ बढ़ती है , , झाड़ियों के किनारे एक नीले रंग का दुपट्टा दिखाई देता है , जिसे देखकर इशिता जल्दी से उसके पास पहुंचती है , ,
दुपट्टे को इशिता हैरानी से उसे देखते हुए कहती हैं....." बरखा , , नंदिता....."
नंदिता उन झाड़ियों के किनारे बेहोश पड़ी थी , जिसे पलटकर देखते हुए इशिता कहती हैं...." इसे तो काफी चोट लगी है....."
सोमेश जल्दी से अपनी बहन के पास आकर उसे संभालते हुए इशिता से कहता है..." वीरा जी...!...मेरी बहन की ये हालत कैसे हुई होगी...?...."
इशिता उसे समझाते हुए कहती हैं...." सोमेश चिंता मत करो नंदिता ठीक हो जाएगी.... अभी कुछ कहा नहीं सकते इसकी ये हालत कैसे हुई है...."
सोमेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहती हैं...." सोमेश नंदिता को उठाओ , ..."
सोमेश नंदिता को गोद में उठाकर वापस जाने लगता है , लेकिन तभी इशिता के पीछे किसी की गन प्वाइंट आ जाती है.............
........to be continued..........