Veera Humari Bahadur Mukhiya - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

वीरा हमारी बहादुर मुखिया - 8

निराली : वीरा बेटी... अपने बारे में भी कुछ बताओ.... मां बाबा कहां तुम्हारे....?
निराली के सवाल करते ही सबकी निगाहें वीरा पर थम गई.. लेकिन इशिता थम सी गई.... अचानक ही उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े....
" हां हां मुखिया जी बताइए..."
बरखा : क्या हुआ वीरा....?
इशिता : कुछ नहीं ... मां पापा नहीं है इस दुनिया में...मैं उन्हें नहीं बचा पाई (इतना कहकर इशिता वहां से चली जाती हैं)....
निराली : मैंने गलत सवाल कर दिया उससे....!
मेयर : निराली तुम्हें ऐसा सवाल नहीं करना चाहिए था....और आप सब भी ध्यान रखना कोई भी उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई सवाल नही करेगा ...हम नहीं चाहते हमारी वजह से उन्हें ठेस पहुंचे..... बरखा तू जा वीरा के पास....
बरखा : जी मेयर जी.....(बरखा वहां से सीधा वीरा के पास जाती है)...
मेयर : आप सब भी जाइए रात बहुत हो चुकी है....
उधर रांगा के मन में अलग ही हलचल चल रही थी...
" सरदार ...."
रांगा : ऊमी तुम आओ.....!(ये है ऊमी रांगा की व्यक्तिगत साहायिक जिसपर रांगा को बहुत विश्वास है)
ऊमी : सरदार खाना खा लिजिए.....आप की परेशान लग रहें हैं (ऊमी ने खाना परोसते हुए कहा)....... सरदार भीमा बता रहा था आज आपने गांव को नहीं लूटा....
रांगा : नहीं ऊमी .....हम तो गांव लूटने गये थे लेकिन खुद ही लूट गये....
ऊमी : क्या कह रहे हैं सरदार (ऊमी चिढ़ जाती है क्योंकि वो अन्दर ही अन्दर रांगा से प्यार करने लगी थी)....कौन है वो....?
रांगा : ऊमी ..... बहुत अलग है वो .... साहसिक.... आंखों में डर का निशान नहीं है निडर और साक्षात सौंदर्य की मूर्ति है वो जिसने रांगा को अपने कैद में कर लिया है...
ऊमी : सरदार है कौन जिसे आप ने आज से पहले कभी नहीं देखा...हर लड़की को आप बखूबी जानते हैं...
रांगा : वीरा.....अचलापूर की नई मुखिया.....
ऊमी : अचलापूर की मुखिया....पर सरदार जहां तक मुझे याद है अचलापूर की तो कोई मुखिया नहीं है....!
रांगा : नहीं थी लेकिन उन्हें बचाने आई है वो शहर से....
ऊमी : वो शहरी है.....
रांगा : हां ऊमी .....अब मैं चाहता हूं वही मेरी पत्नी बनेगी...पर उसके हावभाव से लगता नहीं है वो इतनी आसानी से मानेगी.....
ऊमी : तो सरदार....आप आपके लिए तो हरेक लड़की तैयार है.....
रांगा : यही तो ऊमी मुझे वो चाहिए जो मुझे पसंद है...और मैं उसे हर किमत पर अपना कर ही रहूंगा.....
ऊमी जो पहले ही रांगा की बातों को बेमन से सुन रही थी अंदर ही अंदर वीरा की बैरी बन चुकी थी.... इसलिए रांगा को उकसाती है
ऊमी : सरदार .....एक उपाय है....
रांगा की आंखे चमक उठती है " बोल फिर.."
ऊमी : सरदार ....उसे अगवा कर लिजिए......
रांगा अचानक चिल्ला उठता है." क्या बकवास कर रही है रांगा किसी का अपहरण जब ही करता है जब बात उसके हाथ से निकल गई हो...."(वहां से उठकर चला जाता है)...
ऊमी : ये क्या नई मुसिबत गले पड़ गई ....तारा के बाद सोचा था मुझे ही सरदार अपना बनाएंगे .... कुछ करना पड़ेगा मेरे और सरदार के बीच कोई नहीं आ सकता...!
रांगा बाहर पहुंचकर अपने सबसे खास गुप्तचर को बुलाता है.....
रांगा : भीमा......निमि और योम को बुलाओ ....
भीमा : जी सरदार....
भीमा दोनों को बुलाता है...." सरदार ये आ गये.."
रांगा : निमि और योम तुम दोनों अचलापूर जाओ और वहां की हरेक खबर मुझतक पहुंचानी है तुम्हें...और निमि तुम वीरा तक पहुंचना है तुम्हें उसका विश्वास जितकर ... वीरा की पल पल की खबर मुझतक पहुंचनी चाहिए......जाओ....
रांगा के काम को पूरा करने के लिए दोनों अचलापूर पहुंचते हैं.....(क्या इनका आना वीरा के लिए खतरा है...?)



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