ये ऐसा क्षण था जब ऐश एक विचित्र सी मनस्थिति में थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस घटना को किस तरह ले।
जो बूढ़ा चाचा एक दिन पहले रात के अंधेरे में ऐश से प्यार जताने आया था वह अकस्मात शिकारी के तीर से मारा गया।
ये ज़िंदगी है, बस, और कुछ नहीं सोचा ऐश ने। किसी से प्यार जताना कोई गुनाह तो नहीं है।
सच पूछो तो भीतर से सब प्यार के भूखे हैं, किसी को बुरा नहीं लगता वो। ऐश को भी तब बुरा इसीलिए तो लगा था कि वो नींद में अचानक पहले से बिना कुछ जताए सीधे चरम- क्रीड़ा पर उतर आया? अरे, कम से कम उसे ऐश की इच्छा- अनिच्छा तो जाननी चाहिए थी।
अच्छा, अगर वो कोई युवा खूबसूरत नर होता तब भी क्या ऐश इसी तरह सोचती? शायद नहीं! शायद हां! जाने दो।
ऐश ये सब क्या जाने? वह तो ख़ुद अभी प्यार की तलाश में निकली है। कम से कम ये तो प्यार नहीं है, किसी के तन से खेलना।
बूढ़ा चाचा जान से गया और ऐश को रोना नहीं आया। हां, अपने एक साथी के गुज़र जाने की सहानुभूति तो है ही। सहज वृत्ति, जीव की, प्राण की।
इन उड़ते परिंदों ने अपना अगला पड़ाव एक बेहद खूबसूरत जगह पर डाला।
ये एक पहाड़ की तलहटी में बनी झील थी जो अपने किनारों पर ऊबड़ - खाबड़ पत्थरों के छोटे - छोटे टापुओं से घिरी हुई थी।
डेरा डालते ही सब साथी - गण हरकत में आ गए। कुछ झील में तैरने लगे तो कुछ आसपास के सूखे - हरे पेड़ों पर सुस्ताने बैठ गए।
ऐश ने देखा कि एक लड़का धीरे- धीरे चलता हुआ पानी के पास आ रहा है। किनारे पर मंद- मंद तैरती ऐश पहले तो कुछ चौकन्नी हुई कि लड़का कहीं कोई बहेलिया न हो जो उन निर्दोष पंछियों को पकड़ने के लिए कोई नुकसान पहुंचा दे किंतु जल्दी ही उसे पता चल गया कि लड़के का उन पखेरूओं की मंडली से कोई लेना- देना नहीं है।
वह तो एक चरवाहा था जिसके पीछे- पीछे कुछ ही दूरी पर उसकी भेड़ों का झुंड दिखाई दे रहा था। भेड़ें चरने में तल्लीन थीं।
ऐश लहरा कर गोलाकार तैरती हुई अठखेलियां करती रही।
लड़का तो जीवों का रखवाला था। जब उसके पास ख़ुद अपने पालतू पशु थे तो वो भला दूसरे जीवों को क्यों नुकसान पहुंचाता?
तो फिर वो अपने मवेशियों को छोड़ कर इस तरफ़ आ क्यों रहा था, इस शंका का भी जवाब जल्दी ही मिल गया।
दरअसल लड़का पानी के किनारे कुछ दूरी पर शौच के लिए बैठ चुका था इसीलिए अब वो नितंब - प्रक्षालन के लिए पानी के करीब आ रहा था। लड़का शरीर धोने के लिए जैसे ही नीचे बैठा ऐश का ध्यान सहज ही उधर चला गया। एक पल के लिए तो उसे लगा जैसे बैठे हुए लड़के के हाथ में उसका जैसा ही कोई पखेरू है। बिल्कुल उसकी सी गर्दन तो थी।
पर नहीं, लड़का तो झट से खड़ा हुआ और मुड़ कर वापस भी चला गया।
अपना नाड़ा बांधता हुआ लड़का भेड़ों की ओर बढ़ गया जो चरती- चरती काफी आगे तक निकल गई थीं। और कुछ पंछियों के साथ - साथ ऐश का भी ध्यान उधर गया जब सबने एक भेड़ के ज़ोर- ज़ोर से मिमियाने की आवाज़ सुनी।
एक सूखी झाड़ी पर दोनों पैर ऊपर टिकाए पत्ते खाती वो भेड़ शायद किसी झाड़ में फंस गई थी और अब चिल्ला रही थी। लड़के ने उधर देखा, और बिजली की सी गति से लपक कर भेड़ को छुड़ाया। भेड़ उसकी ओर कृतज्ञता से देखती हुई आगे बढ़ कर अपने झुंड में जा मिली।
ऐश के साथ तैर रहे एक बगुले ने कहा - देखो, ये जानवर कितने भाग्यशाली हैं, इनके साथ- साथ एक मानव भी इनकी हिफाज़त करता हुआ घूम रहा है। हम सबको तो अपनी देखभाल ख़ुद करनी पड़ती है।
तभी पत्थर पर बैठा एक और बगुला बोल पड़ा - ये इनके लिए किसी का प्यार - व्यार नहीं है। ये इंसान इनकी हिफाज़त नहीं कर रहा, बल्कि ख़ुद अपनी हिफाजत करता घूम रहा है क्योंकि इन्हीं से तो इसे लाभ मिलेगा। कल ये इनके बालों को भी बेचेगा और दूध को भी।
- बालों को क्यों? एक युवा बगुले ने पूछा।
- उसी से तो ऊन बनती है। जब तेज़ सर्दी पड़ती है तो हम तो अपने पंखों में दुबक कर किसी पेड़ की खोह में छिप जाते हैं पर ये आदमी लोग शान से फर और ऊन के कपड़े पहने घूमते हैं।
- सारी खूबियां हैं इनमें, बस एक ऐब है...एक प्रौढ़ सी बतख बोली, ...ये खुदगर्ज होते हैं!
- कौन?
- इंसान! और कौन।
- ऐसा मत बोल। इंसान इनसे फ़ायदा उठाते हैं तो क्या, इनका ख्याल भी तो करते हैं। इन्हें पालतू बना कर अपने घर में रखते हैं। इनके दाना- पानी और सुरक्षा का इंतजाम करते हैं। अभी अगर जंगल में कोई भेड़िया आ कर इन्हें खा जाए तो कौन बचाएगा इन्हें? यही लड़का तो!
- एक हम हैं जो अपना दाना - पानी भी खुद तलाश करो, सुरक्षा भी खुद करो, देखो, कैसे उस जल्लाद ने हमारे एक साथी को मार दिया! बगुला बोला।
तभी सब उड़ कर उस किनारे की ओर झपटे जहां अभी- अभी उनके एक साथी ने पानी में से एक टहनी खींच कर निकाली थी। इसमें खाने के लिए बहुत सा माल - मसाला था।